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पांचवां अध्ययन
वस्त्र EER
भिक्षु या भिक्षुणी को वस्त्र की जरूरत पड़ने पर वह उन, रेशम सन, ताडपन्न आदि, कपास या रेशे के बने वस्त्र मागे । जो भिक्षु बलवान, निरोगी और मजबूत हो, वह एक ही वस्त्र पहिने, भिक्षुणी (साध्वी) चार वस्त्र पहिने, एक दो हाथ का, दो तीन हाथ के और एक चार हाथ का । इतनी लम्बाई वाले न मिले तो जोडकर बना ले । [१४]
भिक्षु या भिक्षुणी वस्त्र मांगने के लिये दो कोस से दूर जाने की इच्छा न करे । [ १४२]
जिस वस्त्र को गृहस्थ ने एक या अनेक सहधर्मी भितु या भिक्षुणी के लिये या खास संरया के श्रमणब्राह्मण आदि के लिये हिसा करके तैयार किया हो, खरीदा हो (खण्ड २ रे के अ० १ ले के सूत्र ६-८, पृष्ट ७६ में पिंडैपणा के विशेषण के अनुसार) उस वस्त्र को सदोप जानकर न ले।
और जिस वस्त्र को खास सस्या के श्रमणब्राह्मण के लिये नहीं पर चाहे जिस के लिये ऊपर लिखे अनुसार तैयार कराया हो और उसको पहिले किसी ने अपना समझ कर काम से न लिया हो तो भिन्नु उसको सदोष जानकर न ले; पर यदि उसको दूसरो ने अपना समझ कर पहिले काम में लिया हो उसको नि:प समझ कर ले ले । [१४३]