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চাষাবা ।
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भितु भाषा के इन चार मेदों को जान-प्य, शमा, बुन्द्र सत्य कुछ असत्य, न सन्य शौर न शपय । [३२]
इन चारों प्रकार की भाषाओं में से जो कोई मर, कम्य कराने वाली, कश, कडवी, निटर, कोर, अनर्थकारी, जीमी का छेदन-भेटन और उनको श्रावात परिताप काने वाली हो, उसे जान कर न बोले । परन्तु जो भापा सन्य, सूचन ( ऊपर से श्रवन्य जान पड़ती है, पर वास्तव में सत्य होती है) न सग्य या न श्रमस्य और उपरोक्त दोषो से रहित हो, उनी को जानकर बोले । [१३३ ]
भिनु किमी को बुलाता हो और यदि नह न सुने तो उसको श्रवज्ञा से चांडाल, कुत्ता, चोर, दुराचारी, मूत्रा प्रादि सम्बोधन न करे, उसके माता पिता के लिये भी ये शब्द न कहे, परन्तु ' हे अमुक, हे श्रायुप्मान् , हे श्रावक, हे उपासक है धार्मिक, हे धर्मप्रिय, ऐसे शब्द से सम्बोधन करे, मी को सम्बोधन करने समय भी ऐसा ही करे। [१३४]
भिक्षु अाकाश, गर्जना गोर विजली को देव न कहे। इसी प्रकार देव वरमा, देव ने वर्षा बन्द की, अादि भी न कहे। और वर्षा हो या न हो, सूर्य उदय हो या न हो, राजा जीते या न जीते, भी न कहे। श्राकाश के लिये कुछ कहना हो तो नभादेव या ऐसा ही कुछ कहने के बदले में अंतरित' कहे। देव बरसा ऐसा कहने के बदले यह कहे कि बादन इकटे हुए, या बरसे । [१३५]
भिक्षु या भिक्षुणी हीन रूप देखकर उसको वैया ही न कहे । जैसे, सूजे हुए पैर वाले को 'हाथीपग्गा' न कहे, कोढ वाले को 'कोठी, न कहे, अादि । संक्षेप में, जिसके कहने पर सामने वाला मनुष्य नाराज हो, ऐसी भापा जान कर न बोले ।