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श्राचारांग सूत्र
शांति से संयम पूर्वक चलता रहे। यदि मार्ग में लुटेरों का झुंड मिल जाय तो भी ऐसा ही करे। लुटेरे पास श्राकर कपडे श्रादि मांगे चा निकाल देने को कहें तो वैसा न करे । इस पर ये बुद्र छीन लें तो फिर उनको नमस्कार, प्रार्थना करके न मागे, पर उपदेश देकर मांगे या मौन रहकर उस की उपेक्षा करटे । और, यदि चोरोने उसे मारापीटा हो तो उसे गाव या राजदरबार में न कहता फिरे, किसी को जाकर ऐसा न कहे, कि, 'हे श्रायुप्मान् ! इन चोरोंने मेरा ऐसा किया, वमा किया।' ऐसा कोई विचार तक मन में न करे। परन्तु व्याकुल हुए बिना शान्त रहकर सावधानी से चलता रहे। [१३१]
पानी को कैसे पार करे ? एक गांव से दूसरे गाव जाते समय मार्ग में कमर तक पानी हो तो पहिले सिर से पैर तक शरीर को जीवजन्तु देखर साफ करे, फिर एक पैर पानी में, एक पैर जमीन पर ( एक पानी में तो दूसरा ऊपर ऊंचा रखकर दोनों को एक साथ पानी में नहीं रखकर) रसकर सावधानी से अपने हाथ पैर एक दूसरे से न टकरावे, इस प्रकार चले।
पानी में चलते समय शरीरको ठंडक देने या गरमी मिटाने के विचार से गहरे पानी में जाकर गोता न लगाये पर समान पानी में ही होकर चलता रहे । उस पार पहुंचने पर शरीर गीला हो तो किनारे ही खड़ा रहे गीले शरीर को सुखाने के लिये उसे न पोछे, न रगड़े, न तपावे पर जब अपने श्राप पानी सूख जावे तो शरीर को पोछकर आगे बढे । [१२४]