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विमोह
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यदि भिक्षु को ऐसा जान पडे कि मैं अकेला हूँ, नहीं है और न मैं किसी का हूँ तो वह अपनी हो समझे। ऐसा समझने वाला भिक्षु उपाधि से और उसका तप चढता है | भगवान द्वारा बताये बराबर समझ कर वह समभाव से रहे । [ २१६ ]
है, और हितकर, सुखकर, योग्य और सदा के लिये नि श्रेयसरूप
है । [ २११ ]
[ ५३
मेरा कोई
श्रात्मा को अकेला
मुक्त हो
हुए इस
जाता है मार्ग को
यदि किसी भिक्षु को ऐसा जान पडे कि मैं रोग से पीडित अशक्त हूँ और भिक्षा के लिये एक घर से दूसरे घर नहीं जा सकता, उसकी ऐसी स्थिति समझ कर कोई दूसरा उसको श्राहार पानी लाकर दे तो उसको तुरन्त ही विचार कर कहना चाहिये कि, 'हे श्रायुष्मान् तुम्हारा लाया हुया यह ग्राहार- पानी मुझे स्वीकार करने योग्य नहीं है ।' [ २१६ ]
इसी प्रकार किसी भिक्षु का ऐसा नियम हो कि मैं सेवा करूँगा, पर अपनी सेवा दूसरे से नहीं कराऊँगा, दूसरो की सेवा नहीं करूँगा पर दूसरे मेरी सेवा करेंगे तो
किसी भिक्षु का ऐसा नियम हो कि, बीमार होने पर मै दूसरे को अपनी सेवा करने के लिये नहीं क्हू पर ऐसी स्थिति में यदि समान धर्मी जो अपने आप ही मेरी सेवा करना चाहें तो स्वीकार कर लूँ, और इसी प्रकार में अच्छा हो जाऊँ तब कोई समान धर्मी बीमार हो जाये तो उसके न कहने पर मैं उसकी सेवा करूँ तो वह भिक्षु अपने नियम को वरावर समझ कर उस पर दृढ रहे । [ २१७ ]
दूसरे की
श्रथवा मैं इनकार