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१०]
आचारांग सूत्र rawad नहीं तो किसी भी मकान में उसका ढांकना, लीपना, दरवाजे-खिटकी
और इसी प्रकार भिनान्न (भिजु के योग्य) शुद्ध नहीं ही होते । और भिनु समय-समय पर चंक्रमन (जाना-बाना) करता है, स्थिर बैठता है, स्वान्याय करता है, सोता है और भिक्षा मांगता है। इन सब कामो के लिये उसको अनुकुल स्थान मिलना कठिन है । ऐसा सुनकर कोई गृहस्थ भिक्षु के अनुकुल स्थान तैयार कर रखते हैं; उसमें कुछ समय खुद रहकर या दूसरेको उसका कुछ भाग बेचकर अपनी बुद्धि के अनुसार उसको भिन्नु के योग्य बना रखते हैं। इस पर प्रश्न उठता है कि भिक्षु का अपने ठहरने के योग्य या अयोग्य स्थान का वर्णन गृहस्थ के सामने करना उचित है या नहीं ? हां, उचित है । (ऐसा करते समय उसके मन में अन्य कोई इच्छा नहीं होना चाहिये ।
विछाने की वस्तुएँ कैसे मांगे ? भिन्नु को, यदि बिछाने की वस्तुओं (पाट, पाटिया आदि) की जरूरत पड़े तो वह बारीक जीवजन्तु आदि से युक्त हो तो न ले परन्तु जो इनसे सर्वथा रहित हो, उसी को ले। उस को भी यदि दाता वापिस लेना न चाहता हो तो न ले पर यदि उसे वापिस लेना स्वीकार हो तो ले ले । और, यदि वह वहुत शिथिल और टूटा हो तो न ले पर दृढ़ और मजवृत हो तो ले ले। [१६] .
इन सब टोपो को त्याग कर भिन्तु को बिछाने की वस्तुओ को मांगने के इन चार नियमों को जानना चाहिये और इनमें से एक को स्वीकार करना चाहिये।
१. भिक्षु घास, दूब या पराल श्रादि में से एक को, नाम अताकर गृहस्थ से मांगे। घास, तिनका, दूब, पराल बांस की