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भिक्षा
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कैसा पानी ले-कैसा न ले ? भिक्षु, आटा (वर्तन, हाथ आदि) धोया हुआ, तिही धोया हुआ चावल धोया हुया या ऐसा ही पानी, ताजा धोया हुआ, जिसका स्वाद न फिरा हो, परिणाम में अन्तर न पडा हो, निर्जीव न हुआ हो तो सदोप जानकर न ले परन्तु जिसको धोए बहुत देर होने से उसका स्वाद बदलने से बिलकुल निर्जीव हो गया हो तो उस पानी को निर्जीव समझकर ले।
भिक्षु तिल्ली, चावल और जो का (धोया हुआ) पानी, मांड (ोसामन), छाछ का नितार, गरम या ऐसा ही निर्जीव पानी देख कर उसके मालिक से मांगे, यदि वह खुद लेने का कहे तो खुद ही ले ले अथवा वही देता हो तो ले ले। निर्जीव पानी जीवजन्तु वाली जमीन पर रक्खा हो, अथवा गृहस्थ उसको सजीव पानी या मिट्टी के बर्तन से देने लगे या थोडा ठंडा पानी मिला कर देने लगे तो वह उसको स्टोप समझ कर न ले। [४१-४२]
__ प्राम, केरी, विजोरा, दाख, अनार, खजूर, नारियल, केला, वैर श्रावला, इमली आदि का पना बीज आदि से युक्त हो अथवा उसको गृहस्थ छान-छून कर दे तो भिक्षु सदोष समझ कर न ले। [४३ ]
सात पिंडैपणाएँ और पानैषणाएँ
(आहार-पानी की मर्यादा विधि) १ बिना भरे हुए (खाली, सूखे) हाथ और पात्र से दिया हुआ निर्जीव आहार स्वयं मांगकर या दूसरे के देने पर ग्रहण करे ।
२ भरे हुए हाथ और पात्र से दिया हुया निर्जीव श्राहार ही ले ।