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श्राचारांग मूत्र
प्रमाद बढाने वाली समझ कर, उठ कर दूर करने ! कभी कभी मुहूर्त तक रात में चंक्रमण करते रहते । [२४-२६ ]
उन स्थानो पर भगवान को अनेक प्रकार के भयंकर संकट पड़े। उन स्थानो पर रहने वाले जीव-जन्तु उनको कष्ट देते। नीच मनुष्य भी भगवान को बहुत दुख देते। कई बार गांव के चौकी दार हाथ मे हथियार ले कर भगवान को सताते | कभी कभी विषय वृत्ति से स्निग या पुल्प भगगन को तंग करने । रात में अकेले फिरने वाले लोग वहां भगवान को अकेला ठेख कर उनसे पूछताछ करते । भगवान के जवाब न देने पर तो वे चिढ ही जाते थे। कोई पूछता कि यह कौन है ? तो भगवान कहते, 'मैं भिक्षु हूँ। अधिक कुछ न कहने पर वे भगवान पर नाराज हो जाते पर भगवान तो ध्यान ही करते रहते। [३०-३१, ३४-३५]
जहां दूसरे अनेक लोग ठहरते थे, वहां रहने पर भगवान स्त्रियो की तरफ दृष्टि तक न करते, परन्तु अन्तर्मुख रह पर ध्यान करते थे। पुरुपो के साथ भी वे कोई सम्बन्ध न रख कर ध्यान में ही मन्न रहते थे। किसी के पूछने पर भी वे जबाव न देते थे। कोई उनको प्रणाम करता तो भी वे उनकी तरफ न देखते थे। ऐसे समय उनको मूढ मनुष्य मारते और सताते थे। वे यह सब समभाव से सहन करते थे। इसी प्रकार पारयान, नाटक, गीत, दंडयुद्ध, मुष्टियुन्द
और परस्पर कथावार्ता में लगे हुए लोगो की ओर कोई उत्सुकता रखे बिना वे शोकरहित ज्ञातपुत्र मध्यस्थ दृष्टि ही रखते थे। अमद्य दु खो को पार करके वे मुनि समभाव से पराक्रम करते थे। इन संकटो के समय वे किसी की शरण नहीं हूंढते थे। [६-१०]
भगवान दुर्गस प्रदेश लाड में, वज्रभूमि और शुभ्रभूमि में भी विचरे थे। वहां उनको एकदम बुरी से बुरी शय्या और प्रासन