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आचाराग सूत्र
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हो, बाहर पडाव डाले हो, यात्रा मे हो, या उनके यहां से निमन्त्रण मिला हो या न मिला हो । [२१] टिप्पणी-ये सब अतिरस्कृत कुल है पर वही दूसरे दोष होने के कारण
इनका निषेध किया गया है । __ और, जिन घरो पर सता अन्नदान दिया जाता हो, प्रारम्भ मे देव आदि के निमित्त अग्रपिड अलग रख दिया जाता हो या भोजन का श्राधा या चौथा भाग दान में दिया जाता हो और इनके कारण वहां अनेक याचक सदा पाते हो, वहा भिक्षा के लिये कभी न जावे। [] _और, भिक्षा के लिये जाते हुए मार्ग मे गढ, टेकरी, गड़े, खाई, कोट, दरवाजे या अर्गला पड़ती हो तो उस मार्ग पर वह भिक्षा के लिये न जावे। यह मार्ग सीधा और छोटा हो तो भी इस पर न जाने क्योकि भगवान ने इस मार्ग से जाने में अनेक दोप बताये है। दूसरा रास्ता हो तो भले ही उधर जावे । जिस मार्ग से जाने से गिर पड़े और लग जावे या वहां पड़े हुए मल-मूत्र आदि शरीर से लग जावे, उधर न जावे। यदि कभी ऐसा हो जाय तो शरीर को सजीव, गीली मिट्टी, पत्थर, ढेले या लकड़ी आदि से न पोछे परन्तु किसी के पास से निर्जीव घास, पत्ते, लकड़ी या रेती मांग लावे और एकान्त में निर्जीव स्थान देख कर, उसे साफ़ कर वहां साधवानी से शरीर को पोछ ले। [२६]
इसी प्रकार जिस मार्ग में मरकने भयंकर पशु खड़े हो अथवा गड़े, कीले, कांटे, दरार या कीचड हो अथवा जहां मुनें, कौए आदि पक्षी और सुअर आदि जानवर वलि खाने को इकट्ठे हो उस मार्ग