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याचागंग सूत्र
ठंडा कर देने लगे तो भिक्षु न ले, परन्तु पहिले ही से कह दे कि ऐसा दिये बिना ही आहार देना हो तो दो। [३६]
मुनि गन्ने की गाठ, गांठ वाला भाग, रस निकाल लिये हुए टुकडे, गन्ने का लम्बा हिस्सा या उमका टुकडा अथवा मूंग आदि की बफी हुई फली श्रादि वस्तुएँ जिनमे खाने का कम और छोड़ने का अधिक हो, को न ले । [१८]
(भिचु ने खांड मांगी हो और ) गृहस्थ (भूल से) समुद्रनमक या बीड़ नमक लाकर दे, और भिक्षु का मालुम हो जाय तो न ले । पर यदि गृहस्थ उसको जल्दी से पात्र मे डाल दे और बाद में भिक्षु को मालुम हो जाय तो वह दूर चले जाने के बाद भी वापिस उस गृहस्थ के पास आवे और उससे पूछे कि, तुमने मुझे यह जानते हुए दिया या अजानते हुए ? यदि वह कहे कि, “मैं ने जानते हुए तो नहीं दिया पर अब राजी से आपको देता हूँ। इस पर वह उसको खाने के काम में ले ले । यदि बढ़े तो अपने पास के समान धर्मी मुनियो को दे दे। ऐसा संभव न हो तो अधिक आहार के नियम से उसको निर्जीव स्थान पर डाल दे। [२६]
जिस आहार को गृहस्थ ने एक या अनेक निर्ग्रन्थ सावु या साध्वी के उद्देश्य से या किसी श्रमणब्राह्मण प्राठि के उद्देश्य से जीवो (छ काय) की हिसा करके नैयार क्यिा हो, खरीदा हो, माग लाया हो, छीन लाया हो, (दूसरे के हिस्से का) समति बिना लाया हो, मुनि के स्थानपर घर से, गांव से ले जाकर दिया हो तो उस सटोप आहार को भिक्षु कदापि न ले।