________________
७०] -
याचागंग सूत्र
जगह मे सबकी दृष्टि से बच कर खडा रहे, और मालुम होने पर कि वे सब आहार लेकर अथवा न मिलने से वापिस चले गये हैं, तब सावधानी से भीतर जा कर भिक्षा ले । नहीं तो हो सकता है, वह गृहस्थ मुनि को प्राया देख कर उन सबको अलग करके अथवा उसके लिये फिर भोजन तैयार करके उनको आहार दे, इस लिये सायु ऐसा न करे। [२६-३० ]
भिक्षु गृहस्थ के यहां भिक्षा मागते समय उसके दरवाजे से लग कर खड़ा न हो, उसके पानी डालने या कुल्ला करने के स्थान पर खड़ा न हो, उसके स्नान करने या मल त्याग के स्थान पर दृष्टि गिरे इस प्रकार वा उनके रास्ते में खड़ा न हो, तथा घर की खिड़क्यिो या कामचलाऊ पाड़ या छिद्र अथवा पनटेरी की तरफ हाथ उठाकर या इशारा करके ऊंचा- नीचा हो कर न देखे। वह गृहन्थ से (ऐसा-ऐग दो) अंगुली बता कर न मांगे। उसको इशारा कर, धमका कर, खुजला कर या नमस्कार करके कुछ नहीं मांगना चाहिये और यदि वह कुछ न दे तो भी कठोर वचन नहीं कहना चाहिये । [२]
भिक्षा मांगने कब न जावे ? गृहस्थ के घर भिक्षा मागने जाने पर मालुम हो कि अभी गायें दोही जा रही है, भोजन तैयार हो रहा है और दूसरे याचको को अभी कुछ नहीं दिया गया तो भीतर न जावे परन्तु किसी की दृष्टि न गिरे, इस प्रकार अलग खडा रहे; फिर मालुम होने पर कि गायें दोह ली गई, भोजन तैयार हो चुका और याचको को दिया जा चुका है तब सावधानी से जाये। [२२]