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लोकसार
प्रकार इस संसार प्रवाह मे ज्ञानी पुस्प हैं। ये सब गुणसंपत्तियो से परिपूर्ण होते हैं, समभावी होते है और पाप रूपी मल से निर्मल होते हैं। जगत के छोटे बड़े सब प्राणियो की रक्षा में लीन रहते है और उनकी सब इन्द्रियो विपयो से निवृत्त होनी हैं। ऐसे महर्षियों की इस संसार में कोई इच्छा नहीं होनी । वे काल की राह देखते हुए जगत में विचरते है। [१६०]
ऐसे कुशल मनुष्य की दृष्टि में, ऐसे कुशल मनुष्य के बताए हुए त्याग मार्ग मे, ऐसे कुशल मनुष्य के श्रादर में, ऐसे कुशल मनुष्य के समीप संयमपूर्वक रहना चाहिये और ऐसे कुशल मनुष्य के मन के अनुसार चलना चाहिये। विनयवान शिष्य को इनकी सब तरह से सेवा करना चाहिये। ऐसा करने वाला संयमी इन्द्रियों को जीत कर सत्य वस्तु देख सकता है। [ १५७, १६७ ]
___ जिसकी अवस्था और ज्ञान अभी योग्य नहीं हुए ऐसे अधूरे भिनु को ज्ञानी की अनुमति के बिना गांव-गांव अकेला नहीं फिरना चाहिये। ज्ञानी की यात्रा के बिना वाहर का उसका सब पराक्रम व्यर्थ है। [ १५६]
क्तिने ही मनुष्य शिक्षा देने पर नाराज होते है। ऐसे वमण्डी मनुष्य महा मोह से घिरे हुए है। ऐसे अज्ञानी और अंधे मनुष्यों को बारबार कठिन बाधाएं होती रहती हैं। हे भिक्षु ! तुझे तो ऐसा न होना चाहिये, ऐसा कुशल मनुष्य कहते है। [ १५७ ]
गुरु की श्राक्षा के अनुसार अप्रमत्त होकर चलने वाले गुणवान संयमी से अनजान में जो कोई हिसा आदि पाप हो जाता है तो उसका बन्ध इसी भव से नष्ट हो जाता है। परन्तु जो कर्म अनजार