Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे पडिगाहेज्जा ।सू०४॥
छाया-स भिक्षुर्वा, भिक्षुकी वा यावत् प्रविष्टः सन् स याः पुनः औषधीः जानीयात्, अकृत्स्नाः अस्वाश्रयाः द्विदलकृतः तिरश्चीनच्छिमाः, व्यवच्छिन्ना, तरुणीं वा फलिकाम् अभिक्रान्ताम् भग्नाम् प्रेक्ष्य प्रामुकम् एषणीयं मन्यमानो लामे सति प्रतिगृह्णीयात् ॥२०॥
टीका-मर्मप्रकाशिका-अथ पूर्ववपरीत्येनाह-'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा जाव पबिहे समाणे-' इत्यादि। स पूर्वोक्तो भावभिक्षुः साधुर्वा, भाव भिक्षुकी साध्वी वा यावत्-गृहपतिकुलं पिण्डपातप्रतिज्ञया अनुप्रविष्टः सन् स भावभिक्षुः याः पुनः औषधीः-फलपाकान्ताः वनस्पतिविशेषा शालिगोधूमादिबीजादिकाः यदि एवं रीत्या जानीयात्-अवगच्छेत, तांरीति वक्तुं ताः औषधीः कीदृशी तदाह-'अकसिणाओ' इत्यादि । अकृत्स्नाः -असंपूर्णाः उपहताः अचित्ताः तत्र द्रव्यतः अकृत्स्नाः शस्त्रोपहताः, भावतः अकृत्स्नाः अचित्ता इत्यर्थः पुनस्ताः औषधयः कीदृश्यः इत्याह-असासियाओ-अस्वाश्रया:-विच्छिन्नमला: विनष्टयोनय इत्यर्थः, एवं द्विदलकृताः-कृतद्विदलभागाः ऊर्ध्वपाटिता इत्यर्थः, एवं तिरश्चीनच्छिमा-तिरश्छेदसहिताः तियकछिनाः, एवं व्यवच्छिम्मा:-जीवरहिताः ताः औषधयः सन्ति इत्येवं ता टीकार्थ-अब किस प्रकार की औषधियों और फलियों को लेना चाहिये यह बातलाते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविढे समाणे' स-वह पूर्वोक्त भाव साधु और भाव साध्वी, यावत् शब्द से 'गृहपतिकुल में पिण्डपात प्रतिज्ञा' इसका ग्रहण समझना चाहिये, तदनुसार गृहपति श्रावक गृहस्थ के घर में अनुप्रविष्ट होकर जाकर 'से' वह भाव भिक्षु और भाव भिक्षुकी जाओ 'पुण ओसहिओ जाणेज्जा' जिन औषधियों को ऐसा जान ले कि-ये औषधियां 'अकसिणाओं अकृत्स्ना -सम्पूर्ण नहीं हैं अपितु अपहत हैं अतएव अचित हैं एवं 'असासिया;
ओ' अस्वाश्रया-विछिन्न मूल हैं अर्थात् जिन का मूल भाग कटा हुआ है, ऐसे हैं और 'विदलडा ओ' द्विदलकृता-दो टुकड़े किये हुए हैं-ऊपर भाग से फारदिए गये हैं इस प्रकार 'तिरिच्छछिन्नाओ' तिरश्चीनकृता-तिर्यक् छेद् युक्त हैं एवं 'चोच्छिन्नाओ' व्यवच्छिन्ना-जीवरहित हैं इस तरह उन शाली बीजादि હવે કેવા પ્રકારની ઔષધિ અને ફલીએ લેવી જોઈએ તે બતાવતાં સૂત્રકાર કહે છે
-' से भिक्खू वा भिक्खूणी वा' ते पूरित मापसाधु मन ला साली 'जाव' यापत था गडपति श्राप स्थन। घरमा 'पविटे समाणे' प्रवेश सेन 'से जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा' मारे मौषधियोन (भाडा२३) सवी सभामा मौषधिया 'अकसिणाओ' संपूर्ण नथा. परतुत छ तेथी मयिछ. तथा 'असासियाओ' अपाय भात ना भूण मास ४ा गयेर छ तवी छ भने 'विदलकडाओ ना A ३२पामा मा०। डाय तवा . तया 'तिरच्छछिन्नाओ' तिय ३ पाणी .
श्री सागसूत्र :४