Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 12
________________ २२ आध्यात्मिक भजन संग्रह ३०. देखे सुखी सम्यकवान .......... सुख दुखको दुखरूप विचारें, धारें अनुभवज्ञान । । देखे. ।। नरक सातमें के दुख भोगें, इन्द्र लखँ तिन मान । भीख मांगकै उदर भरें, न करें चक्रीको ध्यान । । देखे ।। १ ।। तीर्थंकर पदकों नहिं चावैं, जदपि उदय अप्रमान । कुष्ट आदि बहु ब्याधि दहत न, चहत मकरध्वजथान । देखे ।।२ ।। आदि व्याधि निरबाध अनाकुल, चेतनजोति पुमान । 'द्यानत' मगन सदा तिहिमाहीं, नाहीं खेद निदान | | देखे ।। ३ ।। ३१. देखो भाई! आतमराम विराजै छहों दरब नव तत्त्व ज्ञेय हैं, आप सुज्ञायक छाजै । देखो. ।। अत सिद्ध सूरि गुरु मुनिवर, पाचौं पद जिहिमाहीं । दरसन ज्ञान चरन तप जिहिमें, पटतर कोऊ नाहीं । । देखो. ।। १ ।। ज्ञान चेतना कहिये जाकी, बाकी पुद्गलकेरी । केवलज्ञान विभूति जासुकै आन विभौ भ्रमचेरी । । देखो. ।। २ ।। एकेन्द्री पंचेन्द्री पुद्गल, जीव अतिन्द्री ज्ञाता । 'द्यानत' ताही शुद्ध दरबको जानपनो सुखदाता | | देखो. ।। ३ ।। ३२. निरविकलप जोति प्रकाश रही ना घट अन्तर ना घट बाहिर, वचननिसौं किनहू न कही । निर. ।। १ ।। जीभ आँख बिन चाखी देखी, हाथनिसौं किनहू न गही । । निर. ।।२।। 'द्यानत' निज-सर- पदम - भ्रमर है, समता जोरें साधु लही । । निर. ।। ३ ।। ३३. पायो जी सुख आतम लवकै ......... ********. ब्रह्मा विष्णु महेश्वरको प्रभु, सो हम देख्यो आप हरखकै। पायो. ।। १ ।। देखन जाननि समझनिवाला, जान्यो आपमें आप परखकै। पायो. ।। २ ।। 'द्यानत' सब रस विरस लगें हैं, अनुभौ ज्ञानसुधारस चखकै। पायो. ।। ३ ।। १२) smark 3D Kailesh Data पण्डित द्यानतरायजी कृत भजन २३ ३४. प्राणी! आतमरूप अनूप है, परतें भिन्न त्रिकाल ...... यह सब कर्म उपाधि है, राग दोष भ्रम जाल । । प्राणी ।। कहा भयो काई लगी, आतम दरपनमाहिं । ऊपरली ऊपर रहै, अंतर पैठी नाहिं । । प्राणी ।। १ ।। भूलि जेवरी अहि, मुन्यो, ढूंठ लख्यो नररूप । त्यों ही पर निज मानिया, वह जड़ तू चिद्रूप । । प्राणी ।। २ ।। जीव- कनक तन मैलके, भिन्न भिन्न परदेश | माहैं, माहैं संध है, मिलें नहीं लव लेश ।। प्राणी. ।। ३ ।। घन करमनि आच्छादियो, ज्ञानभानपरकाश । है ज्योंका त्यों शास्वता, रंचक होय न नाश । । प्राणी ।।४ ।। लाली झलकै फटिकमें, फटिक न लाली होय । परसंगति परभाव है, शुद्धस्वरूप न कोय ।। प्राणी. ।। ५ ।। त्रस थावर नर नारकी, देव आदि बहु भेद । निचे एक स्वरूप हैं, ज्यों पट सहज सफेद ।। प्राणी ।। ६ ।। गुण ज्ञानादि अनन्त हैं, परजय सकति अनन्त । 'द्यानत' अनुभव कीजिये, याको यह सिद्धन्त । । प्राणी ।। ७ ।। ३५. प्राणी! सोऽहं सोऽहं ध्याय हो......... वाती दीप परस दीपक है, बूंद जु उदधि कहाय हो । तैसें परमातम ध्यावै सो, परमातम है जाय हो । । प्राणी ।। १ ।। और सकल कारज है थोथो, तोहि महा दुखदाय हो। 'द्यानत' यही ध्यानहित कीजे, हूजे त्रिभुवनराय हो । । प्राणी. ।। २ ।। ३६. बीतत ये दिन नीके, हमको भिन्न दरब तत्वनितैं धारे, चेतन गुण हैं जीके । । बीतत. ।। १ ।। आप सुभाव आपमैं जान्यो, सोइ धर्म है ठीके । । बीतत. ।। २ ।। 'द्यानत' निज अनुभव रस चाख्यो, पर रस लागत फीके | बीतत. ।। ३ ।।

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