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२८. कहाँ परदेशी को पतियारो
( राग कालंगडा )
कहाँ परदेशी को पतियारो ।। टेर ।।
आध्यात्मिक भजन संग्रह
मनमाने तब चले पंथ को, सांझ गिनै न सवारो । सबै कुटुंब छोड़ इतही फुनि, त्याग चले तन धारो ।। १ ।। दूर दिसावर चलत आपही कोऊ न राखन हारो । कोऊ प्रीति करो किन कोटिक, अन्त होयगो न्यारो ।। २ ।। धन सु राचि धर्मसु भूलत मोह मंझारो । इह विधि काल अनंत गमायो, पायो नहीं भव पारो || ३ || साँचे सुखसो विमुख होत है भ्रम मदिरा मतवारो । चेतहु चेत सुनहु रे भैया, आपही आप संभारो ||४ || २९. तनका तनक भरोसा नाहीं
( राग भैरवी )
तनका तनक भरोसा नाहीं किस पर करत गुमाना रे । ।टेर ।। पैंड पैंड पर तक तक मारे, काल की चोट निशाना रे ।। १ ।। देखत देखत विनश जात है, पानी बीच बुदासा रे ।। २ ।। तेरे सिर पर काल खड़ा है जैसे तीर कमाना रे ।। ३ ।। कहत बनारसि सुनि भवि प्राणी यह जियरा योंही जाना रे ॥ ४ ॥ ३०. चेतन भोरों पर तैं उरझ रह्यो रे
( राग भैरवी ) चेतन भोरों पर तैं उरझ रह्यो रे,
छक मद मोह में अयानो भयो डोलै - भोरों पर तैं उरझ रह्योरे । । टेर ।। भव सुख सारे तैने निहारे, थिर ना रहेंगे, प्रगट बिछुरेंगे । तदपि इनही में लिपट रह्योरे ।। १ ।। भ्रम बुद्धिधारी तैने निहारी, अतुल गुणधारी, सुगुन हितकारी, 'थान' इन ही में निवस रह्योरे ।। २ ।।
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विभिन्न कवियों के भजन
३१. आदम जन्म खोया तैं नाहक ( राग भैरवी ) आदम जन्म खोया तैं नाहक खटका रह जायगा । काग उड़ाने को मणि बगा पछतायेगा । । टेर ।। सागर हरदो सहस्त्र में, षोडस जन्म है मानुष के । ताहि तू व्यतीत कर निगोद माहिं जायगा ।। १ ।। आर्य क्षेत्र जन्म पाना, तीन वरण का उपजाना । इन्द्रियावरण क्षयोपसमता यह अवसर न लहायगा ।। २ ।। सुगुरु सीख समझ अब आतम अनुभव करके देख तू । चैन तू शिवथान मांही शीघ्र ही हो जायगा ।। ३ ।। ३२. ऐसी चोसर जो नर खेलै
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( राग भैरवी ) ऐसी चोसर जो नर खेलै सोही चतुर खिलाड़ी ।। र ।।
तीन रतन हिरदा में धारे, च्यार तजो दुखदाई । पंजडी पडी तजो विषयन की, छकडी दया विचारो रे ।। १ ।। पाँच दोय संजम को विचारो, पाँच तीन मद टारो रे । नवधा भक्ति छै तीन संभालो धरम छह-चार विचारो रे ।। २ ।। ग्यारे प्रतिमा को तुम धारो, द्वादसव्रत सिनगारोरे । पोबारा चारित्र संभालो, चोदह गुणस्थानधारोरे || ३ || पंद्रह तो परमाद विडारो सोलाकारण धारोरे । सतरा नेम धरम व्रतपालो, अठारे दोष निवारोरे ।।४ ।। या वानी आनन्द हितकारी, आवागमन निवारोरे । जामन मरण मेटो जगनायक मैं छू शरण तिहारी रे ।। ५ ।।