Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 98
________________ १९४ आध्यात्मिक भजन संग्रह विभिन्न कवियों के भजन ४८. तौरी सी निधि दे, जिनन्द वा (राग धनश्री) तौरी सी निधि दे, जिनन्द वा ।।टेर ।। अनन्त ज्ञान सुख वीरज जामें कछु दुःख नाहीं ये ।।१।। अग्नि चौर जलते विनशै नहीं, पर वश कबहुँ न होय ।।२।। 'नयन' देख उर आनन्द उपजे, आकुलता मिट जैहै ।।३ ।। ४९. या ऋतु धनि मुनिराई करत तप (राग मल्हार सूरदास की) या ऋतु धनि मुनिराई करत तप ।।टेर ।। उमड घुमड घन बरसत अति जहाँ चपला चमक डराई ।।१।। झंझा वायु चलत अति सीरी, तरु टपकत अधिकाई। डंस मशक काटत तन चाटत, सहत परीषह आई ।।२।। तन सुधि बिसरि रहै कछु ऐसी अंतर निजनिधि पाई। जगतराम लख ध्यान साधुको बंदत शीस नमाई ।।३।। ५०. आयु रही अब थोडी कहाँ करै (राग काफी होरी) आयु रही अब थोड़ी कहा करै मोरी मोरी ।।टेर ।। मात तात परलोक सिधारे, पास रही ना गौरी । सुत मित बाँधव राज संपदा, छिन छिन विनशत सोरी, फेर नहीं मिलत बहोरी ।।१।। तन पिंजर अब जरजर दीखत, लाल पडे मुख ओरी। रीट गीट कफ मिटते नाहीं, दांत दाढ़ जड छोडी, सहे दुख दरद घनोरी ।।२।। रोग पिशाच लगे तन भीतर, अग्नि भई मंदोरी। वात पित्त कफ नित घटबढ़ है, यों बहु विपति सहोरी, कहत नहीं आवै औरी ।।३।। कर पग कंपत नाड दरद सिर, कमर कूब निकसो री। लकड़ी डिंगत हाथ डोकर के तोभी समझे न घोरी, याकी मति मोह मरोरी ।।४।। या विधि परख पिछान जोहरी, तनसे ममत तजोरी। आपही आप रमो निज उरमें, आय मिले शिव गौरी। होय परमानन्द बहोरी ।।५।। ५१. ऐसो नर भव पाय गंवायो, (राग काफी होरी) ऐसो नर भव पाय गंवायो, हे गंवायो अरे तू. ।।टेर ।। धनकू पाय दान नहिं दीनो, चारित चित नहिं लायो । श्री जिनदेव की सेव न कीनी, मानुष जन्म लजायो, जगत में आयो न आयो ।।१।। विषय कषाय बढ़ो प्रति दिन दिन, आतम बल सु घटायो । तजि सतसंग भयो तू कुसंगी, मोक्ष कपाट लगायो, नरक को राज कमायो ।।२।। रजक श्वान सम फिरत निरंकुश, मानत नाहिं मनायो । त्रिभुवनपति होय भयो है भिखारी, यह अचरज मोहि आयो, कहांते कनक फल खायो ।।३।। कंद मूल मद मांस भखन कू, नित प्रति चित्त लुभायो । श्री जिन बचन सुधा सम तजि कै, नयनानंद पछतायो, श्री जिन गुण नहीं गायो।।४।। ५२. कैसा ध्यान धरा है जोगी (राग सिन्दूरिया ) कैसा ध्यान धरा है जोगी ।।टेर ।। नगन रूप दोऊ भुजा झुलाये नाशादृष्टि धरा है जोगी ।।१।। sa kabata pionship (९८)

Loading...

Page Navigation
1 ... 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116