Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 108
________________ २१४ आध्यात्मिक भजन संग्रह उत्पाद व्यय और धोव्य स्वरूप, वस्तु बखानी सर्वज्ञ भूप। स्याद्वाद तेरी निशानी, अमर तेरी जग में कहानी ।।१।। नित्य अनित्य अरू एक अनेक, वस्तु कथंचित भेद अभेद । अनेकान्त रूपा बखानी, अमर तेरी जग में कहानी ।।२।। भाव शुभाशुभ बंध स्वरूप, शुद्ध चिदानन्दमय मुक्ति रूप। मारग दिखाती है वाणी, अमर तेरी जग में कहानी ।।३।। चिदानन्द चैतन्य आनन्दधाम, ज्ञान स्वभावी निजातम राम । स्वाश्रय से मुक्ति बखानी, अमर तेरी जग में कहानी ।।४ ।। ९१. चेतो चेतन निज में आवो... चेतो चेतन निज में आवो, अन्तर आत्मा बुला रही है।।टेक ।। जग में अपना कोई नहीं है.. तू तो ज्ञाननन्दमयी है। एक बार अपने में आजा, अपनी खबर क्यों भुलादई है।।१।। तन धन जन ये कुछ नहीं तेरे, मोह में पड़कर कहता है मेरे। जिनवाणी को उर में धर ले, समता में तुझे सुला रही है।।२।। निश्चय से तू सिद्ध प्रभु सम, कर्मोदय से धारे हैं तन । स्याद्वाद के इस झूले में, माँ जिनवाणी झुला रही है।।३ ।। मोह राग और द्वेष को छोड़ो, निज स्वभाव से नाता जोड़ो। ब्रह्मानन्द जल्दी तुम चेतो, मृत्यु पंखा झुला रही है ।।४।। ज्ञायक हो ज्ञायक हो बस तुम.. ज्ञाता दृष्टा बनकर जीवो। जागो जागो अब तो चेतन, माँ जिनवाणी जगा रही है।।५।। ८२. शान्ति सुधा बरसाए जिनवाणी शांति सुधा बरसाए जिनवाणी। वस्तु स्वरूप बताए जिनवाणी ।।टेक।। पूर्वापर सब दोष रहित है, वीतराग मय धर्म सहित है। परमागम कहलाए जिनवाणी ।।१।। विभिन्न कवियों के भजन मुक्ति वधू के मुख का दरपण, जीवन अपना कर दें अरपण । भव समुद्र से तारे जिनवाणी ।।२।। रागद्वेष अंगारों द्वारा, महाक्लेश पाता जग सारा । सजल मेघ बरसाए जिनवाणी ।।३।। सात तत्त्व का ज्ञान करावे, अचल विमल निज पद दरसावे। सुख सागर लहराए जिनवाणी ।।४ ।। ९३. जिनवाणी अमृत रसाल .... जिनवाणी अमृत रसाल, रसिया आवो जी सुणवा ।।टेक ।। छह द्रव्यों का ज्ञान करावे, नव तत्त्वों का रहस्य बतावे। आतम तत्त्व है महान रसिया आवोजी ।।१।। विषय कषाय का नाश करावे, निज आतम से प्रीति बढ़ावे। मिथ्यात्व का होवे नाश रसिया आवोजी ।।२।। अनेकान्तमय धर्म बतावे, स्यावाद शैली कथन में आवे। भवसागर से होवे पार रसिया आवोजी ।।३।। जो जिनवाणी सुन हरषाए, निश्चय ही वह भव्य कहावे। स्वाध्याय तप है महान् रसिया आवोजी ।।४ ।। ९४. शरण कोई नहीं जग में..... शरण कोई नहीं जग में, शरण बस है जिनागम का । जो चाहो काज आतम का, तो शरणा लो जिनागम का ।।टेक ।। जहाँ निज सत्व की चर्चा, जहाँ सब तत्त्व की बातें। जहाँ शिवलोक की कथनी, तहाँ डर है नहीं यम का ।।१।। इसी से कर्म नसते हैं, इसी से भरम भजते हैं। इसी से ध्यान धरते हैं, विरागी वन में आतम का ।।२।। भला यह दाव पाया है, जिनागम हाथ आया है। . अभागे दूर क्यों भागो, भला अवसर समागम का ।।३।। anLOKailastipata (१०८)

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