Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 114
________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह अमृत में अवगाहन करने से। भजन नं. ३० आतम सोंज - निज परिणति, भानी - नाश की, संसृतिवान - भ्रमण की आदत। भजन नं. ३२ सुहित देश - हितोपदेश, लाह की - लाभ की, करन करी हरि - इन्द्रिय रूपी हाथियों को सिंह के समान, तरनि - जहाज, समर भुजंगविष जरी - काम रूपी सर्प के लिये विनाशक जड़ी। भजन नं. ३५ भव तन भोग विरक्त - संसार शरीर भोगों से उदासीन, अदत्त - बिना दिया हुवा, प्रसंग - दो प्रकार का परिग्रह। भजन नं. ३६ सारा - एकसे। भजन नं. ३९ __लौ - लगन, ओरनै - तरफ, यथाजात मुद्रायुत - नग्न दिगम्बर, विजन - निर्जन, निहोरनै - प्रार्थना करने वाले को, पविते - वज्र से, भवि कुमुद निशाकर - भव्य रूपी कुमोदनी को चन्द्रमा। भजन नं. ४० ईश्वरता - ऐश्वर्य, ज्ञान दृग साना - सम्यग्ज्ञान, सम्यक्दर्शन सहित, पद वारिज रजने - चरण रूपी कमलों की धूलि को, किस - किसके, अध - पाप। भजन नं. ४४ ऋषि पति-मुनिनाथ, ऋषभेश-धर्म के ईश आदिनाथ, मनमथकामदेव के मथने वाले, शिवपथ - मोक्षपथ, हरि-इन्द्र, नर्तकी- अप्सरा, देवऋषि - लोकांतिकदेव, बच रवि - बचन रूपी सूर्य, पोत - जहाज, शेषाविधी - शेष के चार, अघातिया कर्म, वसुमधरा - मोक्ष । भजन नं. ४६ पद्मासदन - लक्ष्मी का घर, मदन मद भंजन - मद का नाश करने के लिये, उगेरे - गाये, पतित - पापी, शशकन - खरगोशों के, सबेरे - शीघ्र, शम समाधिकर - शान्ति समाधि । भजन नं. ४७ “पद्या सद्य - समवशरण लक्ष्मी के, पद्मपद - पद्मप्रभ के चरण, पद्यामुक्ति - मोक्ष लक्ष्मी, पपोसा - पर्वता का नाम है, शासन - उपदेश, पंचानन - सिंह, मातङ्ग - हाथी, रुषतुष - द्वेष राग, सुरगुर बुद्धि - इन्द्र की बुद्धि, शशकन गिरराज उगेरे - जैसे खरगोश सुमेरु को धकेलना चाहे। भजन नं. ४८ __ हाहा हू हू - नारद और तुंबर गंधर्व देवों के भेद है, सुरनर मुनि घट - देव मनुष्य और मुनियों के हृदय का, सूर - सूर्य, ज्ञेयन - पदार्थ, उडू - तारा, साम्यसिन्धु - समतारूपी समुद्र को बढ़ाने वाला, जग नन्दन - जग को आनन्दित करने वाला। भजन नं. ४९ भुजंग भोग सम - सांप के फन के समान, भीम - भयानक, पोरि - पोल, पातक डोरी - पापों की डोरी। भजन नं. ५० लोक शिरो - सिद्ध शिला, उग्र - घोर, भवार्णव - भव समुद्र, नरो - हे पुरुषो, नियत - निश्चय । भजन नं.५१ अटापटी - अटपटी, हटाहटी - दूरपना, घटा घटी - न्यून पना, षंढ - नपुंसक। sarak kata Data Antanjadain Bhajan Book guns . (११५) *

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