Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 112
________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह (भुजंगप्रयाग) जिनादेश ज्ञाता जिनेन्द्रा विख्याता, विशुद्धा प्रबुद्धा नमों लोकमाता। जिनेन्द्रकथित शास्त्राभ्यास से लाभ (रत्नकरण्ड श्रावकाचार : अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग भावना) दुराचार-दुनहरा शंकरानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी।।१।। १. माया, मिथ्यात्व, निदान - इन तीन शल्यों का ज्ञानाभ्यास से नाश होता है। सुधाधर्म संसाधनी धर्मशाला, सुधाताप निर्नाशिनी मेघमाला। २. ज्ञान के अभ्यास से ही मन स्थिर होता है। महामोह विध्वंसनी मोक्षदानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ।।२।। ३. अनेक प्रकार के दुःखदायक विकल्प नष्ट हो जाते हैं। अखैवृक्षशाखा व्यतीताभिलाषा, कथा संस्कृता प्राकृता देशभाषा । ४. शास्त्राभ्यास से ही धर्मध्यान व शुक्लध्यान में अचल होकर बैठा जाता है। ५. ज्ञानाभ्यास से ही जीव व्रत-संयम से चलायमान नहीं होते। चिदानंद-भूपाल की राजधानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ।।३।। ६. जिनेन्द्र का शासन प्रवर्तता है। अशुभ कर्मों का नाश होता है। समाधानरूपा अनूपा अक्षुद्रा, अनेकान्तधा स्याद्वादाङ्क मुद्रा। ७. जिनधर्म की प्रभावना होती है। त्रिधा सप्तधा द्वादशाङ्गी बखानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी।।४।। ८. कषायों का अभाव हो जाता है। अकोपा अमाना अदंभा अलोभा, श्रुतज्ञानरूपी मतिज्ञानशोभा। ९. ज्ञान के अभ्यास से ही लोगों के हृदय में पूर्व का संचित कर रखा हुआ पापरूप ऋण नष्ट हो जाता है। महापावनी भावना भव्यमानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ।।५।। १०. अज्ञानी जिस कर्म को घोर तप करके कोटि पूर्व वर्षों में खिपाता है, उस कर्म को अतीता अजीता सदा निर्विकारा, विषैवाटिकाखंडिनी खगधारा । ज्ञानी अंतर्मुहूर्त में ही खिपा देता है। पुरापापविक्षेप कर्ता कृपाणी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी।।६।। ११. ज्ञान के प्रभाव से ही जीव समस्त विषयों की वाञ्छा से रहित होकर संतोष धारण अगाधा अबाधा निरध्रा निराशा, अनन्ता अनादीश्वरी कर्मनाशा। करते हैं। १२. शास्त्राभ्यास से ही उत्तम क्षमादि गुण प्रगट होते हैं। निशंका निरंका चिदंका भवानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी।।७।। १३. भक्ष्य-अभक्ष्य का, योग्य-अयोग्य का, त्यागने-ग्रहण करने योग्य का विचार अशोका मुदेका विवेका विधानी, जगज्जन्तुमित्रा विचित्रावसानी। होता है। समस्तावलोका निरस्ता निदानी, नमो देवि वागेश्वरी जैनवाणी ।।८।। १४. ज्ञान बिना परमार्थ और व्यवहार दोनों नष्ट होते हैं। १५. ज्ञान के समान कोई धन नहीं है और ज्ञानदान समान कोई अन्य दान नहीं है। जे आगम रुचिधरै, जे प्रतीति मन माहिं आनहिं । १६. दुःखित जीव को सदा ज्ञान ही शरण अर्थात् आधार है। अवधारहिं गे पुरुष, समर्थ पद अर्थ आनहिं ।। १७. ज्ञान ही स्वदेश में एवं परदेश में सदा आदर कराने वाला परम धन है। जे हित हेतु 'बनारसी', देहिं धर्म उपदेश । १८. ज्ञान धन को कोई चोर चुरा नहीं सकता, लूटने वाला लूट नहीं सकता, खोंसनेवाला ते सब पावहिं परम सुख, तज संसार कलेश ।। खोंस नहीं सकता। १९. ज्ञान किसी को देने से घटता नहीं है, जो ज्ञान-दान देता है; उसका ज्ञान बढ़ता जाता है। २०. ज्ञान से ही सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है। Annunyanade naje Hack paint २१. ज्ञान से ही मोक्ष प्रगट होता है। (११२)

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