Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 115
________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह काक ताली - काकतालीय न्याय से जैसे ताडवृक्ष से ताडफल का टूटना और काग का उसे आकाश में ही पा लेना कठिन है वैसे। भजन नं. ५५ खपज में - विनाश में, तोष रोष - राग द्वेष, भान्यो - नष्ट किया । भजन नं. ५८ पर पदार्थ, बमू - बमन आठ, चमूं - फोज, चिदेश - आत्मा, अशेष- सम्पूर्ण, पर कर दूँ अर्थात् छोड़ दूँ।, विधी कर्म, दुचार आपमें - आत्मा में, रमूं - रमण करूं, शर्म बाग दागनी - कल्याण रूपी बाग को जलाने वाली, शमूं शमन करूं, शान्त करूं, दृग ज्ञान भान - सम्यग्दर्शन और ज्ञानरूपी सूर्य से, प्राणीभूत दश प्राण मई, जल - जड़, कल - शरीर, सुकल सुबल शुक्ल ध्यान के बाल से, त्रिशल्लमल्ल, माया मिथ्या निदान तीन शल्य रूपी पहलवान, अटल पद - मोक्षपद, कौल - प्रतिज्ञा, पूरब अलभ पूर्व में जिसका लाभ - नहीं हुवा वैसा जान । भजन नं. ६० धाम हिम मेघ-धूप, शीत वर्षा, उपल पत्थर, अनुभव शर - अनुभव रूपी बाण, मनि जड़ितालय रत्न जड़ित महल, शैल दरी पर्वत की कंदरा । भजन नं. ६५ मृतकारी - मृत्यु के करने वाले, घन-मेघ, समता लता कुठारी समता रूपी बेल को काटने के लिये कुल्हाड़ी, केहरी - सिंह, करी - हाथी, मुरारी - नारायण, विरचे - वैरागी हुये, भ्रंग - भ्रमर, किंपाक - इन्द्रायण का फल । भजन नं. ६६ धोधारी - हे बुद्धि मानो, रंभ थंभ - केले के पत्ते के समान, बामा - smark 3 DKailash Data Antanji Jain Bhajan Book pa (११६) - स्त्री, श्वासा - बहिन, मंडल - कुत्ता, आखंडल देव, कृमि - लट, मदन दहन - कामाग्नि । भजन नं. ६७ हाथी, गरत - करन विषय में - इन्द्रियों के विषय में, बारन - गड्डा, झख - मछली, पंकज मुद्रित में बन्द कमल में, करन विषयवश - कान के विषय से, अरन में बन में । भजन नं. ६८ कुबोध - मिथ्यात्व, अवृततैं - मिथ्या चारित्र से, कृमि - कीट, विट स्थान - बिष्टा का स्थान हरि से कृष्ण नारायण सरीखे, गदगेह - रोग का घर । भजन नं. ७२ अघात - तृप्त होता है, दुःख फलद - दुःख रूप फल देने वाला, जलद सम - बादल, चतुधाते - द्रव्यक्षेत्रादि स्व चतुष्टय से, नभै हतन - आकाश के घात करने को, विपद पत राते - विपति स्थान में लवलीन, मुनत न मनन नहीं करता । भजन नं. ७३ रजत - रंजायमान, द्रग ब्रत बुद्धि सुधातें दर्शन ज्ञान चारित्र रूपी अमृत से । भजन नं. ७४ अनिवार - जिसका निवारण नहीं हो सकता, परनवे वैसे अपनी इच्छानुसार परिणवे, निकसे निकले, पैसे प्रवेश करे, पूरन गलन - पूर्ण होने और गलन होने रूप स्वभाव बाल पुद्गल होता है। भजन नं. ७७ गैलवा मार्ग, चुरेलवा - चुडेल । - - भजन नं. ७८

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