Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 96
________________ विभिन्न कवियों के भजन १९० आध्यात्मिक भजन संग्रह ३८. मैं तो आऊँ तुम दरशनवा (राग प्रभाती) मैं तो आऊँ तुम दरशनवा, कर्मशत्रु आवै आडो ।।टेर ।। लख चौरासी में भटकावे पकड गहै मोकूँ गाढो । चहूँ दरश तुम दिलसे मैं तो यही मोसे करै राडो ।।१।। नरभव जमा करूँ शुभ क्रिया, लूटत है येही दे के धाडो। जमके दूत सजे यों डोले, ज्यों तोरण आवै लाडो ।।२।। बंध तुडाकर तुमपै आयो, इन शत्रुन को तुम ताडो। शरण गहे को विरद निहारो, शिव द्यो 'रतन' जजै ठाडो ।।३।। ३९. अरे मन पापनसों नित डरिये (राग आसावरी) अरे मन पापनसों नित डरिये ।।टेर ।। हिंसा झूठ वचन अरु चोरी, परनारी नहीं हरिये । निज परको दुखदायन डायन तृष्णा वेग विसरिये ।।१।। जासों परभव बिगडे वीरा ऐसो काज न करिये । क्यों मधु-बिन्दु विषय के कारण अंधकूप में परिये ।।२।। गुरु उपदेश विमान बैठके यहाँ ते बेग निकरिये । 'नयनानन्द' अचल पद पावे भवसागर सो तिरिये ।।३ ।। ४०. कबै निर्ग्रन्थ स्वरूप धरूँगा (राग आसावरी) कबै निर्ग्रन्थ स्वरूप धरूँगा, तप करके मुक्ति वरूँगा ।।टेर ।। कब गृहवास आस सब छांडू कब वनमें विचरूँगा। बाह्य अभ्यन्तर त्याग परिग्रह उभय लिंग सुधरूँगा ।।१।। होय एकाकी परम उदासी पंचाचार चरूँगा कब थिर योग करूँ पद्मासन, इन्द्रिय दमन करूँगा ।।२।। आतमध्यान सजि दिल अपनो, मोह अरी सू लरूँगा। त्याग उपाधि समाधि लगाकर, परिषह सहन करूँगा ।।३।। कब गुणथान श्रेणी पै चढ़के, कर्म कलंक हरूँगा। आनन्दकन्द चिदानन्द साहिब, बिन सुमरे सुमरूँगा ।।४ ।। ऐसी लब्धि जब पाऊँ तब मैं, आपहि आप तरूँगा। अमोलक सुत हीराचन्द कहत है बहुरि न जग में परूँगा ।।५।। ४१. भजन सम नहीं काज दूजौ (राग जौनपुरी) भजन सम नहीं काज दूजौ ।।टेक ।। धर्म अंग अनेक यामें एक ही सिरताज । करत जाके, दुरत पातक, जुरत संत समाज ।। भरत पुण्य भण्डार यातें, मिलत सब सुख साज ।।१।। भक्त को यह इष्ट ऐसो ज्यों क्षुधित को नाज । कर्म ईंधन को अगनि सम, भव जलधि को पाज । इन्द्र जाकी करत महिमा, कहो तो कैसी लाज ।। जगतराम प्रसाद यातें, होत अविचल राज ।।२।। ४२. चेतै छै तो आछी बेल्यां। (राग सारंग) चेतै छै तो आछी बेल्यां चेतरे ज्ञानीजिया, मोह अन्धेरी शिवपुर आंतरो ।।टेर ।। या देही को झूठो छै अभिमानरे ज्ञानी जिया, विनश होवैरे ढेरी राखकी।।१।। तू मत जाने यो मेरो परिवार रे, ज्ञानी जिया, लैर न आयो नाहीं जावसी ।।२।। लक्ष्मी तो दिन चार रे ज्ञानी जिया, काज सुधारे क्यों न आपनो ।।३।। sa kabata AntanjaJain Bhajan Back ganne

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