Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ १९२ आध्यात्मिक भजन संग्रह पूरव पुण्य प्रभावरे ज्ञानी जिया, उत्तम श्रावक कुल लियो ॥ ४ ॥ पाये पाये श्री जिनराजरे ज्ञानी जिया, 'जोहरी' चित्त चरणन धरो ॥५ ॥ ४३. दर्शन को उमावो म्हारे लागि रहयो ( राग सारंग ) दर्शन को उमावो म्हारे लागि रह्यो ।। र ।। निशि बासर मेरे ध्यान तिहारो, चरणन सों चित पाग रह्यो ।। १ ।। जब तैं मूरति नैना निरखी, तब तैं पातिक भाग रह्यो || २ || जगत राम प्रभु गुण सुमरण तैं, निज गुण अनुभव जाग रह्यो । ३ ॥ ४४. उजरो पथ है शिव ओरी को (राग सारंग ) उजरो पथ है शिव ओरी को ।। टेर ।। पंच पाप को त्याग है जामें, संग्रह समता गौरी को ।। १ ।। उन्नति समिति गुप्ति की बढ़ावो, तज असंजम थोरी को ॥ २ ॥ दुलभ मिल्यो तो नहिं पारश ज्यों चिंतामणि जौहरी को || ३ || ४५. होजी मद छक मानीजी, थे समझोआतम ज्ञानीजी (राग सारंग ) होजी मद छकमानीजी, थे समझो आतम ज्ञानीजी, ज्ञानीजी थे, आछ्योजी नरभव अबके पाइयो । । टेर ।। लखि चौरासी योनि में जी, (चेतन) थिरता कबहु न पाय । रागद्वेष बैरी लाग्या कोई लीना नाच नचाय ॥ १ ॥ smark 3 DKailesh Data Antanji Jain Bhajan Book pa (९७) विभिन्न कवियों के भजन पाय । जीव करम संजोग से जी वरणवरण के जैसे बहुरूप्यावने भिन्न भिन्न स्वांग बनाय ।। २ ।। चहुँ दिशि बाजी खेलताजी बाजी हारचा पाय । अबके दाव भलो लाग्योजी, लीज्योधन अधिकाय ।। ३ ।। आयो मूंठी बाँधके जी जासी हाथ झुलाय । थे पूंजी जो लाईया सो दिन दिन बीती जाय ।। ४ ।। पूरब पुन्य उदय भयोजी, दुरलभ नर भव पाय । जैन धरम पालो सदा, यह अवसर बीता जाय ।। ५ ।। गुरु उपदेश भला दियोजी, सांची श्रद्धा लाय । करम काट निर्भय 'चिमन' कोई निराकार पद पाय ।। ६ ।। ४६. कुमता के संग जाय १९३ (राग पीलू ) कुता के संग जाय चेतन बरज्यो नहीं मानत मानी । । टेर ।। या कुमता म्हारी जनम की वैरन, मोह लियो जी ज्ञानी रे । याही विषयन संग लिपटानी ॥ १ ॥ चोरासी के दुख भुगताये -तोहू दिल विच आनी रे । है यह दुरगति दुख दानी ॥। २ ।। पारस सीख सुगुरु की धर कर, तज कुमता दुख दानीरे । याते पावोगे शिवरानी ॥ ३ ॥ ४७. प्रभु देख मगन भया मेरा मनुवा (राग पहाडी ) प्रभु देख मगन भया मेरा मनुवा ।। टेर।। तीनलोक पति आज निहारे नगन दिगंबर जाके तनवा ।। १ ।। शुभ को उदय होत भयो मेरे अशुभ झरे जैसे सूखे पनवा ।।२ ।। दास भवानी दोऊ कर जोड़े नित गाऊँ तुमरे गुणवा ।। ३ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116