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आध्यात्मिक भजन संग्रह
पूरव पुण्य प्रभावरे ज्ञानी जिया, उत्तम श्रावक कुल लियो ॥ ४ ॥
पाये पाये श्री जिनराजरे ज्ञानी जिया, 'जोहरी' चित्त चरणन धरो ॥५ ॥ ४३. दर्शन को उमावो म्हारे लागि रहयो ( राग सारंग ) दर्शन को उमावो म्हारे लागि रह्यो ।। र ।। निशि बासर मेरे ध्यान तिहारो,
चरणन सों चित पाग रह्यो ।। १ ।।
जब तैं मूरति नैना निरखी,
तब तैं पातिक भाग रह्यो || २ ||
जगत राम प्रभु गुण सुमरण तैं,
निज गुण अनुभव जाग रह्यो । ३ ॥ ४४. उजरो पथ है शिव ओरी को (राग सारंग ) उजरो पथ है शिव ओरी को ।। टेर ।।
पंच पाप को त्याग है जामें, संग्रह समता गौरी को ।। १ ।। उन्नति समिति गुप्ति की बढ़ावो, तज असंजम थोरी को ॥ २ ॥ दुलभ मिल्यो तो नहिं पारश ज्यों चिंतामणि जौहरी को || ३ || ४५. होजी मद छक मानीजी, थे समझोआतम ज्ञानीजी (राग सारंग ) होजी मद छकमानीजी, थे समझो आतम ज्ञानीजी,
ज्ञानीजी थे, आछ्योजी नरभव अबके पाइयो । । टेर ।।
लखि चौरासी योनि में जी, (चेतन) थिरता कबहु न पाय । रागद्वेष बैरी लाग्या कोई लीना नाच नचाय ॥ १ ॥
smark 3 DKailesh Data Antanji Jain Bhajan Book pa (९७)
विभिन्न कवियों के भजन
पाय ।
जीव करम संजोग से जी वरणवरण के जैसे बहुरूप्यावने भिन्न भिन्न स्वांग बनाय ।। २ ।। चहुँ दिशि बाजी खेलताजी बाजी हारचा पाय । अबके दाव भलो लाग्योजी, लीज्योधन अधिकाय ।। ३ ।। आयो मूंठी बाँधके जी जासी हाथ झुलाय । थे पूंजी जो लाईया सो दिन दिन बीती जाय ।। ४ ।। पूरब पुन्य उदय भयोजी, दुरलभ नर भव पाय । जैन धरम पालो सदा, यह अवसर बीता जाय ।। ५ ।। गुरु उपदेश भला दियोजी, सांची श्रद्धा लाय । करम काट निर्भय 'चिमन' कोई निराकार पद पाय ।। ६ ।। ४६. कुमता के संग जाय
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(राग पीलू ) कुता के संग जाय चेतन बरज्यो नहीं मानत मानी । । टेर ।। या कुमता म्हारी जनम की वैरन, मोह लियो जी ज्ञानी रे । याही विषयन संग लिपटानी ॥ १ ॥ चोरासी के दुख भुगताये -तोहू दिल विच आनी रे । है यह दुरगति दुख दानी ॥। २ ।।
पारस सीख सुगुरु की धर कर, तज कुमता दुख दानीरे । याते पावोगे शिवरानी ॥ ३ ॥
४७. प्रभु देख मगन भया मेरा मनुवा (राग पहाडी ) प्रभु देख मगन भया मेरा मनुवा ।। टेर।।
तीनलोक पति आज निहारे नगन दिगंबर जाके तनवा ।। १ ।।
शुभ को उदय होत भयो मेरे अशुभ झरे जैसे सूखे पनवा ।।२ ।। दास भवानी दोऊ कर जोड़े नित गाऊँ तुमरे गुणवा ।। ३ ।।