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आध्यात्मिक भजन संग्रह ४. मन महल में दो दो भाव जगे
मन महल में दो दो भाव जगे, इक स्वभाव है, इक विभाव है। अपने-अपने अधिकार मिले, इक स्वभाव है, इक विभाव है।।टेर।। बहिरंग के भाव तो पर के हैं, अंतर के स्वभाव सो अपने हैं। यही भेद समझले पहले जरा, तू कौन है तेरा कौन यहाँ।
तू कौन है तेरा कौन यहाँ ।।१।। तन तेल फुलेल इतर भी मले, नित नवला भूषण अंग सजे। रस भेद विज्ञान न कंठ धरा नहीं सम्यक् श्रद्धा साज सजे।
नहीं सम्यक् श्रद्धा साज सजे ।।२।। मिथ्यात्व तिमिर के हरने को, अक्षय आतम आलोक जगा। हे वीतराग सर्वज्ञ प्रभो, तब दर्शन मन 'सौभाग्य' पगा।
तब दर्शन मन 'सौभाग्य' पगा।।३।। ५. तोरी पल पल निरखें मूरतियाँ तोरी पल पल निरखें मूरतियाँ,
आतम रस भीनी यह सूरतियाँ ।।टेर ।। घोर मिथ्यात्व रत हो तुम्हें छोड़कर, भोग भोगे हैं जड़ से लगन जोड़कर । चारों गति में भ्रमण, कर कर जामन मरण, लखि अपनी न सच्ची सूरतियाँ ।।१।। तेरे दर्शन से ज्योति जगी ज्ञान की, पथ पकड़ी है हमने स्वकल्याण की। पद तुझसा महान, लगा आतम का ध्यान, पावे 'सौभाग्य' पावन शिव गतियाँ ।।२।।
श्री सौभाग्यमलजी कृत भजन ६. मत बिसरावो जिनजी मत बिसरावो जिनजी, कि अब मैं शरण गहूँ किसकी ।।टेर ।। भूल मनाये अबलो मैंने, देव तुझे बिसरा करके । भोगे भोग अधम तम जग के, मन अति इतरा करके।। यह मुझको अभिमान रहा नित अमर रहूँगा आकर के। तू सच्चा है आशा झूठी, प्रीत करी जिसकी ।।१।। संशय विभ्रम मोह मिटा अब, ज्ञान दीपिका जागी है। अंतर उज्ज्वल हुये मनोरथ, विषय कालिमा भागी है। निजानंद पद पाऊँ तुझसा लगन यही बस लागी। सिद्धासन 'सौभाग्य' मिले फिर चाह करूँ किसकी ।।२।। ७. तेरी शीतल-शीतल मूरत लख तेरी शीतल-शीतल मूरत लख, कहीं भी नजर ना जमें, प्रभू शीतल । सूरत को निहारें पल पल तब, छबि दूजी नजर ना जमें! प्रभू शीतल ।।टेर ।। भव दुःख दाह सही है घोर, कर्म बली पर चला न जोर । तुम मुख चन्द्र निहार मिली अब, परम शान्ति सुख शीतल ढोर निज पर का ज्ञान जगे घट में भव बंधन भीड़ थमें प्रभू शीतल ।।१।। सकल ज्ञेय के ज्ञायक हो, एक तुम्ही जग नायक हो। वीतराग सर्वज्ञ प्रभू तुम, निज स्वरूप शिवदायक हो। 'सौभाग्य' सफल हो नर जीवन, गति पंचम धाम धमे प्रभू शीतल ॥२।।
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