Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 78
________________ श्री सौभाग्यमलजी कृत भजन श्री सौभाग्यमलजी कृत भजन 9. भावों में सरलता .............. भावों में सरलता रहती है, जहाँ प्रेम की सरिता बहती है। हम उस धर्म के पालक हैं, जहाँ सत्य अहिंसा रहती है।। जो राग में मूंछे तनते हैं, जड़ भोगों में रीझ मचलते हैं। वे भूलते हैं निज को भाई, जो पाप के सांचे ढलते हैं।। पुचकार उन्हें माँ जिनवाणी, जहाँ ज्ञान कथायें कहती हैं। हम उस. ।।१।। जो पर के प्राण दुखाते हैं, वह आप सताये जाते हैं। अधिकारी वे हैं शिव सुख के, जो आतम ध्यान लगाते हैं।। 'सौभाग्य' सफल कर नर जीवन, यह आयुढलती रहती है।।हम उस.।।१।। २. निरखी निरखी मनहर मूरत निरखी निरखी मनहर मूरत तोरी हो जिनन्दा, खोई खोई आतम निधि निज पाई हो जिनन्दा ।।टेर ।। ना समझी से अबलो मैंने पर को अपना मान के, पर को अपना मान के। माया की ममता में डोला, तुमको नहीं पिछान के, तुमको नहीं पिछान के।। अब भूलों पर रोता यह मन, मोरा हो जिनन्दा ।।१।। भोग रोग का घर है मैंने, आज चराचर देखा है, आज चराचर देखा है। आतम धन के आगे जग का झूठा सारा लेखा है, झूठा सारा लेखा है। अपने में घुल मिल जाऊँ, वर पावू जिनन्दा ।।२।। तू भवनाशी मैं भववासी, भव से पार उतरना है, भव से पार उतरना है। शुद्ध स्वरूपी होकर तुमसा, शिवरमणी को वरना है, शिवरमणी को वरना है।। ज्ञानज्योति 'सौभाग्य' जगे घट, मोरे हो जिनन्दा ।।३।। ३. मैं हूँ आतमराम मैं हूँ आतमराम, मैं हूँ आतमराम, सहज स्वभावी ज्ञाता दृष्टा चेतन मेरा नाम ।।टेर ।। कुमति कुटिल ने अब तक मुझको निज फंदे में डाला। मोहराज ने दिव्य ज्ञान पर, डाला परदा काला। डुला कुगति अविराम, खोया काल तमाम ।।सहज ।।१।। जिन दर्शन से बोध हुआ है मुझको मेरा आज। पर द्रव्यों से प्रीति बढ़ा निज, कैसे करूँ अकाज । दूर हटो जग काम, रागादिक परिणाम ।।सहज ।।२।। आओ अंतर ज्ञान सितारो, आतम बल प्रगटा दो। पंचम गति “सौभाग्य” मिले प्रिय आवागमन छुड़ादो। पाऊँ सुख ललाम, शिवस्वरूप शिवधाम।।सहज ।।३।। (७८)

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