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श्री सौभाग्यमलजी कृत भजन दोष के हरनेवाले, हो तुम मोक्ष के वरनेवाले । मेरा मन भक्ति में लीन हुआ, हाँ, लीन हुआ ।।
इसको तो निभाना देख प्रभो ।।२।। हर श्वांस में तेरी ही लय हो, कर्मों पर सदा विजय भी हो। यह जीवन तुझसा जीवन हो, हाँ जीवन हो ।।
'सौभाग्य' यह ही लिख लेख प्रभो ।।३।।
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आध्यात्मिक भजन संग्रह शान्त छबी मन भाई है, नैनन बीच समाई है। दूर हटू नहीं पल छिन भी ।।२।।भीड़ भगी।। निज पद का सौभाग्य' वरूं, अरु न किसी की चाह करूँ। सफल कामना हो मन की ।।३ ।।भीड़ भगी ।। ३०. भाया थारी बावली जवानी चाली रे। भगवान भजन । कद करसी थारी गरदन हाली रे ।।टेक ।। लाख चोरासी जीवाजून में मुश्किल नरतन पायो । तूं जीवन ने खेल समझकर बिरधा कीयां गमायो ।। आयो मूठी बाँध मुसाफिर जासी हाथा खाली रे ।।१।। झूठ कपट कर जोड़ जोड़ धन कोठा भरी तिजोरी रे । धर्म कमाई करी न दमड़ी कोरी मूंछ मरोड़ी रे ।। है मिथ्या अभिमान आँख की थोथी थारी लाली रे ।।२।। कंचन काया काम न आसी थारा गोती नाती रे । आतमराम अकेलो जासी पड़ी रहेगी माटी रे ।। जन्तर मन्तर धन सम्पत से मोत टले नहीं टाली रे ।।३ ।। आपा पर को भेद समझले खोल हिया की आँख रे । वीतराग जिन दर्शन तजकर अठी उठी मत झाँक रे ।। पद पूजा 'सौभाग्य' करेली शिव रमणी ले थाली रे ।।४ ।। ३१. तेरी सुन्दर मूरत देख प्रभो तेरी सुन्दर मूरत देख प्रभो, मैं जीवन दुख सब भूल गया।
यह पावन प्रतिमा देख प्रभो ।।टेक।। ज्यों काली घटायें आती हैं, त्यों कोयल कूक मचाती है। मेरा रोम रोम त्यों हर्षित है, हाँ हर्षित है।।
यह चन्द्र छवि जिन देख प्रभो ।।१।।
इस देह की अपवित्रता की बात कहाँ तक कहें? इसके संयोग में जो भी वस्तु एक पल भर के लिए ही क्यों न आये, वह भी मलिन हो जाती है, मल-मूत्रमय हो जाती है, दुर्गन्धमय हो जाती है। सब पदार्थों को पवित्र कर देनेवाला जल भी इसका संयोग पाकर अपवित्र हो जाता है। कुएँ के प्रासुक जल और अठपहरे शुद्ध घी में मर्यादित आटे से बना हलुआ भी क्षण भर को पेट में चला जावे और तत्काल वमन हो जावे तो उसे कोई देखना भी पसंद नहीं करता। ऐसी अपवित्र है यह देह और इसमें रहने वाला भगवान आत्मा परम पवित्र पदार्थ है।
आत्मा ही है शरण, पृष्ठ - ४५
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