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अनुक्रमणिका
५. पण्डित भागचन्दजी कृत भजन
• सन्त निरन्तर चिन्तत ऐसैं • सुमर सदा मन आतमराम
• आतम अनुभव आवै जब निज • आतम अनुभव आवै जब निज
·
ऐसे विमल भाव जब पावै • आकुलरहित होय इमि निशदिन • सफल है धन्य धन्य वा घरी
• प्रानी समकित ही शिवपंथाजीवन के परिनामनिकी यह
• परनति सब जीवनकी • तू स्वरूप जाने बिना दुखी
• सत्ता रंगभूमिमें, नटत ब्रह्म नटराय
· सांची तो गंगा यह वीतरागवानी • महिमा है अगम जिनागमकी
• महिमा जिनमतकी • थांकी तो वानी में हो
• मेघघटासम श्रीजिनवानी
• म्हांकै घट जिनधुनि अब प्रगटी • अहो यह उपदेशमाहीं
• धन्य धन्य है घड़ी आजकी जानके सुज्ञानी जैनवानी की
सरधा लाइये • श्रीगुरु हैं उपगारी ऐसे वीतराग गुनधारी वे • धन धन जैनी साधु अबाधित
• शांति वरन मुनिराई वर लखि • श्रीमुनि राजत समता संग
• ऐसे जैनी मुनिमहाराज • सम आराम विहारी
ऐसे साधु सुगुरु कब मिल हैं • गिरिवनवासी मुनिराज
• जे दिन तुम विवेक बिन खोये
अरे हो अज्ञानी तूने कठिन मनुषभव पायो
तेरे ज्ञानावरन दा परदा
• जीव! तू भ्रमत सदीव अकेला
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(६६)
पण्डित भागचन्दजी कृत भजन अनुक्रमणिका
• चेतन निज भ्रमतैं भ्रमत रहे
• सारौ दिन निरफल खोयबौ करै छै निज कारज काहे न सारै रे
• हरी तेरी मति नर कौनें हरी
•
आवै न भोगनमें तोहि गिलान • मान न कीजिये हो परवीन
• प्रेम अब त्यागहु पुद्गल का • यह मोह उदय दुख पावै
•
करौ रे भाई, तत्त्वारथ सरधान
•
धनि ते प्रानि, जिनके तत्त्वारथ श्रद्धान
• जिन स्वपरहिताहित चीन्हा • यही इक धर्ममूल है मीता !
● बुधजन पक्षपात तज देखो
•
अरे हो जियरा धर्म में चित्त लगाय रे
• भववनमें, नहीं भूलिये भाई ! • अति संक्लेश विशुद्ध शुद्ध पुनि
जे सहज होरी के खिलारी
•
•
सहज अबाध समाध धाम तहाँ सुन्दर दशलक्षन वृष
• षोडशकारन सुहृदय
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