Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 69
________________ १३६ आध्यात्मिक भजन संग्रह पण्डित भागचन्दजी कृत भजन १०. परनति सब जीवनकी परनति सब जीवनकी, तीन भाँति वरनी। एक पुण्य एक पाप, एक रागहरनी ।।टेक।। तामे शुभ अशुभ अंध, दोय करें कर्मबंध । वीतराग परनति ही, भवसमुद्रतरनी ।।१।। जावत शुद्धोपयोग, पावत नाहीं मनोग। तावत ही करन जोग, कही पुण्य करनी ।।२।। त्याग शुभ क्रियाकलाप, करो मत कदाच पाप । शुभमें न मगन होय, शुद्धता विसरनी ।।३।। ऊँच ऊँच दशा धारि, चित्त प्रमाद को विडारि। ऊँचली दशातें मति, गिरो अधो धरनी ।।४ ।। 'भागचन्द' या प्रकार, जीव लहै सुख अपार । याके निरधार स्याद-वाद की उचरनी ।।५।। 99. तू स्वरूप जाने बिना दुखी (राग दीपचन्दी धनाश्री) तू स्वरूप जाने बिना दुखी, तेरी शक्ति न हलकी वे ।।टेक ।। रागादिक वर्णादिक रचना, सो है सब पुद्गलकी वे ।।१।। अष्ट गुनातम तेरी मूरति, सो केवलमें झलकी वे ।।२।। जगी अनादि कालिमा तेरे, दुस्त्यज मोहन मलकी वे ।।३।। मोह नसैं भासत है मूरत, पँक नसैं ज्यों जलकी वे।।४।। 'भागचन्द' सो मिलत ज्ञानसों, स्फूर्ति अखंड स्वबल की वे ।।५।। १२. सत्ता रंगभूमिमें, नटत ब्रह्म नटराय सत्ता रंगभूमिमें, नटत ब्रह्म नटराय ।।टेक ।। रत्नत्रय आभूषणमंडित, शोभा अगम अथाय । सहज सखा निशंकादिक गुन, अतुल समाज बढ़ाय ।।१।। समता वीन मधुररस बोलै, ध्यान मृदंग बजाय । नदत निर्जरा नाद अनूपम, नूपुर संवर ल्याय ।।२ ।। लय निज-रूप-मगनता-ल्यावत, नृत्य सुज्ञान कराय । समरस गीतालापन पुनि जो, दुर्लभ जगमहँ आय ।।३ ।। 'भागचन्द' आपहि रीझत तहाँ, परम समाधि लगाय । तहाँ कृतकृत्य सु होत मोक्षनिधि, अतुल इनामहिं पाय ।।४।। १३. सांची तो गंगा यह वीतरागवानी (राग चर्चरी) सांची तो गंगा यह वीतरागवानी। अविच्छन्न धारा निज धर्मकी कहानी ।।टेक ।। जामें अति ही विमल अगाध ज्ञानपानी। जहाँ नहीं संशयादि पंककी निशानी ।।१।। सप्तभंग जहँ तरंग उछलत सुखदानी । संतचित मरालवृंद रमैं नित्य ज्ञानी ।।२।। जाके अवगाहनतें शुद्ध होय प्रानी। 'भागचन्द'निहचै घटमाहिं या प्रमानी ।। ३ ।। १४. महिमा है अगम जिनागमकी (राग ईमन) महिमा है अगम जिनागम की ।।टेक ।। जाहि सुनत जड़ भिन्न पिछानी, हम चिन्मूरति आतम की।। रागादिक दुखकारन जानें, त्याग बुद्धि दीनी भ्रमकी । ज्ञान ज्योति जागी घट अंतर, रुचि बाढ़ी पुनि शमदमकी ।।१।। कर्म बंध की भई निरजरा, कारण परंपरा क्रम की। ___भागचन्द' शिव लालच लागो, पहुँच नहीं है जहँ जमकी ।।२।। Bra Data

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