Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 37
________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह तू हटसौं ऐसै रमै रे, दीवे पड़त पतंग ।।१।।बीरा. ।। ये सुख हैं दिन दोयकै रे, फिर दुःख की सन्तान । करै कुहाड़ी लेइकै रे, मति मारै पग जान ।।२।।बीरा. ।। तनक न संकट सहि सकै रे! छिनमें होय अधीर । नरक विपति बहु दोहली रे, कैसे भरि है वीर ।।३ ।।बीरा. ।। भव सुपना हो जायेगा रे, करनी रहेगी निदान । 'भूधर' फिर पछतायगा रे, अबही समझि अजान ।।४ ।।बीरा. ।। २८. मन हंस! हमारी लै शिक्षा हितकारी! (राग काफी) मन हंस! हमारी लै शिक्षा हितकारी! श्रीभगवान चरन पिंजरे वसि, तजि विषयनि की यारी ।। कुमति कागलीसौं मति राचो, ना वह जात तिहारी। कीजै प्रीत सुमति हंसीसौं, बुध हंसन की प्यारी ।।१।।मन. ।। काहेको सेवत भव झीलर, दुखजलपूरित खारी। निज बल पंख पसारि उड़ो किन, हो शिव सरवर चारी ।।२।।मन. ।। गुरुके वचन विमल मोती चुन, क्यों निज वान विसारी। है है सुखी सीख सुधि राखें, 'भूधर' भूलैं ख्वारी ।।३ ।।मन. ।। २९. सो मत सांचो है मन मेरे (राग धनासरी) सो मत सांचो है मन मेरे।। जो अनादि सर्वज्ञप्ररूपित, रागादिक बिन जे रे ।। पुरुष प्रमान प्रमान वचन तिस, कल्पित जान अने रे। राग दोष दूषित तिन बायक, सांचे हैं हित तेरे ।।१ ।।सो मत. ।। देव अदोष धर्म हिंसा बिन, लोभ बिना गुरु वे रे। आदि अन्त अविरोधी आगम, चार रतन जहँ ये रे।।२।।सो मत.।। पण्डित भूधरदासजी कृत भजन जगत भर्यो पाखंड परख बिन, खाइ खता बहुतेरे। 'भूधर' करि निज सुबुद्धि कसौटी, धर्म कनक कसि ले रे।।३।।सो मत. ।। ३०. मन मूरख पंथी, उस मारग मति जाय रे (राग ख्याल) मन मूरख पंथी, उस मारग मति जाय रे ।।टेक ।। कामिनि तन कांतार जहाँ है, कुच परवत दुखदाय रे ।। काम किरात बसै तिह थानक, सरवस लेत छिनाय रे। खाय खता कीचक से बैठे, अरु रावनसे राय रे ।।१।।मन. ।। और अनेक लुटे इस पैंडे, वरनें कौन बढ़ाय रे । वरजत हों वरज्यौ रह भाई, जानि दगा मति खाय रे ।।२।।मन. ।। सुगुरु दयाल दया करि ‘भूधर', सीख कहत समझाय रे। आगै जो भावै करि सोई, दीनी बात जताय रे ।।३।।मन. ।। ३१. सब विधि करन उतावला, सुमरनकौं सीरा (राग काफी) सब विधि करन उतावला, सुमरनकौं सीरा ।।टेक ।। सुख चाहै संसार में, यों होय न नीरा ।। जैसे कर्म कमावे है, सो ही फल वीरा! आम न लागै आकके, नग होय न हीरा ।।१।।सब विधि. ।। जैसा विषयनिकों चहै न रहै छिन धीरा । त्यों 'भूधर' प्रभुकों जपै, पहुँचे भव तीरा ।।२ ।।सब विधि. ।। ३२. आयो रे बुढ़ापो मानी, सुधि बुधि बिसरानी (राग बंगला) आयो रे बुढ़ापो मानी, सुधि बुधि बिसरानी ।।टेक ।। श्रवन की शक्ति घटी, चाल चालै अटपटी, देह लटी, भूख घटी, लोचन झरत पानी ।।१।।आया रे. ।। (३७)

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