Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 44
________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह ८६ २०. भोगांरा लोभीड़ा, नरभव खोयौ रे अजान (राग - सोरठ) भोगांरा लोभीड़ा, नरभव खोयौ रे अजान ।। भोगांरा. । । टेक ॥। धर्मकाजको कारन थौ यौ, सो भूल्यौ तू बान । हिंसा अनृत परतिय चोरी, सेवत निजकरि जान ।। १ । । भोगांरा. ।। इन्द्रीसुखमैं मगन हुवौ तू, परकौँ आतम मान । बन्ध नवीन पड़ै छै यातैं, होवत मौटी हान ।। २ । । भोगांरा. ।। गया न कछु जो चेतौ बुधजन, पावौ अविचल थान । तन है जड़ तू दृष्टा ज्ञाता, कर लै यौं सरधान ।। ३ । । भोगांरा. ।। २१. बन्यौ म्हांरै या घरीमैं रंग बन्यौ म्हारै या घरीमैं रंग ।। बन्यौ । टेक ॥। तत्वारथकी चरचा पाई, साधरमी कौ संग || १ || बन्यौ ।। श्री जिनचरन बसे उर माहीं, हरष भयौ सब अंग । ऐसी विधि भव भवमैं मिलिज्यौ, धर्मप्रसाद अभंग ॥ २ ॥ बन्यौ । २२. कीपर करो जी गुमान (राग - सोरठ) परकरोजी गुमान थे तो कै दिनका मिजमान ।। कींपर. । । टेक ।। आये कहांतैं कहाँ जावोगे, ये उर राखौं ज्ञान ।। १ ।। कींपर. ।। नारायण बलभद्र चक्रवर्ति नाना रिद्धिनिधान । अपनी-अपनी बारी भुगतिर, पहुँचे परभव थान ।। २ ।। कींपर. ।। झूठ बोलि माया चारीतैं, मति पीड़ो पर प्रान तन धन दे अपने वश बुधजन, करि उपगार जहान ।। ३ । ।कींपर. ।। २३. अब घर आये चेतनराय । अब घर आये चेतनराय, सजनी खेलौंगी मैं होरी ।। अब ॥ टेक ॥। आरस सोच कानि कुल हारी धरि धीरज बरजोरी । । १ । । सजनी ॥ smark 3D Kailash Da (४४) पण्डित बुधजनजी कृत भजन बुरी कुमति बात न बूझे, चितवत है मोओरी । वा गुरुजनक बलि बलि जाऊँ, दूरि करी मति भोरी ।। २ । । सजनी. ।। निज सुभाव जल हौज भराऊँ, घोरूँ निजरङ्ग रोरी । निजल्यौं ल्याय शुद्ध पिचकारी, छिरकन निज मति दोरी । । ३ । । सजनी. ।। गाय रिझाय आप वश करिकै, जावन द्यौं नहि पोरी । बुधजन रचि मचि रहूँ निरंतर, शक्ति अपूरब मोरी ||४ | सजनी. ।। २४. हम कछू भय ना रे (राग - सोरठ) हमक कछू भय ना रे, जान लियौ संसार ।। हमकौं । टेक ॥। जो निगोदमें सो ही मुझमें, सो ही मोक्ष मँझार । निश्चय भेद कछू भी नाहीं भेद गिनैं संसार ।। १ ।। हमकौं ।। परवश है आपा विसारिके, राग दोषकौं धार । जीवत मरत अनादि कालतें, यौंही है उरझार ।।२ ।। हमकौं ।। जाकरि जैसैं जाहि समयमें, जो होवत जा द्वार । सो बनि है टरि है कछु नाहीं, करि लीनौं निरधार ।। ३ । । हमकौं. ।। अग्नि जरावै पानी बोवै, बिछुरत मिलत अपार । सो पुद्गल रूपीमैं बुधजन, सबको जाननहार ।। ३ । । हमकौं ।। २५. म्हे तो थांका चरणां लागां (राग - कालिंगड़ो परज धीमो तेतालो) म्हेतौ थांका चरणां लागां, आन भाव की परणति त्यागां । । म्हे. । । टेक ।। और देव सेया दुख पाया, थे पाया छौ अब बड़भागां ।। १ ।। म्हे. ।। एक अरज म्हांकी सुण जगपति, मोह नींदसौं अबकै जागां । निज सुभाव थिरता बुधि दीजे, और कछु म्हे नाहीं मांगा ।। २ ।। म्हे. ।।

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