Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 24
________________ पण्डित द्यानतरायजी कृत भजन आध्यात्मिक भजन संग्रह १०६. भाई काया तेरी दुखकी ढेरी ...... भाई काया तेरी दुखकी ढेरी, बिखरत सोच कहा है। तेरे पास सासतौ तेरो, ज्ञानशरीर महा है।।भाई ।। ज्यों जल अति शीतल है काचौ, भाजन दाह दहा है। त्यों ज्ञानी सुखशान्त कालका, दुख समभाव सहा है।।भाई. ।।१।। बोदे उतरें नये पहिरतें, कौंने खेद गहा है। जप तप फल परलोक लहैं जे, मरकै वीर कहा है।।भाई. ।।२।। 'द्यानत' अन्तसमाधि चहैं मुनि, भागौं दाव लहा है। बहु तज मरण जनम दुख पावक, सुमरन धार बहा है।।भाई. ।।३।। १०७. भाई! ज्ञानका राह दुहेला रे ...... मैं ही भगत बड़ा तपधारी, ममता गृह झकझेला रे ||भाई. ।। मैं कविता सब कवि सिरऊपर, बानी पुदगलमेला रे। मैं सब दानी मांगै सिर द्यौ, मिथ्याभाव सकेला रे ||भाई. ।।१।। मृतक देह बस फिर तन आऊं, मार जिवाऊं छेला रे। आप जलाऊं फेर दिखाऊं, क्रोध लोभतें खेला रे ।।भाई. ।।२।। वचन सिद्ध भाषै सोई है, प्रभुता वेलन वेला रे । 'द्यानत' चंचल चित पारा थिर, करै सुगुरुका चेला रे।।भाई.।।३।। १०८. भाई! ज्ञानका राह सुहेला रे ....... दरब न चहिये देह न दहिये, जोग भोग न नवेला रे।।भाई. ।। लड़ना नाहीं मरना नाहीं, करना बेला तेला रे । पढ़ना नाहीं गढ़ना नाहीं, नाच न गावन मेला रे ।।भाई. ।।१।। न्हानां नाहीं खाना नाहीं, नाहिं कमाना धेला रे। चलना नाहीं जलना नाहीं, गलना नाहीं देला रे ।।भाई. ।।२।। जो चित चाहे सो नित दाहै, चाह दूर करि खेला रे। 'द्यानत' यामें कौन कठिनता, वे परवाह अकेला रे।।भाई. ।।३।। १०९. मानों मानों जी चेतन यह ...... मानों मानों जी चेतन यह, विषै भोग छोड देहु, विषै की समान कोऊ, नाहीं विष आन।।टेक ।। तात मात पुत्र नार, नदी नाव ज्यों निहार, जोवन गुमान जानों, चपला समान ।।मानों. ।।१।। हाथी रथ प्यादे बाज, इनसों न तेरो काज, सुपने समान देख, कहा गरबान ।।मानों. ।।२।। ये तो देहके मिलापी, तू तो देहसों अव्यापी, ज्ञान दृष्टि धर देखि, चेतिये सुजान ।।मानों. ।।३।। ११०. मिथ्या यह संसार है, झूठा यह संसार है रे...... जो देही षट्रससों पोषै, सो नहिं संग चलै रे। औरनिको तोहि कौन भरोसो, नाहक मोह करै रे, भाई।।मिथ्या.।।१।। सुखकी बातें बूझै नाहीं, दुखको सुक्ख लखै रे। मूढ़ोंमाहीं मातों डोलै, साधौं पास डरै रे, भाई ।।मिथ्या. ।।२।। झूठ कमाता झूठी खाता, झूठी जाप जपै रे । सच्चा सांई सूझै नांहीं, क्यों करि पार लगैरे, भाई।।मिथ्या. ।।३।। जमसों डरता फूला फिरता, करता मैं मैं मैं रे। 'द्यानत' स्याना सोही जाना, जो प्रभु ध्यान धरै रे भाई।।मिथ्या.।।४।। 999. मेरी मेरी करत जनम सब बीता ...... परजय-रत स्वस्वरूप न जान्यो, ममता ठगनी ठग लीता।।मेरी.॥१।। इंद्री-सुख लखि सुख विसरानौ, पांचों नायक वश नहिं कीता।।मेरी.।।२।। 'द्यानत' समता-रसके रागी, विषयनि त्यागी है जग जीता। मेरी.।।३।। ११२. मेरे मन कब है है बैराग ...... राज समाज अकाज विचारौं, छारौं विषय कारे नाग।।मेरे. ।।१।। मन्दिर वास उदास होयकैं, जाय बसौं बन बाग।।मेरे. ।।२।। कब यह आसा कांसा फूटै, लोभ भाव जाय भाग।।मेरे.।।३।। sa kabata (२४)

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