Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 20
________________ पण्डित द्यानतरायजी कृत भजन आध्यात्मिक भजन संग्रह पाँय सफल जिन भौन गौनतें, काय सफल नाचें बल गाज। वित्त सफल जो प्रभुकौं लागै, चित्त सफल प्रभुध्यान इलाज ।।मानुष. ।।२।। चिन्तामणि चिंतित-वर-दाईं, कलपवृक्ष कलपन” काज। देत अचिंत अकल्प महासुख, 'द्यानत' भक्ति गरीबनिबाज ।।मानुष. ।।३।। ८०. मैं नूं भावैजी प्रभु चेतना, मैं नूं भावै जी ...... गुण रतनत्रय आदि विराजै, निज गुण काहू देत ना।।मैं . ।।१।। सिद्ध विशुद्ध सदा अविनाशी, परगुण कबहूं लेत ना।।मैं नूं.।।२।। 'द्यानत' जो ध्याऊं सो पाऊं, पुद्गलसों कछु हेत ना ।।मैं . ।।३।। ८१. प्रभु! तुम नैनन-गोचर नाहीं ...... मो मन ध्यावै भगति बढ़ावै, रीझ न कछु मनमाहीं।।प्रभु. ।।१।। जनम-जरा-मृत-रोग-वैद्य हो, कहा करें कहां जाहीं।।प्रभु.।।२।। 'द्यानत' भव-दुख-आग-माहितै, राख चरण-तरु-छाहीं।।प्रभु.।।३।। ८२. प्रभु तुम सुमरन ही में तारे ...... सूअर सिंह नौल वानरने, कहौ कौन व्रत धारे ।।प्रभु. ।। सांप जाप करि सुरपद पायो, स्वान श्याल भय जारे । भेक वोक गज अमर कहाये, दुरगति भाव विदारे ।।प्रभु.।।१।। भील चोर मातंग जु गनिका, बहुतनिके दुख टारे । चक्री भरत कहा तप कीनौ, लोकालोक निहारे ।।प्रभु. ।।२।। उत्तम मध्यम भेद न कीन्हों, आये शरन उबारे । 'द्यानत' राग दोष बिन स्वामी, पाये भाग हमारे ।।प्रभु. ।।३।। ८३. प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं ...... गरभ छमास अगाउ कनक नग सुरपति नगर बनावै ।।प्रभु. ।। क्षीर उदधि जल मेरु सिंहासन, मल मल इन्द्र न्हुलावें। दीक्षा समय पालकी बैठो, इन्द्र कहार कहावै ।।प्रभु. ।।१।। समोसरन रिध ज्ञान महातम, किहिविधि सरब बतावै। आपन जातबात कहा शिव, बात सुनैं भवि जावै ।।प्रभु. ।।२।। पंच कल्यानक थानक स्वामी, जे तुम मन वच ध्यावें। 'द्यानत' तिनकी कौन कथा है, हम देखें सुख पावै ।।प्रभु. ।।।। ८४. रे मन! भज भज दीनदयाल ...... जाके नाम लेत इक छिनमैं, कटें कोट अघजाल ।।रे मन. ।। परमब्रह्म परमेश्वर स्वामी, देखें होत निहाल । सुमरन करत परम सुख पावत, सेवत भाजै काल ।।रे मन. ।।१।। इंद फनिंद चक्कधर गावै, जाको नाम रसाल । जाको नाम ज्ञान परगासै, नाशै मिथ्याजाल ।।रे मन. ।।२।। जाके नाम समान नहीं कछु, ऊरध मध्य पताल । सोई नाम जपो नित 'द्यानत', छांडि विषय विकराल ।।रे मन. ।।३।। ८५. वीतराग नाम सुमर, वीतराग नाम ...... भजन बिना किये यार, होगा बदनाम।।वीतराग. ।। जाको करै धूमधाम, सो तो धूमधाम | पातशाह होय चुके, सर्यो कौन काम ।।वीतराग. ।।१।। बातें परवीन करै, काम करै खाम । काल सिंह आवत है, पकर एक ठाम ।।वीतराग. ।।२।। आठ जाम लागि रह्यौ, चाम निरख दाम । 'द्यानत' कबहूँ न भूल, साहिब अभिराम ।।वीतराग. ।।३।। ८६. हम आये हैं जिनभूप! तेरे दरसन को निकसे घर आरतिकूप, तुम पद परसनको।।हम. ।।१।। वैननिसों सुगुन निरूप, चाहैं दरसनकों।।हम.।।२।। in 'द्यानत' ध्यावै मन रूप, आनंद बरसन को ।।हम.।।३।। sarak kata Data

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