Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ २८ ...... ४६. मगन रहु रे! शुद्धातममें मगन रहु रागदोष परकी उतपात, निहचै शुद्ध चेतनाजात ।। मगन. ।। १ ।। विधि निषेधको खेद निवारि, आप आपमें आप निहारि । मगन. ।।२ ।। बंध मोक्ष विकलप करि दूर, आनँदकन्द चिदातम सूर ।। मगन. ।। ३ ।। दरसन ज्ञान चरन समुदाय, 'द्यानत' ये ही मोक्ष उपाय । । मगन. ।।४ ।। ४७. मन! मेरे राग भाव निवार....... आध्यात्मिक भजन संग्रह राग चिक्कतें लगत है, कर्मधूलि अपार । मन. ।। राग आस्रव मूल है, वैराग्य संवर धार । जिन न जान्यो भेद यह, वह गयो नरभव हार । । मन. ।। १ ।। दान पूजा शील जप तप, भाव विविध प्रकार । राग विन शिव सुख करत हैं, रागतैं संसार । मन. ॥ २ ॥ वीतराग कहा कियो, यह बात प्रगट निहार । सोइ कर सुख हेत 'द्यानत', शुद्ध अनुभव सार । मन. ।। ३ ।। ४८. मैं निज आतम कब ध्याऊंगा....... रागादिक परिनाम त्यागकै, समतासौं लौ लाऊंगा ।। मन वच काय जोग थिर करकै, ज्ञान समाधि लगाऊंगा। कब हौं क्षिपकश्रेणि चढ़ि ध्याऊं, चारित मोह नशाऊंगा ।। १ ।। चारों करम घातिया क्षय करि, परमातम पद पाऊंगा। ज्ञान दरश सुख बल भंडारा, चार अघाति बहाऊंगा || २ || परम निरंजन सिद्ध शुद्धपद, परमानंद कहाऊंगा । 'द्यानत' यह सम्पति जब पाऊं, बहुरि न जगमें आऊंगा || ३ || ४९. रे भाई! मोह महा दुखदाता वस्तु विरानी अपनी मानैं, विनसत होत असाता ।। रे भाई. ।। जास मास जिस दिन छिन विरियाँ, जाको होसी घाता । ताको राख सकै न कोई, सुर नर नाग विख्याता ।। रे भाई. ॥ १ ॥ ...... smark 3D Kailesh Data (१५) पण्डित द्यानतरायजी कृत भजन सब जग मरत जात नित प्रति नहि, राग बिना बिललाता। बालक मरैं करै दुख धाय न, रुदन करै बहु माता ।।रे भाई. ।। २ ।। मूसे हनैं बिलाव दुखी नहिं, मुरग हनैं रिस खाता । 'द्यानत' मोह-मूल ममताको, नाश करै सो ज्ञाता ।। रे भाई. ।। ३ ।। ५०. लाग रह्यो मन चेतनसों जी....... सेवक सेव सेव सेवक मिल, सेवा कौन करै पनसों जी ।। १ ।। ज्ञान सुधा पी वम्यो विषय विष, क्यों कर लागि सके तनसौं जी ॥ २ ॥ 'द्यानत' आप- आप निरविकलप, कारज कवन भवन निवसों जी ।। ३ ।। ५१. लागा आतमसों नेहरा........ चेतन देव ध्यान विधि पूजा, जाना यह तन देहरा । । लागा. ।। १ ।। मैं ही एक और नहिं दूजो, तीन लोकको सेहरा । । लागा. ।। २ ।। 'द्यानत' साहब सेवक एकै, बरसै आनँद मेहरा । । लागा. ।। ३ ॥ ५२. लागा आतमरामसों नेहरा ...... २९ ज्ञानसहित मरना भला रे, छूट जाय संसार । धिक्क ! परौ यह जीवना रे, मरना बारंबार । । लागा. ।। १ ।। साहिब साहिब मुंह कहते, जानें नाहीं कोई । जो साहिबकी जाति पिछानैं, साहिब कहिये सोई । । लागा. ।। २ ।। जो जो देखौ नैनोंसेती, सो सो विनसै जाई । देखनहारा मैं अविनाशी, परमानन्द सुभाई ।। लागा. ।। ३ ।। जाकी चाह करें सब प्रानी, सो पायो घटमाहीं । 'द्यानत' चिन्तामनिके आये, चाह रही कछु नाहीं । । लागा. ।।४ ।। ५३. वे परमादी! तैं आतमराम न जान्यो....... जाको वेद पुरान बखानै, जानें हैं स्यादवादी । । वे ।। १ ।। इंद फनिंद करें जिस पूजा, सो तुझमें अविषादी । ।वे . ।।२ ।। 'द्यानत' साधु सकल जिंह ध्यावैं, पावैं समता - स्वादी । ।वे. ।। ३ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116