Book Title: Adhyatmik Bhajan Sangrah
Author(s): Saubhagyamal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ आध्यात्मिक भजन संग्रह नरक निगोद भ्रम्यो बहु प्रानी, जान्यो नाहिं धरम-विरतंत। 'द्यानत' भेदज्ञान सरधातें, पायो दरव अनादि अनन्त ।।श्री. ।।३।। ५९. शुद्ध स्वरूपको वंदना हमारी...... एक रूप वसुरूप विराजै, सुगुन अनन्त रूप अविकारी।।शुद्ध. ।।१।। अमल अचल अविकलप अजलपी, परमानंद चेतनाधारी ।।शुद्ध. ।।२।। 'द्यानत' द्वैतभाव तज हजै, भाव अद्वैत सदा सुखकारी।।शुद्ध. ।।३।। ६०. हम लागे आतमरामसों ...... विनाशीक पुद्गलकी छाया, कौन रमै धन मानसों।।हम. ।। समता सुख घटमें परगास्यो, कौन काज है कामसों। दुविधा-भाव जलांजुलि दीनौं, मेल भयो निज स्वामसों ।।हम. ।।१।। भेदज्ञान करि निज परि देख्यौ, कौन विलोकै चामसौं। उरै परैकी बात न भावै, लो लाई गुणग्रामसौं ।।हम. ।।२।। विकलप भाव रंक सब भाजे, झरि चेतन अभिरामसों। 'द्यानत' आतम अनुभव करिकै, छूटे भव दुखधामसों।।हम. ।।३।। ६१. हम तो कबहुँ न निज घर आये ...... पर घर फिरत बहुत दिन बीते, नाम अनेक धराये।।हम तो. ।। परपद निजपद मानि मगन है, पर परनति लपटाये । शुद्ध बुद्ध सुखकंद मनोहर, आतम गुण नहिं गाये।।हम तो.।।१।। नर पशु देव नरक निज मान्यो, परजयबुद्ध लहाये। अमल अखंड अतुल अविनाशी, चेतन भाव न भाये।।हम तो. ।।२।। हित अनहित कछु समझ्यो नाहीं, मृगजलबुध ज्यों धाये। 'द्यानत' अब निज-निज, पर-पर है, सद्गुरु वैन सुनाये ।।हम तो.।।३।। ६२. हो भैया मोरे! कह कैसे सुख होय ..... लीन कषाय अधीन विषयके, धरम करै नहिं कोय।।हो भैया. ।। पाप उदय लखि रोवत भोंदू!, पाप तजै नहिं सोय। स्वान-वान ज्यों पाहन सूंघे, सिंह हनै रिपु जोय ।।हो भैया. ॥१।। पण्डित द्यानतरायजी कृत भजन धरम करत सुख दुख अघसेती, जानत हैं सब लोय। कर दीपक लै कूप परत है, दुख पैहै भव दोय ।।हो भैया. ।।२।। कुगुरु कुदेव कुधर्म लुभायो, देव धरम गुरु खोय। उलट चाल तजि अब सुलटै जो, 'द्यानत' तिरै जग-तोय ।।हो भैया. ।।३।। ६३. वे कोई निपट अनारी, देख्या आतमराम जिनसों मिलना फेरि बिछुरना, तिनसों कैसी यारी। जिन कामोंमें दुख पावै है, तिनसों प्रीति करारी ।।वे. ।।१।। बाहिर चतुर मूढ़ता घरमें, लाज सबै परिहारी। ठगसों नेह वैर साधुनिसों, ये बातें विसतारी ।।वे. ।।२।। सिंह दाढ़ भीतर सुख माने, अक्कल सबै बिसारी। जा तरु आग लगी चारौं दिश, वैठि रह्यो तिहँ डारी ।।वे. ।।३।। हाड़ मांस लोहकी थैली, तामें चेतनधारी। 'द्यानत' तीनलोकको ठाकुर, क्यों हो रह्यो भिखारी ।।वे. ।।४।। ६४. ज्ञाता सोई सच्चा वे, जिन आतम अच्चा.... ज्ञान ध्यान में सावधान है, विषय भोगमें कच्चा वे।।ज्ञाता. ।।१।। मिथ्या कथन सुननिको बहरा, जैन वैनमें मच्चा वे।।ज्ञाता. ।।२।। मूढनिसेती मुख नहिं बोले, प्रभुके आगे नच्चा वे।।ज्ञाता. ।।३।। 'द्यानत' धरमीको यों चाहै, गाय चहै ज्यों बच्चा वे।।ज्ञाता. ।।४।। ६५. ज्ञान सरोवर सोई हो भविजन ...... भूमि छिमा करुना मरजादा, सम-रस जल जहँ होई।।भविजन. ।। परनति लहर हरख जलचर बहु, नय-पंकति परकारी। सम्यक कमल अष्टदल गुण हैं, सुमन भँवर अधिकारी ।।भविजन. ।।१।। संजम शील आदि पल्लव हैं, कमला सुमति निवासी। सुजस सुवास कमल परिचयतें, परसत भ्रम तप नासी । भविजन. ।।२।। भव-मल जात न्हात भविजनका, होत परम सुख साता। pan 'द्यानत' यह सर और न जानैं, जानैं बिरला ज्ञाता ।।भविजन. ।।३।। anLOKailastipata

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