Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 20
________________ पढम अज्झयण (पचमो उद्देसो) १०८-इच्चत्थं गढिए लोए। १०९-जमिणं. विरूवरूवेहि सत्येहि वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्सइ-सत्थं समारंभेमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे विहिसति । ११०-से बेमि अप्पेगे अधमन्भे, अप्पेगे अधमच्छे । १११-अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे । ( १।२८) ११२-अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उदवए । ११३-से वेमि --- इमपि जाइ-धम्मय, एयपि जाइ-धम्मय । इमपि बुड्ढि-धम्मय, एयंपि बुड्ढि-धम्मयं । इमंपि चित्तमतयं, एयंपि चित्तमतयं । इमपि छिन्न मिलाति, एयंपि छिन्न मिलाति । इमपि आहारग, एयपि आहारगं। इमंपि अणिञ्चयं, एयपि अणिच्चयं। इमंपि असासय, एयंपि असासयं । इमपि चयावचइयं, एयंपि चयावचइयं, । इमंपि विपरिणामधम्मयं, एयंपि विपरिणामधम्मयं । ११४-एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चते आरंभा अपरिण्णाता भवंति। ११५-एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। -विहमति (ख, ग)| अशुद्ध प्रतिमाति । २-चओवचइय (चू, क, घ, च.8), चयावचय (ख, ग)।

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