Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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६४
आयारो
११५ – सुपडिलेहिय' सव्वतो सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया । ११६ - इहारामं परिण्णाय, अल्लीण - गुत्तो परिव्वए ।
णिट्ठियट्ठी वीरे, आगमेण सदा परक्कमेज्जासि-त्ति बेमि । ११७ - उड्ढं सोता अहे सोता, तिरियं सोता वियाहिया, एते सोया वियक्खाया, जेहिं संगति पासहा || ११८ - ' आवटं तु उवेहाए" ' एत्थ विरमेज्ज वेयवी" । ११६ - विणएत्तु सोयं णिक्खम्म, एसमहं अकम्मा जाणति पासति ।
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१२० - पडिलेहाए णावकखति, इह आगतिं परिण्णाय १२१ - अच्चेइ जाइ - मरणस्स वट्टमग्गं वक्खाय-रए । १२२ - सन्ये सरा पियट्टति ।
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१२३ -तका जत्थ ण विज्जइ । १२४ - मई तत्थ ण गाहिया ।
१२५ - ओए अप्पतिट्टाणस्स खेयन्ने ।
१२६ - से ण दीहे, ण हस्से ",
ण वट्टे, ण तसे, ण चउरंसे, ण परिमण्डले ।
१
- लेहिय ( चू) ।
२ - सन्वत्ताए (चू ). सर्वात्मना (वृ ) |
३ - [मेत ( चू ) ।
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४- ज्जा (घ ) 1
५ -- आटूटमेय तु पेहाए ( ख, ग, घ ), अट्टमेय उवेहाए (चू ) । -विवेग किट्टह वेदवी ( चू, वृपा); एत्थ विरमेज्ज वेयवी ( चुपा ) ।
७- विणएता (चूपा ) ।
८- णिक्कम्म (म्भा) (घ, छ ) ।
--वदुम ( क ): वमग्गं (च, शु) ।
१० - विषयाय (क, ख, ग, घ, च, छ) ।
११ -हुस्से (क, घ, व); रहस्से ( ख ); हरस्से (छ) ।

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