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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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निरथं पावयणं
HENEW
018234
आयारो
तह
आयार-चूला
( मूल-पाठ, पाठान्तर, गब्द सूची आदि )
वाचना प्रमुख
आचार्य तुलसी
सम्पादक
मुनि नथमल
( निकाय - सचिव)
प्रकाशक
जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा आगम - साहित्य प्रकाशन समिति
३, पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट कलकत्ता - १
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प्रवन्ध-सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, बी० कॉम०, बी० एल०
संकलक : आदर्श साहित्य संघ चूरू ( राजस्थान)
आर्थिक-सहायक : श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल)
दिसम्बर, १९६७ प्रति-संख्या
पृष्ठांक : ६३२
मुद्रक : न्यू रोशन प्रिण्टिग वक्स ३१/१, लोअर चितपुर रोड कलकत्ता-१
मूल्य : रु०१३)
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AYARO
Taha AYAR-CULA
[ THE ACARANGA AND THE ACARANGA-CULA]
Vacana Pramukha ACARYA TULASI
Edited with
Original text, Variant readings, Alphabetical index of words,
Appendices, etc.
Editor Mani Nathmal
(Nikaya Saciva)
Publisher Jain Swetambar Terapanthi Mahasabha (Agam-Sahitya Prakashan Samiti) 3, Portuguese Church Street
CALCUTTA-1 (INDIA) First Edition 1967 1
[ Price : Rs. 13
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आयारो तह आयार-चूला शेष पाँच उद्देशको में भी प्राप्त होते है । पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शों तथा आचारांग वृत्ति में यह प्राप्त नहीं है । आचारांग चूर्णि में 'लज्जमाणा पुढोपास' (आयारो, सूत्र १६, पृ० ४ ) सूत्र से लेकर 'अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए' (आयारो, सूत्र २६, पृ०६) तक ध्र वकण्डिका (एक समान पाठ) मानी गई है।'
चूर्णि में प्राप्त संकेत के आधार पर हमने द्वितीय उद्देशक में प्राप्त तीन सूत्र (२७-२६) शेष पॉचो उद्देशको में स्वीकृत किए है । • आठवे अध्ययन के दूसरे उद्देशक (सू०२१) की चूर्णि२ में 'कुंभारायतणंसि वा' के स्थान पर अनेक शब्द उपलब्ध होते हैं, जैसे-'उवट्टणगिहे वा, गामदेउलिए वा, कम्मगारसालाए वा, ततुवायगसालाए वा, लोहगारसालाए वा ।' चूर्णिकार ने आगे लिखा है-~~-'जचियाओ साला सव्वाओ भाणियवाओ। ... यहाँ प्रतीत होता है कि 'कुभारायतणंसि वा' शब्द अन्य अनेक शाला या गृहवाची शब्दो से युक्त था, किन्तु लिपि-दोष के कारण कालक्रम से शेष शब्द छूट गए। चूर्णि के आधार पर पाठ-पद्धति का निश्चय करना संभव नहीं, इसलिए उसे मूलपाठ मे स्वीकृत नही किया गया। ____ हमने संक्षिप्त पाठ की पूर्ति भी की है। पाठ संक्षेप की परम्परा श्रुत को कंठाग्र करने की पद्धति और लिपि की सुविधा के कारण प्रचलित हुई। पं० वेचरदास दोशी ने ८-१२-६६ को आचार्यश्री तुलसी के पास एक लेख भेजा था। उसमें इस विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने लिखा है-"प्राचीन जैन-श्रमण लिखने-लिखाने की प्रवृत्ति को आरंभ-रूप समझते थे, फिर भी शास्त्रों की रक्षा के लिए उन्होंने लिखनेलिखाने के आरम्भ-रूप मार्ग को भी अपवाद समझ कर स्वीकार किया। पर जितना कम लिखना पडे उतना अच्छा, ऐसा समझ कर उन्होंने शास्त्र की रक्षा के लिए ही, हो सके वहाँ तक कम आरंभ करना पडे, ऐसा रास्ता शोधने का जरूर प्रयास किया। इस रास्ते की शोध से 'वण्णओं' और 'जाव' दो नए शब्द उनको मिले। इन दो शब्दो की सहायता से हजारो श्लोक वा सैकडो वाक्य कम लिखने से उनका आरंभ कम हो गया और शास्त्र के आशय में भी किसी प्रकार की न्यूनता नही हुई।"
१. देखे-आयारो, पृ०८ पादटिप्पण सख्याक २७ पृ०११ पादटिप्पण सख्याक २ पृ०१४
पादटिप्पण सख्याक १, पृ० १६ पादटिप्पण सख्याक ३, पृ० १६ पादटिप्पण
सख्याक ४। २: आचारांग चुणि, पृ० २६०-२६१ । ३ वही, पृ० २६१।
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सम्पादकीय --
श्रुत को कण्ठस्थ करने की पद्धति, लिपि की सुविधा ओर कम लिखने की मनोवृत्ति-पाठ-संक्षेप के ये तीनो कारण संभाव्य है । इनसे भले ही आशय की न्यूनता न हुई हो, किन्तु ग्रन्थ-सौन्दर्य अवश्य न्यून हुआ है । पाठक की कठिनाइयाँ भी बढ़ी है। जिन मुनियों के समग्र आगम-साहित्य कण्ठस्थ था, वे 'जाव' या 'वण्णग' द्वारा संकेतित पाठ का अनुसंधान कर पूर्वापर की सम्बन्ध-योजना कर मकते हैं। किन्तु प्रतिलिपियो के आधार पर पढ़ने वाला मुनि-वर्ग ऐसा नहीं कर सकता। उसके लिए 'जाव' या 'वण्णग' द्वारा संकेतित पाठ बहुत लाभदायी सिद्ध नहीं हुआ है । इसका हम प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे है। इसी कठिनाई तथा ग्रन्थ-सौन्दर्य की दृष्टि से हमारे वाचना प्रमुख प्राचार्यश्री तुलसी ने चाहा की संक्षेपीकृत पाठ की पुनः पूर्ति की जाए। हमने अधिकाश स्थलो में संक्षिप्त पाठ की पूर्ति की है । उसकी सूचना के लिए विन्दु-संकेत दिया गया है । आयारो तथा आयार-चूला के पूर्ति-स्थलो के निर्देश की सूचना प्रथम और द्वितीय परिशिष्ट में दी गई है।
पं. वेचरदास दोशी के अनुसार पाठ का संक्षेपीकरण देवद्धिगणि क्षमाश्रमण चे किया था। उन्होने लिखा है-"देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने यागमो को ग्रन्थ-बद्ध करते समय कुछ महत्त्वपूर्ण बात ध्यान मे रखो । जहाँ-जहाँ शास्त्री मे ममान पाठ आए वहाँ-वहाँ उनकी पुनरावृत्ति न करते हुए उनके लिए एक विशेप ग्रन्न अथवा स्थान का निर्देश कर दिया। जैसे–'जहा उववाइए' 'जहा पण्णवणाए' इत्यादि । एक ही ग्रन्थ मे वही वात बार-बार आने पर उसे पुनः-पुनः न लिग्वते हुए 'जा' शब्द का प्रयोग करते हुए उसका अन्तिम शब्द लिख दिया। जैसे—णाग कुमारा जाव विहरंति', 'तेणं कालेणं जाव परिसा णिग्गया' इत्यादि । .. ___ इस परम्परा का प्रारम्भ भले ही देवर्द्धिगणि ने किया हो, किन्तु इसका विकाम उनके उत्तरवर्ती-काल मे भी होता रहा है । वर्तमान में उपलब्ध आदर्शो मे संक्षेपीकृत पाठ को एकस्पता नहीं है। एक आदर्श में कोई मन्त्र सक्षिप्त है तो दूसरे में वह समग्र रूप से लिखित है। टीकाकारो ने स्थान-स्थान पर इसका उल्लेख भी किया है। उदाहरण के लिए औपपातिक सूत्र में "अयपायाणि वा जाव अण्णयराई वा" तथा 'अयवंधणाणि वा जाव अण्णयराई वा-ये दो पाठाश मिलते है। वृत्तिकार के सामने जो मुख्य आदर्श थे, उनमे ये दोनो संक्षिप्त रूप में थे, किन्तु दूसरे आदर्शों में ये समग्र रूप में भी प्राप्त थे । वृत्तिकार ने इसका उल्लेख किया है। लिपिकर्ता
१. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, पृ०८ . . २ ओपपातिक वृत्ति, पत्र १७७
पुस्तकान्तरे समग्रमिद सूत्रद्वयमस्त्येवेति ।
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आयारो तह आयार-चूला
भगवान् पार्श्व के साढे तीन सौ चतुर्दश-पूर्वी मुनि थे । ' भगवान महावीर के तीन सौ चतुर्दश- पूर्वी मुनि थे । "
समवायाग और अनुयोगद्वार में अन-प्रविष्ट और अङ्ग - वाह्य का विभाग नही है । सर्व प्रथम यह विभाग नन्दी में मिलता है । अङ्ग बाह्य की रचना अर्वाचीन स्थविरो ने की है। नन्दी की रचना से पूर्व अनेक अङ्ग वाह्य ग्रन्थ रचे जा चुके थे और वे . चतुर्दश-पूर्वी या दश-पूर्वी स्थविरो द्वारा रचे गए थे । इसलिए उन्हे आगम की कोटि में रखा गया। उसके फलस्वरूप ( के विभाग लिया और (२) अङ्ग वा । यह विभाग के
(१) अङ्ग-प्रविष्ट 7) तक नही
हुआ था । यह सबसे पहले नन्दी (वीर,
नन्दी की रचना तक आगम के तीन वर्गीकरण हो जात - (१) प्रविष्ट और (३) अङ्ग - वाह्य । आज 'अङ्ग-प्रविष्ट' और 'अङ्ग बाह्य' उपलब्ध होते है, किन्तु पूर्व उपलब्ध नहीं है । उनकी अनुपलब्धि ऐतिहासिक दृष्टि से विमर्शनीय है ।
१. समवायाग, प्रकीर्णक समवाय, सू० १४ ।
२. वही, सू० १२ ।
३. समवायांग वृत्ति, पत्र १०१ :
प्रथमं पूर्वं तस्य सर्वप्रवचनात् पूर्वं क्रियमाणत्वात् ।
"
२-पूर्व
जैन- परम्परा के अनुसार श्रुत ज्ञान (शाब्द-ज्ञान) का अक्षयकोष 'पूर्व' है। इसके अर्थ और रचना के विषय में सव एकमत नही हैं । प्राचीन आचायों के मतानुसार 'पूर्व' द्वादशांगी से पहले रचे गए थे, इसलिए इनका नाम 'पूर्व' रखा गया | 3 for faarat का अभिमत यह है कि 'पूर्व' भगवान् पार्श्व की परम्परा की श्रुतराशि है । यह भगवान् महावीर से पूर्ववर्ती है, इसलिए दोनों अभिमतों में से किसी को भी मान्य किया जाए, अन्तर नही आता कि पूर्वो की रचना द्वादशांगी से पहले हुई थी या द्वादशागी पूर्वो को उत्तरकालीन रचना है ।
इसे 'पूर्व' कहा गया है । "
किन्तु इस फलित में कोई
वर्तमान में जो द्वादशांगी का रूप प्राप्त है, उसमें 'पूर्व' समाए हुए है । बारहवाँ अङ्ग
8. नन्दी, मलयगिरि वृत्ति, पत्र २४० :
अन्ये तु व्याचक्षते पूर्वं पूर्वगतसूत्रार्थ मर्हन् भाषते, गणधरा अपि पूर्वं पूर्वगतसूत्र विरचयन्ति, पश्चादाचारादिकम् ।
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भूमिका
।
दृष्टिवाद है । उसका एक विभाग है पूर्वगत | चौदह पूर्व इसी 'पूर्व' के अन्तर्गत किए गए है | भगवान् महावीर ने प्रारम्भ में पूर्वगत का अर्थ 'प्रतिपादित' किया था और गौतम आदि गणधरो ने भी प्रारम्भ में पूर्वगत श्रुत की रचना की थी। इस अभिमत से यह फलित होता है कि चौदह पूर्व और वारहवाँ अङ्ग - ये दोनो भिन्न नही है । पूर्वगतश्रुत बहुत गहन था । सर्व साधारण के लिए वह सुलभ नही था । अङ्गो की रचना अल्पमेधा व्यक्तियों के लिए की गई । जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण ने बताया है कि 'दृष्टिवाद मे समस्त शब्द- ज्ञान का अवतार हो जाता है फिर भी ग्यारह अङ्गो की रचना अल्पमेधा पुरुषो तथा स्त्रियो के लिए की गई ।' ग्यारह अङ्गो को वे ही साधु पढ़ते थे, जिनकी प्रतिभा प्रखर नही होती थी । प्रतिभा सम्पन्न मुनि पूर्वी का अध्ययन करते थे | आगम-विच्छेद के क्रम से भी यही फलित होता है कि ग्यारह अङ्ग दृष्टिवाद या पूर्वो से सरल या भिन्न क्रम मे रहे है। दिगम्बर- परम्परा के अनुसार वीर- निर्वाण के बासठ वर्प याद केवली नही रहे । उसके बाद सौ वर्षं तक श्रुत- केवली (चतुर्दश-पूर्वी ) रहे । उसके पश्चात् एक सौ तिरासी वर्ष तक दशपूर्वी रहे। इनके पश्चात् दो सौ बीस व तक ग्यारह अधर रहे ।
उक्त चर्चा से यह स्पष्ट है कि जब तक आचार आदि अङ्गो की रचना नही हुई थी, तब तक महावीर की श्रुत-राशि 'चौदह पूर्व' या 'दृष्टिवाद' के नाम से अभिहित होती थी और जब आचार आदि ग्यारह अङ्गो की रचना हो गई, तब दृष्टिवाद को बारहवे अह्न के रूप में स्थापित किया गया ।
यद्यपि बारह अङ्गो को पढ़ने वाले और चौदह पूर्वो को पढ़ने वाले----ये भिन्न-भिन्न उल्लेख मिलते है, फिर भी यह नही कहा जा सकता कि चौदह पूर्वो के अध्येता बारह अङ्गो के अध्येता नही थे और बारह अगो के अध्येता चतुर्दश-पूर्वी नहीं थे । गौतम स्वामी को 'द्वादशांगवित्' कहा गया है ।" वे चतुर्दश पूर्वी और अङ्गधर दोनो थे । यह कहने का प्रकार-भेद रहा है कि श्रुत- केवली को कही 'द्वादशागवित्' और कही 'चतुर्दश-पूर्वी' कहा गया ।
ग्यारह अङ्ग पूवाँ से उद्धृत या संकलित हैं । इसलिए जो चतुर्दश-पूर्वी होता है,
१. विशेषावश्यक भाप्य, गाथा ५५४ :
वि य भूतावाए, सव्वस्त वओगयस्स ओयारो |
निज्जूहणा तहावि हु, दुम्मेहे पप्प इत्थी य ॥
२. जयधवला, प्रस्तावना पृ० ४६ ।
३. देखिए - भूमिका का प्रारम्भिक भाग । ४. उत्तराध्ययन, २३७ ॥
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आयारो तह आयार-चूला है। आचारांग में निर्वाण को 'अनन्य-परम' कहा गया है। वहाँ सब उपाधियाँ समाप्त हो जाती हैं, इसलिए उससे अन्य कोई परम नहीं है। 'निर्वाण के उपायभूत सम्यग-दर्शन, सम्यग-ज्ञान और सम्यग-चारित्र का स्थान-स्थान पर प्रतिपादन हुआ है। इन दृष्टियो से आचारांग को जेन-दर्शन का आधारभूत ग्रन्थ कहा जा सकता है। श्रद्धा और स्वतंत्र-दृष्टि
आचारांग श्रद्धा का समुद्र है। "सिड्ढी आणाए मेहावी', 'आणाए मामगं धम्म आदि वाक्यो में अपने आराध्य के प्रति आत्मार्पण की भावना प्रस्फुटित होती है। आचाराग को श्रद्धा में स्वतंत्र-दृष्टिकोण का स्थान असुरक्षित नही है । सत्य की उपलब्धि के तीन साधन बतलाए गए हैं---
१-सहसम्मति, 2-परव्याकरण और
३-श्रुतानुश्रुत । इन तीन साधनो मे पहला साधन है अपनी बुद्धि के द्वारा सत्य का अवबोध करना । 'मइमं पास इस शब्द का प्रयोग भी दृष्टि की स्वतंत्रता को अवकाश देता है। वृत्तिकार ने इसका अर्थ किया है 'न केवलं अहमेव कथयामि त्वमेव पश्य'- केवल मै ही नही करता हूँ, तू स्वयं भी देख । इस प्रकार आचारांग में श्रद्धा और स्वतंत्र-दृष्टि का सुन्दर संगम हुआ है। केवल श्रद्धा और केवल स्वतंत्र-दृष्टि-ये दोनो अतियाँ हैं। इनसे अच्छे परिणाम की उपलब्धि नही हो सकती। श्रद्धा और स्वतंत्र दृष्टि का समन्वय ही सत्य-संधान का समुचित मार्ग है । कयोपल
आचारांग सबसे प्राचीन सूत्र है, इसलिए यह उत्तरवर्ती सूत्रों के लिए 'कषोपल' के समान है। इसमे वर्णित आचार मूलभूत हैं । वे भगवान महावीर के मौलिक आचार के सर्वाधिक निकट हैं। उत्तरवर्ती सूत्रो में वर्णित आचार उसका परिवर्धन या विकास है। आचारांग-चूला में भी आचार का परिवर्धन या विकास हुआ है। जो तथ्य मूल आचारांग में नही हैं, वे आचार-चूला में प्राप्त होते हैं, तब सहज ही प्रश्न खड़ा
१. आचारांग, ३० २. वही, ६४८1 ३. वहीं, २३ः ___ सह-सम्मइयाए, पर-वागरणेण, अण्णेसि वा अंतिए सोचा। ४. वही, २१२॥
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भूमिका होता है कि उनका आधार क्या है ? दो शताब्दी से-पूर्ववर्ती साहित्य में जो तथ्य नही है, वे दो शताब्दी वाद लिखे गए साहित्य में कहाँ से आए ? इसका समाधान देने के लिए हमारे पाम पर्याप्त साधन सामग्री नहीं है, फिर भी इस विषय मे इतना कहा जा सकता है कि सामयिक परिस्थितियो को ध्यान में रख कर वर्तमान आचायाँ ने उत्सर्ग और अपवाद के सिद्धान्त की स्थापना और उसके आधार पर विधि-विधानो का निर्माण किया था। आचार-चूला उसी शृङ्खला की प्रथम कडी है। जैन-आचार की समीक्षा करते समय इस तथ्य को विस्मृति नहीं होनी चाहिए कि आचाराग मे वर्णित आचार मौलिक है और महावीर-कालीन है तथा जो याचार आचारांग मे वर्णित नहीं है, वह उत्तरवर्ती है तथा उसको प्रारम्भ-तिथि अन्वेपणीय है। - समसामयिक विचार
थाचारांग में वैदिक, औपनिपदिक और बोद्ध विचारधाराओं के संदर्भ में अनेक तथ्यो का प्रतिपादन हुआ है। वैदिक-साधना को हम अरण्य-साधना कह सकते है । वैदिक-धारणा के अनुसार धर्म की साधना के लिए मनुप्प को अरण्य मे रहना आवश्यक है। वैदिक ऋपि तत्त्वचिन्ता के लिए भी अरण्य मे रहते थे। आरण्यकसाहित्य उसी अरण्यवास की निष्पत्ति है। भगवान महावीर ने अरण्यवाम की अनिवार्यता मान्य नहीं की। उन्होने कहा-"साधना गॉव में भी हो सकती है और अरण्य में भी हो सकती है।" ___ "धर्म का उपदेश जैसे बडे लोगो को दिया जा सकता है, वैसे ही छोटे लोगो को दिया जा सकता है ।"२ उच्च-वर्ग को ही धर्म सुनने का अधिकार है, शद्र को धर्म सुनने का अधिकार नहीं है, इम सिद्धान्त के प्रतिवाट मे ही भगवान महावीर ने उक्त विचार का प्रतिपादन किया था। __ "न कोई व्यक्ति हीन है योर न कोई व्यक्ति उच्च है'३-इम विचार का प्रतिपादन जातिवाद के विरुद्ध किया गया था।
इस प्रकार उपनिपद्, गीता और बौद्ध-साहित्य के संदर्भ में याचाराग का तुलनात्मक अध्ययन करने पर विचारधारा के अनेक मौलिक खोत हमें प्राप्त हो सकते है । १. आचाराग, ८१४ .
गामे वा अवा रण्णे, 'धम्ममायाणह-पवेदित मार्गेण मईमया । २ वही, २२१७४
जहा पुण्णस्म कत्थइ, तहा तुच्छस्स कत्थई । जहा तुच्छरम कत्थद, नहा पुण्णत कत्थड ।। ३. वहीं, २२४९
णो होणे, णो अइरिते।
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(ख)
परिशिष्ट पर्व
पाणिनीय शिक्षा
.
.
. .
प्रभावक चरित प्रशमरति प्रकरण प्राकृत साहित्य का इतिहास मूलाराधना विशेपावश्यक भाष्य व्यवहार भाष्य सद्धर्मपुण्डरीक सूत्र (डॉ० नलिनाक्ष दत्त का देवनागरी संस्करण, रायल
एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता, सन् १९५३) सम्मति तर्क प्रकरण समवायांग (संशोधित प्रति) समवायांग वृत्ति सर्वार्थसिद्धि सूत्रकृतांग चूर्णि सेक्रेड बुक्स ऑफ दी ईस्ट, दी खं० २२,४५ हिमवंत थेरावली
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आयारो
तह आधार-चूला
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१. सस्थ-परिण्णा पढमो उद्देसो बीओ उद्देसो तइओ उद्देसो . चउत्थो उद्देसो पंचमो उद्देसो छट्ठो उद्देसो सत्तमो उद्देसो २. लोग-विजओ पढमो उद्देसो वीओ उद्देसो तइओ उद्देसो चउत्थो उद्देसो पंचमो उद्देसो
छटो उद्देसो ३. सीओसणिज्जं पढमो उद्देसो बीओ उद्देसो तइओ उद्देसो
आयारो : विसय-सूची
जीवसंयम-निरुवणं जीवाणं अत्थित्थ-पदं पुढवीकाय-परूवणा-पद आउकाय-पख्वणा-पदं तेउकाय-परूवणा-पदं वणस्सइकाय-परूवणा-पदं तसकाय-परूवणा-पदं वाउकाय-परूवणा-पद सद्दादि विसयलोग-विजय-निरूवणं २३-३८ सयणासत्ति-निसेध-पदं संजमदढत्त-पदं माणवज्जण-अत्थनिस्सारता-पद भोग-भोगी-अवाय-पदं लोनिस्सा-पदं लोग पइ अममाइय-पदं सुह-दुक्ख-तितिक्खा-निरूवणं ३९-४६ सुत्त-जागरण-पदं सुत्ताणं दुक्खाणुभव-पदं 'न दुक्खसहणमित्तण समणो होइ' त्ति निरूवण-पदं कसाय-पाव-विरइ-संजम-मोक्ख-पदं सम्मत्त-निरूत्रणं
४७-५३ सम्मावाय-पद-सम्मदंसण-पदं धम्मप्पवाइय-परिक्खा-पदं सम्मनाण-पदं ४८ बालतवेण मोक्ख-निसेध-पद-सम्मतव-पदं ५१ . समासवयणेण नियमण-पदं सम्मचरित्त-पदं ५२
४५
चउत्यो उद्देसो ४. सम्मत्तं
पढमो उहेसो बीओ उद्देसो तइओ उद्देसो चउत्थो उद्देसो
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(2)
S
()
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(जाव)
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(जाव २०३६) कोष्ठक में जाव के
०
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वृपा०
चूपा०
संकेत - निर्देशिका
ये दोनो विन्दु पाठ-पूर्ति के द्योतक है। पाठ- पूर्ति के प्रारम्भ में भरे बिन्दु (*) और उसके समापन में रिक्त बिन्दु (0) का संकेत किया गया है ।
असण वा ४
असण वा (४)
कोष्ठकवर्ती प्रश्न चिन्ह आदर्शो मे अप्राप्त किन्तु पूर्व पद्धति के अनुसार आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें, पृष्ठ १७४, सूत्र १४
क- - पूर्व पद्धति के अनुसार आदर्शो मे प्राप्त किन्तु प्रस्तुत प्रकरण मे अनावश्यक पाठ को कोष्ठक मे रखा गया है । देखें, पृष्ठ १७१, सूत्र ५ ।
ख - संग्रह गाथाएँ भी कोष्टक के अन्तर्गत रखी गई है। देखे, पृष्ठ १५, सूत्र २४
ग --तेरहवे और चौदहवे अध्ययन में भेद करने वाले शब्द कोष्ठक मे रखे गए है ।
कोष्ठक्रवर्ती संख्यांक पूर्ति - आधार स्थल के अध्ययन और सूत्रांक के सूचक है । देखे, पृष्ठ १६६, सूत्र ५१ आगे जो सूत्रांक है, वे अध्ययन और सूत्रांक के सूचक है । देखे, पृ एक ही सूत्र मे समान पाठ -पद्धति के सूचक जाव शब्दो में से एक की पूर्ति की गई है तथा पुनरागत जाव शब्द के लिए कोष्ठक का प्रयोग किया गया हे । देखे, पृष्ठ १६७, सूत्र १४४ ।
ठ
स्थान पर पाठान्तर होने का
पूर्ति - आधार स्थल के
१८४, सूत्र ३७
यह दो या उससे अधिक शब्दो के सूचक है । देखे, पृष्ठ १, सू० २८ । गहरे अक्षर पद्य-भाग के सूचक है । देखे, पृष्ठ ७, सूत्र ३५
पाठ के संलग्न दिया गया एक बिन्दु अपूर्ण पाठ का द्योतक है ।
क्रास पाठ नही होने का द्योतक है ।
वृत्ति सम्मत पाठान्तर । चूर्णि सम्मत पाठान्तर ।
असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा
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आयारो
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आयारो
६६-लज्जमाणा पुढो पास। १००-अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा । १०१-जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं
वणस्सइ-सत्यं समारंभमाणे अण्णे वगरूवे. पाणे
विहिसति । १०२-तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता। १०३-इमस्स चेव जीवियस्स
परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाती-मरण-मोयणाए,
दुक्ख-पडिधायहेउं । १०४--से सयमेव वणस्सइ-सत्थं समारंभइ, अण्णेहि वा वणस्सइ
सत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे
समणुजाण । १०५-तं से अहियाए, तं से अबोहीए । १०६-से तं संबुज्झमाणे,
आयाणीयं समुहाए। १०७-सोच्चा भगवओ, अणगाराण वा अंतिए इहमेगेसिं णायं
भवतिएस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए।
१-कुंव गडिया (चू)। २-अणेग° (ख, ग, च)।
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पढम अज्झयण (पचमो उद्देसो) १०८-इच्चत्थं गढिए लोए। १०९-जमिणं. विरूवरूवेहि सत्येहि वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं
वणस्सइ-सत्थं समारंभेमाणे अण्णे वणेगरूवे पाणे
विहिसति । ११०-से बेमि
अप्पेगे अधमन्भे, अप्पेगे अधमच्छे । १११-अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे । ( १।२८) ११२-अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उदवए । ११३-से वेमि ---
इमपि जाइ-धम्मय, एयपि जाइ-धम्मय । इमपि बुड्ढि-धम्मय, एयंपि बुड्ढि-धम्मयं । इमंपि चित्तमतयं, एयंपि चित्तमतयं । इमपि छिन्न मिलाति, एयंपि छिन्न मिलाति । इमपि आहारग, एयपि आहारगं। इमंपि अणिञ्चयं,
एयपि अणिच्चयं। इमंपि असासय, एयंपि असासयं । इमपि चयावचइयं, एयंपि चयावचइयं, ।
इमंपि विपरिणामधम्मयं, एयंपि विपरिणामधम्मयं । ११४-एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चते आरंभा अपरिण्णाता
भवंति। ११५-एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया
भवंति।
-विहमति (ख, ग)| अशुद्ध प्रतिमाति । २-चओवचइय (चू, क, घ, च.8), चयावचय (ख, ग)।
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आयारो ६६-से तत्थ गढिए चिट्टइ भोयणाए । ६७-तओ से ऐगया विपरिसिहं संभूयं महोवगरणं भवइ । ६८-तं पि से एगया दायाया विभयंति,
अदत्तहारो वा से अवहरति, रायाणो वा से विलुपंति, णस्सति वा से, विणस्सति वा से,
अगार-दाहेण वा से डझइ। ६९-इति से परस्स अट्ठाए कूराई कम्माइं बाले पकुव्वमाणे,
तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ । ७०-मुगिणा हु एवं पवेइयं । ७१-अणोहंतरा एते, नो य ओहं तरित्तए ।
अतीरंगमा एते, नो य तीरं गमित्तए ।
अपारंगमा एते, नो य पारं गमित्तए । ७२-आयाणिज्जं च आयाय, तम्सि ठाणे ण चिट्ठइ ।
वितह पप्प'ऽखेयन्ने, तम्मि ठाणम्मि चिट्ठइ ।। ७३--उद्देसो पासगस्स णत्थि।। ७४-बाले पुण णिहे काम-समणुन्ने असमिय-दुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवर्ल्ड अणुपरियट्टइ।
--त्ति बेमि।
१-विविह परिसिळं ( क, ख, ग, घ, च)। २-अदत्ताहारा (ख, ग)। ३-अवहर ति (ख, ग)। ४--समूढे (क, घ)। ५-विप्परियासमवेति (ख, ग, घ, च, छ)।
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बीअं अभ्यण ( उत्यो उद्देसो)
चउत्थो उद्देसो ७५-तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जंति । ७६-जेहिं वा सद्धिं सवसति ते वा णं एगया णियया पुन्विं
परिवयंति,
सो वा ते णियगे पच्छा परिवएज्जा । ७७-नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा।
तुमंपि तेसि नालं ताणाए वा, सरणाए वा । ७८-जाणित दुक्खं पत्तेयं सायं । ७९-भोगामेव अणुसोयंति । ८०-इहमेगेसिं भाणवाणं । ८१-तिविहेण जावि से तत्थ मत्ता भवइ-अप्पा वा बहुगा वा। ८२-से तत्थ गढिए चिट्ठति, भोयणाए। ८३-ततो से एगया विपरिसिह संभूयं महोवगरणं भवति । ८४-तं पि से एगया दायाया विभयंति,
अदत्तहारो वा से अवहरति, रायाणो वा से विलुपंति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से,
अगार-डाहेण वा डज्झइ । ८५-इति से बाले परस्स अट्टाए कूराई कम्माई पकुव्वमाणे,
तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासु'वेइ ।
१ हरति (क, छ)। २-समूढे (क, घ, च ।
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आयारो ५-तं आइइत्तु' ण णिहे ण णिक्खिवे, जाणित्तु धम्म जहा तहा । ६-दिटेहिं णिव्वेयं गच्छेजा। ७–णो लोगस्सेसणं चरे। ८-जस्स णत्थि इमा णाई, अन्ना तस्स को सिया ? ह-दिलु सुयं मयं विन्नायं, जमेयं परिकहिजइ । १०-समेमाणा पलेमाणा", पुणो-पुणो जाति पकप्पेंति । ११-अहो य राओ यः 'जयमाणे, वीर ८ सया आगय-पन्नाणे । पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते सया परकमेलासि ।
-त्ति बेमि। बीओ उद्देसो १२-जे आसवा, ते परिस्सवा,
जे परिस्सवा, ते आसवा, जे अणासवा, ते अपरिस्सवा, जे अपरिस्सवा, ते अणासवा - एए पए संबुज्झमाणे, लोयं च आणाए अभिसमेच्चा पुढो
पवेइयं। १३-आधाइ णाणी इह माणवाणं,
संसार-पडिवन्नाणं संबुज्झमाणाणं विन्नाणं-पत्ताणं । १-आइत्तु (ख,ग,च,छ.)। २--अहा (घ)। ३-कुतो (च)। ४-ज लोए (चू)। ५-पालेमाणा (क, च), चलेमाणा (शु०)। ६-४ (ख,ग,छ) । ७-धीरे (ख,ग,घ.)। 5-जताहि एव वीरे (चू)। ६-अक्खाइ (ध); नागार्जुनीया-मावाइ धम्म खलु से जीवाण, तजहा--संसारपडिज
वन्नाण मणुस्सवभत्थाण आरंभविणईण दुक्खुव्वेअसुहेसगाणं धम्म-सवणगवेसगा - निवित्त-सत्थाणं सुरसूसमाणाण पडिपुच्छमाणाण विन्नाणपत्ताणं (च, व )।
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चउत्थं अज्मयणं (वीओ उद्देसो) १४-अट्टा चि सन्ता अदुवा पमत्ता। १५-अहासच्चमिणं ति वेमि । १६-नाणागमो मच्चु-मुहस्स अत्थि,
इच्छापणीया चंका-णिकया। काल-ग्गहीआ णिचए णिविट्ठा,
'पुढा-पुढो जाई पकप्पयंति"। १७-'इहमेगेसि तत्थ-तत्थ संथवो भवति ।
अहोववाइए फासे पडिसंवेदयंति । १८-चिट्ठं करेहि कम्मे हिं, चिळं परिचिट्ठति । ___ अचिठं करेहिं कम्मेहि, णो चिट्ठ परिचिट्ठति ।" १९-एगे वयंति अदुवा वि णाणी,
णाणी वयंति अदुवा वि एगे। २०-आवंती केआवंती लोयंसि समणा य माहणा य पुढो
विवादं वदंतिसे दिटुं च णे, सुय च णे, मयं च णे, विण्णायं च णे
१-पुढो पुढो जाइ पकरेति (चू),
एत्थ मोहे पुणो पुणो, पुढो पुढो जाइ पगप्पेति (चूपा);
" पकप्पेति (क); पकप्पन्ति (ख, ग, च); पकुप्पंति (च,छ)। 'पुढो पुढो जाइ पकप्पयन्ति' पंक्तिस्थाने शुब्रिग सपादिते पुस्तके एतादृशं पाठान्तरम्एत्थ मोहे पुणो पुणो, इहमेगेसि तत्थ तत्थ संथवो भवइ, अहोववाइए फासे पडिसवेययन्ति; चित्त कुरेहि कम्मेहि, चित्त परिविचिटुइ ,
अचित्तं कुरेहिं कम्मेहि, नो चित्त परिविचिट्ठइ । २-परिविचिट्ठई (क, चू)। ३-परिविचिट्ठई (क) ४-४ (शु)।
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६४
आयारो
११५ – सुपडिलेहिय' सव्वतो सव्वयाए सम्ममेव समभिजाणिया । ११६ - इहारामं परिण्णाय, अल्लीण - गुत्तो परिव्वए ।
णिट्ठियट्ठी वीरे, आगमेण सदा परक्कमेज्जासि-त्ति बेमि । ११७ - उड्ढं सोता अहे सोता, तिरियं सोता वियाहिया, एते सोया वियक्खाया, जेहिं संगति पासहा || ११८ - ' आवटं तु उवेहाए" ' एत्थ विरमेज्ज वेयवी" । ११६ - विणएत्तु सोयं णिक्खम्म, एसमहं अकम्मा जाणति पासति ।
,
१२० - पडिलेहाए णावकखति, इह आगतिं परिण्णाय १२१ - अच्चेइ जाइ - मरणस्स वट्टमग्गं वक्खाय-रए । १२२ - सन्ये सरा पियट्टति ।
10
१२३ -तका जत्थ ण विज्जइ । १२४ - मई तत्थ ण गाहिया ।
१२५ - ओए अप्पतिट्टाणस्स खेयन्ने ।
१२६ - से ण दीहे, ण हस्से ",
ण वट्टे, ण तसे, ण चउरंसे, ण परिमण्डले ।
१
- लेहिय ( चू) ।
२ - सन्वत्ताए (चू ). सर्वात्मना (वृ ) |
३ - [मेत ( चू ) ।
•
४- ज्जा (घ ) 1
५ -- आटूटमेय तु पेहाए ( ख, ग, घ ), अट्टमेय उवेहाए (चू ) । -विवेग किट्टह वेदवी ( चू, वृपा); एत्थ विरमेज्ज वेयवी ( चुपा ) ।
७- विणएता (चूपा ) ।
८- णिक्कम्म (म्भा) (घ, छ ) ।
--वदुम ( क ): वमग्गं (च, शु) ।
१० - विषयाय (क, ख, ग, घ, च, छ) ।
११ -हुस्से (क, घ, व); रहस्से ( ख ); हरस्से (छ) ।
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पंचमं अभयणं ( छटो उद्देसो) १२७-ण किण्हे. न णीले, ण लोहिए, ण हालिद्दे, ण सुकिल्ले । १२८-ण मुभिगंधे', ण दुरभिगधे । १२९-ण तित्ते, ण कड्डए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे । १३०-ण कक्खडे', ण मउए. ण गरुए, ण लहुए,
ण सीए, ण उण्हे. ण गिद्ध, ण लुक्खे । १३१-ण काऊ। १३२-ण रहे। १३३-ण संगे। १३४-ण इत्यी, ण पुरिसे, ण अन्नहा । १३५-परिणे सणे। १३६-उवमा ण विज्जए। १३७-अस्वी सत्ता। १३८-अपयस्स पयं णस्थि । १३९-से ण सट्टे, ण स्त्रे, गंधे, ण रसे, ण फासे, इच्चेताव ।
---त्ति बेमि ।
१ सुरहि (मि) ( क, ख, ग)। २-कक्कडे (घ,छ)। ३-सब्वमओ (चू);x (घ)।
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६०
आयारो १५-जामा तिणि उदाहिया', जेसु इमे आरिया संबुज्झमाणा
समुट्ठिया। १६-जे णिवुया, पावेहि कम्मेहि, अणियाणा ते वियाहिया। १७-उड्डं अहं तिरियं दिसासु, सव्वतो सव्वावंति च णं पडियक्के
जीवेहि कम्म-समारभे णं । १८-तंपरिण्णाय मेहावी--णेव सयं एतेहिं काएहि दंडं समारंभेज्जा,
णेवण्णेहिं एतेहि काएहि दंडं समारंभावेज्जा, ने'वन्ने एतेहिं
काएहि दंडं समारंभंते वि समणुजाणेज्जा । १९-जेवन्ने एतेहि काएहिं दंडं समारंभंति, तेसि पि वयं
लज्जामो। २०-तं परिणाय मेहावी-तं वा दंडं, अण्णं वा दंडं, णो दंड-भी दंडं समारंभेज्जासि ।
--त्ति बेमि।
बीओ उद्देसो २१-से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, चिडेज्ज वा, णिसीएज्ज वा,
तुयट्टेज्ज वा, सुसाणंसि वा, सुन्नागारंसि वा, गिरि-गुहंसि वा, रुक्ख-मूलसि वा, कुंभारायाणंसि वा, हुरत्था वा कहिं चि विहरमाणं तं भिक्खुं उवसंकमित्तु गाहावती बूयाआउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्टाए असणं वा, पाणं वा,
खाइमं वा, साइमं वा, वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पाय१-उदाहडा (घ, छ, चु ) , उदाहया (ख, ग)। २-आयरिया (घ, छ)। ३-निव्वुडा (चू)। ४-पाडेक्क (क); पाडियक्क (घ, चू)। ५-दड समारभते (चू)।
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८१
पुंछणं वा, पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई, समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिस' अभिहडं आहट्टु' 'चेतेमि', आवसह वा समुस्सिणोमि ।
से भुंजह वसह ।
अटुमं अभयणं ( बीओ उद्देसो)
२२ - आउसंतो पडियाइक्खे-
समणा भिक्खू तं गाहावतिं समणसं सवयसं
आउसंतो गाहावती ! णो खलु ते वयणं आढामि, णो खलु ते वयणं परिजाणामि, जो तुमं मम अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पाय- पुंछणं वा, पाणाई भूग्राइं जीवाई सत्ताई, समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिस अभिहडं आहट्टु चेएसि, आवसहं वा समुस्सिणासि ।
से विरतो आउसो गाहावती ! एयस्स अकरणाए ।
२३ - से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, ° चिट्ठेज्ज वा, णिसीएज वा,
तुयट्टेज्ज वा,
०
सुसानंसि वा सुन्नागारंसि वा, गिरि-गुहंसि वा, रुक्खमूलंसि वा, कुंभारायतणंसि वा हुरत्था वा कर्हिचि विहरमाणं तं भिक्खु उवसंकमित्त गाहावती आयगयाए पेहाए, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा, वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पाय-पुंछणं वा, पाणाइं भूयाई जीवाई सत्ताई, समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं,
,
०
१ - मिट्ठ ( ख, ग, घ ) ।
२ -- आफुड (च ) ।
३- वेतेमि' त्ति केयि भणति करेमि त तु ण युज्जति (चू ) । ४ -- आवसधं (ख, ग ), आवसथ (छ) ।
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आयारों
१३-हरिएसु ण णिवज्जेज्जा, थंडिलं 'मुणिआ सए"।
विउसिज्ज* अणाहारो, पुट्ठो तत्थ हियासए । १४-इंदिएहिं गिलायंते, समियं साहरे' मुणी ।
तहावि से अगरिहे', अचले जे समाहिए । १५-अभिक्कमे पडिक्कमे, संकुचए पसारए।
काय-साहारणट्टाए" , एत्थं वावि अचेयणे ।। १६-परिक्कमे परिकिलंते, अदुवा चिट्टे अहायते ।
ठाणेण परिकिलते, णिसिएज्जा य अंतसो॥ १७-'आसीणे णेलिसं मरणं, इंदियाणि समीरए । ___ कोलावासं समासज्ज, वितहं पाउरेसए ॥ १८-जओ वज्जं समुप्पज्जे, ण तत्थ अवलंबए।
ततो उक्कसे अप्पाणं, सब्वे फासेऽहियासए ॥ १९-अयं चायततरे सिया, जो एवं अणुपालए ।
सव्व-गायणिरोधेवि , ठाणातो ण विउन्भमे ।। २०-अयं से उत्तमे धम्मे, पुवट्ठाणस्स परगहे ।
अचिरं पडिलेहित्ता, विहरे चिट्ठ माहणे ॥
१-मुणि आसए (च, चू)। २-वियो (ख, ग, च, छ)। ३-आहरे (ख, ग, घ, च, छ, वृ)। ४-अगरहे ( क, ख, ग, घ)। ५-साहरण ° (क, ग घ); सधारण (चू), सहारण (च)। ६ इत्थ (घ)। ७-आसीण मणेलिस (क, घ, च), उदासीणो अणे लिसो (चू )। ८-उवक्कसे (ग, घ,छ)। १-चायतरे (ख), चाततरे (चू, क); आयरे द्रढग्गाहतरे धम्मे (चूपा);
यदि वा०"आत्ततर. (वृ)।
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अट्ठमं अज्झयणं ( अठ्ठमो उद्देसो) २१-अचित्तं तु समासज्ज, ठावए तत्थ अप्पगं ।
वोसिरे सव्वसो कायं, 'ण मे देहे परीसहा" ॥ २२-जावज्जीवं परीसहा, उवसग्गा 'य संखाय' ।
संवुडे देह-भेयाए, इति पण्णे हियासए ॥ २३-भेउरेसु न रज्जेज्जा, कामेसु बहुतरेसु वि ।
इच्छा-लोभं ण सेवेज्जा, सुहुमं वन्नं सपेहिया ॥ २४-सासएहिं णिमंतेज्जा, "दिव्वं मायं ण सरहे ।
तं पडिवुझ माहणे, सव्वं नूमं विधूणिया ॥ २५-सव्वठेहि अमुच्छिए, आउ-कालस्स पारए । तितिक्खं परमं णच्चा, विमोहन्नतरं हितं ।।
-त्ति वेमि।
१-न मे देह परीसहा, यदि वा-न मे देहे परीमहा (च, वृ)। २-तिति संखाते (क), इति सखया (ता) (ग, घ, छ). इति संखाय (च, वृ)। ३-बहुलेसु (चूपा, वृपा)। ४--इच्छ° (क)। ५-धुव (धुव° ) (क, ख, ग, घ च छ, चूपा वृपा)। ६-दिन्बमाय (ख, घ, च)। ७-सव्वत्थेहिं (चू)।
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आयार-चूला १ : पढमं अज्झयणं ३-जं च णो संचाएजा भोत्तए वा पायए वा, से' तमायाय एगंतमवक्कमेजा, एगंतमवक्कमेत्ताअहे झाम-थंडिलंसि वा, अहि-रासिसि वा, किट्ट'-रासिंसि वा, तुस-रासिंसि वा, गोमय-रासिसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय-पडिलेहिय पमज्जिय
पमजिय, तओ संजयामेव परिवेजा। ओसहि-आदि-पढ़ ४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए
अणुपविट्टे समाणे, सेज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जाकसिणाओ, सासिआओ, अविदल-कडाओ, अतिरिच्छच्छिन्नाओ, अव्वोच्छिन्नाओ, तरुणियं वा छिवाडि, अणभिक्कताऽभज्जियं" पेहाए-अफासुयं अणेसणिज्जं ति
मन्नमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा। ५-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवायपडियाए अणुपविटे' समाणे, सेज्जाओ' पुण ओसहीओ जाणेजाअकसिणाओ, असासियाओ, विदल-कडाओ, तिरिच्छच्छिन्नाओ, वोच्छिण्णाओ, तरुणियं वा छिवाडि, अभिक्कंतं भज्जियं पेहाए-फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेजा।
१-सेत्त° (अ, च, छ)। २-किट्टि (छ)। ३-पंडिल्ल (अ )। ४- जाओ (क, ब, छ)। ५- क्कत भज्जियं (क, च); °क्रतम मज्जियं (घ)। ६-से जाओ (क, ग, छ, व)। (अ, दुवृत्तौ न्मियंति)।
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पिंडेसणा ( पढमो उद्देसो) ६-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय
पडियाए अणुपविढे समाणे सेज्जं पुण जाणेजापिहुयं वा, बहुरजं वा, भुजिय' वा, मंथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलवं वा सई भजियं--अफासुयं अणेसणिज्ज ति मन्नमाणे लाभे सते णो पडिगाहेजा। ७-से भिक्खू बा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए
अणुपविट्टे समाणे, सेज्जं पुण जाणेजापिहुयं वा, 'बहुरजं वा, भुजियं वा, मंथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलंब वा असई भज्जियं, दुक्खुत्तो वा भज्जियं, तिक्खुत्तो वा भजियं-फासुयं एसणिज्ज 'ति मन्नमाणे
लाभे संते पडिगाहेजा। अण्णउत्यिय-गारत्थिय-सद्धि-पदं ८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं "पिडवाय
पडियाए° पविसितुकामे, णो अन्नउत्थिएण वा, गारथिएण वा, परिहारिओ' अपरिहारिएण वा', सद्धि गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज वा णिक्खमेज वा। ९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमि वा, विहार-भूमि वा, णिक्खममाणे वा, पविसमाणे वा-णो अण्णउत्थिएण वा, गारथिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा, सद्धि-बहिया वियार-भूमि वा विहारभूमिं वा-णिक्खमेज वा पविसेज वा।
ل
१-भुजियं (क, घ, च, छ, ब), भज्जिय (अ)। २-परिहारिओ वा (अ, क, च, ब)। ३-४(अ, क, च, छ, द)। ४-न प्रविशेत् नापि ततो निप्कामेत् (वृ)।
»
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आयार-चूला १ : पढमं अज्झयणं णो तत्थ' बहवे समण-माहण -अतिथि-किवण-वणीमगा उवागता° उवागमिस्संति, अप्पाइण्णावित्ती, पण्णस्स मिक्खमण-पवेसाए, पण्णस्स वायण-पुच्छणपरियट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिंताए। सेवं णच्चा तहप्पगारं पुरे-संखडि वा, पच्छा-संखडि वा,
संखडि संखडि-पडियाए अभिसंधारेज गमणाए । खीरिणी-गावी-पदं ४४-से भिक्खू ग भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं "पिंडवायपडियाए° पविसिउकामे सेज्जं पुण जाणेज्जा--- . खीरिणीओ गावीओ खीरिजमाणीओ पेहाए; असणं वा ४ उवसंखडिजमाणं पेहाए, पुरा अप्पजूहिए, सेवं णच्चा णो गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए णिक्खमेज वा, पविसेज वा। से त मायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता
अणावायमसंलोए चिट्ठेजा। ४५-अह पुण एवं जाणेजा
खीरिणीओ गावीओ खीरियाओ पेहाए, असणं वा ४ उवक्खडियं पेहाए, पुरा पजूहिए, से एवं गच्चा तओ संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवायपडियाए णिक्खमेज वा, पविसेज वा ।
१-जत्थ (अ, क, च, छ, ब)। २-° पेहाए (क, ब); पेहा (च)। ३-खोरिणियाओ (क, घ, च, छ, ब)। ४-उक्खडि° (अ, घ, क, छ, ब, चू)।
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पिडेसणा ( चउत्थो उद्देसो)
१२६ माइट्ठाण-पदं ४६-भिक्खागा णामेगे' एवमाहंसु-समाणे वा, वसमाणे वा,
गामाणुगामं दूइज्जमाणे-"खुड्डाए खलु अयं गामे, संणिरुद्धाए, णो महालए, से हंता! भयंतारो! बाहिरगाणि गामाणि भिक्खायरियाए' वयह ।" संति तत्थेगइयस्स भिक्खुस्स पुरे-संथुया वा, पच्छा-संथुया वा परिवसति, तं जहा—गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा, तहप्पगाराई कुलाई पुरे-संथुयाणि वा, पच्छा-संथुयाणि वा, पुन्वामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि अविय इत्थ लभिस्सामि-पिडं वा, लोयं वा, खीरं वा, दधिं वा, णवणीयं वा, घय वा, गुलं वा, तेल्लं वा, महुं वा, मज्ज वा, मंसं वा, संकुलिं' वा, फाणियं वा, 'पूयं वा", सिहरिणिं वा, तं पुवामेव भोच्चा पेच्चा, पडिग्गहं सलिहिय संमज्जिय, तओ पच्छा भिक्खूहि सद्धि गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए पविसिस्सामि, णिक्खमिस्सामि वा । माइहाणं संफासे, तं णो एवं करेजा।
१- नाम मेगे (ब)। २-समाणा वा वसमाणा (च)। ३- पडियाए (घ, ब)। ४-सकुलिं (घ, छ), सक्कलि (क्वचित् )। ५-४ (घ, छ, वृ)।
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१४४
आयार-चूला १ : पढमं अज्झयणं ९१-केवली बूया आयाण मेयं
अस्संजए भिक्खु-पडियाए मट्टिओलित्तं असणं वा४ उभिदमाणे पुढवीकार्य समारंभेज्जा, तह तेऊ-वाऊ-वणस्सइ-तस कायं समारंभेजा, पुणरवि ओलिंपमाणे पच्छाकम्मं करेजा । अह भिक्खूणं पुचोवदिट्टा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एसुवएसे°, जं तहप्पगारं मट्टिओलित्तं असणं वा४ 'अफासुयं
अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे° लाभे संते णो पडिगाहेजा। पुढविकाय-पइट्ठिय-पदं ९२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा 'गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पजियाए
अणु-पविढे समाणे, सेज्जं पुण जाणेजा-असणं वा४ पुढविकाय-पइट्ठियं तहप्पगारं असणं वा४ "पुढविकायपइट्टियं-अफासुयं "अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे मंते
णो पडिगाहेज्जा। आउकाय-पइट्ठिय-पद १३-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए
अणुपविढे समाणे, सेज्जं पुण जाणेजाअसणं वा४ आउकाय-पइट्ठियं
तहप्पगारं असणं वा४ आउकाय-पइट्ठियं-अफासुयं - अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । अगणिकाय-पइडिय-पट ९४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय
पडियाए अणुपविढे समाणे, सेज्जं पुण जाणेज्जाअसणं वा ४ अगणिकाय-पइट्टियं
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पिडेसणा (सत्तमो उद्देसो)
१४५ तहप्पगारं असणं वा४ अगणिकाय-पइट्ठियं-अफासुयं
अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा ।' ९५–केवली बूया आयाण मेयं
अस्संजए भिक्खु-पडियाए अगणि ओसक्किय', णिस्सक्कियो, ओहरिय, आहटु दलएज्जा । अह भिक्खूणं पुवोवदिहा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एसुवएसे. जं तहप्पगारं असणं वा ४ अगणिकाय-पइडियं-अफासुयं
अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा। अच्चुसिण-वीयण-पदं ९६-से भिक्खू वा भिक्खुणो वा 'गाहावइ-कुलं पिडवाय
पडियाए अणुपविठे समाणे, सेज्जं पुण जाणेज्जाअसणं वा ४ अच्चुसिणं, अस्संजए भिक्खु-पडियाए सूवेण' वा, विहुवणेण वा, तालियंटेण वा, 'पत्तेण वा", साहाए वा, साहा-भंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुण-हत्थेण वा, चेलेण वा, चेलकन्नेण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा फुमेज वा, वीएज वा । । से पुवामेव आलोएज्जा आउसो! त्ति वा, भगिणि! त्ति वा मा एयं तुमं असणं वा ४ अच्चुसिगं सूवेण वा, विहुवणेण वा, तालियटेण वा, पत्तेण वा, साहाए वा, साहाभंगेण वा,
पिहुणेण वा, पिहुण-हत्येण वा, चेलेण वा, चेलकन्नेण वा, १-उस्सक्किय (क, घ, च) ; उस्सिक्किय (छ); ओसिक्किय (अ)। २-णिस्सिक्किय (अ, छ, व)। ३-सुप्पेण (अ, च)। ४-विहुयणेण (अ, क, घ, च)। ५-X(घ, वृ)।
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१६२
आयार-चूला १ : पढम अज्मयणं अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो
पडिगाहेजा। १३४-से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए
अणुपविढे समाणे, सेज्जं पुण जाणेज्जाबहु-अद्वियं वा मंसं, मच्छं वा बहु कंटगं । अस्सि खलु पडिगाहियंसि, अप्पेसिया भोयण-जाएसु, बहुउझियधम्मिए । तहप्पगारं बहु-अट्ठियं वा मंसं, मच्छ वा बहु कंटगं-अफासुयं
अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा । १३५-से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए
अणुपविढे समाणे, सिया णं परो बहु-अहिएण मंसेण' उवणिमंतेजाआउसंतो! समणा! अभिकखसि बहु-अट्ठियं मंसं पडिगाहित्तए? एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म, से पुवामेव आलोएजाआउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा, णो खलु मे कप्पइ से बहु-अट्ठियं मंसं पडिगाहित्तए, अभिकंखसि मे दाउं जावइयं, तावइयं पोग्गलं दलयाहि, मा अद्वियाई। से सेवं वयंतस्स परो अभिहटु अंतो-पडिग्गहगंसि बहुअट्ठियं मंसं परिभाएत्ता णिहटु दलएज्जा ।
१-मसेण मच्छेण (अ, ब, छ)। २-०पडिग्गहंसि (अ)। ३-परिभोउत्ता (अ); परियाभोएत्ता (क, च)।
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पिडेसणा ( दसमो उद्देसो)
१६३ तहप्पगारं पडिग्गहगं' परंहत्थंसि वा, परपायंसि वाअफासुयं अणेसणिज्जं 'ति मण्णमाणे° लाभे संते णो० पडिगाहेजा। से आहच्च पडिगाहिए सिया, तं णोहि त्ति वएज्जा, णो अणहित्ति वएजा। से त मायाए एगंतमवक्कमेजा एगंतमवक्कमेत्ता, अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अप्पंडए 'अप्प-पाणे अप्प-बीए अप्पहरिए अप्पोसे अप्पुदए अप्पु-त्तिंग-पणग-दगमट्टिय-मक्कडा- संताणए मंसगं मच्छग भोच्चा अट्टियाई कंटए गहाय, से त मायाए एगंत मवक्कमेज्जा, २ ता अहे झामथंडिलंसि वा, 'अहि-रासिसि वा, किट्ट-रासिसि वा, तुस-रासिसि वा, गोमय-रासिसि वा, अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय तओ संजया मेव
परिवेजा। अजाणया लोण-दाण-पदं १३६-से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए
अणुपविट्टे समाणे, सिया से परोअभिहटु अंतो-पडिग्गहए विलं वा लोणं, उब्भियं वा लोणं परिभाएत्ता णीहटु दलएज्जा, तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा, परपायंसि वा-अफासुयं अणेसणिज्जं 'ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा ।
से आहच्च पडिग्गाहिए सिया, तं च णाइदूरगए जाणेज्जा, १- गहण (अ)। २-अणिहित्ति (छ)। ३-४(घ)।
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१६४
आयार-चूला १ : पढम अभयणं से त्त मायाए तत्थ गच्छेजा, २.ता पुन्वामेव आलोएजाआउसो! त्ति.वा, , भइणि ! त्ति वा 'इमं ते किं जाणया दिन्नं ? उदाहु अजाणया' ?' .. सो य भणेजा-णो खलु, मे जाणया दिन्नं, अजाणया । काम खलु आउसो! इदाणि णिसिरामि । तं भुंजह च णं, परिभाएह च णं। तं परेहिं समणुन्नायं समणुसिटुं, तओ संजयामेव भुंजेज वा, पीएज वा। जं च णो संचाएति भोत्तए वा, पायए वा । साहम्मिया तत्थ वसंति संभोइया समणुन्ना अपरिहारिया अदूरगया तेसि अणुपदातव्यं । सिया णो जत्थ साहम्मिया सिया, जहेव बहुपरियावन्ने
कीरति, तहेव कायव्वं सिया। १३७-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, 'जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया जए ।
-ति बेमि।
एगारसमो उद्देसो माइट्ठाण-पदं १३८-भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु-समाणे वा, वसमाणे वा,
गामाणुगाम 'वा दूइज्जमाणे' मणुण्णं भोयण-जायं लभित्ता,
से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह । १-अजाणया दिन्त (घ)। २-इमं (अ)। ३-दूइज्जमाणे वा (अ); दुइज्जमाणे (च, छ, ब)। ४-से य (अ)।
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१६५
पिडेसणा (एगारसमो उद्देसो)
से य भिक्खू णो भुंजेज्जा । तुमं चेव णं भुंजेजासि ।। से एगइओ भोक्खामित्ति कट्टु पलिउंचिय-पलिउंचिय आलोएज्जा, तं जहा-इमे पिंडे, इमे' लोए', इमे तित्तए, इमे कडुयए, इमे कसाए, इमे अंबिले, इमे महुरे, णो खलु एत्तो किंचि गिलाणस्स सयति त्ति । माइट्ठाणं संफासे । णो एवं करेजा। तहाठियं आलोएज्जा, जहाठियं गिलाणस्स सदति-तं तित्तयं तित्तएत्ति वा, कडुयं कडुएत्ति वा, कसायं कसाएत्ति
वा, अंबिलं अंबिलेत्ति वा, महुरं महुरेत्ति वा । मणुण्ण-भोयण-जाय-पदं १३९-भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु-समाणे वा, वसमाणे वा,
गामाणुगामं (वा?) दूइज्जमाणे मणुन्नं भोयण-जायं लभित्ता से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह । सेय भिक्खू णो भुंजेज्जा । आहरेजासि' णं । णो खलु मे अतराए आहरिस्सामि। इच्चेयाई आयतणाई
उवाइकम्म। पिंडेसणा-पाणेसणा-पद १४०-अह भिक्खू जाणेज्जा सत्त पिंडेसणाओ, सत्त पाणेसणाओ।
१-x (क, च, छ)। २-लुक्खए (छ)। ३-तहेव तं (अ, च, छ)। ४-जहेव तं (अ, च, छ)। ५-आहारेज्जासि ( अ, घ, छ, ब); आहारेज्जा से (क च)। ६-इमे (भ, क, च, छ, ब)। ५- इच्चेइयाइ (क, छ, ब)।
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१६६
आयार-चूला १ : पढमं अज्भयणं
3
१४१ - तत्थ खलु इमा पढमा पिंडेसणा-- असंसट्टे हत्थे असंस मत्ते । तहप्पगारेण असंसण हत्थेण वा मत्तेण' वा, असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा सयं वा णं जाएजा, एसणिज्जं ति मणमाणे लाभे संते
परो
वा से देना - फासूयं पडिगाहेजा - पढमा पिंडेसणा ।
१४२ - अहावरा दोच्चा पिडेसणा-संसट्टे हत्थे संसट्टे मते ।
1
"तहप्पगारेण संसट्टेण हत्थेण वा मत्तेण वा असणं वा ४ सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देना - फासूयं एसणिज्जं ति मणमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा - दोच्चा पिडेसणा | १४३ - अहावरा तच्चा पिंडेसणा - इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति -गाहावई वा, " गाहावइणीओ वा, गाहावइ - पुत्ता वा गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ - सुहाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरो वा कम्मकरीओ वा ।
S
तेसिं च णं अण्णतरेसु विरूव-रूवेसु भायण-जाएसु उवणिक्खित्तपुव्वे सिया, तं जहा ---
थालंसि वा, पिढरंसि वा, सरगंसि वा, परगंसि वा, वरगंसि वा ।
अह पुणेवं जाणेज्जा - असंसट्टे हत्थे संसट्टे मत्ते, संसट्टे वा हत्थे असंसट्टे' मत्ते ।
सेय पsिग्गहधारी सिया पाणिपडिग्गहए वा, से पुव्वामेव आलोएज्जा आउसो ! त्ति वा भगिणि! ति वा एएगं तुमं
१- मत्तएण ( अ, छ, ब ) ।
२- पिढरगसि ( अ, च), पिठरगति (घ), पिठरंसि ( ब ) 1
३ - सट्ठे वा (क, च ) ।
४०
पडिग्गहिए (छ, ब ) 1
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पिडेसणा ( एगारसमो उद्देसो)
१६७ असंसट्टेण हत्थेण संसट्टेण मत्तेण, संसट्टेण वा हत्येण असंसट्टेण मत्तेण, अस्सि पडिग्गहगंसि वा पाणिसि वा णिहटु उवित्तु दलयाहि । तहप्पगारं भोयण-जायं सयं वा णं जाएजा, परो वा से देज्जा फासुयं एसणिज्ज "ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेजा
तच्चा पिंडेसणा। १४४-अहावरा चउत्था पिंडेसणा-से भिक्खू वा, 'भिक्खुणी वा,
गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे, सेज्जं पुण जाणेज्जापिहुयं वा 'बहुरजं वा, भुंजियं वा, मथु वा, चाउलं वा; चाउल-पलंबं वा। अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्जवजाए, तहप्पगारं पिहुयं वा [जाव] चाउल-पलंबं वा सयं वा णं जाएजा, परो वा से देज्जा •-फासुयं एसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते. पडिगाहेजा-चउत्था पिंडेसणा। १४५-अहावरा पंचमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा
गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविठ्ठ° समाणे, उवहितमेव' भोयण-जायं जाणेज्जा, तं जहा-सरावंसि वा, डिडिमंसि वा, कोसगंसि वा । अहपुण एवं जाणेज्जा-बहुपरियावन्ने पाणीसु दगलेवे । तहप्पगारं असणं वा ४ सयं वा णं जाएज्जा 'परो वा से देजा-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते० पडिगाहेजा-पंचमा पिडेसणा।
अहावरा छट्ठा पिंडेसणा- से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा ४-उग्गहिय° (घ)।
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१६८
आयार- चूला १ : पढमं अभयणं
पिडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे, ०
गाहावइ - कुलं पग्गहियमेव भोयण - जायं जाणेज्जा
१
जं च सयट्ठाए पग्गहियं, जं च परट्टाए पग्गहियं तं पायपरियावन्नं तं पाणि-परियावण्णं फासूयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा - छट्टा पिंडेसणा ।
१४६ - अहावरा सत्तमा पिंडेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्टे' समाणे, बहुउज्भिय-धम्मियं भोयण-जायं जाणेज्जा
जं चने वहवे दुपय- चउप्पय- समण-माहण-अतिहि-किवण वणीमगा णावकंखंति, तहप्पगारं उज्झिय धम्मियं भोयणजायं सयं वा णं जाएजा परो वा से देज्जा -फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते ० पडिगाहेज्जा - सत्तमा पिंडेसणा । इच्चेयाओ सत्त पिंडेसणाओ ।
१४७ - अहावराओ सत्त पाणेसणाओ । तत्थ खलु इमा पढमा पाणेसणा - असंसट्ठे हत्थे असंसट्ठे मत्ते - ( १ ११४१ ) ।
१४८ - " अहावरा दोच्चा पाणेसणा-संसट्टे हत्थे संसट्टे मत्ते-(१।१४२) ।
१४९ - अहावरा तच्चा पाणेसणा - इह खलु पाईणं वा, पडीणं वा, दाहिणं वा, उदीणं वा संतेगइया सड्ढा भवंति - (१।१४३) । १५० - अहावरा चउत्था पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे, सेज्ज पुण पाणग-जायं जाणेज्जा, तं जहा- तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियडं वा ।
०
१ - उग्गहिय ( अ, क, च) ; उग्गहित पग्गहित (चू ) ।
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१६६
पिंडेसणा ( एगारसमो उहेसो)
अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे, अप्पे पज्जवजाए । तहप्पगारं तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियर्ड वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा-फामुय एसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा । १५१-अहावरा पंचमा पाणेसणा- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा
गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविट्टे समाणे, उवहित
मेव पाणग-जायं जाणेज्जा-(१।१४५) । १५२-अहावरा छहा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा
गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे, पग्गहिय
मेव पाणग-जायं जाणेज्जा-(१।१४६) ।। १५३-अहावरा सत्तमा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा
गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे, वहु
उज्झिय-धम्मियं पाणग-जाय जाणेज्जा-० (१।१४७)। १५४-इच्चेयासि सत्तण्हं पिंडसेणाणं, सत्तण्हं पाणेसणाणं अण्णतरं
पडिमं पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जा-मिच्छापडिवण्णा खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवन्ने । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिम पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सब्बे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया अन्नोन्नसमाहीए एवं च णं
विहरंति । १५५-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय, जं सव्वटेहिं समिए सहिए सया जए ।
-ति बेमि।
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बीयं अभयणं
सेज्जा
पढमो उद्देसो
उवस्सयएसणा-पदं
१ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा उवस्सयं एसित्तए', अणुपविसित्ता गामं वा, जगरं वा, खेडं वा, कव्वडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, आगरं वा, दोणमूहं वा, णिगमं वा, आसमं वा, सण्णिवेसं वा०, रायहाणि वा,
सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा
सअंडं सपाणं सबीयं सहरियं सउस सउदयं सउत्तिंग-पणगदग-मट्टिय मक्कडा ० संताणयं ।
तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा |
२ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजाअप्पंड अप्पपाणं "अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिंग पणग-ग-मट्टिय-मक्कडा ० संताणगं । तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहित्ता, पमज्जित्ता, तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेतेज्जा |
अस्सिपडियाए - उवस्सय-पदं
३ - सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा---
अस्सि पडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसङ्कं अभिहडं आहट्टु चेतेति ।
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सेज्जा (पढमो उद्देसो)
१७१ तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, ( बहिया णीहडे वा अणीहडे वा ) अत्तहिए वा अणत्तट्टिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते
वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा। ४- सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा
अस्सि पडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताई समारल्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसठं अभिहडं आहटु चेतेति । तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, (बहिया णीहडे वा अणीहडे वा ) अत्तहिए वा अणत्तहिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते
वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा। ५-सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा--
अस्सि पडियाए एगं साहम्मिणि समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसळं अभिहडं आहट्ट चेतेति ।। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा, ( बहिया णीहडे वा अणीहडे वा ) अत्तट्टिए वा अणत्तहिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते
वा णो ठाणं वा सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा । ६-सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा
अस्सि पडियाए बहवे साहम्मिणोओ समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभिहडं आहटु चेतेति । तहप्पगारे उवस्सए पुरिसतरकडे वा अपुरिसंतरकडे वा,
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१७२
आयार-चूला १ : वीय अज्झयणं (बहिया णोहडे वा अणीहडे वा ) अत्तट्ठिए वा अणत्तहिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविते वा अणासेविते
वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा । समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-उवस्सय-पदं ७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजाबहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुहिस्स' पाणाई, भूयाई, जीवाइं, सत्ताई 'समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट चएइ। तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा, अपुरिसंतरकडे वा ( बहिया णीहडे वा अणीहडे वा ) अत्तट्टिए वा अणत्तहिए वा, परिभुत्ते वा अपरिभुत्ते वा, आसेविए वा अणासेविए
वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा। ८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजाबढे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुस्सि पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसह अभिहडं आहटु चेएइ । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे '( अवहिया णीहडे ) अणत्तहिए अपरिभुत्ते अणासेविए णो ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चैतेज्जा। ९-अह पुणेवं जाणेजा-पुरिसंतरकडे, ( बहिया णीहडे )
अत्तट्ठिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता, पमज्जित्ता, तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा
चेतेज्जा। १-समुस्सि तं चैव भाणियन्त्र (घ, च)।
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सेज्जा ( पढमो उद्देसो)
परिकम्मिय - अवस्सय-पदं
१० - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जाअस्संजए भिक्खु-पडियाए कडिए वा, उक्कंबिए' वा, छन्ने वा, लित्ते वा, घट्टे वा, मट्टे वा, संमट्टे वा, संपघूमिए वा । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे, ( अबहिया णीहडे ) अणत्तट्टिए, अपरिभुत्ते, अणासेविए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।
१७३
११ - अह पुणेवं जाणेज्जा - पुरिसंतरकडे, ( बहिया णीहडे ) अत्तट्टिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता, पमज्जित्ता, तओ संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा । १२ - से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जाअस्संजए भिक्खु-पडियाए खुड्डियाओ दुवारियाओ
महल्लियाओ कुज्जा,
" महल्लियाओ दुवारियाओ खुड्डियाओ कुज्जा, समाओ सिज्जाओ विसमाओ कुज्जा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिज्जाओ णिवायाओ कुज्जा,
णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा,
अंतो वा बहिं वा उवस्सयस्स हरियाणि छिदिय-छिदिय, दालिय- दालिय 10 संथारगं संथारेज्जा', बहिया वा णिण्णक्ख । 3
तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे, ( अबहिया णीहडे ) अणत्तट्ठिए, अपरिभुत्ते, अणासेविते णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।
१ - उक्कंपिए (क, घ, च, ब ) ।
२- सथारेज्जा ( अ, क, घ, च, व ) । ३-णिक्खु (क, छ) ।
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१७४
आयार-चूला १ : बीयं अज्झयणं १३-अह पुणेवं जाणेज्जा–पुरिसंतरकडे, (बहिया णीहडे)
अत्तहिए, परिभुत्ते', आसेविए पडिलेहिता, पमज्जित्ता, तो
संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा। बहिया निस्सारिय-उवस्सय-पदं १४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेजा--
अस्संजए भिक्खु-पडियाए उदगप्पसूयाणि कंदाणि वा, मूलाणि वा (तयाणि वा?)', पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा ठाणाओ ठाणं साहरति, बहिया वा णिण्णक्खु । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे, '( अबहिया णीहडे ) अणत्तहिए, अपरिभुत्ते, अणासेविते णो ठाणं वा, सेज्जं
वा, णिसीहियं वा चेतेजा। १५-अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे, (बहिया णीहडे )
अत्तहिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता, पमज्जित्ता, तओ
संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा० चेतेज्जा। १६-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण उवस्सयं जाणेज्जा
अस्संजए भिक्खू-पडियाए पीढं वा, फलगं वा, णिस्सेणि वा, उद्हलं वा ठाणाओ ठाणं साहरइ, बहिया वा णिण्णक्खु । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे, ( अवयिा णीहडे ) अणत्तहिए, अपुरिभुत्ते, अणासेविए० णो ठाणं वा सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेजा। १७-अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे ( बहिया णीहडे)
अत्तहिए, परिभुत्ते, आसेविए पडिलेहित्ता, पमजित्ता, तो
संजयामेव ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा। १-यद्यप्ययमत्र प्रतिषु नोपलभ्यते, तथापि ३३१५५ सूत्रमनुसृत्यासावश युज्यते ।
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१७५
सेज्जा ( पढमो उद्देसो) अंतलिक्ख-जाय-उवस्सय-पदं १८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा
तंजहा-खंधंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, पासायसि वा, हम्मियतलंसि वा, अन्नतरंसि वा तहप्पगारंसि वा अंतलिक्खजायंसि, णण्णत्थ आगाढाणागाढेहि कारणेहिं ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा। से य आहच्च चेतिते सिया, णो तत्थ सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा हत्थाणि वा, पादाणि वा, अच्छीणि वा, दंताणि वा, मुहं वा उच्छोलेज वा, पहोएज वा । णो तत्थ ऊसढं पगरेजा, तंजहा-उच्चारं वा, पासवणं वा, खेलं वा, सिंघाणं वा, वंतं वा, पित्तं वा, पूर्ति वा, सोणियं
वा, अन्नयरं वा सरीरावयवं । १९-केवली बूया-आयाण मेयं । से तत्थ ऊसढं पगरेमाणे पयलेज
वा पवडेज वा, से तत्थ पयलमाणे' वा पवडमाणे वा हत्थं वा, 'पायं वा, बाहुं वा, ऊरुं वा, उदरं वा, सीसं वा, अन्नतरं वा कार्यसि इंदिय-जातं लूसेज वा। पाणाणि वा, भूयाणि वा, जीवाणि वा, सत्ताणि अभिहणेज्ज वा, 'वत्तेज वा, लेसेज वा, संघसेज वा, संघट्टेज वा, परियावेज वा, किलामेज वा ठाणाओ ठाणं संकामेज वा, जोविआओ ववरोवेज वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा एस पइन्ना, 'एस हेऊ, एस
कारणं, एस उवएसो,' १-गाढा (क, च, व); आगाढावगाढेहि (घ): आगाढाहि (छ)। २-पयले° (क, च, छ)। ३-पवडे ° (क, च, छ)।
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१७६
आयार-चूला १ : वीयं अज्झयणं जं तहप्पगारे उवस्सए अंतलिक्खजाए णो ठाणं वा, सेज्ज वा, णिसीहियं वा चेतेजा।
सागारिय-उवस्सय-पदं २०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा
सइत्थियं, सखुड्डं, सपसुभत्तपाणं, तहप्पगारे सागारिए' उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेजा। २१-आयाण मेयं भिक्खुस्स गाहावइ-कुलेण सद्धि संवसमाणस्स
अलसगे वा, विसूइया वा, छड्डी वा उव्वाहेजा,' अन्नतरे वा से दुक्खे रोगातके समुप्पज्जेजा, अस्संजए कलुण-पडियाए तं भिक्खुस्स गातं तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, वसाए वा, अब्भंगेज वा, मक्खेज्ज वा, सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुन्नेण वा, पउमेण वा, आघंसेज्ज वा, पघंसेज्ज वा, उन्चलेज्ज वा, उवढेज वा, सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा 'उच्छोलेज वा", पहोएज वा, सिणावेज वा, सिंचेज वा,
दारुणा वा दारुपरिणाम कटु अगणिकायं उज्जालेज वा, १-साकारिए (छ, ब)। २-उप्पा (क, च, ब)। ३-रोगे आयके (घ)। ४-लोद्देण (अ, ब)। ५-उच्छोलेज्ज पच्छोलेज्ज वा (व)। ६-दारुणं परि° (अ, च) दारुण (क)।
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सेज्जा ( पढमो उद्देसो)
१७७ पज्जालेज वा, उज्जालेत्ता-पज्जालेत्ता कायं आयावेज्ज वा, पयावेज वा। अह भिक्खूणं पुन्वोवदिट्ठा एस पइन्ना, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, ज तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेजा। २२-आयाण मेयं भिक्खुस्स सागारिए उवस्सए संवसमाणस्स',
इह खलु गाहावई वा, 'गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा अन्नमन्नं अक्कोसंति वा, बंधंति' वा, रुंभंति वा, उहवेति वा। अह भिक्खूणं उच्चावयं मणं णियच्छेजा-एते खलु अन्नमन्न अक्कोसंतु वा मा वा अक्कोसंतु, बंधतु, वा मा वा बंधंतु, रुंभंतु वा मा वा रुंभंतु, उद्दवेतु वा मा वा उद्दवेतु।। अह भिक्खूणं पुन्वोवदिट्ठा ऐस पइन्ना, “एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेजा। २३-आयाण मेयं भिक्खुस्स गाहावईहि सद्धिं संवसमाणस्स,
इह खलु गाहावई अप्पणो सअट्टाए अगणिकायं उज्जालेज वा,
पज्जालेज वा, विज्झावेज वा। १-वसमाणस्त (व)। २–पहति (क);x (च, व); वहति (अ)! ३-उद्दति वा उद्दवेति (घ) उद्दवंति वा उद्दवेति (छ)। ४-वस (अ, घ, च, छ, ब)।
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१७८
आयार-चूला १ : वीयं अज्झयणं अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेजा-एते खलु अगणिकायं उज्जालेंतु वा मा वा उज्जालेंतु, पज्जालेंतु वा मा वा पज्जालेंतु, विज्झातु वा मा वा विज्झातु । अह भिक्खूणं पुबोवदिवा 'एस पइन्ना, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे (सागारिए?) उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेज्जा। २४-आयाण मेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स,
इह खलु गाहावइस्स कुंडले वा, गुणे वा, मणी बा, मोत्तिए वा, "हिरण्णे वा", 'सुवण्णे वा', कडगाणि वा, तुडियाणि वा, तिसरगाणि वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावली वा, मुत्तावलो वा, कणगावली वा, रयणावली वा, तरुणियं वा कुमारि अलंकिय-विभूसियं पेहाए, अह भिक्खू उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा-एरिसिया वा सा णो वा एरिसिया-इति वा णं वूया. इति वा णं मणं साएज्जा। अह भिक्खूणं पुबोवदिहा 'एस पइन्ला, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो', जं तहप्पगारे (सागारिए ?) उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेज्जा। २५-आयाण मेयं भिक्खुस्स गाहावईहिं सद्धिं संवसमाणस्स,
इह खलु गाहावइणीओ वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ१- (अ)
३-तिसराणि ()।
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सेज्जा ( पढमो उद्देसो)
१७६ सुहाओ वा, गाहावइ-धाईओ वा, गाहावइ-दासीओ वा, गाहावइ-कम्मकरीओ वा। तासिं च णं एवं वृत्तपुव्वं भवइ, जे इमे भवंति समणा भगवंतो 'सीलमंता वयमंता गुणमंता संजया सवडा बंभचारी० उवरया मेहुणाओ धम्माओ, णो खलु एतेसि कप्पइ मेहुगं धम्मं परियारणाए आउट्टित्तए। जा य खलु एएहिं सद्धि मेहुणं धम्म परियारणाए आउट्टेज्जा, पुत्तं खलु सा लभेज्जा-ओयस्सि तेयस्सि वच्चस्सि जसस्सि संपराइयं' आलोयण-दन्सिणिज्ज । एयप्पगारं णिग्धोसं सोचा णिसम्म तासिं च णं अण्णयरी सड्ढी' त तवस्सि भिखं मेहुणं धम्म परियारणाए आउट्टावेज्जा । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिवा 'एस पइन्ना, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं तहप्पगारे सागारिए उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेज्जा। २६-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय, 'जं सव्वटेहिं समिए सहिए सया जए।
-ति बेमि । ,
१-सपहारियं (अ)। २-सहियं (अ); सहित (8)।
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१६४
आयार-चूला १ : वीयं अज्मयणं तहप्पगारं संथारगं-- अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेजा। ५९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेज्जा
अप्पंडं (जाव २१५८) संताणगं, लहुयं अप्पडिहारियं, तहप्पगारं संथारगं'-'अफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेजा। ६०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण संथारगं जाणेजा
अप्पंडं (जाव २१५८) संताणगं, लहुयं पाडिहारियं णो अहावद्धं, तहप्पगारं संथारगं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेजा। ६१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेन्जं पुण संथारगं जाणेजा
अप्पंड (जाव २१५८) संताणगं, लहुयं पाडिहारियं अहाबद्धं, तहप्पगारं संथारयं-'फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे° लाभे
संते पडिगाहेज्जा। संथारग-पडिमा-पदं ६२-इच्चेयाई आयतणाई उवाइक्कम्म अह भिक्खू जाणेज्जा,
इमाहिं चउहिं पडिमाहिं संथारगं एसित्तए । ६३-तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय संथारगं
जाएज्जा, तंजहा-इक्कडं वा, कढिणं वा, जंतुयं वा, परगं १-क्वचित् 'सज्जा संथारगं' इति पाठोऽस्ति । तत्र 'सेज्जा' लिपिदोपेण प्रक्षिप्त इति
संभाव्यते। २ काढणगं (घ)।
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सेज्जा ( तइओ उद्देसो)
१६५ वा, मोरगं वा, तणं वा, कुसं वा, 'कुञ्चगं वा', पिप्पलगं वा, पलालगं वा। से पुवामेव आलोएज्जा–आउसो। त्ति वा भगिणि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं संथारगं? तहप्पगारं सयं वा णं जाएजा परो वा से देजा-फासुयं एसणिज्ज 'ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेजा-पढमा
पडिमा । ६४-अहावरा दोच्चा पडिमा
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए संथारगं जाएज्जा, तंजहा-गाहावई वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिणि वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासि वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा, से पुव्वामेव आलोएंजा-आउसो! त्ति वा भगिणि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णयरं संथारगं? तहप्पगारं संथारगं सयं वा णं जाएजा परो वा से देजाफासुयं एसणिज्जं 'ति मण्णमाणे लाभे संते० पडिगाहेज्जा
दोच्चा पडिमा। ६५-अहावरा तच्चा पडिमा
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेज्जा, ते तत्थ अहासमण्णागए, तंजहा-इक्कडे वा, 'कढिणे वा, जंतुए
वा, परगे वा, मोरगे वा, तणे वा, कुसे वा, कुच्चगे वा, १-पोरग (घ)। २-तणगं (क, च, छ, ब)। ३कुच्चग वा वच्चग वा (चू)। ४-कम्मकरी (अ, घ, व), कम्मकरीय (च, छ)।
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२१०
आयार-चूला १ : तइयं अज्झयणं
३१ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा ससिणिद्धं वा कार्य णो आमज्जेज वा, पमज्जेज वा, संलिहेज वा, णिल्लिहेज वा, उब्वलेज्ज वा, उव्वट्टेज्ज वा, आयावेज वा पयावेज वा । ३२- अह पुण एवं जाणेज्जा विगओदए मे काए, वोच्छिन्न
,
सिणेहे' मे काए,
तहप्पगारं कार्य आमज्जेज्ज वा ( जाव ३ | ३१ ) पयावेज वा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।
३३ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगाम दूइजमाणे णो परेहिं सद्धि
परिजविय - परिजविय गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।
घासंतारिम-उदग-पदं
३४ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे - अंतरा से जंघा - संतारिमे उदए सिया,
से पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पादे य पमज्जेज्जा, २ ता 'सागारं भत्तं पच्चक्खाएज्जा, २ ता एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा, तओ संजयामेव जंघा - संतारिमे उद अहारियं रीएज्जा ।
३५ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जंघा - संतारिमे उदगे अहारियं
3
रीयमाणे, णो 'हत्थेण हत्थं पाएण पायं, कारण कार्य, आसाएज्जा । ' से अणासायमाणे", तओ संजयामेव जंघा -
संतारिने उदए अहारियं रीएज्जा ।
१ - छिन्न० (क, घ, च, ब ) ।
२ - उदगंसि (क, घ, च ) ।
३ हत्येण वा हत्य ( अ ) ( सर्वत्र ) । ४- से अण्णासादए अणा ( अ ) ।
०
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इरिया (बीओ उद्देसो)
२११
३६ – से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जंघा - संतारिमे उदए अहारिय रीयमाणे णो साय- वडियाए', णो परदाह - वडियाए, महइ महालयंसि उदगंसि काय विउसेज्जा, तओ संजयामेव जंघा - संतारिमे उदए अहारिय रीएज्जा ।
३७ - अह पुणेवं जाणेज्जा - पारए
सिया उदगाओ तीरं पाउत्तिए, तओ सजयामेव उदउल्लेण वा ससणिद्वेण वा काएण दगतीरए चिट्टेज्जा ।
३८ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उदउल्लं वा कार्य, ससद्धिं वा कायं णो आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा ।
३९ - अह पुणेवं जाणेज्जा - विगतोदए मे काए, छिण्णसिणेहे मे
काए,
तहप्पगारं कार्य आमज्जेज्ज वा "पमज्जेज्ज वा संलिहेज्ज वा गिल्लिहेज्ज वा उव्वलेज्ज वा जव्वट्टेज्ज वा आयावेज्ज वा० पयावेज्ज वा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा । ४० - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो मट्टियाम एहिं पाएहिं हरियाणि छिदिय-छिंदिय, विकुज्जियविकुज्जिय, विफालिय-विफालिय, उम्मग्गेणं हरिय- वहाए गच्छेज्जा । "जहेयं* पाएहिं मट्टियं खिप्पामेव हरियाणि अवहरंतु " |
माइट्ठाणं संफासे, णो एवं करेज्जा ।
से पुव्वामेव अप्पहरियं मग्गं पडिलेहेज्जा, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।
०
१ - साया ( अ ) । २-ससिणिद्वेण (च) | ३ - उदगतीरए (घ) । ४ - जमेतं (छ) ।
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२२६
आयार-चूला १ : चउत्थं अज्मायणं पवुट्टदेवे' ति वा, निवुट्टदेवे ति वा, पडउ वा वासं मा वा पडउ, णिप्फज्जउ वा सस्सं' मा वा णिप्फज्जउ, विभाउ वा रयणी मा वा विभाउ, उदेउ वा सूरिए मा वा उदेउ, सो वा राया जयउ मा वा जयउ-णो एतप्पगारं भासं
भासेना पण्णवं । १७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अंतलिक्खे ति वा, गुज्माणुचरिए
ति वा, संमुच्छिए ति वा, णिवइए ति वा 'पओए,
वएज्ज" या वुटवलाहगे ति वा।। १८-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वळेहिं समिए सहिए सया जएज्जासि ।
-ति वेमि।
घोओ उद्देमो कक्कस-भासा-पद १९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई रूवाइं पासेज्जा
तहावि ताई णो एवं वएज्जा, तंजहागंडी गंडी ति वा, कुट्टी कुट्ठी ति वा, 'रायंसी रायंसी ति वा, अवमारियं अवमारिए ति वा, काणियं काणिए ति वा, झिमियं झिमिए ति वा, कुणियं कुणिए ति वा, खुज्जियं खुज्जिए ति वा, उदरी उदरी ति वा, मूयं मूए ति
१-पबुद्धो° (अ)। २-सासं (अ.व)।
-णिवडिए (च)। ४-तमो एवं वदेज्जा (छ)।
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२२७
भासा (वीओ उद्देसो)
वा, सूणियं सूणिए ति वा, गिलासिणी गिलासिणी ति वा, वेवई वेवई ति वा, पीढसप्पी पीढसप्पी ति वा, सिलिवयं सिलिवए ति वा', महुमेहणी महुमेहणी' ति वा, हत्थछिन्नं हत्थछिन्ने ति वा, "पादछिन्नं पादछिन्ने ति वा, नक्कछिन्नं नक्कछिन्ने ति वा, कण्णछिन्नं कण्णछिन्ने ति वा, ओहछिन्नं' ओट्टछिन्ने ति वा जे यावण्णे तहप्पगारे तहप्पगाराहि भासाहि बुइया-बुझ्या कुप्पंति माणवा, तेयांवि तहप्पगाराहिं भासाहि अभिकंख णो भासेज्जा।
अकक्कस-भासा-पदं २०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई रूवाई पासेज्जा तहावि ताई एवं वएज्जा' तंजहा
ओयंसी ओयंसी ति वा, तेयंसी तेयसी ति वा, वच्चसी वच्चंसी ति वा, जससी जसंसी ति वा, अभिरुवं अभिस्वे ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वा, पासाइयं पासाइए ति वा, दरिसणिज्जं दरिसणीए ति वा, जे यावण्णे तहप्पगारा तहप्पगाराहिं भासाहिं बुइया-बुइया णो कुप्पंति माणवा, ते यावि तहप्पगारा एयप्पगाराहिं' भासाहिं अभिकंख भासेज्जा ।
१-महुमेही (छ)। २-एव पाद नक्क कण्ण ओट्ट (अ); एव पाद कण्ण नक्क (छ,व)। ३-एयप्प° (क, छ)। ४-४ (अ)। ५-भासेज्जा (छ)। ६-एयप्प (अ, घ, च)। ७-पूर्व मूत्रो तहप्पगाराहि' विद्यते किन्तु अन प्रनिगु नया नास्ति । 5-भासेज्जा । तहप्पगार भास अगावज्ज जाव मानेज्जा (अ.व)।
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आयार-चूला १ चउत्थं अज्झयणं सावज्ज-असावज्ज-भासा-पद २१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई रूवाइं पासेज्जा,
तंजहावप्पाणि वा, 'फलिहाणि वा, पागाराणि वा, तोरणाणि वा, अग्गलाणि वा, अग्गलपासगाणि वा, गड्डाओ वा, दरीओ वा, कूडागाराणि वा, पासादाणि वा, णूम-गिहाणि वा, रुक्ख-गिहाणि वा, पव्वय-गिहाणि वा, रुक्खं वा चेइयकडं, थूभं वा चेइय-कडं, आऐसणाणि वा, आयतणाणि वा, देवकुलाणि वा, सहाओ वा, पवाओ वा, पणिय-गिहाणि वा, पणिय-सालाओ वा, जाण-गिहाणि वा, जाण-सालाओ वा, सुहा-कम्मंताणि वा, दन्भ-कम्मंताणि वा, बद्ध-कम्मंताणि वा, वक्क-कम्मंताणि वा, वण-कम्मंताणि वा, इंगालकम्मंताणि वा, कट्ट-कम्मंताणि वा, सुसाण-कम्मंताणि वा, संति-कम्मंताणिवा, गिरि-कम्मंताणिवा, कंदर-कम्मंताणिवा, सेलोवट्ठाण-कम्मंताणि वा, भवण-गिहाणि वा-तहावि ताई णो एवं वएज्जा, तंजहासुकडे ति वा, सुठुकडे ति वा, 'साहुकडे ति वा, कल्लाणे ति वा", करणिज्जे ति वाएयप्पगारं भासं सावज्ज 'सकिरियं कक्कसं कडुयं निठुरं फरुसं अण्यकरि छेयणकरि भेयणकरि परितावणकरि
उद्दवणकरिं भूतोवघाइयं अभिकंख° णो भासेज्जा। २२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई रूवाइं पासेज्जा,
तंजहा
१- साहुकल्लाण ति वा (अछ)।
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भासा (वीओ उद्देसो)
२२६
बप्पाणि वा ( जाव ४ | २१) भवणगिहाणि वा - तहावि ताई एव वएज्जा, तंजहा
आरंभकडे ति वा, सावज्जकडे ति वा, पयत्तकडे ति वा, पासादियं पासादिए ति वा, दरिसणीयं दरिसणीए ति वा, अभिरूवं अभिरूd ति वा, पडिरूवं पडिरूवे ति वाएयप्पगारं भासं असावज्जं 'अकिरियं अकक्कसं अकडुयं अनिठुरं अफरुसं अणण्यकरि अछेयणकरि अभेयणकरि अपरितावणकरि अणुद्दवणकरिं अभूतोवघाइयं अभिकंख • भासेज्जा |
O
२३ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ उवक्खडियं पेहाए तहावि' तं णो एवं वएज्जा, तंजहा
सुकडे ति वा, सुठुठुकडे ति वा, साहुकडे ति वा, कल्लाणे ति वा, करणिज्जे ति वा
एयप्पगारं भासं सावज्जं ( जाव ४।२१) णो भासेज्जा ।
२४ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा ४ उवक्खडियं पेहाए एवं वएज्जा, तंजहा
1
आरंभकडे ति वा सावज्जकडे ति वा पयत्तकडे ति वा, भद्दयं भद्दए ति वा, ऊसढं ऊसढे ति वा, रसियं रसिए ति वा, मणुण्ण मणुण्णे ति वा
एयप्पगारं” भासं असावज्जं (जाव ४।२२) भासेज्जा ।
२५ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसुं वा, पक्खि वा, सरीसिवं वा, जलयरं वा,
१ - तहाविह (घ, ब ) 1
२ - तप्प ( अ, च ) ।
३ - माणुस्स (घ, छ ) ।
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२३०
आयार-चूला १ : चउत्थं अज्झयणं से तं' परिवूढकायं पेहाए णो एवं वएज्जा-थूले ति वा, पमेइले ति वा, वट्टे ति वा, वज्झे ति वा, पाइमे ति वा
एयप्पगारं भासं सावज्ज (जाव ४।२१) णो भासेजा। २६-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं (जाव ४।२५) जलयरं
वा, से त्तं परिवूढकायं पेहाए एवं वएज्जा, तंजहापरिवूढकाए ति वा, उवचियकाए ति वा, थिरसंघयणे ति वा, चियमंससोणिए ति वा, बहुपडिपुण्णइंदिए ति वा
एयप्पगारं भासं असावज्जं (जाव ४१२२) भासेज्जा । २७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा विरूवरूवाओ गाओ पेहाए णो
एवं वएजा, तंजहागाओ दोझाओ ति वा, दम्मे ति वा, गोरहे" ति वा, 'वाहिमा ति वा, रहजोग्गाति वा'
एयप्पगारं भासं सावज्ज (जाव ४।२१) णो भासेजा। २८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा विरूवरूवाओ गाओ पेहाए एवं
वएज्जा, तंजहाजुवंगवे ति वा, घेणू ति वा, रसवती ति वा, हस्से ति वा, महल्लए ति वा, महव्वए ति वा, संवहणे ति वाएयप्पगारं भासं असावज्ज (जाव ४।२२) अभिकख भासेजा।
२-थुल्ले (अ, क, च, छ)। ३-दोज्झा (अ, क, च, छ, ब)। ४-दम्मा (अ, च, ब)। ५-गोरहा (अ, च, ब)। ६-वाहनयोग्यो रथयोग्य. (वृ)। ७-हस्से (घ, छ); रहस्से (ब)।
-महल्ले (छ, ब)।
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भासा (वीओ उद्देसो)
२३१ २९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा तहेव गंतुमुज्जाणाई पब्वयाई
वणाणि य' रुक्खा महल्ला पेहाए णो एवं वएजा, तंजहापासायजोग्गा ति वा, 'गिहजोग्गा ति वा, तोरणजोग्गा ति वा, ‘फलिहजोग्गा ति वा, अग्गल' नावा-उदगदोणि-पीढचंगवेर- णंगल-कुलिय-जंतलट्ठी- णाभि- गंडी-आसण-सयणजाण-उवस्सय-जोग्गा ति वा
एयप्पगारं भासं सावज्ज (जाव ४।२१) णो भासेज्जा । ३०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा तहेब गंतुमुज्जाणाई पन्चयाणि
वणाणि य रुक्खा महल्ला पेहाए एवं वएज्जा, तंजहा-- जातिमंता ति वा, दीहवट्टा ति बा, महालया ति वा, पयायसाला ति वा, विडिमसाला ति वा, पासाइया ति वा, दरिसणीयाति वा, अभिरूवा ति वा, पडिरूवा ति वा
एयप्पगारं भासं असावज्ज (जाव ४।२२) अभिकंख भासेज्जा। ३१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूया वणफला पेहाए तहावि
ते णो एवं वएज्जा, तंजहापक्का ति वा, पायखज्जा ति वा, वेलोचिया ति वा, टाला ति वा, वेहिया ति वा
एयप्पगारं भासं सावज्ज (जाव ४।२१) णो भासेज्जा । ३२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूया 'वणफला अंबा'६
पेहाए एवं वएज्जा, तंजहा
१-चा (च, ब)। २-तोरणजोग्गा ति वा गिहजोग्गा (अ. ब)। ३-अम्गलजोग्गा ति वा फलिह (च)। ४-सिंगवेर (अ, ब)। ५-वेलोविगा (अ); वेलोतिया (क, घ, च), वेलोविया (ब)। ६-वणफणा (क, च, ब), फलअंबा (वृ)।
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आयार-चूला १ : चउत्थं अज्भयणं
असंथडा इ वा, बहुणिवट्टिमफला ति वा, बहुसंभूया इवा, भूयरुवा ति वा
एयप्पगारं भासं असावज्जं (जाव ४१२२) भासेज्जा ।
३३ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूयाओ ओसहीओ पेहाए तहावि ताओ णो एवं वएज्जा, तंजहा
पक्का ति वा, नीलिया ति वा, छवीया' ति वा, लाइमा ति वा, भज्जिमा ति वा, बहुखज्जा तिवा - एयप्पगारं भासं सावज्जं ( जाव ४।२१ ) णो भासेज्जा ।
३४ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहुसंभूयाओ ओसहीओ पेहाए एवं वएज्जा, तंजहा
रूढा ति वा, बहुसंभूया ति वा, थिरा ति वा, ऊसढा ति वा, गब्भिया ति वा, पसूया ति वा, ससारा ति वा
एयप्पगारं भासं असावज्जं ( जाव ४।२२) भासेज्जा ।
३५ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई सद्दाई सुणेज्जा, तहावि ताई णो एवं वएज्जा, तंजहा---
सुसद्दे ति वा, 'दुसद्देति वा "
AAJ
एप्पगारं भासं सावज्जं ( जाव ४।२१ ) णो भासेज्जा ।
३६ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई सद्दाई सुणेज्जा", ताई एवं वएज्जा, तंजहा
१- छवी ( अ ) ।
२ - ससारा ( अ, छ ) । ३ -X ( च, छ ) ।
४-X ( अ, क, च, छ, ब ) ।
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भासा (बीओ उद्देसो)
सुसद्दं सुसद्दे ति वा, 'दुसद्दं दुसद्दे ति वा ''
-
एयप्पगारं भासं असावज्जं ( जाव ४।२२) भासेज्जा ।
३७-एवं' 'रूवाइं ं ं......་कण्हे ति वा, णीले ति वा, लोहिए ति
वा हालिद्दे ति वा, सुकिल्ले ति वा, "सुभिगंधे ति वा, दुब्भिगंधे ति वा, "तित्ताणि वा, कडुयाणि वा, कसायाणि वा, अंबिलाणि वा, महुराणि वा,
• कक्खडाणि वा मउयाणि वा, गुरुयाणि वा, लहुयाणि वा, सीयाणि वा, उसिणाणि वा, णिद्धाणि वा, रुक्खाणि वा ।
गंधाई
रसाई
फासाई
२३३
अणुवो-मिट्ठा-भासि-पदं
३८ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा वंता 'कोहं च माणं च मायं च लोभं च", अणुवीs णिट्टाभासी णिसम्म भासी अतुरियभासी विवेग-भासी समियाए संजए भासं भासेज्जा । ३९ - एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सब्वट्टेहिं समिए सहिए सया एनासि ।
१ -X (च ) ।
कोह्वयणं माण वा ४ (क, घ, च
—त्ति वेमि ।
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पंचमं अज्झयणं वत्थेसणा
पढमो उद्देसो
वत्थजाय-पदं १-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा वत्थं एसित्तए,
सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तंजहाजंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तगं वा, खोमियं वा,
तूलकडं वा-तहप्पगारं वत्थं२-जे णिग्गथे तरुणे जुगवं' बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एग
वत्थं धारेज्जा, णो बितियं । ३-जा णिग्गंथी, सा चत्तारि संघाडीओ धारेज्जा-एगं दुहत्थवित्थारं, दो तिहत्थवित्थाराओ, एगं चउहत्थवित्थारं । तहप्पगारेहि' वत्थेहि असंविज्जमाणेहि अह पच्छा एगमेगं
संसीवेज्जा। अद्धजोयण-मेरा-पदं ४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयणमेराए वत्थ
पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। अस्सिपडियाए-पद ५-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा---
अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई,
१-जुव (घ)। २-एएहि (अ, च, ब)। ३-अविज्ज° (अ, ब)।
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वत्थेसणा (पढमा उद्देसो)
२३५ जीवाई, सत्ताड, समारख्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहडं आहट्ट चेएति । तं तहप्पगार वत्य पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, वहिया णीहडं वा अणीहड वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्टियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफामुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा। ६-°से भिवत्र वा भिक्त्वुणी वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेज्जा
अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिया समुहिस्स पाणाइ, भूयाई, जीवाइ, सत्ताइं समाख्भ समुद्दिस्स कीय पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसष्टुं अभिहड आहट्ट चेएति ।। त तहप्पगार वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसतरकड वा, वहिया णीहड वा अणीहडं वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्त वा अपरिभुत्त वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा
अफामुय अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे सते णो पडिगाहेज्जा। ७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेजा
अस्सिपडियाए एगं साहम्मिणि समुहिस्स पाणाइ, भूयाई, जीवाई, सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसट्ठ अभिहड आहटु चेएति । त तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, वहिया णीहड वा अणीहडं वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफासुयं अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा।
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२३६
आयार-चूला १ : पंचम अज्झयणं ८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा
अस्सिपडियाए बहवे साहम्मिणीओ समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई, जीवाइं, सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभिहडं आह? चेएति । तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वाअफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो
पडिगाहेज्जा। समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-वत्थ-पद ९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण वत्थं जाणेजा
बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताई,समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिस अभिहडं आहटु चेएइ। तं तहप्पगारं वत्थं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्टियं वा अणत्तट्टियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा-अफासुयं
अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा। १०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा
बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई, जीवाइं, सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चेएइ ।
चए।
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वत्सणा (पढमो उद्देसो )
२३७
तं तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं, अबहिया णीहडं, अणत्तट्ठिय, अपरिभुत्तं, अणासेवितं --- अफासुयं अणेस णिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ।
११ - अह पुण एवं जाणेज्जा
1
पुरिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्ठियं परिभुत्तं, आसेवियंफासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा | भिक्ख-पडियाए की यमाई-पदं
१२- से भिक्ख वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थ जाणेजा
असंजए भिक्खु-पडियाए कीयं वा, धोयं वा, रतं वा, घट्ट वा, मट्टं वा, संमट्टे' वा, संपधूमियं वा तहप्पगारं वत्थं अपुरिसंतरकडं, "अबहिया णीहडं, अणत्तट्टियं, अपरिभुत्तं, अणासेवितं - अफासुर्य अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभ सते णो पडिगाज्जा । १३- अह पुणेवं जाणेज्जा
पुरिसंतरकडं, बहिया णीहडं, अत्तट्ठियं परिभुत्तं, आसेवियंफासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा ।
वत्य-पद
१४ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जाइं पुण वत्थाई जाणेज्जा विरूवरूवाइं महद्धणमोलाई तजहा
आजिणगाणि वा, सहिणाणि वा, सहिण - कल्लाणाणि वा, आयकाणि वा, कायकाणि वा, खोमयाणि वा, दुगुल्लाणि
१-ससट्ठ ( क ) ।
२ - ० धुवितं ( अ, छ
1
३-अतिणाणि ( अ ) ; अजिणमाणि (क, च ) ।
४ - सहणाणि (छ) ।
५ - आयाणाणि ( अ, क, घ, च ) ; आयाण (व) 1 ६- कायाणाणि (घ, ब ) 1
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आयार-चूला १ : पंचमं अभय
वा, मलयाणि वा, पत्तुण्णाणि वा अंसुयाणि वा, चीणंसुयाणि वा, देसरागाणि वा अमिलाणि वा, गज्जलाणि वा, फालियाणि वा, कोयहा (वा?) णि वो, कंबलगाणि वा, पावाराणि वा - अण्णयराणि वा तहप्पगाराई वत्थाई महद्धणमोल्लाई - " अफासुयाई अणेसणिज्जाई ति मण्णमाणे ' लाभे संते णो पडिगाहेज्जा |
१५ - से भिक्खु वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण आईणपाउरणाणि वत्थाणि जाणेज्जा, तंजहा
उट्टाणि वा, पेसाणि वा, पेसलेसाणि वा, किण्हमिगाईणगाणि वा णीलमिगाईणगाणि वा, गोरमिगाईणगाणि वा, कणगाणि वा, कणगकताणि वा, कणगपट्टाणि वा, कणगखइयाणि वा, कणगफुसियाशि वा वग्धाणि वा, विवग्वाणि वा, आभरणाणि वा, आभरणविचित्ताणि वाअण्णयराणि वा तहप्पगाराई आईणपाउरणाणि वत्थाणि● अफासुयाइं अणेसणिजाइ ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा |
areपडिमा पद
१६ - इच्याई आयतणाइ उवाइकम्म, अह भिक्खू जाणेज्जा उहि डिमाहि वत्थं एसित्तए ।
१ - वेसरागाणि ( अ ), देसर गि (छ); वेसराणि ( ब ) ।
२ - फलियाणि (क, च, छ, ब ) ।
३---कायहाणि ( अ ), कोहयाणि (घ ) ; निशीथरय १७ उद्देशकस्य चूर्णी 'कोनवाणि' इति पाठो लभ्यते ।
४ -- वा वत्थाणि वा ( क, छ ) 1
५ - उद्दाणि ( अ, क, च, व, वृ), उद्यवाणि (व) . आड्डाणि (छ) । ६- पेणाणि (छ) 1
७ - कणगकताणि ( अ, क, व, च, छ, व), कनककान्तीनि (वृ ) |
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वत्थेसणा ( पढमो उद्देसो) १७-तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा
से भिक्खू वा भिक्खुणो वा उद्दिसिय-उद्दिसिय वत्थं जाएजा, तंजहाजंगियं वा, मंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा-तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देजा-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते
पडिगाहेजा । पढमा पडिमा । १८-अहावरा दोच्चा पडिमा
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए-पेहाए वत्थं जाएज्जा,
तंजहा
गाहावई वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिणि वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुहं वा, धाई वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा', कम्मकरिं वा, से पुवामेव आलोएज्जा, आउसो! त्ति वा, भगिणि! त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं वत्थं ? तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएजा, परो वा से देजा-फासुयं 'एसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेजा । दोच्चा पडिमा । १९-अहावरा तच्चा पडिमा
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा, तंजहा-- अंतरिज्जगं वा उत्तरिज्जगं वा-तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएंजा, 'परो वा से देजा-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे
लाभे संते° पडिगाहेजा । तच्चा पडिमा । २०-अहावरा चउत्था पडिमा
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उज्झिय-धम्मियं वत्थं जाएजा,
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२४०
आयार-चूला १ : पचमं अज्झयणं जं चऽण्णे बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा णावकंखंति, तहप्पगारं उज्झिय-धम्मियं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से' देजा-फासुयं 'एसणिज्ज' ति
मण्णमाणे लाभे संते° पडिगाहेजा । चउत्था पडिमा । २१-इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं 'अण्णयरं पडिमं पडिवजमाणे
णो एवं वएजा-मिच्छा पडिवण्णा खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवण्णे। जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवजित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिमं पडिवजित्ताणं विहरामि, सब्वे वे ते उ जिणाणाए उवट्टिया, अन्नोन्नसमाहीए, एवं च णं
विहरंति । संगार-वयण-पदं २२-सियाणं एयाएं एसणाए एसमाणं परो वएज्जा-आउसंतो!
समणा! एजाहि तुमं मासेण वा, दसराएण वा, पंचराएण वा, सुए वा, सुयतरे वा, तो ते वयं आउसो! अण्णयरं वत्थं दाहामो । एयप्पगारं" णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएजा-आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुणित्तए, अभिकंखसि मे दाउं? इयाणिमेव दलयाहि ।
१-ण (अ, ब)। २-०य (अ)। ३-तराए (घ, च, छ, ब)। ४-दासामो (अ, च, ब)। ५-तहप्प° (अ)। ६-गार(छ)।
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२४१
वत्थेसणा ( पढमो उद्देसो)
से सेवं वयंत परोवएज्जा आउसंतो। समणा! अणुगच्छाहि, तो ते वयं अण्णतरं वत्थं दाहामो। से पुवामेव आलोएन्जा-आउसो। त्ति वा, भइणि! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे सगार-वयणे पडिसुणेत्तए, अभिकखसि मे दाउं? इयाणिमेव दलयाहि ।। से सेवं वयंतं परो णेत्ता वदेजा-आउसो! त्ति वा, भइणि ! त्ति वा आहरेयं वत्थं समणस्स दाहामो । अवियाइं वयं पच्छावि अप्पणो सयट्ठाए पाणाई, भूयाई, जोवाई, सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स (वत्यं') चेइस्सामो। एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं वत्थंअफामुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते° णो
पडिगाहेजा। वत्थ-आघसण-पद २३-सिया णं परो णेत्ता वएज्जा-"आउसो! त्ति वा, भइणि।
त्ति वा आहरेयं वत्थं-सिणाणेण वा, 'कक्केण वा, लोद्धेण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा आघंसित्ता वा, पघंसित्ता वा समणस्स णं दासामो।" एयप्पगार णिग्घोसं सोचा णिसम्म से पुवामेव आलोएज्जा-"आउसो! 'त्ति वा, भइणि! त्ति वा मा एयं तुम वत्थं सिणाणेण वा (जाव) पघंसाहि वा । अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि ।" से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेण वा (जाव) पघंसित्ता वा
१-णेव (क, घ, च, छ) , एव (ब)। २-जाव (अ, क, घ, च, छ, व)।
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२४२
आयार-चूला १ · पंचमं अज्मयणं दलएजा। तहप्पगारं वत्थं-अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति
मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा। वत्थ-उच्छोलण-पद २४-से णं परो णेत्ता वएज्जा-“आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति
वा आहरेयं वत्थं-सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेत्ता वा', पधोवेत्ता' वा समणस्स गं दासामो।" एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएजा-"आउसो! त्ति वा, भइणि! ति वा मा एयं तुमं वत्थं सिओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेहि वा, पधोवेहि वा। अभिकंखसि "मे दाउं? एमेव दलयाहि। से सेवं वयंतस्स परो सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेत्ता वा, पधोवेत्ता वा दलएजा । तहप्पगारं वत्थं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे
संते णो पडिगाहेजा। वत्थ-विसोहण-पदं २५-से णं परो णेत्ता वएज्जा-"आउसो! त्ति वा, भइणि । त्ति
वा आहरेयं वत्थं-कंदाणि वा, 'मूलाणि वा, (तयाणि वा.), पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा विसोहित्ता समणस्स णं दासामो।" एयप्पगारं णिग्धोसं सोचा णिसम्म से पुवामेव आलोएन्जा-"आउसो! ति वा, भइणि! त्ति वा मा एयाणि
१- (छ)। २-पच्छोलेता (5)
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२४३
वत्थेसणा ( पढमो उद्देसो)
तुमं कंदाणि वा (जाव) हरियाणि वा विसोहेहि । णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे वत्थे पडिगाहित्तए।" से सेवं वयंतस्स परो कंदाणि वा (जाव) हरियाणि वा विसोहित्ता दलएजा। तहप्पगारं वत्थं-अफासुयं अणेसणिज्जं
ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा । वत्य-पडिलेहण-पद २६-सिया से परो णेत्ता वत्थं णिसिरेज्जा। से पुत्वामेव
आलोएज्जा-आउसो! त्ति वा, भइणित्ति वा तुमं चेवणं
संतियं वत्थं अंतोअंतेणं पडिलेहिस्सामि । २७-केवली बूया-आयाण मेयं 'वत्थंतेण उ'' बद्धे सिया कुंडले
वा, गुणे वा, मणी वा, मोत्तिए वा, हिरण्णे वा, सुवण्णे वा, कडगाणि वा, तुडयाणि वा, तिसरगाणि वा, पालंबाणि वा, हारे वा, अद्धहारे वा, एगावली वा, मुत्तावली वा, कणगावली वा, रयणावली वा, पाणे वा, बीए वा, हरिए वा। अह भिक्खूणं पुन्वोवदिट्ठा 'एस पइन्ना, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो , जं पुवामेव वत्थं अंतोअंतेण
पडिलेहिज्जा। सअडाइ-वत्थ-पदं २८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण वत्थं जाणेज्जा
सअंडं 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं सउत्तिग-पणगदग-मट्टिय-मक्कडा-संताणगंतहप्पगारं वत्थं-अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे
संते णो पडिगाहेजा। १-वत्ये ते उ (च); वत्येण उ (घ, ब)।
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आयार-चूला १ : छठें अज्झयणं . ते 'उ जिणाणाए उवडिया अन्नोन्नसमाहीए, एवं च णं
विहरंति । संगार-वयण-पदं २१-से णं एताए एसणाए एसमाणं परो पासित्ता वएज्जा
आउसंतो! समणा! एजासि तुमं मासेण वा, दसराएण वा, पंचराएण वा, सुए वा, सुयतरे वा तो ते वयं आउसो! अण्णयरं पायं दाहामो। एयप्पगारं णिग्धोसं सोचा णिसम्म से पुन्वामेव
आलोएन्जा-आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-वयणे पडिसुणित्तए, अभिकंखसि में दाउं? इयाणिमेव दलयाहि । से सेवं वयंतं परो वएज्जा आउसंतो! समणा! अणुगच्छाहि तो ते वयं अण्णतरं पायं दाहामो। । से पुव्वामेव आलोएजा-आउसों! त्ति वा, भइणि! त्ति वा णो खलु मे कप्पइ एयप्पगारे संगार-बयणे पडिसुणेत्तए अभिकंखसि मे दाउं? इयाणिमेव दलयाहि । से सेवं वयंत परो णेत्ता वदेजा-आउसो! ति वा, भइणि। त्ति वा आहरेयं पायं समणस्स दाहामो। अवियाई वय पच्छावि अप्पणो सयट्टाए पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स पायं' चेइस्सामो। एयप्पगारं णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म तहप्पगारं पायं-अफासुयं
अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा । पाय-अभंगण-पदं । • २२ से 'णं परो णेत्ता वएज्जा-आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा १-जाव (अ, क, ध, च, छ, ब)। । ।
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पाएसणा ( पढमो उद्देसो)
आहरेयं पायं तेल्लेण वा, घएण वा, णवणीएण वा, 'वसाए वा" अब्भंगेत्ता वा, 'मक्खेत्ता वा समणस्स णं दासामो। एयप्पगार णिग्घोसं सोच्चा णिसम्म से पुवामेव आलोएजा-आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा मा एयं तुम पायं तेल्लेण वा (जाव) अब्भगाहि वा मक्खाहि वा अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि । . से सेवं वयंतस्स परो तेल्लेण वा (जाव) मक्खेत्ता वा
दलएजा-तहप्पगारं पाय-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे . . लाभे सते णो पडिगाहेजा। पाय-आघसण-पद २३-से णं परो णेत्ता वएज्जा-आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा
आहरेय पाय सिणाणेण वा, कक्केण वा, लोण वा, वण्णेण वा, चुण्णेण वा, पउमेण वा आघंसित्ता वा, पघंसित्ता वा समणस्स णं दासामो। एयप्पगारं णिग्योसं सोचा णिसम्म से पुवामेव आलोएजा-आउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा मा एयं तुमं पायं सिणाणेण वा (जाव) आघसाहि वा पघंसाहि वा, अभिकंखसि मे दाउं? एमेव दलयाहि । से सेवं वयंतस्स परो सिणाणेण वा (जाव) पचंसित्ता वा दलएजा-तहप्पगारं पायं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे
लाभे संते णो पडिगाहेजा। पाय-उच्छोलण-पदं .२४-से णं परो णेत्ता वएज्जा-आजसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा
"१-x (क, च, ब)।
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२७६
औयार-चूला १ सत्तमं अज्झयणं खलु आउसो। अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया ‘एत्ता,
ताव" ओग्गहं ओग्गिहिसामो, तेण परं विहरिस्सामो। २४-से किं पुण तत्थ ओग्गहंसि एवोग्गहियसि ? जे'तत्थ समणाण
वा माहणाण वा छत्तए वा, "मत्तए वा, दंडए वा, लट्ठिया वा, भिसिया वा, नालिया वा, चेलं वा, चिलिमिलीं वा, चम्मए वा, चम्मकोसए वा, चम्मछेदणए वा, तं णो अंतोहितो बाहिं जीणेज्जा, बहियाओ वा णो अंतो पवेसेजा, सुत्तं वा णं पडिबोहेजा, णो तेसिं किंचि' अप्पत्तियं
पडिणीयं करेज्जा। अंब-पदं २५-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा अंबवणं
उवागच्छित्तए, जे तत्थ ईसरे, जे तत्थ समहिट्टाए, ते ओग्गह अणुजाणावेज्जा । कामं खलु आउसो! अहालंदं अहापरिण्णायं वसामो, जाव आउसो, जाव आउसंतस्स ओग्गहो, जाव साहम्मिया एत्ता, ताव ओग्गहं ओग्गिहिस्सामो, तेण
परं० विहरिस्सामो। '२६-से किं पुण तत्थ ओग्गहसि एवोग्गहियंसि ?
अह भिक्खु इच्छेज्जा अंबं भोत्तए वा, (पायए वा?) । सेज्जं पुण अंबं जाणेज्जासअंडं 'सपाणं सबीयं सहरियं सउसं सउदयं संउत्तिंग-पणग
१, एताव (अ, ब, च, ब), एतावता (क, छ)। २-णो सुत्तं वा णं ( अ, ब)। ३-किंचिवि (क, घ, च, ब)। ४-भिक्खुण (छ)।
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२७७
ओग्गह-पडिमा (बीओ उद्देसो)
दग-मट्टिय-मक्कडा-संताणगं। तहप्पगारं अंबं-अफासुयं
'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा। २७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण अंवं जाणेजा
अप्पंडं 'अप्पपाणं अप्पवीयं अप्पहरियं अप्पोसं अप्पुदयं अप्पुत्तिग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडा-संताणगं अतिरिच्छछिन्नं अवोच्छिन्नं-अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे
संते णो पडिगाहेज्जा। २८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण अंबं जाणेजा- अप्पंड (जाव ७।२७) संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं
फासुयं 'एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते. पडिगाहेजा। २९-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकखेज्जा अंवभित्तगं वा,
अंबपेसियं वा, अंवचोयगं वा, अंवसालगं वा, अंवडगलं' वा भोत्तए वा, पायए वा । सेज्जं पुण जाणेज्जाअंवभित्तगं वा (जाव) अंवडगलं वा सअंडं (जाव ७।२६) संताणगं-अफासुयं "अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते.
णो पडिगाहेजा। ३०-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेज्जा
अवभित्तगं वा (जाव ७।२९) अंबडगलं वा अप्पंड (जाव ७।२७) संताणगं अतिरिच्छच्छिन्नं अवोच्छिन्नं-अफामुयं
'अणेसणिज्ज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा । ३१-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण जाणेजा
अंवभित्तगं' वा. (जाव ७।२९) अंवडगलं वा अप्पंड (जाव ७।२७) . संताणगं तिरिच्छच्छिन्नं वोच्छिन्नं-फासुयं
'एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे सते. पडिगाहेजा। १-डालग (अ, क, घ, च, छ,व)। २-अंव वा अवचित्तगं (घ, च, छ)।
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आयार-चूला १ : अट्टमं अभय
सेज्जा भवेज्जा, सपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा,
अपरिसाडा वेगया सेज्जा भवेज्जा,
: सउवसग्गा वेगया सेज्जा भवेज्जा, णिरुवसग्गा वेगया सेज्जा - भवेज्जा, तहप्पगाराहि सेज्जाहि संविज्जमाणाहि पग्गाहियतरागं विहरेज्जा, व किंचिवि वएजा' ।
11
4
३१ - एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, 'जं सन्वहिं समिए सहिए सया० जएज्जासि ।
चज्जा (अ)-1
—त्ति बेमि ।
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नवमं अभयणं णिसीहिया-सत्तिक्कयं
।
णिसीहिया-एसणा-पदं १-से भिक्खू वा भिक्षुणी वा अभिकखेजा णिसीहियं गमणाए,
सेज' पुण णिसीहियं जाणेज्जासंअंडं 'सपाणं सबीयं सहरियं सउस सउदयं सउत्तिंग-पणगदग-मट्टिय-० मक्कडा-संताणयं, तहप्पगारं णिसीहियं-अफासुयं अणेसणिज्ज 'ति मण्णमाणे
लाभे संते णो चेतिस्सामि' (चएजा ?)। .. २-से भिवखू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा णिसीहियं गमणाए, सेज पुण णिसीहियं जाणेज्जाअप्पंडं 'अप्पपाणं अप्पबीयं अप्पहरियं अप्पोसं. अप्पुदयं अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय- मक्कडा-संताणयं, .... तहप्पगारं णिसीहियं-फासुयं एसणिज्जं 'ति मण्णमाणे . लाभे संते चेतिस्सामि (चेएजा?)। अस्सि पडियाए-णिसीहिया-पदं
३-'सेज्जं पुण णिसीहियं जाणेजा- अस्सि पडियाए एगं साहम्मियं समुहिस्स पाणाई, भूयाई,
जीवाई, सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्ज
अणिसह अभिहडं आहटु चेतैति । १-से (अ, क, घ, च, ब)। २-वृत्तौ 'परिगृह्णीयात्' इति संस्कृत-रूपं विद्यते 'चेतिस्सामि' इति पाठ सम्भवतो
लिपिदोषेण जातः । प्रकरणानुसारेणात्र कोप्ठकान्तर्गत पाठो युज्यते। . ३ वृत्तौ 'गृण्हीयात्' इति सस्कृत-रूपं विद्यते 'चेतिस्तामि' इति पाठः सम्मवतो लिपिदोषेण जातः प्रकरणानुसारेणात्र कोष्ठकान्तर्गत पाठो युज्यते ।
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14.
२६४
आयार-चूला १ - नवमं अज्झयः तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, (बहिया णीहडाए वा अणीहडाए वा), अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्टियाएं वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेज्जा। TV जपणाणिसीहियाजी fui Tiri:
अस्सि पडियाए बहवे साहम्मिया समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई, -TCM
अणिसई अभिहडं आहटु चेतेति ।
मादस्स काय पालन
राणसाहियाए पारसतरकडाए वा 3
"वा, णिसीहिय. वो चेतेज्जा
णसाहय जाणज्जा
T
.
I..
.
UTHTELLY
"
कडाए वा (बहिया णीहडाए वा अणीहड़ाए बा), अत्तट्टियाए वा अणत्तट्टियाएं वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्ज
S-Train Ts असि पडियाएं एग साहम्मिणिं समुद्दिस्स पाणाई, भूयाइ जीवाई, सत्ताई समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्च अच्छेज्ज़ अणिसट्टे अभिहडं आहट चेतेति । तहपगाराए णिसीहियाए. पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकड़ाए वा (बहिया.णीहड़ाए वा-अणीहडाए.वा), अत्तट्टियाए वा अणत्तट्टियाए वा परित्ताए : वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेज्जा ।। . . . . पेज पुण णिसीहियं जाणेज्जी. न अस्सि पडियाए बहवे. साहम्मिणीओ. समुद्दिस्स पाणाई,
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णिसोहिया-सत्तिक्कयं
२९५ भूयाई, जीवाइं, सत्ताई समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसह अभिहडं आहटु चेतेति । तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, (बहिया णीहडाएं वा अणीहडाए वा), अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्टियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासे वियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा,
णिसीहियं वा चेतेजा। समण-माहणाइ-समुद्दिस्स-णिसीहिया-पदं ७-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण णिसीहियं जाणेजाबहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स पाणाई, भूयाई, जीवाइं, सत्ताई समारब्भ समुहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसटुं अभिहडं आहटु चएइ। तहप्पगाराए णिसीहियाए पुरिसंतरकडाए वा अपुरिसंतरकडाए वा, (बहिया णीहडाए वा अणीहडाए वा), अत्तट्ठियाए वा अणत्तट्टियाए वा, परिभुत्ताए वा अपरिभुत्ताए वा, आसेवियाए वा अणासेवियाए वा णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा। ८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्ज पुण णिसीहियं जाणेज्जा
बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए समुद्दिस्स पाणाडं, भूयाई, जीवाइं, सत्ताई समारब्भ समुहिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठ अभिहडं आहटु चेएइ। तहप्पगाराए णिसीहियाए अपुरिसंतरकडाए, (अवहिया णीहडाए), अणत्तट्टियाए, अपरिभुत्ताए, अणासेवियाए णो ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा।
२४
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३०८
आयार-चूला १ : एगारसमं अज्झयण . करणाणि वा, कवोयट्ठाण-करणाणि वा, कविजलढाण
. करणाणि वा-अण्णयराई वा तहप्पगाराई "विरूव-रूवाई . , सद्दाई, 'कण्णसोय-पडियाए° णो अभिसंधारेजा गमणाए । · १.२-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाई सुणेति,
तंजहा-महिस-जुद्धाणि वा, वसभ-जुद्धाणि वा, अस्स-जुद्धाणि . वा, हत्थि-जुद्धाणि वा, "कुक्कुड-जुद्धाणि वा, मक्कड
: जुद्धाणि वा, लावय-जुद्धाणि वा, वट्टय-जुद्धाणि वा, तित्तिर• जुद्धाणि वा, कवोय-जुद्धाणि वा, कविजल-जुद्धाणि वा
अण्णयराई वा तहप्पगाराई "विरूव-रूवाइं सद्दाई कण्णसोय
पडियाए णो अभिसंधारेजा गमणाए । १३-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगझ्याइं सद्दाइं सुणेति, ' तंजहा-'जूहिय-हाणाणि" वा, हयजूहिय-ट्ठाणाणि वा, ... गयजूहिय-हाणाणि वा-अण्णयराइं वा तहप्पगाराई "विरूव.. रूवाई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए° णो अभिसंधारेज्जा
गमणाए। .: १४-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइं सुणेति, . . तंजहा-अक्खाइय-ट्टाणाणि वा, माणुममाणिय-हाणि वा,
महया आय-पट्ट-गीय-वाइय-तंति-तल-ताल-तुडिय-पडुप्पवाइय-ट्ठाणाणि वा-अण्णयराई वा तहप्पगाराई "विरूवरूवाई सद्दाई कण्णसोय-पडियाए° णो अभिसंधारेज्जा
गमणाए।" १५-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइं; सुणेति,
तंजहा-कलहाणि वा, डिंबाणि वा, डमराणि वा, दोरजाणि • वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा-अण्णयराई वा --निशीथे १२ उद्देशके २६ सूो ‘उज्जुहिया ठाणाणि' इति पाटो विद्यते ।
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सह-सत्तिक्क
तहप्पगाराई "विरूव- रुवाइ सद्दाइ कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
१६ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाई सद्दाइ सुणेति, तंजा - खुड्डियं दारियं परिवृत्तं मंडियालंकिय निवुज्झमाणि पेहाए, एगं पुरिसं वा वहाए णीणिज्जमाणं पेहाए - अण्णय राइ वा तहप्पगाराई 'विरूव- रुवाइ सद्दाई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
--
१७ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णयराइं विरूव- रुवाई महासवाई एवं जाणेज्जा, तंजहा - बहुसगडाणि वा, बहुरहाणि वा, बहुमिलक्खूणि वा, बहुपच्चंताणि वा - अण्णय राई वा तहप्पगाराई विरुव-रूवाई महासवाई कण्णसोय-पडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
3
,
2
१८ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्गयराइ विरूत्र- रुवाइ महुस्सवाइ एवं जाणेज्जा, तंजहा - इत्थोणि वा, पुरिसाणि वा, थेराणि वा डहराणि वा मज्झिमाणि वा, आभरणविभूसियाणि वा गायंताणि वा, वायंताणि वा णच्चताणि वा, हसंताणि वा, रमंताणि वा मोहंताणि वा, विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं परिभुजंताणि वा परिभाइंताणि वा, विच्छडियमाणाणि वा, विगोवयमाणाणि वा - अण्णय राई वा तहप्पगाराई विरुव - रुवाई महुस्सवाई कण्णसोयपडियाए णो अभिसंधारेज्जा गमणाए ।
३०६
सद्दासत्ति-पदं
१९ - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा णो इहलोइएहि सहेहिं णो
१ - परिभूय (क्वचित् ) ; मण्डितालकृता बहुपरिवृता ( वृ ) 1
२ - मडिय (घ, छ ) ।
३- मज्झ° ( छ, व ) ।
०
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३२६
आयार-चूला १ तेरसम, चउद्दसमं अज्झयण वा, लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुन्नेण 'वा, वण्णेण वा
उल्लोलेज वा, उव्वलेज्ज वा-णो तं साइए, जो तं णियमे । ६९-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकंसि चा, पलियंकसि वा
तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं
वा सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेन्ज 'वा, पधोवेज वा-णो तं साइए, जो तं णियमे ।। [ (से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अग्णयरेणं विलेवण-जाएणं आलिपेज वा, विलिंपेज्ज वा-णो तं साइए, णो तं णियमे । (से से परो) (से अण्णमण्ण) अंकसि वा, पलियंकसि वा
तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं ..वा अण्णयरेणं धूवण-जाएणं धूवेज्ज वा, पधूवेज वा---णो तं
साइए, णों तं णियमे ।] . ७०-(से से परो) (से अण्णमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकसि वा
तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडये वा, भगंदलं
वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदेज्ज वा, विच्छिदेज्ज - वा-णो तं साइए, णो तं णियमे। ७१-(से से परो) (से अण्णमण्ण) अंकंसि वा, पलियंकंसि वा
तुयट्टावेत्ता कायंसि गंडं वा, अरइयं वा, पिडयं वा, भगंदलं वा अण्णयरेणं सत्थ-जाएणं अच्छिदित्ता,वा, विच्छिदित्ता वा, पूर्व वा, सोणियं वा णीहरेज वा, विसोहेज वा-णो तं
साइए, णो तं णियमे । मल-णीहरण-पदं
७२-(से से पंरो) (से अण्णमण्णं) अंकसि वा, यकसि वा
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परिकिरिया अनुन्न किरिया सत्तिक्कयं
३२७
तुयट्टावेत्ता कायाओ सेयं वा, जल्लं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ।
७३ - (से से परो ) ( से अण्णमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता अच्छिमलं वा, कण्णमलं वा, दंतमलं वा, हमलं वा णीहरेज्ज वा, विसोहेज्ज वाणो तं साइए, णो तं नियमे ।
वाल- रोम-पदं
७४ - ( से से परो ) ( से अण्णमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता दहाई वालाई, दीहाई रोमाई, दीहाई भमुहाई, दीहाई कक्खरोमाई, दीहाई वत्थिरोमाई कप्पेज्ज वा, संठेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ।
लिक्ख-जूया-पदं
७५ - ( से से परो ) ( से अण्णमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुयट्टावेत्ता सीसाओ लिक्खं वा, जूयं वा णीहरेज्ज वा विसोहेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे 10
आभरण- आविघण-पद
७६ - (से से परो ) ( से अणमण्णं) अंकंसि वा, पलियंकंसि वा तुट्टावित्ता हारं वा, अद्धहारं वा, उरत्थं वा, गेवेयं वा, मउडं वा, पालंबं वा, सुवण्णसुत्तं वा आबिंधेज्ज' वा, (पिणिधेज्ज वा - णो तं साइए, णो तं नियमे ।
१ - सुवण्णगेवेय (घ ) ।
२ - आंबधेज्ज (ध, च) ।
२८
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३४२
आयार-चूला १ : पनरसमं अज्झर [दिव्वो मणुस्सघोसो, तुरियाणिणाओ य सक्कवयणेण। खिप्पामेवः णिलुक्को, जाहे 'पविज्जइ चरित्तं ॥१८॥ पडिवज्जित्तु चरितं, अहोणिसिं सव्वपाणभूतहितं ।
साहट्ट लोमपुलया, पयया देवा निसामिति ॥१९॥ मणपज्जवनाण-लद्धि-पदं
३३-तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं । ' खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवणाणे णामं णाणे
• : समुप्पन्ने--अड्ढाइज्जेहिं दीवहिं दोहि य समुद्देहि सप्णीणं . पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं' मणोगयाई भावाई जाणेइ।
. अभिरगह-पदं . . .. ३४-तओ णं समणे भगवं महावीरे पन्वइते समाणे मित्त-णाति., सयण-संबंधिवग्गं , पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता 'इम' :- एयावं अभिग्गहं अभिगिण्हइ--"बारसवासाइं वोसट्टकाए । चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति', तंजहा--दिव्वा वा,
माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे ‘स अणाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविह मणवयणकायगुत्ते सम्मंसहिस्सामि, खमिस्सामि अंहियासइस्सामि।"
, १ साहटेटु (अ, क, ब)।. "२--'मणुस्साण (छ)। ३ तओण इम )। ४-चियत्त° (च, छ, ब)। ५- समुप्पज्जति (ध, छ, ब)। ६-तेरिच्छा (च, ब)। ७-x (भ, क, घ, च, ब)।
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भावणा
३४३
विहार-पदं ३५-तओ णं समणे भगवं महावीरे इमेयारूवं अभिग्गहं
अभिगिण्हेत्ता 'वोसट्टकाए चत्तदेहे" दिवसे मुहत्तसेसे
कम्मारं गाम समणुपत्ते। ३६-तओ णं समणे भगवं महावीरे वोसठ्ठचत्तदेहे अणुत्तरेणं
आलएणं, अणुत्तरेणं विहारेणं, अणुत्तरेणं संजमेणं, अणुत्तरेणं पग्गहेणं, अणुत्तरेणं संवरेणं, अणुत्तरेणं तवेणं, अणुत्तरेणं बंभचेरवासेणं, अणुत्तराए खंतीए, अणुत्तराए मोत्तिए, अणुत्तराए तुट्टीए, अणुत्तराए समितीए, अणुत्तराए गुत्तीए, अणुत्तरेण ठाणेणं, अणुत्तरेणं कम्मेणं', अणुत्तरेणं सुचरिय
फलणिव्वाणमुत्तिमग्गेणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ । ३७-एवं विहरमाणस्स जे केइ उवसग्गा समुपज्जिसु-दिव्वा वा
माणुसा" वा तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पन्ने समाणे अणाइले अव्वहिए अदीण-माणसे तिविहमणवयण
कायगुत्ते सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ । केवलनाण-लद्धि-पद ३८-तओ ण समणस्स भगवओ महावीरस्स एएणं विहारेणं
विहरमाणस्स बारसवासा विइक्कंता, तेरसमस्स य वासस्स परियाए वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्थे
पक्खे-वइसाहसुद्धे, तस्सणं वइसाहसुद्धस्स दसमीपक्खेणं, १-वोसट्ठचत्तदेहे (क, ५), वोमट्टचियत्तदेहे (छ) । २-कुमार (क, घ, च, छ,ब)। ३-कम्मेण (क, घ, च, छ)। ४-०पज्जति (क, व.)। ५-माणुस्सा (च)। ६-अद्दीण-° (म, घ, च)।
३०
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३५८
आयार-चूला १ : सोलसम समुद्द-दिळंत-पदं १०--जमाहु ओह सलिलं अपारगं,
महासमुदं व भुयाहि दुत्तरं । अहे य' णं परिजाणाहि पंडिए,
से हू मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ ।। ११--जहा हि बद्धं इह 'माणवेहि य',
जहा य तेसिं तु विमोक्ख आहिओ। अहा तहा बंधविमोक्ख जे विऊ.
से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥ १२-इमंमि लोए 'परए य दोसुवि',
ण विजइ बंधण जस्स किचिवि । से हु णिरालंबणे अप्पइहिए,
भावपहं विमुच्चइ ॥
--त्ति बेमि।
१-व (अ, क, ब)। २-माणवेहिं (अ, क) ३-परलोय ते सु वि (:
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पूर्त-स्थल
मेव
सा७८-८०
११
परिशिष्ट-१
आयारो संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और आधार-स्थल निर्देश संक्षिप्त-पाठ
पूर्ति आधार-स्थल आगममाणे (जाव) सम्मत्तमेव ८९५-९६,१२३-१२४ एव दक्खिणामो वा पञ्चत्यिमानो वा उत्तराओ वा उड्ढानो वा (जाव) अन्नयरीओ
११३ एवं परिघेतव्वं ति, उहवेयन्वति ५१०१
१०१ एवं हिययाए पित्ताए वसाए पिच्छाए पुच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाए दंताए दाढाए नहाए हारुणीए अट्ठीए अद्विमिजाए अट्ठाए अणट्ठाए १।१४०
१११४० गाम वा (जाव) रायहाणि ।
८.१२६
८।१०६ धारेज्जा (जाव) गिम्हे
८८८-१२
८।४६-५० परकमेज्ज वा (जाव) हुरत्या
८।२१ पुरथिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसी (जाव) अन्नयरीओ
११ वत्याई जाएज्जा (जाव) एवं
८६४-६७
८४४-४८ समारम्भ (जाव) चेएड ८।२४
बा२३
८१२३
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अयार-चूला कल्पसूत्र :
तए णं समणे भगवं महावीरे अणगारे जाए इरियासमिए, भासासमिए, एसणासमिए, आयाणभंडमत्तनिक्खेत्रणासमिए, उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिठ्ठावणियासमिए, मणसमिए, वइसमिए, कायसमिए, मणगुत्ते, वयगुले, कायगुत्ते, गुत्ते, गुत्तिदिए, गुत्तवंभयारी, अकोहे, अमाणे, अमाए, बलोभे, सते, पर्सने, उवसते परिनिव्वुडे, अणासवे, अममे, अकिंचणे, छिन्नगथे, निरुवलेवे, कंसपाई इव मुक्कतोये १, संखो इव निरंजणे २, जीवो इव अप्पडिहयगई ३, गगणं पिव' निरालंबणे ४, वायुरिव अप्पडिबद्ध ५, सारयसलिलं व सुद्धहियए ६, पुक्खरपत्त व निरुवलेवे ७, कुम्मो इव गुत्तिदिए ८, खरिंगविसाणं व एगजाए ६, विहग इव विप्पमुक्के १०, भारुडपक्खी इव अप्पमत्ते ११, कुजरो इव सोडीरे १२, वसभो इव जायथामे १३, सीहो इव दुद्धरिसे १४, मंदरो इव अप्पकपे १५, सागरो इव गंभीरे १६, चंदो इव सोमलेसे १७, सूरो इव दित्ततेए १८, जच्चकणगं व जायस्वे १६, वसुधरा इव सत्रफासविसहे २०, सुहुयहुयासणो इव तेयसा जलते २१ । एतेसिं पदाणं इमातो दुन्नि संघयणगाहाओ--
कसे संखे जोवे, गगणे वायू य सरयसलिले य । पुक्खरपत्ते कुम्मे, विहगे खगे य भारंडे ॥१॥ कुंजर वसमे सीहे, णगराया चेव सागरमखोभे ।
चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव हूयवहे ॥२॥ नत्यि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबधो भवति । से य पडिबंधे चविहे पप्णते, तं जहा----
दबओ खेत्तओ कालो भावओ। दमओ णं सचित्ताचित्तमीसिएसु दन्वेसु । खेत्तओ गंगामे वा नगरे वा अरण्णे वा खित्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा णहे वा । काली णं समए वा आवलियाए वा माणापाणुए वा थोवे वा खणे वा लवे वा मुहत्ते वा अहोरो वा पक्खे वा मासे वा उऊ वा अयणे वा संवच्छरे वा अन्लयरे वा दीहकालसंजोगे वा । भावओ णं कोहे वा माणे वा मायाए वा लोभे वा भये वा हासे वा पेज्जे वा दोसे वा कलहे वा अन्भक्खाणे वा पेसुन्ने वा परपरिवाए वा अरतिरती वा मायामोसे वा मिच्छादसणसल्ले वा । तस्स गं भगवंतस्स नो एवं भवइ ।
से णं भगवं वासावासवज्ज अट्ठ गिम्हहेमंतिए मासे गामे एगराईए नगरे पंचराईए वासीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिलेठ्ठकंचणे समदुक्खसुहे इहलोगपरलोगअपडिवद्ध जीवियमरणे निरवकखे संसारपारगामी कम्मसंगनिघायणट्ठाए अन्मुट्ठिए एवं च णं विहरइ ।
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परिशिष्ट-३ : वाचनान्तर तथा आलोच्य-पाठ
तस्स णं भगवंतस्स अणुत्तरेणं नाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेण चरित्तेणं अणुत्तरेणं आलएणं अणुतरेणं विहारेणं अणुत्तरेणं वीरिएणं अणुत्तरेणं अज्जवेणं अणुत्तरेणं महवेणं अणुत्तरेणं लाघवेणं अणुत्तराए खंतीए अणुत्तराए मुत्तीए अणुत्तराए गुत्तीए अणुत्तराए तुट्ठीए अणुत्तरेणं सच्चसंजमतवसुचरियसोवचइयफलपरिनियाणमन्गेणं अप्पाणं भावेमाणस दुवालस संवच्छराई विइक्कंताई। तेरसमस संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणम्स जे से गिम्हाणं दोच्चे मासे चउत्ये पक्खे वइसाहमुद्धे तस्स णं वइसाहमुद्धम्त दसमोए पक्क्षणं पाईणगामिणोए छायाए पोरिसीए अभिमिवट्टाए पमाणपत्ताए सुव्वएणं दिवसेणं विजएणं मुहत्तेणं जंभियगामस्स नगरस्स वहिया उजुवालियाए नईए तीरे वियावत्तस्स चेईवस्त्र अदूरसामते सामागरम गाहावइस्स कट्टकरणंसि सालपायवस्स अहे गोदोहियाए उक्कुडुयनिसिज्जाए आयावणाए आयावेमाणस्स छटणं भत्तेणं अपाणएणं हत्युत्तराहिं नक्वत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाधाए निरावरणे कमिणे पडिपुन्ने केवलवरनाणदंसणे समुप्पले ।
तए णं से भगवं अरहा जाए जिणे केवली सम्वन्नू सव्वदरिसी सदेवमणुयासुरम्स लोगस्स परियायं जाणइ पासइ, मन्वलोए सव्वजीवाण भागई गळि चवणं उववायं तक्क मणो माणसियं भुत्त कर्ड पडिसेविय आविकम्म रहोकम्मं अरहा अरहम्सभागी तं तं कालं मणवयणकायजोगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सबजीवाणं सवभावे जाणमाणे पारमाणे विहरइ। ४-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वक्ष २ (पत्र १४६) ___तए णं से भगवं समणे जाए ईरिआसमिए जाव परिठ्ठावणिआसमिए मपनमिए वयसमिए कायसमिए मणगुत्ते जाव गुत्तवंभयारी अकोहे जाव अलोहे संते पसते उपसते परिणिबुडे छिण्णसोए निरुवलेवे संखमिव निरंजणे जच्चकणग व जावस्वे आदरिसपडिमागे इव पागडभावे कुम्मो इव गुत्ति दिए पुक्खरपत्तमिव निमवलेवे गगणमिव निरालबगे मणिले इव णिरालए चंदो इन सोमदंसणे सूरो इव तेअंसी विहा इव अपडिवद्धगामी सागरो इव गंभीरे मंदरो इव अकंपे पुढवी विव सव्वफासविसहे जीवो विव अप्पडिहयगइत्ति । परिय णं तस्स भगवतस्स कत्यइ पडिववे, से पडिबंब चउनि भवंति, तंजहा
दव्वो खित्तमो कालो भावओ, दब्बो इह खलु माया मे पिया मे नाया में भगिणी में जाव संगंथसंधुआ मे हिरणं मे सुवण्ण मे जाव उवगर मे, जहवा समासलो तचिते दा अचित्ते वा मीसए वा दब्बजाए सेव तत्स ण भवइ, खितओ गामे वा गरे वा अरने वा खेते वा खले वा गेहे वा अगणे वा एव तस्न न भवइ, कालो पोवे पालवे या मुहुत्ते या महोरो वा पक्खे वा मासे वा उजए वा नपणे वा संवन्द्ररे वा मन्नयरे वा दीहकालपतिवंधे एवं तस्स ण भवइ, भावओ कोहे वा जाव लोहे का भए वा हामे वा एवं तम्ब म भवइ, से णे भगव वासायासवज्ज हेमंतगिम्हानु गामे एगराइए गरे पचराइए वयगपहा
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आयारो
अणुपुत्व ६३२५,३२,७५, अणेगरूव १०१,१०६, अतिअच्च ६।१०।१।६ ७६ ; पा२७,
१२८,१३६, अतारिस २७ १०५,१२५ , १५२,१६० , अतिदुक्ख १४ पापा
२२५५, ६७, अतिवट्ट अणुपुव्वसो ६८
१२७,६ अतिवट्टेज्जा ५५११४ अणुपुत्वी पाचार पोलिस ६२, पा२६; अतिवय अणुवटिय ४३ मामा.१७. अतिवाएज्ज ६२३ अणुवयमाण ६१८०,६१;
१६ अतिवाय ६११६ ३ अणोमदंसि ॥४८ अतिविज्ज ३२८,३३, अगुवरय ४।३ , ५१८ अगोवहिय
४॥३६
४३ अणुवसु ६।३० अणोतर २१७१ अतिवेल
पापा अणुवास
१४१, अण्ण २३,१८,२१,२६, अतिहि -अणुवासिज्जासि ॥३८
६४.११ ३२,४१,४४,४६, अणुवीइ ११५५, ४।२७,
६१०३,१०४ अणुवेहमाण ९७
१०६,११६,१२८, अत्त ११३८,६५ , अणुसचर
३२६४, १३१,१३६,१४३, -अणुसचरइ १४,
६.१०४ १५२,१६०,१६८; अणुसंवेयग ५१०३
२०४६ , ३१४३; अत्तत्त अणुसोय -अणुसोयति ७६ अणुस्सिय ५५४३
७६,१०८, अण्णत्थ
५॥४१ अणेग
१३५,१५८ , अप्रणयर २११५० अणेगचित्त ३४२ अण्णयरी ११,३ अणेगरूव श८,१८,
अण्णहा २२११८,५३५० अत्थ (अत्र) ४।२०, २६,४५,४९, अण्णाण
२२,२३
५१७ ७२,८०,८२, अतह ६४३,८९ अदत्तहार २०६८,८४
६३,७२,७५,८०, अतीत ८८,१०१,१०४, अतीरंगम
३५९,६०
२१७१
६/२५
६१०४ , ८।१८, अत्तसमाहिय
२०,२४ अत्थ (अर्थ)
४१३३ ११२५,४८,
१५३
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________________
८४
७८
गब्द-सूची अदविय ६६७ अन्नयर ६४४,६२, अपरिण्णाय श६१,८६, अदिन्न
पा११२ अदिन्नादाण ११५७ अन्नहा ५॥१३४ अपरिगायकम्म १८ अदिस्समाण २११०६, अन्नेस
अपरिन्नाय २११३६ ३२३,५८ -अन्नेसि १११४८, अपरिमाण ६३३ अदु ९३३१० १७६ , ५।५६ परिस्सव ४१२ अदुवा ११५७,५८ , अन्नेसि २१८१,५।२१ अपरिहीण २२२५,२६ २१४५ , ४.१३ ; अपज्जवलित ८५ अपलिउचमाण ८४७, ६८,४२, अपडिण्ण १२० ,
६६,८९ ८५१-५३,
हारा१५,१६ अपलोयमाण ६३६ ७०,७१,६३
अपडिण्गत ८७६ आरगम २०७१ रा, ६।३१०
अपडिन्न २११०; अपास ५६५ अदिज्जमाण १८
८३६, अपि
११२७ अद्ध (अध्वन्) ६।१२२
६।२।६,११; अपिवित्ता ४६ अद्ध (अर्थ) ४५
६।३।६,१२, अट्ठ
४१ अवुव ५२६, ८५
१४,६।४।६, अपुट्ठा (अपृष्ट्वा अन्न (अन्य) ११४४,६३,
) ॥२५ ७,१४,१७ अप्प (आत्मन्) २०१०४, १५५,१६८,
अपडिभाणि श२१ १७७ , ४८,
१३५, ३६३२; ५।१:३, ८।७५, अपय ५१३८ ८ ६,१८,१२५
११६,११७, अपरिग्गह २।३१ अप्प (अल्प) रा४, ११९,९१।१५, अपरिग्गहमाण ८३३
६५,८१, १६, ६।४८,१० अपरिग्गहावंती ५।३६
५३१ अन्न (अन्न) ५११६, अपरिजाणय
८१०६,१२६ ११७,११६ अपरिणिव्वाण १२१२२, साम७, २०; अन्नगिलाय ६४६
४।२६
३२४ अन्नतर८१११,८।८।२५ अपरिमात ११३०,३१, अप्पग पापा२१ अन्नमन्न ३१५४
११४, ५९ अप्पडिन्न श२३
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जंघा
६१५
चेत
आयारो -चिळे दा१६,२० छण
१११२ -चिट्ठज्ज बा२१,२३ छणावए ३४६ जंतु चिट्ठ(द)४।१८: २० छणे ३२४६; वापर जग्ग चित्त २२३,४० ; ६६ छणंत ३१४६ -जग्गावती रा५ चित्तणिवाति श६६ छाया
६।४३ जण चित्तमंत ५३१; छिद
___-जणयंति
રાદ
जण २३५,६१,८६% ६।१।१३ -अच्छे ।२७,२८,५०, "
५७६, चित्तमंतय ११११३ ५१,८१,८२,११०, ६९३,९५,९६, चिरराई
६६६ १११,१३७,१३८, हारा११, ६।३।४,५ चिररात ६७०
१६१,१६२ जणग ६२६,२७ चुअ १२; १४८
-छिदह
८२५ जणवय ३४३ ; ६६ चेच्चाण ८१०७,१२७ -छिदेज्ज ३१४६ जणवयान्तर ६९ छिज्ज
जत्त ११६७ चेएइ पा२३,२४ -छिज्जड
जम्म
३८४ चेएसि पा२२ छिन्न १११३ जम्मदंसि २८३
दा२१ छिन्नकहकह ८१०७, जय ॥३८, ४।४१,५२, चोर २४१
१२७
श६९,७५ छिन्नपुव्व ३११ जयमाण ४.११, ५२४४; छ २११५० छुछुकार
६।३६; २१ छउमत्थ ६।४।१५ -छुछकारंति ९३४
हारा४ छंद २१७३; २२८६; छेत्त २।१४,१४२, ८।४० जर ५।२५, ६२६ छेत्ता
२।१११ जरेहि ४३२ छज्जीवणिकाय १६१७७, छेय
५१० जरा ३३१० १७८
जराज्य
११११८ ६४७
ज जहा १२३४; ४.३३ छण २०१८०,१८४; ज
११३ जहा ३।२१, ५४६ जओ
सामा१८ -जहाति ११५६ ।
३१५८
चेतेमि
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
जूरति
का
आयारों ५४६ ठ णच्चाणं ९४८ १३३ ठा
णट्ट -ठाइज्जा श१ णममाण ६८३,६७ २०१२४ ठावए सामा२१ णय
२।१७७ जोग ८।१२६, ६।१।१६ ठाण २७२, श८१ ; णयर 818 जोणि ११७; १५५ ८।१०,१६,१६,२० णर ३३१० , ५६४ ; १११४ ठिय ५६९, ९४११
६१,१०६ जोव्वण १२ ठियप ६१०६ गरग
- २ णरय १२२४,४७,
७८,१३४ भक डझ
णस्स झंझा ३१६६ -मड श६८.८४ -णस्सति २०६८,८४
३१५८ णह
१॥२८ १५ डस
णाइ २।४१, ४१७, ६६३ -झाति १६,७, -डसत ११३७, ४३४ णाण
४५२; हारा४,१२; डाह રાજ
६२,२६,८२ ६।४।१४,१५
णाणि ३।४५:४।१३,१६ -झाय ६४१४
६११६ ... ण ३ .
१११३७ णात झाइ
२२,४,२४
२११०४ भाण
६।४।१४ झिमिय पगर १०६,१२६ ; णाभि
२२८
वारा३ णाम ६२८,६१ झोस णगिण ६४७
णाय (ज्ञात) ११४७,७८, -झोसेति ३६४१ णच्चा ३६१३,२८,३३, १०७,१३४,१५८ झोसमाण २२०,६५० ४५, ४।२६; णाय (न्याय) २२१७० झोसित ५९८ ५३४, ६८,१६, णाय (नाग) ६३५ झोसिय ५१४१ मा३५ ; पा८१,२५, णायपुत्त । बाबा१२% झोसेमाण
६।१।१२,१५,१६
भाइ
६४।३
1 ३1३२.४७ दि २१६२,३३३२,४७
णाति
१०
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द-सूची
णाय सुय
णालिया
णास
णिइय
णिक्खम्म
- णिक्खिवे
णिकरण १ ६०; २ १५३
निक्कमदंसि ३१३४, ४५०
णिक्खंत ११३५; ६८५ णियट्ट
१११
५११६,
६७६ २६,१५
णिक्खित्त ४।२७, ६३
णिक्खिव
|१|१०
६|३|५
१२८
४२
४५
णिगम
१०६,१२६
णिचय ३ ३१, ४१६
णिज्जरापे हि
८८५
णिज्जा
गिद्ध
णिब्वलासय
णिमंत
गिद्दा
णिèस
- णिमंतेज्ज
दार
- णिमतेज्जा ८११, २६;
दादा२४
नियग २ ७,१६,२०,७६
-पियट्टति २२६ ; ५।१२२; ६८४
पियट्टमाण ६८२
ALL
२७६
णियम
णियय
णियाग
णियाणओ
णियाय
णिरय
- णिज्जाइ ४५ १ णिरामगध गिज्झाइत्ता १११२१ निरुद्धाजय णिज्झोसडत्ता ३६०, गिरोव
५।१३०
५।७६
I૪૪
११२४,४७, ७५,
१०७,१५८ ३४६,
दापू
छापूह णिवज्ज गिट्टियट्ट વાક - णिवज्जेज्जा ८८|१३ पिट्ठियद्धि
५११६ णिवतित ५५; ६४१०
णिडाल
११२८ णिवय
હારાષ્ટ્ર
५।११४ णिवाय
१३४
६७
- णिर्वातिसु
२११०८
४३४
१६
દાર
२१३
णिवार
- णिवारेड
णिविज्ज
णिविट्ठ
णिव्वाण
निव्विद
णिव्वुड
णिव्य
णिवेय
णिसन्न
णिसम्म
- णिविज्जति २/१०१
- णिविज्जे
५४
णिसामिया
णिसिद्ध
णितीय
२३
णिस्सार
णिस्सिय
णिस्सेयस
६३१४
हि
हिण
४१६
६।१०२
२।१६२, ३।४७
४१३८
= |१६
४६
31४८
६६७६
- णिसीएज्ज ८२१, २३
- णिसिएज्जा
१६
५४०
३८६
३१४५
११८४
८६१,८४,
११०,१३०
२०७४,१८६
- णिहेज्ज
५१४१
- गिणिम् ३ १२
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
ઉદ
बुइय
बुड्ढ
वुद्ध
बू
- आहंसु
५/६३; २१ -वेमि
१।११३
४/४७ ६ ११;
दार, दादार
६२३२४
आहु ४/२६, ५/१८
- बूया ४/२६; ५६७,
२१,४१;
६१ २३, ६/३|१४
भइणी
भजग
भगव
-वेमि १।१२,२७,३३,
३४,३८,५०,५३,
६४,६५,८१,८४,
८६,११०,११३,
११७,११८,१२२,
१३७, १४०,१४४,
१६४,१६६,१७८,
२/२६, ४८, ७४,
१०३,१२०,१४०,
१४७, १५८,१६५,
१८६,
३।२५, ५०, ७०,८७,
४१११,१५,२६,
भगवंत
३६,४५,५३, __५१२,१८, ३०,३५,३८,४१, भज्जा
६१,८६,८८,८६, भट्ठ
२,१०५,११६, भत्त
१३६, ६६, २६,
५८,६६,७५,६२,
८,११२,११३,
८।१,२,१०,२०,२४,
२८,२६,४२,६१,
८४,११०,१३०,
२५ ६|१|२३;
६२/१६; ६|४|१७
२२
६।७
१।१,६,१६,२४,
४२,४७,७४,७८,
१०२,१०७,१३०,
१३४,१५३,१५८,
२/११३, ६६५,७३,
८८,५६,७४,८०,
६६,१००,१०४,
११५,१२४;
११,४,१५,१८,२३,
हा२५,६,१५,१६,
__ε1३७,१२,१३,१४,
६/४/३,५,६,१२,
१६,१७
४। १
• २२
६८२
• हा३३
भमुह
भय
भव
-भवइ
१।१,४,१३४,
१५८, २२६५ ६७,८१,
४१७, ६/६०,
६६,१०५, ८८५
-भविस्सामि
आयार
११२८
२१४३, ३१७५
६७,६६,१०३
- भवंति ११७,११,१२,
३०,३१,३३,६१,
६२,६४,८६,८७,
८६,११४,११५,
११७,१४१,१४२,
१४४,१६६,१६७,
१६६,१७८, ३१४,
५८६, ६ २,६७,
६५,६६,१११; ८।३
- भवति ११२, २४,४७,
७८, १०७ २२८३ ;
५।६,१७,३२,४१,
६२, ६८, ६/६४,
८५, ८३,८,४३,
५५,५७,६२,७५,
७६,६५,१०५,
_१११,११४,११६
से ११६,१२३,१२५
१/२,६
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द-सूची
- भविस्सामा २१३१
-भवे
५।४४
भाग
भाय
भावण्ण
२।१२५
२२
२१११०
भास
-भासति ३१५६, ४११
-भासह
४२२
-भासामो ४२३
१०३,१०४, २१
से २५,३६,४१ से
४३,५७,६२,६८,
७६,८५,६१,१०१,
१०५,१११,११६
से ११६,१२५,
दादा, हा२१२
८१०१
भुज
भित्ति
भीम
भीय
-भुजति
- भुजह
-भुंजित्या
भासिय
५।४७
भिक्खायरिया ८७५ भिक्खु २१११०, ५६२, ६/६०,७०, भेउर
-भुजे
भुजिय
भुज्जो
भूत
भूय
भो
चाह
मड
८ २१ मइम
भिक्खुणी
भिज्ज
भोग
- भिज्जड ३५८ भोत्तए
६१११५, भोम
हारा७६ भोयण
६२११५
११८, १९
६४६, ७
२
५५६५, ६ ६१,
८१११२. ६/३५
मउ
३ २७ ४११
मता
१।१२२, २१५२, मंथु ४२०,२२,२३,२६; ६ १०३ से १०५,
मद
२१ से २४
२१६६, ५२६,
८१०७, १२७.
८८२३
२०१४,१४२
मइमंत
मईम
६१५६; ८ १०७,
मस
११५४, २९१,
भेत्त
६३ ११
भेद
६१३३ मक्कड
१०६,१२६
भय ६१११३, २२ मग्ग २२४७, ११६६४४२
भेरव
५१२४
११, २१३२
३।१२,२५, ११२३
दाना १
८११४, ६२१६,
|३|१४ ६|४|१७
न
५/२२,३०; ६/३
१२७ मच्चिय २।१२७, ३२६
४१२५ मच्चु
२१७६
मज्ज
७
ફ્લ
५।१३०
१६१ ३ १२
६४४
१११२०, २१३०,
५१५,११, ६८१
६४१२
१।१४०, ४१४३,
६।६७, दादा,
मज्झ
२१२,१८,६६, मज्भगय
८२,१०५ मज्भत्य
- मज्जेज्जा
४५.०
३|१०- ४११६
२1११४
४४६
श
बाजार
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
औयारो
हस्स २२६; ५१२६ हित पापा२५ हुरत्था (द) श१२%, हालिद्द ५१२७ हिमग ।।१४ । पा२१,२३ हास ३६३२,६१ हिमदाय २१३ हेउ १।१०,२०,४३,७४, हिंस
हिय ८।६१,८४,११०, १०३,१३०,१५४ -हिंसिसु १११४०;
१३० हेमंत ८५०,६९,९२; ___ ११३; १३६३ हियय ११२८,१४०
१,२ -हिंसंति १।१४० ; हिरण्ण २५८ हो ५५१ हिरि
८१११ होइ ५६६ हिसिस्संति १।१४० हिरी ।
६।४५ होउ श६६,१०७ हिच्चा ४१४०, ६।३०, हीण २०४६ होति ७७,६३ हु
१११२,१५४ हो?
६५२ श२८
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
आयार-चूला : शब्द-सूची
अ अंड ७१०,२६ से अतलिक्खजाय श६७; अइदूरगय १२१३६ ३१,३३,३८,४० से
२२१८,१६, अइपत
। ४५ ८।१,२,२२, ५३६ से ३८; अइपतति २३० २३ , ९.१,२,
६३६ से ४१ अइमत्त १५६८
१०१२,१४
७११ से १३ अईव १५५१२,१३ अत (अन्त) १७२ : अंतो १।२६,४१,१३५, अक १३१३६ से ७६; २६ , ६।१२७
१३६ , २०१२ १४॥३६ से ७६;
१५.२५
६१४५, ७२४, १५।१४ अंत (अन्तस्) १२८
८।१२, १०१२ अक्करेलुय १२११३ अतकड १६६१०,:१
अंताहितो .७१२४ अकधाई १५॥१४ .
अंतोअंत ५२६,२७, अतरा ११४२,४३,५०, अगारिय १११६
६२७,२८ ५३,१३६, ३३१,४, अंगुलिया ११६२,
अंब १२६ से २८ ५,७,८,१०,१२ से ३३१६,४७
अंबचोयग '१२६ से ३१
१४,३४,४१,४३, अजण ११७२,७३
अंबडगल १२६ से ३१
४५,४७,४८,५१, अंजलि ३६१, ५५०,
अवपलव १।१०८ ५३ से ६१, ५४६, '६५८
अवपाणग १०४
५०, ६५७,५८ अड १२२,४३,५१,८२,
अवसिय ७१२६ से ३१ ८३,१०२,१३५; अतरिज्जग ५१६
अबभित्तग ५२ से ३१ . २२१,२,३१,३२, 5 अंतरिया १५३८
अंबवण ७५२५; १०।२७ ५७से ६१,६८,६९, अंतरुच्छुय १६१३३ ; अवसरड्य ११११० ३१५, ५२८ से ३०,
७३६ से ३८ अवसालग ७/२६ से ३१ ३५, ६।२९ से ३१,३८; अतलिक्ख ४।१७ अंवा . ४३२
१५३८
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
५४
अंबाडगपलव १1१०८ अक्कोसति ५।५०; ६ ५८;
७ १६
-अक्को संतु
२२२,
- अक्कोसेज्ज ३६, ११
२४४
अंबाडगपाणग १।१०४
अंबाडगसरडुय ११११०
अबिल १।१००, १३८;
४/३७
अंसुय
५११४ अक्खाइयट्ठाण
अकंत
१६/४
अकक्कस ४ ११, १३, १५,
०२,२४,२६,२८,
३०,३२,३४,३६
अकडुय ४|११, १३, १५,
अकरणिज्ज
अगड
अगडमह
अर्गाढिय
२२,२४,२६,२८, अगणि
३०,३२,३४,३६
१९३२ : १५।३२
अकसि
११५
अकालपडिबोहि ३३८, ९
अकालपरिभोइ श८,
७७१
अक्कंत
अक्खाइ
अक्खाय
अगणिकाय
अकिंचन
अकिरिय ४।११,१३, अगार
१५,२२,२४,
२६,२८,३०,
३२,३४,३६ अगारि
१।३५
अक्कोस .
अगिद्ध
- अक्कोति २२२, अग्ग
५१; ३।६१;
+
११११४;
१२/११
१९२६, ४८;
अगणिफंडणट्ठाण
अगणिय
अगरहिय
अग्गजाय
अग्गि
७५७ अंग्धा
३।४८
११२४
अग्गपिड
अग्गबीय
अंग्गलपासग
१।५७
अग्घाय
११८४, ८५, ६५; अचित्त
२४६, ३१५५
१६/४, ६५; अचित्तमंत
अग्गला ११५० ३२४१,
४७; ४/२१, २२, २६
१६।५
२२१,२३,२६,
४१, ४२
१० १६
२२४६ अच्चि
२/३६,३७,
३० से ४२
११५७
१५।२८
१|११५
- अग्घाइ (ति) १५/७४
अग्घाउं
१५२७४
१११०५
१७ से २०,
१०/२८
१२३ अच्चुय
२/३६,३७,३९ अच्चुसिण
से ४२, १५१, अच्छ
२६; १६।१
अचेलया
अच्चाइण्ण
आयार-चूला
१११६,४६, ६१
१।११५
११५०;
अच्छ
३।४१.४७,
४/२१, २२
अच्छ
अच्छिंद
"
४ ८:
१५।५७,७१
१५।१६
३२
१५२८
१५।२५
१६६
११५२; ३३५६
- अच्छाहि ६२६
ぐ
२११८३२८
-अच्छिदेन ३६, ११,
1
६१; ५५०; ६५८;
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
इति
आयार-चूली इक्कड २।६३,६५९७१५४ ईसाण १५।२८,गा०११ उग्गह ११५४ इक्खागकुल श२३ इसि १५।२८,२६ उच्चार ११५१, २०१८,
ईहामिय १५२८ ३०,७१,१०१ से २८ -इच्छइ श१३०
उच्चार -उच्छेज्जा १२६,३३, उउ १२१ -उच्चारिज्जा १५॥४६
४०, ८१६ उंछ २०४४, ३।२,३ उच्चारपासवणभूमि इटु ११:१६, १२।१६ उंबरमंथु श१११ २७०,७१, बा२४,२५ इडि १५।२७ उक्कविय २।१०८१०, उच्चारपासवणइतरेतर १२३३,४७;
१० सत्तिक्कय १० ३३३८ से ४० उक्कस
उच्चावय २२२३ से २५ इयराइयर २४११४२ -उक्कसाहि ३११७ ।
३२६,४४ ११२५ -उक्कसिस्सामो ३११८
उच्छु ११११६, ७३३ से इत्थ १४६ -उक्कज्जा ३३१४
३५ इत्थिय उक्क्रसित्तए १८
उच्छुगंडिय ११३३, इत्थिविग्गह १३२ उक्किट्ठ १०२७
७३६ से ३८ इत्थी ४५,१४,१५, उक्कुज्जिय श६९
उच्छुचोयग १११३३, ५१४; १११८; उक्कुट ११८०
३६से ३८ १२२१५; १५६५, उक्कुड्य १६५,६६; ६६,६७,६६, १६१७ ७ ५४,५५, १५३८ ।
उच्छुडगल ११३३; इत्यीवयण ४३,४ उक्ख १२१,२४ ।
३६ से ३८ इदाणि ११३६ उक्खलंपिय श६२ उच्छुमेरग १२११३ ४४ उक्खित्त २।४४; १५।२८, उच्छुमेरुग २१३३
३२ इयर
गा १२ उच्छुवण २।४१ इरिया १४४ उक्खिप्प
१२१३३; ३६ उच्छसालग
उक्खिप्पमाण इहलोइय १११९
११४६
७३६ से ३८ ईसर २४७; ७४४.६.८. उगिज्भिय ७५,७ उच्छोल २३,२५,३२,३६, उग्गकुल
श२३ उच्छोलेति २०५४, ४६,४६ उग्गय । १।२८।
७१६
२।२०
इम
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्द-सूची -उच्छोलेज्ज १६३, उझिय १११३३,१३४, उत्तिग रा१,२,३१, २०१८,२१; ५५३२,
१४७,१५४ ३२,५७से ६१,६८, ३४, ६।३४,३७, उज्झियवम्मिय ५२२०, ६६, ३१,४,५,२१, १३१७,१६,२३,३२,
६१६ २२, ५।२८,२९,३०, ४४,५३,६०,६६, उट्ट
५१५ ३५, ६।२९ से ३१, .१४।७,१६,२३,३२, उडुवद्धिय २।३४,३५ ३८, १०,२६
४४,५३,६०,६९ उड्ड्य २१७५, ८।२६ से ३१,३३ से ३८, -उच्छोलेहि १२६३, उड्ड १५।२७,३८० ४० से ४५: मा१,
२२४, ६।२४ उम्रगामिणी ३१४ २,२२,२३, ६।१,२: उच्छोलेता १६३, उण्णमिय ११६२, ३३१६, १०१२,३,१४,२८
५२४, ६।२४ . ४७ उदउल्ल ११६४,६५, उजुवा लिया १५॥३८ उत्तम १५।२८, गा० १० १०२, ३।३०,३१, उज्जाण ४।२६,३०, उतर
३७,३८, १४८ १०१२०, १११८, -उत्तरेना ३४२ उदग ३३२५ से ३०,३७, १२५; १३१७७, उत्तर १५२७,२८
५५,६१४७ , शरद गा०१३, १५१३८ उदगदोणि
४।२६ उज्जाल
उत्तरखत्तियकंडपुर उदगपमूय -उज्जालेतु रा२३ १५,२७,२६ उदगप्पसूय २१४ -उज्जालेज्न २२२१,२३, उत्तरगुण १५२५
८१४६१४ २६ उत्तरपुरस्थिम १५।२७, उदय(उदक) ११२,४२, उज्जालिया २।४०,४१
३८
४३,५१,८२,८३, उज्जालेत्ता २१ उत्तरिज्जग १६ १०२,१३५, २०१, उज्जुय ११५०,५२,५३, उत्तस
२,३१,३२,४६,५७ से ६१, २।४४, ३६, -उत्तसेज्ज ३४६ ६१,६८,६६, ३१,
७,४१,४३ उत्ताण १११३१, ७९ ४,५,७,१३,२४,२०, उज्जोय १५॥६,४० उत्तिंग ११२,४२,४३,५१, २२,३४ से ३६,४५, उज्झर ११५; १२२ २,८३,१०२,१३५;
१४
३६५५
५५,५९.६०
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
४५
आयार-चूला २४६ चलाचल २।४६, ५।३६ चित्तमंत ६३८, ७.१०; चम्मकोस २४६ से ३८, ६।३६ से ४१, १०।१४, १५।५७,७१ चम्मकोसग(य) ३२४, ७११ से १३ चित्तचिल्लड ३५६
७३,२४ चवल १।२७ चित्तचिल्लड्य ११५२ चम्मग ३।२४ चाउमासिय ११२१ चिय
४२६ चम्मछेदण १४६ चाउल श६,७,८२, चिराधोय १११०० चम्मछेदणग ३।२४;
११६,१४४ चिलिमिली रा४६; ७३,२४
चालपिट्ठ ११११६ ३२४, ७१३,२४ चम्मपाय ६१३
चाउलोदग १६६ चीणसुय ॥१४ चम्मवधग ६।१४
चामर १५।२८ गा० ११ चीवर ३।२५५।४२ से चम्मय ७३,२४
चार
३।४६ चय
चारिय ४।१२,१४ चीवरधारि ३१२५ -चइस्सामि १५४
चारु
१५।२८ चुंब चए
१६१
चालिय १६२ -चुबेज्न १६ -चएज्ज १६७
चिचापाणग ११०४ चण्ण(न्न) २२१,५३, चयण १५६३६ चिघ १५।२७
५।२३,३१,३३, चयमाण १५।४
६।२३,३३,३६, चिच्चा १५।२६ चयोवचइय ४८
७१८, १३१६,१५, चिट्ठ
२२,३१,४३,५२५६, -चिट्ठज्जा ११४४,५५, ६८, १४१६,१५,२२, चरे १६६
५६,५८,६२,१२३; ३१,४३,५२,५९,६८ चरंत १६२
३३० से ३७, चुग्णवास १५१० चरित्त १५॥३२,३३
८।२७,२८ चुय गा०१८; १९३३ चरिम १५।२५
चिट्ठमाण १०५७, ८२८ एमि १५४
१४४ चरिया (चर्या) चित्त १०२८ चुय १५५१,३,२५
चित्तकम्म १२१ चेइय ३१४७, १५॥३८ चरिया (चारिका) १०।२१, ११६, चित्तमंत ११५१,८२,८३, चेइयकड ३६४७, ४।२१, १२.६
१०२५२३५
२२
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परगह
१५३६
५१३१,३३; पच्चोत्तर ६१३३,३६
१०८
आयार-चूर १५॥३६ पच्चपिण
पज्ज पग्गहित(य)राग २१७६; -पच्चप्पिणेज्जा २०६८, -पज्जेहि ३२४
३० ६ ७६; पा२२, पज्जत्त १५॥३३ पग्गहिय १११४६,१५३
२३ पज्जभाएत्ता १५५१३,२६ पघंस
पच्चपिणित्तए २६८, पज्जभाय
६६, ८।२२,२३ -पज्जभाएंति १५॥१३ -पघसंति २५३७११८ पच्चाइक्स
पज्ज.वजाय १११४४,१५१ -पघंसाहि ५।२३,
___पच्चाइक्खिस्सामि पज्जाय २२३
११२३
पज्जाल -पघंसेज्ज २२२१, पच्चावाय
२३२ -पज्जालेतु रा२३
-पज्जालेज्ज २२२१, -पच्चोतरति १५।२८
२२,२६ पचसित्ता ५।२३, ६।२३, पच्चोतरित्ता ५५२८ पज्जालेता २२१ २४ पच्चोयर
१०२८ -पच्चोयरड १५।२६ पच्चंत ११३१७.१२११४
पट्टण ११२८,३४,१२२, म पच्चोयरित्ता पच्चंतिक(य) ३८,
१५२६ ११
२१; ३१२,३,४५, पच्छा १२२६,३२,४२, ५७,५८, १२, ८१, पच्चक्ख
४३,४६,१२१
१११७, १२।४, -पच्चक्खाइति १५२५ २।२८,२६,३८,४५,
१५२८ -पच्चक्खाएज्जा
४६,४८, ५/३,२२, २१, १०१,
पड ३१५,३४ १५।२८ गा० १२,
-पडर
४१६ -पच्चक्खामि ७१;
१५४१
पडह १५२८ गा०१६ १५।४३,५०,५७, पच्छाकम्म १२९१,१४४, पडाया
१५२८ ६४,७१
१५१, २२७ पडिकूल २२७ पच्चक्खवयण ४।३,४ पच्छासंथुय ११४६,१२२, पडिक्कम पच्चक्खाइत्ता १५।२५
१३० -पडिक्कमामि १५।४३, पञ्चक्खाएत्ता ३१५,३४
११४५
५०,५७,६४,७१
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१०६
शब्द-सूची पडिक्कमित्ता १५।२५ पडिग्गह ६।२७,२८,४७ पडिय १५२६,३१
से ५०,५३ से ५८ पडिया १२१,४ से ८,११ पडिगाह
पाडगा -पडिगाहेज्जा ११४ से य) १११३५, से १५,१६,२१,२३, १३६,१४३, ६।२६,
२४,२६,२८,२६, ७,१२ स १८,२१
२७,४४ से ४६,४६, मे २५,३६,४१,६३
३२,३४ से ३७,
५६,५७ से २,८५,८७ ने पडिगहचारि ११४३
४०,४२ सै ४६, १०२,१०४,१०६ से
४६,५०,५२,५३, पडिगहिय १११४४, । ११६,१२१,१२३, १५१, ६१४७
८२ से ८५,७,८६ १२८,१३३ से १३६. पडिगाह
से ६६,१०१,१०२, १४१ से १४६,१५१ -पडिगाहेज्जा ११
१०४ ते ११९,२२३ से १५४, २०४८, पडिग्गायि २१२,१३३,
से ७,१०,१२,१४, ५७ से ६१,६३,७४,
१६,२१,२७ से २६; ५५ से १५,१७ से पडिच्छ २०,२२ से २५,२८
३३१४,६०,६१, ५४ -पडिच्छइ १५।२६,३१
से ८,१२,४२से४५, से ३०, ६१८ से १४, पडिच्छित्ता १५५३१. १६ से १६,२१ मे
४६,५०, ६४ से७, पडिणीय ७५२४
११,४४,४६,५०, २६,२६ से ३१,४६, पडिपड ११५२, ३१५४ से १२६ से ३१,३३से ५६, ५१४८, ६५६
५३,५७,५८, ७५, ३८,४० से ४५,८१
७, ३ से ५,१०, पडिगाहित्तए १११३५, , पडिपुण्ण ४।२६, १५॥१,
१२,१४, ६।३४,
८,३८,४० ५।२५, ६२५
५,१०,१२,१४, पडिगाहिय ११३५,१३५ पडिबद्ध
१०१४ मे १,११, २५०, ७४१५
११११ से १८, पडिगाहेत्ता ११३३.४७. पडिवोह
१२१ से १६ ५७,१२५ से १२८, -पडिवोहेज्जा ७२४ १३० से १३२ पडिमा २१५५, २०६२ ।।
२०६२ पडिलव ४।२०,२२,३० पडिगह ११४६,१०१, १३१,१३७, ३६,
६:१५ से २०,७१४८ -पडिले हिज्जा २७, ११,२१,
से ५६, ८.१६से २१ ६२८, ८२४
से ६७, ५॥१६से २१, पडिलेह
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संथर
संफास
शब्द-सूची
१३६ सपन्वइय ७३ संलिह -संथरेज्जा १२६, संपाइ(ति)म ११४० -संलिहेज्ज ११५१; २०१२,७२, ८।१२, ३६१५; ५।४५, ३३१,३२,३६; २६, ६१२
६५३
६३४८,४६ सथरमाण ३२८ से १३ सपिडिय श६०,६१, सलिहिय ।
११४६ संथरेता २०७३, पा२७
२४६,५०, ६५७, सलेहणा श२५. संयार २२४१,४२,४४,
५८ संलोय ११५५,५६,६२ १५२५
संवच्छर १५२६,२६ संथारग(य) श;
गा० १,३ २।१२,५७ से ६४,
-सफासे ११३३,४६, ३।२,३; ७७, ४६,५७,१२३,१२५
सवड्ड
से १२७,१३० से संवड्डड १५।१४ ८।१२,२२,२३,२६
सवर से २८, ९१२
१३२,१३८, ३१४०; संथारग(भूमि) २१७३;
२४७, ६५५ सवस १२६ संवधि १५१३३४ सवसति २।३४,३५
-संवसे १६६४ संघि श६२ संभोइय १।१२७,१३६, संनिरुद्ध
-संवसेज्जा ७५,७
२१४८,६५, २।४५
६६, ७१५४,५५ संपधूमिय २।१०,५॥१२ सभोएत्ता १११०२
६।६; ८।१०; संभज्जिय श ४६ सवसमाण २।२१ से २५ ६।१०१०१११ संमट्ठ २१०, १२,
२८,२६ संपदा १५२६ गा०१ ६ ६ १० सवहण ४१२८ संपण्ण १५७८
१०. १०.११ सवाह संपराइय २२२५ संमिस्स १२११६ संवाहेज्ज १६६३,१३, संपरिहाव
समुच्छिय ४१७ २०,२६,४०,५०० संपरिहावइ १३३ संमेल
५७,६, १४३, संपवेव
संरंभ २२४१,४२ १३,२०,२९,४०, -संपवेवए १६३ सरक्षण १०२५
११४२,४३
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________________ 143 शब्द-सूची सयं 1225,101,131, सया 1026 11 / 20 - सल्लइपवास 1106 141,147,151 से 12 / 17, 13 / 80, सवियार 817 से 20. 154, 2 / 63,64, 14 / 80 सव्व - श२० 3618,26,61, सर(सरस्) 348, सव्वओ - 151 517 से 20,50, 11 // 5, 12 / 2 सम्वण्णु . 15 // 36 616 से 19,58; सर(शर) 1662 सम्वत्त 151 72,5,7,6, सरक्ख 151 सव्वसह 164. 15443,50,57, सरग 11143 ससंघिय 446,47; 64,71 सरड्यजाय 11110 6354,55. सयण(शयन) 4 / 26 सरण 3146,56,60, ससरक्ख 1151,66,67, 1566 . 548,46, 102 २२७६;सयण(स्वजन) 15 // 13, 6256,57 .535638, 34 सरपंतिय 3148; 110 710; 230; सयपाग श२८ 12 / 2 10114 सयमाण 274 सरभ 1528 ससगिद्ध 5535, 710 सयसहस्स 15 / 26 गा० सरमह 1 / 24 ससिणिद्ध 1151,65, 2,3, 15 / 28 सरमाण 15667 / 66,102, 3230, गा०६,१६ सरय 15 / 28 गा०१४ 31,37,38, 6 / 38, सया 1120,30,41,48, सरसरपंतिय 3148; 47,48, 10 / 14 60,86,103, 11157 12 ससीसोवरिय 73 120,126,137, सराव 11145,152 - 315,34, मा२७ 156; 2226,43, सरित्तए 1767 सस्स 416 77, 3123,46, सरीर 2018; 1525 सह 6274 / 18,36; सरीसिव 3 / 46,54, -सहइ 1516,37. 140,51, 643, 4 / 25,26 -सहिस्सामि 15334 56; 22,58, सलिल 1610 सहसम्मुइय 15 // 16 831, 6 / 17; सल्लइपलंब 12108 सहसा 3226