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आयार-चूला १ : सोलसम समुद्द-दिळंत-पदं १०--जमाहु ओह सलिलं अपारगं,
महासमुदं व भुयाहि दुत्तरं । अहे य' णं परिजाणाहि पंडिए,
से हू मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ ।। ११--जहा हि बद्धं इह 'माणवेहि य',
जहा य तेसिं तु विमोक्ख आहिओ। अहा तहा बंधविमोक्ख जे विऊ.
से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥ १२-इमंमि लोए 'परए य दोसुवि',
ण विजइ बंधण जस्स किचिवि । से हु णिरालंबणे अप्पइहिए,
भावपहं विमुच्चइ ॥
--त्ति बेमि।
१-व (अ, क, ब)। २-माणवेहिं (अ, क) ३-परलोय ते सु वि (: