Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 44
________________ १६६ पिंडेसणा ( एगारसमो उहेसो) अस्सिं खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे, अप्पे पज्जवजाए । तहप्पगारं तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धवियर्ड वा सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा-फामुय एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा । १५१-अहावरा पंचमा पाणेसणा- से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविट्टे समाणे, उवहित मेव पाणग-जायं जाणेज्जा-(१।१४५) । १५२-अहावरा छहा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे, पग्गहिय मेव पाणग-जायं जाणेज्जा-(१।१४६) ।। १५३-अहावरा सत्तमा पाणेसणा-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए अणुपविढे समाणे, वहु उज्झिय-धम्मियं पाणग-जाय जाणेज्जा-० (१।१४७)। १५४-इच्चेयासि सत्तण्हं पिंडसेणाणं, सत्तण्हं पाणेसणाणं अण्णतरं पडिमं पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जा-मिच्छापडिवण्णा खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवन्ने । जे एते भयंतारो एयाओ पडिमाओ पडिवज्जित्ताणं विहरंति, जो य अहमंसि एयं पडिम पडिवज्जित्ताणं विहरामि, सब्बे वे ते उ जिणाणाए उवट्ठिया अन्नोन्नसमाहीए एवं च णं विहरंति । १५५-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गिय, जं सव्वटेहिं समिए सहिए सया जए । -ति बेमि।

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