Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 50
________________ १७५ सेज्जा ( पढमो उद्देसो) अंतलिक्ख-जाय-उवस्सय-पदं १८-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण उवस्सयं जाणेजा तंजहा-खंधंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, पासायसि वा, हम्मियतलंसि वा, अन्नतरंसि वा तहप्पगारंसि वा अंतलिक्खजायंसि, णण्णत्थ आगाढाणागाढेहि कारणेहिं ठाणं वा, सेज्जं वा, णिसीहियं वा चेतेजा। से य आहच्च चेतिते सिया, णो तत्थ सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा हत्थाणि वा, पादाणि वा, अच्छीणि वा, दंताणि वा, मुहं वा उच्छोलेज वा, पहोएज वा । णो तत्थ ऊसढं पगरेजा, तंजहा-उच्चारं वा, पासवणं वा, खेलं वा, सिंघाणं वा, वंतं वा, पित्तं वा, पूर्ति वा, सोणियं वा, अन्नयरं वा सरीरावयवं । १९-केवली बूया-आयाण मेयं । से तत्थ ऊसढं पगरेमाणे पयलेज वा पवडेज वा, से तत्थ पयलमाणे' वा पवडमाणे वा हत्थं वा, 'पायं वा, बाहुं वा, ऊरुं वा, उदरं वा, सीसं वा, अन्नतरं वा कार्यसि इंदिय-जातं लूसेज वा। पाणाणि वा, भूयाणि वा, जीवाणि वा, सत्ताणि अभिहणेज्ज वा, 'वत्तेज वा, लेसेज वा, संघसेज वा, संघट्टेज वा, परियावेज वा, किलामेज वा ठाणाओ ठाणं संकामेज वा, जोविआओ ववरोवेज वा। अह भिक्खूणं पुवोवदिट्ठा एस पइन्ना, 'एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो,' १-गाढा (क, च, व); आगाढावगाढेहि (घ): आगाढाहि (छ)। २-पयले° (क, च, छ)। ३-पवडे ° (क, च, छ)।

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