Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 34
________________ पिडेसणा ( चउत्थो उद्देसो) १२६ माइट्ठाण-पदं ४६-भिक्खागा णामेगे' एवमाहंसु-समाणे वा, वसमाणे वा, गामाणुगामं दूइज्जमाणे-"खुड्डाए खलु अयं गामे, संणिरुद्धाए, णो महालए, से हंता! भयंतारो! बाहिरगाणि गामाणि भिक्खायरियाए' वयह ।" संति तत्थेगइयस्स भिक्खुस्स पुरे-संथुया वा, पच्छा-संथुया वा परिवसति, तं जहा—गाहावई वा, गाहावइणीओ वा, गाहावइ-पुत्ता वा, गाहावइ-धूयाओ वा, गाहावइ-सुण्हाओ वा, धाईओ वा, दासा वा, दासीओ वा, कम्मकरा वा, कम्मकरीओ वा, तहप्पगाराई कुलाई पुरे-संथुयाणि वा, पच्छा-संथुयाणि वा, पुन्वामेव भिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि अविय इत्थ लभिस्सामि-पिडं वा, लोयं वा, खीरं वा, दधिं वा, णवणीयं वा, घय वा, गुलं वा, तेल्लं वा, महुं वा, मज्ज वा, मंसं वा, संकुलिं' वा, फाणियं वा, 'पूयं वा", सिहरिणिं वा, तं पुवामेव भोच्चा पेच्चा, पडिग्गहं सलिहिय संमज्जिय, तओ पच्छा भिक्खूहि सद्धि गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए पविसिस्सामि, णिक्खमिस्सामि वा । माइहाणं संफासे, तं णो एवं करेजा। १- नाम मेगे (ब)। २-समाणा वा वसमाणा (च)। ३- पडियाए (घ, ब)। ४-सकुलिं (घ, छ), सक्कलि (क्वचित् )। ५-४ (घ, छ, वृ)।

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