Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 36
________________ पिडेसणा (सत्तमो उद्देसो) १४५ तहप्पगारं असणं वा४ अगणिकाय-पइट्ठियं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा ।' ९५–केवली बूया आयाण मेयं अस्संजए भिक्खु-पडियाए अगणि ओसक्किय', णिस्सक्कियो, ओहरिय, आहटु दलएज्जा । अह भिक्खूणं पुवोवदिहा 'एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एसुवएसे. जं तहप्पगारं असणं वा ४ अगणिकाय-पइडियं-अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा। अच्चुसिण-वीयण-पदं ९६-से भिक्खू वा भिक्खुणो वा 'गाहावइ-कुलं पिडवाय पडियाए अणुपविठे समाणे, सेज्जं पुण जाणेज्जाअसणं वा ४ अच्चुसिणं, अस्संजए भिक्खु-पडियाए सूवेण' वा, विहुवणेण वा, तालियंटेण वा, 'पत्तेण वा", साहाए वा, साहा-भंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुण-हत्थेण वा, चेलेण वा, चेलकन्नेण वा, हत्थेण वा, मुहेण वा फुमेज वा, वीएज वा । । से पुवामेव आलोएज्जा आउसो! त्ति वा, भगिणि! त्ति वा मा एयं तुमं असणं वा ४ अच्चुसिगं सूवेण वा, विहुवणेण वा, तालियटेण वा, पत्तेण वा, साहाए वा, साहाभंगेण वा, पिहुणेण वा, पिहुण-हत्येण वा, चेलेण वा, चेलकन्नेण वा, १-उस्सक्किय (क, घ, च) ; उस्सिक्किय (छ); ओसिक्किय (अ)। २-णिस्सिक्किय (अ, छ, व)। ३-सुप्पेण (अ, च)। ४-विहुयणेण (अ, क, घ, च)। ५-X(घ, वृ)।

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