Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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आयार-चूला १ : पढम अज्मयणं अफासुयं 'अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो
पडिगाहेजा। १३४-से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिडवाय-पडियाए
अणुपविढे समाणे, सेज्जं पुण जाणेज्जाबहु-अद्वियं वा मंसं, मच्छं वा बहु कंटगं । अस्सि खलु पडिगाहियंसि, अप्पेसिया भोयण-जाएसु, बहुउझियधम्मिए । तहप्पगारं बहु-अट्ठियं वा मंसं, मच्छ वा बहु कंटगं-अफासुयं
अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेजा । १३५-से भिक्खू वा 'भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए
अणुपविढे समाणे, सिया णं परो बहु-अहिएण मंसेण' उवणिमंतेजाआउसंतो! समणा! अभिकखसि बहु-अट्ठियं मंसं पडिगाहित्तए? एयप्पगारं णिग्धोसं सोच्चा णिसम्म, से पुवामेव आलोएजाआउसो! त्ति वा, भइणि! त्ति वा, णो खलु मे कप्पइ से बहु-अट्ठियं मंसं पडिगाहित्तए, अभिकंखसि मे दाउं जावइयं, तावइयं पोग्गलं दलयाहि, मा अद्वियाई। से सेवं वयंतस्स परो अभिहटु अंतो-पडिग्गहगंसि बहुअट्ठियं मंसं परिभाएत्ता णिहटु दलएज्जा ।
१-मसेण मच्छेण (अ, ब, छ)। २-०पडिग्गहंसि (अ)। ३-परिभोउत्ता (अ); परियाभोएत्ता (क, च)।

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