Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 39
________________ १६४ आयार-चूला १ : पढम अभयणं से त्त मायाए तत्थ गच्छेजा, २.ता पुन्वामेव आलोएजाआउसो! त्ति.वा, , भइणि ! त्ति वा 'इमं ते किं जाणया दिन्नं ? उदाहु अजाणया' ?' .. सो य भणेजा-णो खलु, मे जाणया दिन्नं, अजाणया । काम खलु आउसो! इदाणि णिसिरामि । तं भुंजह च णं, परिभाएह च णं। तं परेहिं समणुन्नायं समणुसिटुं, तओ संजयामेव भुंजेज वा, पीएज वा। जं च णो संचाएति भोत्तए वा, पायए वा । साहम्मिया तत्थ वसंति संभोइया समणुन्ना अपरिहारिया अदूरगया तेसि अणुपदातव्यं । सिया णो जत्थ साहम्मिया सिया, जहेव बहुपरियावन्ने कीरति, तहेव कायव्वं सिया। १३७-एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, 'जं सव्वदे॒हिं समिए सहिए सया जए । -ति बेमि। एगारसमो उद्देसो माइट्ठाण-पदं १३८-भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु-समाणे वा, वसमाणे वा, गामाणुगाम 'वा दूइज्जमाणे' मणुण्णं भोयण-जायं लभित्ता, से भिक्खू गिलाइ, से हंदह णं तस्साहरह । १-अजाणया दिन्त (घ)। २-इमं (अ)। ३-दूइज्जमाणे वा (अ); दुइज्जमाणे (च, छ, ब)। ४-से य (अ)।

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