Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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चउत्थं अज्मयणं (वीओ उद्देसो) १४-अट्टा चि सन्ता अदुवा पमत्ता। १५-अहासच्चमिणं ति वेमि । १६-नाणागमो मच्चु-मुहस्स अत्थि,
इच्छापणीया चंका-णिकया। काल-ग्गहीआ णिचए णिविट्ठा,
'पुढा-पुढो जाई पकप्पयंति"। १७-'इहमेगेसि तत्थ-तत्थ संथवो भवति ।
अहोववाइए फासे पडिसंवेदयंति । १८-चिट्ठं करेहि कम्मे हिं, चिळं परिचिट्ठति । ___ अचिठं करेहिं कम्मेहि, णो चिट्ठ परिचिट्ठति ।" १९-एगे वयंति अदुवा वि णाणी,
णाणी वयंति अदुवा वि एगे। २०-आवंती केआवंती लोयंसि समणा य माहणा य पुढो
विवादं वदंतिसे दिटुं च णे, सुय च णे, मयं च णे, विण्णायं च णे
१-पुढो पुढो जाइ पकरेति (चू),
एत्थ मोहे पुणो पुणो, पुढो पुढो जाइ पगप्पेति (चूपा);
" पकप्पेति (क); पकप्पन्ति (ख, ग, च); पकुप्पंति (च,छ)। 'पुढो पुढो जाइ पकप्पयन्ति' पंक्तिस्थाने शुब्रिग सपादिते पुस्तके एतादृशं पाठान्तरम्एत्थ मोहे पुणो पुणो, इहमेगेसि तत्थ तत्थ संथवो भवइ, अहोववाइए फासे पडिसवेययन्ति; चित्त कुरेहि कम्मेहि, चित्त परिविचिटुइ ,
अचित्तं कुरेहिं कम्मेहि, नो चित्त परिविचिट्ठइ । २-परिविचिट्ठई (क, चू)। ३-परिविचिट्ठई (क) ४-४ (शु)।

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