Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 22
________________ बीअं अभ्यण ( उत्यो उद्देसो) चउत्थो उद्देसो ७५-तओ से एगया रोग-समुप्पाया समुप्पज्जंति । ७६-जेहिं वा सद्धिं सवसति ते वा णं एगया णियया पुन्विं परिवयंति, सो वा ते णियगे पच्छा परिवएज्जा । ७७-नालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा। तुमंपि तेसि नालं ताणाए वा, सरणाए वा । ७८-जाणित दुक्खं पत्तेयं सायं । ७९-भोगामेव अणुसोयंति । ८०-इहमेगेसिं भाणवाणं । ८१-तिविहेण जावि से तत्थ मत्ता भवइ-अप्पा वा बहुगा वा। ८२-से तत्थ गढिए चिट्ठति, भोयणाए। ८३-ततो से एगया विपरिसिह संभूयं महोवगरणं भवति । ८४-तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायाणो वा से विलुपंति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगार-डाहेण वा डज्झइ । ८५-इति से बाले परस्स अट्टाए कूराई कम्माई पकुव्वमाणे, तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासु'वेइ । १ हरति (क, छ)। २-समूढे (क, घ, च ।

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