Book Title: Aayaro Taha Aayar Chula
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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आयारो १५-जामा तिणि उदाहिया', जेसु इमे आरिया संबुज्झमाणा
समुट्ठिया। १६-जे णिवुया, पावेहि कम्मेहि, अणियाणा ते वियाहिया। १७-उड्डं अहं तिरियं दिसासु, सव्वतो सव्वावंति च णं पडियक्के
जीवेहि कम्म-समारभे णं । १८-तंपरिण्णाय मेहावी--णेव सयं एतेहिं काएहि दंडं समारंभेज्जा,
णेवण्णेहिं एतेहि काएहि दंडं समारंभावेज्जा, ने'वन्ने एतेहिं
काएहि दंडं समारंभंते वि समणुजाणेज्जा । १९-जेवन्ने एतेहि काएहिं दंडं समारंभंति, तेसि पि वयं
लज्जामो। २०-तं परिणाय मेहावी-तं वा दंडं, अण्णं वा दंडं, णो दंड-भी दंडं समारंभेज्जासि ।
--त्ति बेमि।
बीओ उद्देसो २१-से भिक्खू परक्कमेज्ज वा, चिडेज्ज वा, णिसीएज्ज वा,
तुयट्टेज्ज वा, सुसाणंसि वा, सुन्नागारंसि वा, गिरि-गुहंसि वा, रुक्ख-मूलसि वा, कुंभारायाणंसि वा, हुरत्था वा कहिं चि विहरमाणं तं भिक्खुं उवसंकमित्तु गाहावती बूयाआउसंतो समणा ! अहं खलु तव अट्टाए असणं वा, पाणं वा,
खाइमं वा, साइमं वा, वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पाय१-उदाहडा (घ, छ, चु ) , उदाहया (ख, ग)। २-आयरिया (घ, छ)। ३-निव्वुडा (चू)। ४-पाडेक्क (क); पाडियक्क (घ, चू)। ५-दड समारभते (चू)।

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