Book Title: Aachar Sara
Author(s): Indralal Shastri, Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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आचारसारे
श्रियं त्रिलोकीपतिपुष्पदन्तः __ पुष्यादनंतः प्रियमुक्तिकान्तः। दुरंतमिथ्यात्वतमस्तमोरि
र्जिनो मेनोजद्विरदद्विपारिः ॥ ७५॥ इति श्रीमदीरनंदिसिद्धांतिचक्रवर्तिप्रणीते श्रीआचारसारनानि
शास्ने दर्शनाचारवर्णनात्मकस्तृतीयोऽधिकारः । ३।
अथ चतुर्थाधिकारः।
जयत्यनंताप्रतिमप्रबोध
प्रद्योतविद्योतितविश्वतत्त्वः। प्रत्यस्तकर्मोरुतमःप्रतानः
प्रोबुद्धभव्याब्जवनोऽजितेनेः ॥ १ ॥ जानाति ज्ञास्यत्यज्ञासीदनेन 'ज्ञ' इति स्मृतम् । ज्ञानं स्यान्नूतनात्मार्थव्यवसायनिराकृतिः॥२॥ ज्ञेयं हि वस्तु सामान्यविशेषात्मकमत्र यत् । सामान्यमूर्ध्वता तिर्यक चेति भेदद्वयं मतम् ॥३॥ यत्परापरपर्यायव्यापि द्रव्यं तदूर्ध्वता। मृद्यथा स्थासकोशादिविवर्सपरिवर्तिनी ॥४॥
१ कामदेवेभपञ्चाननः २ आजितसूर्यः अत्र रूपकालंकारः ।
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