Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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- - 2 संक्षेप में यह कह सकते हैं कि यह भारतीयता की प्राणभूत भाषा है ।।
संस्कृत में भारतीयों का मनन, चिन्तन और अनुभूति सन्निविष्ट है । यह हमारी प्राणभूत भाषा है । इस देश में सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक और साहित्यिक लक्ष्यों की पूर्ति हेतु संस्कृत का विशेष महत्त्व है । इसे देवभाषा, देववाणी अथवा अमर भारती भी कहते हैं । वाङ्मय प्रणयन का आधार : संस्कृत :
संस्कृत भारतीय संस्कृति, दार्शनिक चिन्तन, संस्कार, ऐतिहासिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक जीवन की मार्मिक अभिव्यक्ति कराती है । वेद, धर्मग्रन्थ, पुराण, उपनिषद्, महाकाव्य, स्मृतिग्रन्थ, दर्शन, अर्थ-शास्त्र, काव्य, नाटक, गद्यकाव्य, गीतिकाव्य, आख्यान साहित्य, व्याकरण, काव्यशास्त्र, गणित, ज्योतिष, नीतिशास्त्र, कामशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद, वास्तुकला, इतिहास, छन्दःशास्त्र एवं कोश ग्रन्थ भी संस्कृत भाषा में ही निबद्ध हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ज्ञान-विज्ञान के सभी अंगों पर विशाल साहित्य संस्कृत भाषा में विद्यमान होना हमारे ऋषियों, कवियों, मनीषियों की संस्कृत प्रियता का परिचायक है । इस भाषा का माधुर्य, लालित्य, संगीतात्मकता और ध्वन्यात्मकता ही उसके प्रति सहज आकर्षण के लिए पर्याप्त है । संस्कृत साहित्य के महत्त्व के सम्बन्ध में डॉ. एम. विंटरनित्स का कथन उपयुक्त ही है-"लिटरेचर" अपने व्यापक अर्थ में जो कुछ भी सूचित करता है, वह सब संस्कृत में विद्यमान है ।" संस्कृत साहित्य का उद्भव :
संस्कृत भाषा में उपनिबद्ध ऋग्वेद सम्पूर्ण विश्व का प्राचीनतम लिखित ग्रन्थ है। वेदों के द्वारा संस्कृत साहित्य का उद्भव स्वीकार किया गया है । वेदों में काव्य के सभी तत्त्व विद्यमान हैं । संस्कृत वाङ्मय का आदि स्रोत "ऋग्वेद" ही है । क्योंकि विश्व वाङ्मय में ऋग्वेद ही सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है । इसके आख्यान सूक्तों में श्रेष्ठ काव्य का स्वरूप प्रतिपादित हुआ है । इसके पश्चात् कृष्ण यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में भी आख्यानों का बृहद् रूप मिलता है । संस्कृत साहित्य के दो रूप
परवर्ती युग में भारतीय साहित्य मनीषियों ने संस्कृत साहित्य का दो रूपों में विभाजन
किया -
(1) दृश्य और (2) श्रव्य । इनमें से श्रव्य काव्य को तीन भागों में विभक्त किया गया - (1) गद्य (2) पद्य और (3) चम्पू ।
साहित्य के प्रमुख भेदों का संक्षिप्त विश्लेषण निम्न प्रकार है : 1. दृश्य काव्य :
दृश्य काव्य के अन्तर्गत रूपक साहित्य नाटक आदि का विवेचन होता है । श्रीभरत मुनि द्वारा विरचित "नाट्यशास्त्र" में नाटक की उत्पत्ति, प्रयोजन, महत्त्व, स्वरूप, भेद आदि पर सर्वप्रथम प्रमाणिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इसे "पंचमवेद" के रूप में मान्यता प्राप्त हुई । वेदों में नाटक के प्रधान तत्त्व-संवाद, संगीत, नृत्य एवं अभिनय विद्यमान थे,