Book Title: Gahuli Sangrahanama Granth
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Exo 1252522525/25 (25252523 गहूंलीसंग्रहनामा ग्रंथ. जाग पहेलो. 42 एमा जुदा जुदा कवियोनी रखेली प्रथम बापेली गहूंली एकशो दश, तथा बीजी नवीन गहूं लीयो चौद, सर्व मली एकशो चोवीश गहूंलीयांनो संग्रह करी तेने प्रथम करतां यथामति वधारे संशोधन करी सम्यग्दृष्टि श्रद्धालु श्राविकार्जुने वांचवा तथा जणवाने माटे श्रावक, जीमसिंह माणकें श्री अमदावाद मध्यें Jain Educationa International "राजनगर मिन्टींग प्रेश प्रसिद्ध करयो के. खानामा बपावी संवत १९६४- पदे १००० टी 渴 For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥अथ॥ ॥श्री माहावीर स्वामीना पांच वधावा प्रारंज॥ ॥ तत्र॥ ॥ वधावो पहेलो॥ ॥हुँतो मोही रे नंदना लाल,मोरली तानें रे॥ए देशी॥ वंदी जगजननी ब्रह्माणी,दाता अविचल वाणी रे॥क व्याणक प्रजुनां गुणखाणी, थुणशुं उलट आणी॥ एह ने सेवोने ॥१॥ प्रज्जु शासननो सुलतान ॥ एहने सेवोने ॥जस इंछ करे बहु मान॥ एहने सेवोने ॥ एतो नवो दधि तरण सुखाण ॥ एहने सेवोने ॥२॥कीधुं त्रीजे नव वरथानक, अरिहा गोत्र निकाच्युं रे॥ते अनुसर वा वरवा केवल, करवा तीरथ जाचुं । एहने ॥३॥ कल्याणक पहेले जगवखन, त्रण झानीमाहाराय रे॥ दशमा स्वर्ग विमानथी प्रजुजी, नोगवी सुरनुं श्राय ॥ एहने ॥४॥ जंबु छीपें नरत क्षेत्रमा, क्षत्रिकुंड सुखकार रें॥श्री सिझारथ त्रिशला उदरें, लेवे प्रजु अवतार ॥ एहने ॥ ५ ॥ चउद सुपन देखे तब त्रिशला, गज वृषनादि उदार रे ॥ हरखी जागी चिंते मनमां, माने धन्य अवतार ॥ एहने ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहु उबरंगें जश् पियुसंगें, सघली वात सुणावे रे ॥ सुनगे लान पुत्रनो होशे, पियुनां वचन वधावे ॥ एह ने ॥ ७॥ स्वपना फल पूड़ी पाठकने, गर्न वहे नृप राणी रे ॥ दीप कहे श्म प्रथम वधावो, गावे सुरई प्राणी ॥ एहने ॥ ॥ इति ॥१॥ ॥वधावो बोजो ॥ ॥श्रावण वरसे रे सुजनी ॥ ए देशी ॥ बीजे वधावे रे सुजनी, चैतर शुदि तेरशनी रजनी॥ जन्म्या जिनवर जग उपकारी, हुं जावं तेहनी बलि हारी ॥ बीजे वधावे रे सुजनी ॥ १॥ उप्पन दिशि कुमरी तिहां श्रावे, पूजी शुचिजलशुं न्हरावे॥ जीवो महीधर लगें जिनराया, अविचल रहेजो त्रशलाना जाया ॥ बी० ॥२॥ गिरुथा प्रजुनुं वदन निहाली, चाली चोंयें चतुरा बाली॥ हरख्यो सुरपति सोहम स्वामी, जाणी जन्म्या जगविश्रामी॥ बी॥३॥ घो था घंटा तव वजडावे, ततदण देव सह तिहां आवे ।। प्रजु ग्रही कंचनगिरि पर गवे, स्नान करी जिननें न्हवरावे ॥ बी०॥४॥ एक कोड वली ऊपर जाणो, शाउ लाख संख्या परमाणो ॥ सहु कलशा शुचि ज सशुं जरिया, ततरण सोहम संशय धरिया ।। बी॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥५॥चिंते लघुवय ले प्रनु वीर, केम सहेशे जल धारा नीर॥वीरें तस मन संशय जाणी, करवा चित्रिी त अतिशय नाणी ॥बी०॥६॥ माहावीर निज अंगु वे चंप्यो, ततदण मेरु थर हर कंप्यो ॥ मार्नु नृत्य करे रसियो, प्रजुपद फरसें थ उल्लसियो ॥ बी० ॥७॥ जाएयुंछे सहु विरतंत, बोले कर जोडी नग वंत ।। गुनहो सेवकनो ए सहेजो, मिथ्या पुःकृत एह नु होजो । बी० ॥ ॥ स्नात्र करी माताने समर्प, उवि पहोता नंदीश्वर छीपे ॥ पूरण लाहो रे लेवा, अहा महोत्सव तिहां करेवा ॥ बी०॥ ए॥ पुत्र व धाई निसुणी राजा, पंच शब्द वजडावे वाजां ॥ निज परिकर संतोषी वारू, वर्षमान नाम ग्वे उदारु ।। बी० ॥ १० अनुक्रमें जोबन वय जव थावे, नृपति रा जपुत्री परणावे ॥ जोगवी प्रजु संसारिक जोग, दीप कहे मन प्रगट्यो जोग॥ बी॥११॥इति ।। ॥वधावो त्रीजो॥ ॥जवि तुमें वंदो रे सूरीश्वर गहराया॥ ए देशी॥ हवे कल्याणक त्रीबोवू, जगगुरु दीका केरुं॥ हर्षित चिने नावें गावे, तेहy नाग्य जलेलं ॥ सहि तुमें से वो रे, कल्याणक उपकारी ॥ संयम मेवो रे, श्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) तमनें हितकारी॥१॥ लोकांतिक सुर अमृतवयणे, प्रजुनें एम सुणावे ॥ बूऊ बृज जगनायक लायक, एम कहीने समजावे ॥ स॥२॥ एक क्रोड ने आठ लाखनु, दिनप्रत्यें दीये दान ॥ शणिपरें संवत्सर लगें सईने, दीन वधारे वान ॥ स ॥३॥ नंदिवर्डन नी अनुमती लेख्ने, वीर थया उजमाल ॥प्रनु दीदा नो अवसर जाणी, आव्यो हरि ततकाल ॥ स ॥४॥ थापी दिशि पूरवनी साहामा, दीक्षा महोत्सव की धो॥ पालखीयें पधरावी प्रजुनें, लाज अनंतो लीधो ॥स० ॥५॥ सुरगण नरगणने समुदायें, दीदायें संचरिया ॥ माता धाव कहे शिखामण, सुण त्रिशला नानडिया ॥ स॥६॥ मोह मल्हनें जेर करीने, धर जो उज्ज्वल ध्यान ॥ केवल कमला वहेली वरजो, दे जो सुकृत दान ॥ स॥७॥ एम शिखामण सुणते सु णते, थुणते बहु नर नारी ॥ पंच मुष्टिनो लोच करी ने, आप थया व्रतधारी॥स०॥॥ धन्य धन्य श्री सिझारथनंदन, धन्य त्रिशलाना जाया ॥ धन्य धन्य नंदीवर्डन बंधव, एम बोले सुरराया ॥ स ॥ए॥ अनुमति लेई निज बंधवनी, विचरे जगदाधार ॥स मितिये समिता गुप्तियें गुप्ता, जीवदया लंमार ॥सण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ (५) ॥१०॥ सिंह समोवड पुर्जर थईनें, कविन कर्म सहु टाले ॥ जगजयवंतो शासननायक, इणिपरें दी' दा पाले ॥ स० ॥ ११॥ दीदाकल्याणक ए त्री: जु, सहि तुमें दिलमा लावो ॥ एम वधावो त्रीजो सुंदर, दीप कहे सहु गावो॥स॥१५॥ इति त्रीजो वधावो संपूर्ण ॥ ॥वधावो चोथो॥ ॥अविनाशीनी सेजडीयें, रंग लागो मोरी सुजनी जी॥ ए देशी॥ ॥ चोथु कल्याणक केवलजें, कहुंचुअवसर पामीजी ॥जग उपकारी जगबंधवने, हुँप्रणमुं शिर नामी ॥सां नल सुजनी जी ॥२॥ वैशाख शुदि दशमीने दिवसें, पाम्या केवल ज्ञान जी ॥ बार जोयण एक रातें चा: स्या, जाणी लान निधान ॥ सांग ॥२॥ अप्पापा न यरीये आव्या, महसेन वन विकसंत जी ॥ गणध रने वली तीरथ थापन, करवाने गुणवंत ॥ सां०॥ ॥३॥ नुवनपति व्यंतर वैमानिक, ज्योतिषी हरि समुदायजी ॥ वीश बत्रीश दश दोय मलीने, ए चोशन कहेवाय ॥ सांग ॥ ४ ॥ त्रिगडानी रचना करि सारी, त्रिदशपति अति जारी जी ॥ मध्य पीठ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊपर हितकारी, बेग जग उपकारी ॥सां॥५॥ गुण 'पांत्रीश सहित प्रजुवाणी, निसुणे ले सहु प्राणी जी॥ लोकालोक प्रकाशक वाणी, वरसे डे गुणखाणी ॥सांग ॥६॥मालकोश शुनराग समाजें, जलधरनी परें गा जे जी॥ श्रातपत्र प्रनु शिरपर राजे, नामंगल बवि गजे ॥ सांग ॥ ॥नीकी रचना त्रणे गढनी, प्रजुनां चारे रूप जी॥ वली केवल कमलानी शोना, निरखे सुर नर नूप ॥ सां॥७॥ अनूति आदें सहु म क्षीने, जगन करे जूदेव जी॥ विद्या वेदतणा अन्या सी, अनिमानी अहमेव ॥ सां०॥ ए॥ ज्ञानी था व्या निसुणी काने, मनमें गर्व धरंत जी ॥ श्राव्यो त्रिगडे वाद करेवा, दीगे जगजयवंत ॥ सांग ॥१०॥ ततदण नामादिक बोलावे, तुभ्य सहुने जाणी जी॥ जीवादिक संदेह निवारी, थाप्यो गणधर नाणी॥ सांग ॥ ११॥ त्रिपदि पामी प्रनु शिर नामी, हादशा गी सुविचारी जी॥ पद ब लाख बत्रीश सहस्सनी, रंचना कीधी सारी ॥सांग ॥१॥ चालो तो जो याने जश्ये, वंदीजें जगवीर जी ॥ वली प्रणमीजें सोहम पटधर, गौतमखामी वजीर ॥ सांग ॥१३॥ निरखीजें मनुजीनी मुडा, नरलव सफलो कीजें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जी॥प्रजुजीनुं बदु मान करीने, सान अनंतो लीजें। सांग ॥ १४ ॥ वारे वारे कडं बु तो पण, तुं तो मन मो नाणे जी ॥ महारा मनमा होंश अ ते, केवल झानी जाणे ॥ सां० ॥ १५॥ सखिवयणे एम थई उ जमाली, चाली सघली बाली जी ॥ निसुणी दश आशातना दाली, अनुवाणी सटकाली ॥ सांग ॥ २६॥ णीपरें त्रीश वरस केवलथी, बहु नर नारी तारी जी ॥ श्म वधावो चोथो सुंदर, दीप कहे सु खकारी॥सांग ॥१७॥ ॥वधावो पांचमो॥ ॥श्रादिजिनेसर विनति हमारी ॥ ए देशी ॥ ॥ कल्याणक पांचमुं जिनजी, गावो हर्ष अपार वाला ॥ जगवल्लन प्रजुना गुण गाई, सफल करो अव तार वाला ॥ शासननायक तीरथ वंदो ॥१॥ए श्रां कणी ॥ जग चातकने दान दीयंता, विचरंता जग जाण वाला॥ मध्य अपापा नगरी पधास्या, प्रणमे पद महिराण वाला ॥शा ॥ ३ ॥ प्रजुयें लानालाज विचारी, अणपूग्यो उपदेश वाला ॥ शोल पहोर सगे अमृतवाणी, वरस्या नवि उपदेश वाला ॥ शा ॥३॥ दीवालीदिने मुक्ति पधास्या, पाम्या पर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानंद वाला ॥ अजर अमरपद ज्ञान विलासी, थ क्षक सुखनो कंद वाला ॥ शा॥४॥ ए प्रजु कर्ता श्रकर्ता जोक्ता, निजगुणे विलसंत वाला ॥ दर्शन ज्ञान चरण ने वीरज, प्रगव्या सादि अनंत वाला। शा॥५॥ आकाश असंख्य प्रदेशी, तेदना गुण डे अनत वाला ॥ ए तो एक प्रदेश साहिब, अनंत गुणे जगवंत वाला ।। शा॥६॥ ए प्रजुध्येयने सेव क ध्याता, एहमां ध्यान मिलाय वाला ॥ त्रिक जो में प्ररणता प्रगटे, सेवक ए सम थाय वाला ॥ शाण ॥७॥ गावो पांचमो मोद वधावो, ध्यावो वीर जि णंद वाला || शुजलेश्यायें जग गुरु ध्याने, टालो नव नय फंद वाला ॥ शा॥७॥ श्म प्रनु वीरतणांक स्याणक, पांच नवोदधि नाव वाला || श्री विजयल क्ष्मी सूरीश्वर राजें, में गाया शुज नाव वाला ॥ शाण ॥ए॥ श्रीजिनगणधर आणारंगी; कपूरचंद विश्राम वाला ॥ तस आग्रहथी हर्षित चित्तें, खंजात नयर सुगम वाला || शा॥ १० ॥ पंडित श्रीगुरु प्रेमपसा यें, गाया तीरथराज वाला ॥ दीपविजय कहे मुजने होजो, तीरथफल माहाराज वाला ॥ शा॥ ११ ॥ शति पांच वधावा संपूर्ण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ श्री गहू लियो लखी बे ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथम गहूंली ॥ ॥ कुंवर पगले पग दइने चंडिया ॥ ए देशी ॥ ॥ रूडी गहूंली रंग रसाली, । जनशासनमांहे नित्य रे दीवाली || रूडी राजगृही अति शोहे, ते देखी त्रि जुवन मन मोहे ॥१॥ तिहां तो वीर याव्या रे चोमासें, राजा श्रेणिक वंदे उल्लासें ॥ तस अजयकुंवर प्रधान, मंत्री बहु बुद्धिनिधान ॥ २ ॥ राजा श्रेणिकनी घर नार, शिरोमणि चेला सार ॥ बार व्रतनी साडीज पहेरी, नव वाडनी घाटडी घरी ॥ ३ ॥ पदेयां जिनगुणभूषण अंगें, गुरुगुण गावे मन रंगें ॥ सम कित कचोलुं रे जरियुं, श्रद्धामांदे कुंकुम घोलियुं ॥ ४ ॥ पंचाचार ते पंच रतन, ठवणी उपरें करो रे जतन ॥ मन निर्मल मोती वधावे, ते तो शिवरमणी सुख पावे ॥ ५ ॥ बुध न्यायसागरनो शिष्य, जे जणशे जि नगुण जगीश ॥ तस घर होय कोडी कल्याण, वली पामे मोक सुजाण ॥६॥ इति ॥ १ ॥ ॥ अथ श्री गहूंली बीजी ॥ ॥ वाली माहरो श्राव्या श्री गोकुल गाम रे ।। एदेशी ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) ॥ चंद्रवदनी मृगलोयणी, एतो सजि शोले शणगार रे । एतो यावी जगगुरु वांदवा, धरी हैडे हर्ष पार रे || || १ || एतो मुक्ताफल मूठी जरी, रचे गहूंली परम उदार रे ॥ जिहां वाणी जोजन गामिनी, घन वरसे खंति धार रे ॥ २ ॥ हांरे जिहां रजत क नक रत्नना, सुररचित ऋण प्रकार रे ।। तस मध्य म णि सिंहासनें, शोजित श्रीजगदाधार रे ॥ ३ ॥ जि हां नरपति खगपति लसपति, सुरपति युत पर्षदा बार रे || लब्धिनिधान गुण आगरु, जिहां गौतमादि गणधार रे ॥ ४ ॥ जिहां जीवादिक नव तत्त्वना, षट् द्रव्यभेद विस्तार रे ॥ ए तो श्रवण सुणि निर्मल करे, निज बोध बीज सुखकार रे ॥ ५ ॥ जिहां त्रण त्रिभुवन उदित, सुर ढालत चामर चार रे ॥ स खि चिदानंदकी बंदना, तस होजो वारंवार रे ॥६॥ || ॥ अथ श्री गहूंली त्रीजी ॥ | घरे यावोजी थांबो मोरीयो । ए देशी ॥ ॥ महावीरजी यावी समोसख्या, राजगृही नयरी उ यान || समवसरण देवें रच्युं, तिहां बेठा श्रीवर्द्धमान ॥ माहा० ॥ १ ॥ वनपालके आपी वधामणी, दरख्यो श्रेणिक भूपाल || गौतम आदि गणधरु, साधवी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रीश हजार ॥माहाणाशा राजा गज शणगारया मलप ता, तूर्य तणो नहिं पार ॥ राजा बहु सामग्रीय संच स्यो, साथे मंत्री अजयकुमार |माहा॥३।। ढोल ददा मा गडगडे, सरणाश्ताह रसात ॥राय गजथकी हेग ऊतस्या, श्रावी वांदे प्रजुजीना पाय | माहा० ॥४॥ राय त्रण प्रदक्षिणा देई करी, श्रावी बेठा सजा मोकार ॥ राणी चेलणा लावे गहूंअली, साथे सखि योनो परिवार ॥माहा ॥५॥राणिये घाट उठ्योरे घूटा तणो, राणी चेखणानो शणगार ॥ राणीये कुंकुम घोल्यां कुंकावटी, गणिये लीधुं श्रीफल श्रीकार ॥ माहा॥६॥ राणी चेलणा पूरे गहूंथली, माहा वीरना पावला हेग ॥ राणी बहु परिवारें परवरी, राणी गावे गीत रसाल ॥माहा॥७॥ राणी सली लली लीये रे खूषणां, राणी पूजे प्रजुजीना पाय ॥ माहावीरनी देशना सांजली, समकित पाम्यो नर राय ॥माहा॥णाप्रनु तुमसरीखा गुरु मुऊ मख्या, म हारी पुर्गति र पलाय ॥ प्रनु सेवक जाणी तार जो, मुने मुक्ति तणां सुख थाय ॥ माहा ॥ ए॥ ॥अथ श्री जीवानिगमसूत्रनी गहूंली चौथी। ॥जवि तुमे वंदोरे सूरीश्वर गहराया ॥ ए देशी ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) ॥सहियर सुणी रे जीवानिगमनी वाणी, मीठी लागे रे मुऊने वीरनी वाणी ॥ ए आंकणी ॥ सूत्र तणी रचना गणधरनी, अर्थ ते वीरें जांख्या॥गौत म पूजे बे कर जोडी, आतमहित करी दाख्या सण ॥ मी०॥१॥ जीव अजीव तणी जे रचना, पूड़ी गौतमस्वामी ॥ नरक निगोद तणी जे वातो, जां खे अंतरजामी ॥ स० ॥ मी० ॥२॥ साते नरक तणां फुःख लांख्यां, बातमहित करी शीख्या ॥जे जे प्रश्न पुढे गोयम, ते ते प्रभुजीये नांख्या ॥ स०॥ ॥मी० ॥३॥पांच अनुत्तर तणी जे रचना, विवि ध प्रकारें नांखी ॥ जविक जीवने सुणवा कारण, श्री जिन ागम साखी ॥ स ॥ मी०॥४॥ मीठी वापीयें गहूली गावे, वीर जिणंद वधावे ॥ स्वस्तिक पूरे नाव धरीने, अदतें करीने वधावे ॥ स ॥मी० ॥५॥नौतनपुरमा रंगे गाई, गहूली चढते उमंगें।। कहे मुक्ति जिनराजनी वाणी, सुणजो अति उड रंगे ॥ सः॥ मी०॥६॥इति ॥४॥ ॥अथ श्रीनगवतीसूत्रनी गली पांचमी ॥ ॥ नवि तुमे वंदो रे, सूरीश्वर गहराया॥ए देशी॥ ॥सहिपर सुणिये रे, जगवतीसूत्रनी वाणी ॥ पात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ... क हणीय रे, आतमने हित श्राणी ॥ए आंकणी॥ समकितवंत तणी ए करणी, जवसागर उद्धरणी॥न रकनिगोद तणी गति हरणी, मोदतणी नीसरणी॥ स०॥१॥ पंचम अंग विवाहपन्नत्ती, बीजुं जगवती नाम ॥ शतक एकतालीश बहु उद्देशें, अनंतानंत गु णधाम ॥ स ॥२॥वीर जगत गुरु गौतम गणधर, जोडी मोहनगारी ॥ प्रश्न उत्रीश हजार प्रकाश्या, वाणीनी बलिहारी ॥स० ॥३॥ गंगमुनि सिंहा मुनिवरना, प्रश्न सरस डे जेहमां ॥ नाव नेद षम् अव्य प्रकाश्यां, अमृतरस बे एहमां ॥ स ॥४॥ संग्राम सोनी प्रमुख जे नावी, समकितवंत प्रसिझो। प्रश्ने कंचन मोर ठवीने, नरजव लाहो लीधो ॥ स० ॥५॥ स्वस्तिक मुक्ताफलशु वधावो, ज्ञान नक्ति गुरु सेवा ॥ जगवती अंग सुणो बहु नावे, चाखो अमृत मेवा ॥ स० ॥६॥ वीरक्षेत्रना सकल संघने, विघ्न हरे वरदाई॥ दीपविजय कहे जगवती सुणतां, मंगल कोटि वधाई ॥ स० ॥ ७॥ इति ॥५॥ ॥अथ श्री गहूली बही॥.. ॥चालोने बार चालोने जुर्ज, सोहम गणधर रच ना रे ॥ चालोने बाई चालोने ॥ए आंकणी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) राजगृही नगरी सोहामणी, तस वनमा सोहम श्राव्या रे॥ राजा कोणिक वंदन श्रावे, लाव धरी ने वधावे रे ॥ चा०॥१॥ चतुरंगिणी सेना लेई यावे, आनंद मंगल पावे रे ॥ बहु युक्तं करी सोहम वांदे, राजा मन आणंदे रे ॥ चा॥२॥ केश मुनि तपसी के व्रतधारी, केश संजमना रसिया रे ॥ केश मुनि जिन थाणाने धारे, वारे विषय कषाया रे ॥चा ॥३॥ प्रत्येके सहु मुनिने वांदे, नव जल पार उतरवा रे॥ रजत रकेबी हाथ धरीने, सो हमस्वामी वधावे रे ॥ चा॥४॥ चिहुं गति वार क साथीयो पूरे, मोतीथालें वधावे रे ॥ पद्मावती राणी मनरंगें, शोल सज्या शणगार रे॥चा ॥५॥ बहु सखीने परिवारें राणी, मनमा उलट आणी रे॥ कोणिक राजा देशना निसुणे, वाणी अमृत सरखी रे॥चा॥६॥ नाव धरीने राजा राणी, अनिनव नि सुणी वाणी रे ॥ जलधर वाणी निसुणी राजा, वा ज्यां सुजशनां वाजां रे ॥ चा ॥ ७॥ जुजपुर मंग ण चिंताचूरण, श्रीचिंतामणि स्वामी रे ॥ चिलु गति चूरण गहूंली गाई, संघने सदा वधाई रे ॥ चा० ॥ ॥ जे गहूंली गाशे मनरंगे, तस घर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) नित्य उबरंग रे॥ श्रीजिनाणा पाखे श्रहो निश, मुक्तिपद पामे विशेष रे ॥चा ॥ ॥ इति ॥६॥ ॥अथ श्री गहूंली सातमी ॥ ॥जात्रीडा जात्रा नवाणुं करीये रे । ए देशी॥ ॥सखी सरस्वती जगवती माता रे, कां प्रणमीजें सुख शाता रे, कां वचन सुधारस दाता गुणवंता सांजलो वीर वाणी रे, कांश मोद तणी निशाणी। गु०॥१॥ए आंकणी ॥ कांश चोवीशमा जिन रा या रे, साथे चौद सहस मुनिराया रे, जेहना सेवे सुर नर पाया ॥ गु० ॥ कां० ॥२ ॥ सखी चतुरंग फोजा साथ रे, सखि आव्या श्रेणिक नर नाथ रे, प्रनु वंदीने हुआ सनाथ ॥ गु०॥कां ॥३॥ बहु सखि संयुत राणी रे, आवी चेलणा गुणखाणी रे, एतो नामंगलमां उजाणी ॥ गु० ॥ कां ॥४॥ करे सा थीयोमोहनवेलरे, कांश प्रजुने वधावे रंगरेलरे, कांश धोवा कर्मना मेल ॥ गु० ॥ कां० ॥५॥ बारे पर्षदा नि सुणे वाणी रे, कांश अमृतरस सम जाणी रे, कांश वरवा मुक्ति पटराणी ॥ गु०॥ कां ॥ ६॥ इति ॥७॥ ॥अथ श्री गहूंली आठमी॥ ॥आ जो रे बार आ जो रे, सोनागी गुरुनां पगलां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) रे ॥ पगले पगले रत्न जडावू, डगले डगले हीरा रे ॥ ए देशी ॥ चालो रे बाश् चालो रे जून, गौतम स्वामी नी रचना.रे॥ लब्धिवंत गुणवंता गिरुवा, करता संज म जतना रे ॥चा॥१॥ वरसेंदीदा सीधी, ते पण मुनि ले साथे रे ॥ जिनवाणाथी संजम पाले, कर वा शव वधू हार्थे रे ॥ चा॥२॥ केश मुनि गण धर पद सेवे डे, केश मुनि ध्यान धरे ले रे ॥ केश मु नि आगम दान दिये डे, केश मुनि विनय करे रे ॥चा ॥३॥ केश मुनि च अनुजोग जणे , केश मुनि जोग वहे रे ॥ केश मुनि पूर्व सूत्र जणे , केश मुनि अर्थ आहे रे ॥चा॥४॥ केश मुनि मास खमण तप धारी, केश मुनि तपिया कहीये रे ॥ केश मुनि विगय तणा परिहारी, केश मुनि श्रातम ध्याय ॥चा ॥५॥ केश आचारांग सूयगडांग गणांग, के समवायांग गोखे रे ॥ जगवती सूत्र प्रमुख बहु भागम, जणी आतमरस पोखे रे ॥चा ॥ ६ ॥ सहु सहिअर गुणशीला बनमां, बावी गणधर वांदे रे ॥ अमृतथी पण श्रधिकी वाणी, निसुणी मन आणंदे रे ॥ चा ॥ ७ ॥ पट्टोधर आगल गहूंखी पूरी, मुक्ताफलशु वधाया रे ॥ धन्य धन्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता पृथ्वी जेणिये, गौतम गणधर जाया रे ॥ चाण ॥॥प्रनु वाणी निज चित्त समरती, परषद निज घर आवे रे ॥॥ दीपविजय कहे गौतम नामें, माहा मंगल पद पावे रे ॥ चा॥ ॥ इति ॥॥ ॥अथ गहूंखी नवमी। ___॥ जयो तप रोहणी ए ॥ ए देशी॥ ॥ चंपा नगरी उद्यानमा ए, आव्या सोहम गणधार ॥ नमो गुरु नावशु ए ॥ हर्षपूरित नगरीजना ए, वांदवा जाय उजमाल ॥ नमो ॥१॥ कोणिक रा य तब पूछतो ए, आज किश्यो उत्सव थाय ।। ॥ नमो० ॥उत्सव के कौमुदी ए, एवडां लोक किहां जाय ॥ नमो॥२॥ के कोश जैनमुनि था विया ए, के तिहां जावे सवि जन्न ॥ न॥ तेह क हे प्रनु सांजसो ए, हर्ष करीने मन्न ॥ न० ॥३॥ तव कोणिकें वात सांजली ए, उबसी साते धात ।। ॥ न॥ गज रथ पायक सज कस्या ए, करी वली. निर्मल गात्र ॥ न॥ ४ ॥ मस्तक मुकुट रत्ने ज ड्या ए, इश्ए हार सोहंत ॥न ॥ एक सूरज ए क चंजमा ए, ए दोय कुंमल जलकंत ॥ न० ॥५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुरंगी सेनायें परिवस्यो ए, श्रेणिक रायनो पुत्र । न॥ तस राणी पद्मावती ए, नवशत अंग धस्या शणगार ॥ न० ॥६॥ स्वामी सुधर्मा जिहां अडे ए, तिहां श्राव्या कोणिक राय ॥ न ॥ पंच अनिगम साचवी ए, नक्तियें हर्ष नराय ॥ न० ॥ ७॥ साथी यो पूरे प्रेमशं ए, चौगति पुःखवारणहार ॥ न ॥ पद्मावती राणी वधावतां ए, उबाले अक्षत सार । न० ॥ ॥ करे परम गुरुवंदना ए, नवजल तारण नाव ॥ न ॥ लहे मुक्तिपद शाश्वतुं ए, जे वांदे गुरु जले जाव ।। न ॥ ए| ति॥ ॥अथ गहूंली दशमी॥ ॥समुविजय सुत चांदलो॥शामलिया जी ए देशी॥ ॥ वानता नयरी निर्मली। जिनरायाजी ॥ जिहां समोसस्या आदिनाथ ।। सुर नमे पाया जी ॥ सम वसरण देवे रच्यु ॥ जि ॥ तिहां बेग त्रिजुवननाथ ॥सु ॥१॥ कंचनकांति तनु दीपती ॥ जि ॥ गजसरखी जस चाल ॥सु॥ दीर्घनुजा तनु दीप ती॥ जि० ॥ तस रूडां नयन विशाल ॥ सु ॥२॥ नरना अमरना इंदला ॥ जि॥ तेणें शुणियां चर णसरोज ॥ सु ॥ मुखशोजायें लाजियो॥ जि०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) शशी गयण वसे हररोज ॥ सु० ॥ ३ ॥ तप तरवारें वारिया || जि० ॥ जाव रिपु जे आठ ॥ सु० ॥ मु निने शिवपद आतां ॥ जि० ॥ जेणें वास्यो परनो गव ॥ सु० ॥ ४ ॥ क्षमाशूर जगवंत जी ॥ जि० ॥ चोत्रीश अतिशय धार ॥ सु० ॥ पांत्रीश वाणी गुणें करी || जि० ॥ देशना दे जलधार ॥ सु० ॥ ५ ॥ वन पालकना मुखयकी ॥ जि० ॥ तातजी श्राव्या उद्यान || सु० ॥ सांजली जरत नरेसरू ॥ जि० ॥ श्रापे बह लां दान || सु० ॥ ६ ॥ चतुरंगी सेना लेइने || जि० ॥ वांद्या श्री जगवान ॥ सु०॥ प्रभुजीनी वाणी सुणे || जि० ॥ चक्री जरत सुजाण ॥ सु० ॥ ७ ॥ वखाण अवसर साथियो | जि० ॥ लावे जरतनी नार ॥ सु० || श्रद्धास्वस्तिक पूरीया ॥ जि० ॥ गाये गोरी गीत उ दार ॥ सु० ॥ ८ ॥ गीतारथ गुरु आगलें ॥ जि० ॥ जे करे श्रुत बहुमान ॥ ० ॥ दर्शनसागर इम कहें ॥ जि० ॥ तस थाये परम कल्याण ॥ सु०॥ ए॥ इति ॥ १० ॥ ॥ अथ गहूंली अग्यारी ॥ ॥ आज हजारी ढोलो प्रादुणो ॥ ए देशी ॥ ॥ रत्नत्रयी आराधवा, आणी अधिक उमेद ॥ स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हियर मोरी हे॥ श्रागम आगमधर सुणी, गुण गु । णी नाव अनेद ॥१॥ सहीयर मोरी हे॥ गहली करो गुरु बागले ॥ ए टेक ॥ पर पारणामने टालवा, सेवा शिवपुर शर्म ॥ स ॥ ग॥२॥ अव्य नाव संजोगयी, जे रहे नित्य अलेप ॥ स० ॥ स्याहाद नी दीये देशना, जाएंग मय निक्षेप ॥ रु.॥ग० ॥३॥ श्रात्मजाव स्वरूपना, नासन नानु समान ॥ स०॥ स्वपर विवेचन श्रुतथकी, तेणे नक्ति बहु मान ॥ स०॥ग॥४॥ रुचिता सुश्राविका, करवा श्रुतनी बहु नक्ति ॥ स० ॥ विनयवती बहुमानथी, फोरवती आत्मशक्ति ॥ स॥ ग॥२॥ यात्म पाजो उपरें, समकित साथियो पूर ॥ स०॥ खली लली करती खूबणां, मिथ्यामति करी दूर ॥स०॥ ग०॥६॥ जे सुणे श्रागम श्ण विधे, जन्म सफल होय तास ॥ स० ॥ माहरे नवो नव नित्य होजो, झानमहोदय वास ॥स०॥ ग॥७॥इति ॥११॥ ॥अथ गहुँली बारमी॥ ॥जीर मारे देशना द्यो गुरुराज, उलट आणि अति घ णो॥जीरेजी॥जीरे मारे थाबियो हर्ष उल्लास, पूदे ई संसारनाजी॥१॥जीरे ॥ विलंब न कीजें गुरुरा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) ज, दास उपर दया करो | जी० ॥ जीरे० ॥ महेर करो में हेरबान, अमृत वचनें सींचिये ॥ जी ॥२॥ जीरे ॥ सु वासूत्र सिद्धांत, हेजें हियमुं गढ़गढ़े ॥ जी ॥ जीरे|| जिम मोरा मन मेह, सीताने मनें रामजी ॥ जी ॥३॥ ॥ जीरे० ॥ कमला मन गोवींद, पारवती इश्वर जपे ।। जी० ॥ जीरे० ॥ तिम मुऊ हृदय मकार जिनवाणी रूचे घणी ॥ जी० ॥ ४ ॥ जीरे० ॥ नयगम जंग निक्षेप, सुतां समकित संपजे ॥ जी० ॥ जीरे० ॥ उत्पाद व्यय ध्रुव रूप, स्याद्वाद रचना घणी ॥ जी० ॥ ५ ॥ . जीरे० ॥ नवतत्त्व ने षट् द्रव्य, चार निक्षेप सप्तनयें करी || जी० ॥ जीरे० ॥ निश्चय ने व्यवहार, इणि परें मुऊ उलखावियें || जी० ॥ ६ ॥ जीरे ॥ कृपा क रो गुरुराज, ते सुगवा इष्ठा घणी ॥ जी० ॥ जीरे० ॥ निज परसत्ता रूप, जासे ते सुणतां थकां ||जीना ॥ जीरे०॥ जिन उत्तम माहाराज, तस पदपद्म सेवे सदा ॥ जी० ॥ जीरे० ॥ प्रगटे आत्मस्वरूप, अजय अर एणी परें जणे ॥ जीरेजी ॥ ॥ इति ॥ १२ ॥ ॥ अथ गहूंली तेरमी ॥ ॥ आबे लालनी देशी ॥ नेयरी राजगृही सार, लोक बसेरे अपार || ठे जाल ॥ जंबुस्वामी समोसल्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) रे ॥ १ ॥ पंचसया परिवार, तारे नर ने नार ॥ ॥ आ० ॥ देशना पुष्कर जलधरे रे ॥२॥ज्ञप्रिय जीपे पंच, वारे क्रोधनो संच ॥ श्रा० ॥ गुरुमुख देखी नयणां रे रे ॥३॥ जिनमतकज दिनकार, सोहम स्वामी पट्टधार ॥ श्रा० ॥ चरण करण नंमार रे ॥४॥ सोनागी शिरदार, सुविहित मुनि आधार ॥ आ०॥ पृथिवी पी- विचरतारे ॥ ५॥ प्रतिबंध विहार, समरस गुण सुखकार ॥ आ॥ वै राग्य जनताने रीकवे रे ॥६॥ विचरे देश विदेश, दे बहुला उपदेश ॥ श्रा०॥ बूऊवे जाण अजाणने रे ॥ ७॥ कोणिक नृप घरनार, स्वस्तिक पूरे उदार ॥ श्रा० ॥ छाननी जक्ति करे घणी रे॥७॥श्रुत नक्ति करे जेह, सुख विलसे नर तेह ॥ श्रा०॥ दर्शनसागर श्म वदे रे ॥ ए॥इति ॥१३॥ ॥अथ गहली चौदमी॥ समविजय सत चांदलो॥शाम लिया जाए देशी॥ ॥राजगृही नगरी सोहामणी ॥ गुरु आवे ॥श्री सोहम गणधार ॥ सुगुरु वधावे रे ॥ पंचसया मुनि साथ ले ॥ गु०॥ आतम सुखना करनार ॥ सु० ॥ ॥१॥ गुणशील नामे उद्यानमां ॥ गु० ॥ उतस्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) ए वनमांय ॥ सु० ॥ वनपालकें जश् वीनव्या ॥ गुरु ॥ ते सांजली कोणिक राय ॥ सु० ॥२॥ चतुरंगी सेना सऊ करी ॥ गुण ॥ गज रथ पायक नहि पार ॥ सु०॥ घणे आबरें राजवी ॥गुण ॥ वांदे थर उज माल ॥ सु॥३॥ संसार समुज्ने तारवा ॥ गु०॥ चार वार जवजंजाल ॥ सु० ॥ शोल शणगार सजी करी ॥ गु०॥ वांदे पद्मावती नार ॥ सु० ॥ ४॥ गहंली करे मन रंगशुं ॥ गुण ॥ अक्षत पूरे सार ॥ सु० ॥ खली खलीले उवारणां ॥ गु० ॥ प्रद क्षिणा दे मन सार ॥ सु० ॥५॥ चिहं गति वारक साथियो॥ गु० ॥ करता मनने कोड ॥ सु०॥ कहे मुक्ति कर जोडिन । गु० ॥ संघ मनना पुरजो कोड ॥ सु०॥६॥ इति ॥ १४ ॥ ॥ अथ गहूंली पन्नरमी ।। ॥ गर्व नकीजें रे, ए सजरु शीखडली ॥ए देशी ॥ ॥ सरसती चरण नम। करी केशु, गायशु आगम वाणी ॥ अर्थ ते अरिहंतजीयें प्रकाश्यो, सूत्र ते ग णधर वाणी ॥ नवि तुमें सुणजो रे ॥ सोहम गणधर वाणी ॥ मीठी लागे रे, मुजने वीरनी वाणी ॥१॥ ए आंकणी॥ चतुरा चालो मुरुनी पासे, गहूंली करीयें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) मन रंगें ॥ नवशत अंग घरी शणगार, प्रजुगुण गार्ड उ मंगे ||२|| हाथे रजत रकेबी धरीने, मांहे बीपना पुत्रने लावो ॥ स्वस्तिक पूरो गुरुने वधावो, गुरु गुण मधुरा गावो ॥ ज० ॥ ३ ॥ राजगृद्दी नयरें गुणशीलचै त्यें, तिहां प्रभु वीरजी आव्या ॥ जंजासार ते सांजली हरख्यो, चतुरंग सेनथी श्राव्या || ज॥ ४ ॥ चौद द आर मुनिराज संघातें, साध्वी सहस त्रीश ॥ इंद्रभू ति यादें देइ गणधर, प्रजुपरिवार जगी ॥ ज० ॥५॥ प्रभु यदि सरवेनें वांदी, मगधाधीश भूपाल ॥ चे सपा राणी करे ते गहूंली, प्रजुसन्मुख ततकाल || ॥ ज० ॥ ६ ॥ कुंकुम घोली साथीयो पूरे, अष्ट कर्म ने चूरे ॥ चिहुं गति चूरण दुःख निवारण, मनोवं बित सवि पूरे ॥ ज० ॥ 9 ॥ श्री अचलगष्ठपति पुज्य पट्टधर, पुण्यसागर सूरिराया ॥ सूरि बत्रीश गुणें करि शोड़े, जवि प्रणमो तस पाया ॥ ज० ॥ ८ ॥ जखौ बंदरे सुंदर श्रावक, गुरुगुणना बे रागी ॥ श्रीवीर प्रजुनो पसाय सहीनें, गातां शुजमति जा गी ॥ ज० ॥ ए ॥ आषाढ वदि एकमनें दिवसें, गहूंडी गाई मनरंगें ॥ चतुरा मलि सुकंठें गाजो, जावे घरी उमंगें ॥ ज० ॥ १० ॥ जे सोहागण मली, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गहूंखी गाशे, एम कहे केवल नाणी ॥ सर्वार्थ सिझत णां सुख विलशे, खेशे मुक्ति पट्टराणी॥ज०॥११॥१५॥ ॥अथ गहूंसी शोलमी ॥ ॥जीरे जिनवर वचन सोहंकरु ॥ जीरे थबिचल शासन वीर रे ।। गुणवंता गिरुया वाणी मीजी रे माहावीरतणी ॥ जीरे पर्षदा बार मली तिहां, जीरे अरथ प्रकाशो गुणगंजीर रे ॥ गुणवंता गौत म, प्रश्न पूछे रे माहावीर धागलें ॥१॥ जीरे नि गोद स्वरूप मुजने कहो, जीरे केम ए जीवविचार रे ॥ गुण ॥ वा ॥ जीरे मधुर ध्यनियें जगगुरु कहे, जीरे करवा जविक उपकार रे ॥गु० ॥ वा ॥२॥ जीरे राजचउद लोक जाणिये, जीरे असंख्याता जोजन कोडाकोडी रे ।। गु०॥वा ॥ जीरे जोजन ए क एमां लीजीयें, जीरे लीजिये एक एकनो अंश रे ॥ गुण ॥ वा ॥३॥ जीरे एक निगोदें जीव थनंत डे, जीरे पुजल परमाणुथा अनंत रे ॥ गुरु ॥ वा ॥ जीरे एकप्रदेशे जाणीयें, जीरे प्रदेशे वर्गणा अनंत रे॥गु० ॥वा० ॥४॥ जीरे एक असंख्य गोलासं ख्य , जीरे निगोद असंख्य गोला शेष रे ॥ गु० ॥ वा ॥ जीरे परमाणुथा प्रत्ये गुण अनंत बे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) जीरे वरण गंध रस फरस रे ॥ गुण ॥ वा० ॥ ५॥ जीरे लोक सकलमय श्म नस्यो, जीरे कहे गौतम धन्य तुम ज्ञान रे ॥ गुण ॥ वा ॥ जीरे एवा गुरुने बागल गहूंअली, जीरे फतेशिखर अमृतशिव निश्रे णी रे ॥ गु॥वा ॥६॥ इति ॥ १६ ।। ॥अथ गहूंली सत्तरमी॥ · राग धोल ॥बेनी संचरतां रे संसारमारे, बेनी सह गुरु धर्मसंजोग ॥ वधावो गढूंअली रे॥बेनी सदहणा जिनशासननी रे, बेनी पूरण पुण्य संजोग ॥ वण॥२॥ बेनी सम संतोष साडी बनी रे, बेनी नवब्रह्म नवरंग घाट ॥वा बेनी तप जप चोखा ऊजला रे,बेनी सत्यत्र त विनय सुपाट ॥ वणार ॥ बेनी समकित सोवनथा समां रे, बेनी कनक कचोले चंग ॥ व०॥ बेनी संवर करो शुज साथीयोरे, बेनी आणातिलक अनंग ॥ ॥व॥३॥ बेनी समिति गुप्ति श्रीफल धरो रे, बे नी अनुजव कुंकुम घोल ॥व० ॥ बेनी-नवतत्व हर ये धरो रे, बेनी चरचो चंदन रंग रोल ॥ व॥४॥ बेनीजवजल जेहमां नेदीयें रे, बेनी विवेक वधा वो शाल ॥२०॥ बेनी वीर कहे जिन शासने रे, बेनी रहेतां मंगलमाल ॥व०॥५॥ इति ॥१७॥ ... Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) ॥ अथ गहूंली अंढारमी ॥ ॥ वाहालोजी वाये जे वांसली रे ॥ ए देशी ॥ ॥सोहमस्वामी समोसख्या रे, राजगृही उद्यान ॥ब हु मुनि परिकर संजुतारे, चउनाणी जगवान ॥सोहण ॥ए आंकणी ॥१॥ गुरुमुख कमल विलोकवा रे, श्रा वे श्रेणिक माहाराय ॥ नाव जक्ति करी वांदिया रे, गणधर केरा पाय । सो० ॥॥श्रीगुरुजी दीये देश ना रे ॥ ते सांजले श्रोताबंद ॥ अमीय समाणी वा णी सुणी रे, मनमां पामे आनंद ॥ सो० ॥३॥ वखा ण अवसर जाणीने रे, छाननी नक्ति निमित्त ॥ स तीय शिरोमणि चेलणारे, साथीयो पूरे पवित्त ॥ सोग ॥४॥ ज्ञान परम गुणजीवने रे, जे तस जक्ति करेय ॥ तेहने ज्ञाननी संपदा रे, दर्शन एम कहेय । सो ॥५॥इति ॥१०॥ ॥अथ गहूंसी उंगणीशमी ॥ ॥राजगृही समोसख्या । गुरुराज रे॥ सोहम वा मी बाज । समारो काज रे ॥ सहीयर मोरी वांद वा ॥ गु०॥ श्रावो लेश्वर लाज ॥ स० ॥१॥ गुरु बागल रचो गहूंअली ॥ गुण॥ उविधजाव बहु जावि ॥ स ॥ अध्यातम वर थालमा ॥ गुणे॥ गु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) रुगुण मोती जावि ॥ स०॥५॥ गुणि मन सोवन फूलडां ॥ गुण ॥ शुज रति कुंकुम घोल ॥ स॥श्रका रकेबी कर रही ।।गु०॥ दर्शन नूमि अमोल ॥ स० ॥३॥ श्रनुजव श्रीफल रूपहुं ॥ गु० ॥ उत्तर गुण बहु शाल ॥स० ॥ पंचाचार करो खूबणां ॥ गुण ॥ तिलक विवेक विशाल ।स॥४॥इणिपरें अव्य ने लावधी ॥ गुण ॥ मंगल आठ कराय ॥स ॥ रा णीकोणिक रायनी ॥7॥ गहंसी गुरुगण गाय ॥स० ॥५॥ कंचनकमल विराजता ॥गुण ॥ दिये देशना सार । स०॥ चरण करण रयणे जस्या ॥गु०॥ प्रजु पंचम गणधार ॥ स०॥६॥ पंच समिति समि ता थका ॥ गु०॥ नव कल्पी करय विहार ॥ स॥ चविह संघे परिवस्या ॥गुण ॥ जीत्या विषय वि कार ।। स० ॥७॥ नाव धरी नमुं तेहना ।। गुण ॥ च रणयुगल अरविंद ॥स ॥ वीर वाणी संजलावतां । गु० ॥ मटुकनाव श्रमंद ॥स० ॥७॥ ॥अथ गहली वीशमी॥ ॥थने हारे वालोजी वाये जे वांसली रे॥ए देशी। ॥अने हारे वीरजी दीये ठे देशना रे ॥ चालो चा लो सहीयरनो साथ ।। सुरवर कोडा कोडि तिहां म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) ख्या रे, प्रभु वरसे बे त्रिभुवन नाथ ॥ वीर० ॥ १ ॥ हरि समवसरणनी शोजा शी कहुं रे, जिहां निवर चौद हजार ॥ महासती चंदनबाला मावडी. रे, सहु साधवी बत्रीश हजार || वीर० ॥ २ ॥ श्रने दांरे गणधर पूज्य अग्यार बेरे, ते मां गौतम स्वामी वजीर ॥ त्रणरों चउद पूर्वी दीपता रे, श्रुत केवली जगवड वीर ॥ वीर० ॥ ३ ॥ ने हांरे सातशे केवली जगत प्रजाकरु रे, तेतो पाम्या बे जवतीर ॥ पांचशें विपुलमति परिवार बे रे, सहु परिकर बे प्रभुवीर ॥ वीर० ॥ ४ ॥ ने हारे आणंद श्रावक समकित उ श्चरे रे, वली द्वादश व्रत जयकार ।। एक लाख जंग पशाव हजारमां रे, मुख्य श्रावक दृढ व्रत धार ॥ वीर० ॥ ५ ॥ ने हांरे सखी जयणे उजमाली बालि का रे, आवी वंदे प्रभुजीना पाय || मादामंगल प्रभु जीनी खागलें रे, पूरे च मंगल सुखदाय || वीरप ॥ ६ ॥ ने हारे सातमुं श्रंग उपासक सुत्रमां रे, प्रभु दीप विजय कविराज ॥ श्राणंद सरिखा दश श्रा वक का रे, लेहशे एक जवें शिवपुर राज || वीर० ॥ ॥ ७ ॥ इति ॥ २० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३० ) ॥ अथ गहूंली एकवीशमी ॥ ॥ गाम नगर पुर विचरंता, गुरु यावे बे ॥ मुनि पंच सया परिवार, साथें लावे बे ॥ सहस ढार सीलांग ना, जे धोरी बे ॥ ब्रह्मचर्यना जेद अढार, आप विचारी ||१||जीवद बत्री शनी, दया जाणी बे ॥ निरुपाधि क देशना सार, नाथ वखाणी बे ।। दीक्षा दोष निवार वा, नर तारे बे॥ पाप स्थानना दोष अढार, दूर निवारे बे ॥२॥ रत्नत्रय राधता, गुरु राजे बे ॥ गुरुराजगृही उद्यान, अधिक दिवाजे बे ॥ कनककमल बीराजता, गुरु गाजे बे ॥ प्रभुवीर पट्टोधर धीर, जावळ जांजे बे ॥ ॥ ३ ॥ जंबु कुमर युक्तें करी, गुरु जेव्या बे ॥ कहे मुख श्री महारा याज, पातक मेव्यां वे ॥ समुद्र सिरी जंबू तणी, पट्टराणी बे ॥ वली बीजी साते नार, गुणनी खाणी बे ॥ ४ ॥ पढेरी करुणा कांचली, मन मोती बे ॥ उंढी समकित साडी मांडे, गुरुमुख जोती बे ॥ थिरता जावना थालमां, व्रत मोती बे ॥ जरी कुंकुम राग कचोल, पुण्यपनोती बे ॥५॥ श्रद्धा जावनो साथि यो, त्यां पूरे बे ॥ ववि पंचाचार रतन, चिहुं गति चूरे बे ॥ ते देखी मोहरायनी, मात फुरे बे ॥ ए लेशे शि वसुखराज, चढते नूरे बे ॥ ६ ॥ गहूंली करो गुरुआ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) गले, मन माचे ॥ हवे जंबु सोहम पास, संजम जा चे ॥पांचशे सत्तावीशशु, व्रत सीधुं बे॥ कदे मोहन माहाराज, कारज सीधुं जे ॥ ७॥ इति ॥४॥ __॥अथ गहूंली बावीशमी॥ ॥बेनी नरजव पुण्ये पामी रुघडारे, शुचि रुचि करो शणगार रे ॥ वधावो गुरुने मोतीये रे ॥ बेनी दर्शन करो श्रादि देवनुं रे, बेनी वली वली वांदो रे अणगार रे ॥ व ॥१॥बेनी मयगल परे मुनि मा लाता रे, बेनी मधुकर परें लीये आहार रे ॥व०॥ बेन आतमराम रमे रंगशुं रे, बेनी सूत्र अर्थ नय नंमार रे॥ व ॥२॥ बेनी श्म सोहागण पूरे साथि यो रे, बेनी गा मंगल गीत रे ॥व०॥ बेनी विधि शुं वधावी करो बुबणां रे, बेनी ए जिनशासन रीत रे॥१०॥३॥ बेनी पच्चरकाण करो पाय पूजीने रे, बेनी वीरवाणी पीयो रसाल रे ॥ व ॥ बेनी शुद्ध होये आतमा श्रापणो रे, बेनी शिवसुख लहीयें रसा ल रे॥२०॥४॥इति ॥॥ ॥अथ गढूंली त्रेवीशमी॥ ॥ विमल गिरि रंगरसे सेवो ॥ ए देशी॥ . ... ॥ मुनिवर मारगमां वसिया, वसी उन्मारगथी ख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) सिया, शिववहू खेलणके रसिया ॥ मु० ॥१॥ वीत्यु गुणगणुं बाल, जगवई अंगें सुविशाल, रहे प्रमत्ते घणो काल । मु०॥२॥अंतर मुहरत स्थिति थावे, निझामां गुण पलटावे, पण अप्रमत्त तणे जावे, ।मु०॥३॥ अव्यगाव संजम धरिया, जंगम तीर थ संचरिया, पाखरिया सिंह केसरिया ।मु०॥४॥ पुविहासित सहे न सहे, ऊष्ण परिसह वीश स हे, मुनिवर याचारांग कहे ॥ मु॥५॥ चक्रवाल दशविध पाले चरणकरण गुण अजुधाले, शून्यदहन अवधि टाले ।मु०॥६॥ एहवा मुनिवरनी आगें, चतुरा अक्षय फल मागे, श्राविका मुनी गुणरागें। मु०॥७॥ गहूंली करी निजमल धोती, वधावती उसके मोती, लली खली गुरु सन्मुख जोति ॥ मु० ॥ ॥थागम रयण गुणे रमती, गुरुगुण गाती मन गमती, श्रीशुनवीर चरण नमती ।मु० ॥ ए ॥ ॥ अथ श्री पार्श्वनाथनो विवाहलो चोवीशमो॥ ॥पासकुमर महिमा निलो, गुणमणि रयण नंमार ।। अवसर विवाह जिन तणो, गायशंथति सुखकार ॥ पा ॥ १ ॥ शुज मंझमें तोरण सोहिये रे, जोतां सुर नरना मत मोहिये रे ॥ महाजन मसीयो डे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) अति मनोहार, राय राणानो नहिं पार || पा॥ २॥ चंपक वरणी सुंदरी, वलि नीलवरण सुखदाय॥ दीसे वे अति रे दयामणी, पास कुमर देखी सुख था य॥पा ॥ ३॥ पासकुमर चड्या वरघोडे, शिर खूप जया ने बहु मोडे ॥ मानुं रवि शशी श्राव्या दो ड, काने कुंडल मस्तक जोड ॥पा०॥४॥ सजन संतोष्या बहुपरें, तिहां अश्वसेन माहाराय ॥ शुज शणगार सजि सुंदरी, पासकुमार सुखदाय ॥ पाण ॥५॥ देव उतारे आरती रे, वली नर नारी गुण गाय ॥ सुवर्ण मुकुटें हीरा सोहीयें रे, तोरण आव्या श्री जिनराय ॥ पाण् ॥ ६॥ जिनमुखें सोहीयें तं बोल रे, घणो दिसे ने काक जमोल रे ॥ परण्यां पर एयां प्रजावती राणी, रूपें अप्सरा ने इंशाणी ।। पा० ॥ ७॥ जिन परणीने निजघर आविया रे, जा चकने दानशुं लाविया रे ॥ गुण गाये जे गंधर्व रंग, देवे उदय उसट अंग ॥ ॥ पा॥॥इति ॥२॥ ॥अथ श्रीमाहावीरस्वामीना महिना पच्चीशमा॥ ॥पद्मसरोवर हुँ गई रे, त्रिशला राणी करे रे कबोल ॥श्राजनो दिन रलीयामणो रे ॥ पहेलेने मासे अ मीय पीयो रे, बीजे चंदन घोल ॥आ॥१॥त्रीजे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) ने मासे केसर की यो रे, चोथे कपूरनी रेख ॥ श्र० ॥ पांच में इष्ट पूजी जिमो रे, बठे रह्या गर्जावास ॥ ० ॥ २ ॥ सातमे जाएं सिंहें चडे रे, आठमे दीजें दान || || नवमे मासें यतना करो रे, सवानवें पुत्र रतन ॥ ० ॥ ३ ॥ धरणीयें पग देई जनमीया ए, जन्म्या श्री माहावीर ॥ ० ॥ सोना बरीयें नाल वधेयां रे, दायीने कोटी सोनैया दीध || माहावीर कुंवर जन्म्या रे ॥ एांकणी ॥ ४ ॥ पुत्र जन्म निज सांजली रे, राय सिद्धार्थने हर्ष न माय ॥ मा० ॥ व धामणी याने पंचांग पहेरामणी रे, वली कीधी लाख पसाय ॥ मा० ॥ ५ ॥ पाणी सायें दूधडे नवरावीया रे, चोखा सायें मोतीडे वधाव ॥ मा० ॥ चीर फाडीनें बालोतियां रे, पलंग पालखडी यें पोढाव || मा० ॥ ६ ॥ घर घर गूडियो उनले रे, नीलां तोरण बांध्यां वे बार ॥ मा० ॥ वबजीनी फईजी तेडावी यां रे, नाम दीधुं वर्द्धमान ॥ मा० ॥ 9 ॥ मेरुशिखर ऊपर स्नान करे रे, बप्पन कुमरी गावे बे गीत ॥ मा० ॥ नाम पडामण 'हाथीयो रे, दीघां दीधां रत्न बे चार ॥ मा० ॥ ॥ सो नारुं कुमरे, महे मोतीनो कुमकार ॥ मा० ॥ 'त्रिशला राणी पुत्र तुमारडो रे, देवतणो शिरदार || Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) ॥माण ॥ ॥ काग गहुँनी लापशी रे, मांहे माल वायो गोल ||मा॥ जाजे घीय लसलसी लापशी रे, गोत्रज पागल नैवेद्य कराय॥ मा ॥ १०॥ कुंवरनी माता एम नणे रे, कुंवरजी अविचल राज ॥ मा । सोवन पालणीये पोढाडीया रे, नीबुडां वस्त्र उंडगड ॥ मा ॥ ११ ॥ इति ॥ २५॥ ॥अथ गहूली बबीशमी ॥ ॥सरसति सामीने दिल धरी रे, वांडं गुरुने उत्साह॥ कमल पोयण सम लोयणी रे, कामिनी कंचनवान ॥ चमर ढलावो जिणंद प्रनु वीरने रे ॥ए आंकणी॥१॥ कंकण नेउर खलकती रे, ललकती को किलवान ॥ग जगति चालझुंचालती रे, मलपती सहियर साथ ॥ च॥२॥ कनक कचोलां कुंकुम जरी रे, थाल मु क्ताफल सार ॥ चरम प्रजुजीने वांदवा रे, शोल स जी शणगार ।। च० ॥३॥प्रह नगमतानी गहूंअली रे, वाजे वीणा सार ॥ चेलणा काढे डे गहंअली रे, श्रेणिकनी घरनार ॥ च॥४॥ मोतीनों पूस्यो डे साथियो रे, ग्वीयां पांच रतन्न ॥ चेलणा वधावे ठे मोतियें रे, देशना दिये जगवन्न ॥ च ॥५॥ पाट पीउ प्रनु पानले रे, गाती रंगें रे साज ॥ सोवन सूर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) ज ऊगियो रे, सुरतरु मोस्यो रे श्रज ॥ च० ॥ ६ ॥ पूर्वज तूता पुण्यथी रे, वांद्या वीर जिणंद ॥ सुणी दे शना जगवंतनी रे, हरख्यां नर नारी वृंद ॥ च० ॥७॥ वेला चतुराई चित्त में रे, संजारे दिवस ने रात्र ॥ त्रिशलानंदन देखतां रे, पवित्र थयां मोरां गात्र ॥ च० ॥ ८ ॥ सेवक लक्ष्मीसूरि तणो रे, प्रणमे नाए उ दार | वीर प्रभुजी ने वांदतां रे, सफल कियो व तार ॥ च० ॥ एए ॥ इति ॥ २६ ॥ ॥ अथ षडावश्यकसूत्रनी गहूंली सत्तावीशमी ॥ ॥ अहो मुनि चारित्रमां रमता, श्री जिनत्राणा सुधी धरता, क्रियामारगमां अनुसरता ॥ अहो ॥ १ ॥ षडावश्यक सूत्रतणी रचना, ते सांजलो जवि एक म ना, वाणी अमृत रस करना ॥ अहो० ॥ २ ॥ प्रथम सामायिक जे दाख्युं, बीजुं च विसवो जांख्युं, तृ तीय वांदण दिल राख्युं ॥ अहो || ३ || प्रतिक्रमण चोथे सुणतां, काउस्सग्ग पांच अनुसरतां, बछे पञ्चरकाण करतां ॥ अहो० ॥ ४ ॥ षड्विध आवश्यक जे धारे, शुभ परिणामें अवधारे, श्री जिन मारग अजु वाले ॥ अहो ॥ ५ ॥ स्थापना ज्ञानतणी मांगो, ममता माया पूरे बांगो, तो शमतावृक्ष होये जामो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) ॥ अहो ॥ ६ ॥ इपिपरें सोहमनी वाणी, गहूंली करे चलणा राणी, गुरु सन्मुख जोवे गुणखाणी ॥ ॥ हो० ॥ ७ ॥ सीहोर नगरें गहूंली गाइ, कहे मु क्ति सुगो चित्त लाइ, श्री जिन थाणा धरो जाइ ॥ हो० ॥ ८ ॥ इति ॥ २७ ॥ ॥ अथ गहूंली हावी शमी ॥ ॥ रिहा व्याया रे, चंपावनके मेदान || सुरपति गाया रे, शासनके सुलतान ॥ ए यांकणी ॥ समव सरण सुर मली विरचावे, फूल सचित्त जल चलनां लाये || विकसित जानु सम वरसावे, उपर बेसे रे, मुनिमुख परषदा बार ॥ प्रभु महिमायें रे, पीडा न हुवे लगार ॥ तत्त्वावतारी रे, प्रवचन सारउद्धार ।। ० ॥२॥ पुरी शणगारी कोपिक राय, जल बटकायां फूल विज्ञाय, सजी सामईयुं वंदन श्राय, जववाई सूत्रे रे, देशना अमृत धार ॥ गौतम पूढे रे, बडनो अधि कार ॥ दत्त न लेवे रे, सात सया परिवार ॥ ॥ पाणी बते तरशां व्रत पाली, गंगा रेवत वच्चें संथा री, देवलोकें पंचम अवतारी, त्र्यंबडनामें रे, ते स हुनो शिरदार | अवधिज्ञानी रे, वैक्रियलब्धि उ दार ॥ तापस वेशे रे, पाले अणुव्रत बार ॥ अ० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) ॥३॥ ते गुणदरिया कौतुक नरिया, कंपिलपुरमा हे संचरिया, नित्य नित्य सहु घर वसती वरिया, स दुको जाणे रे, अम घर उचव थाय ॥ घर घर होशे रे, कौतुक जोवा ते जाय ॥ देव नवांतर रे, अंबड मुक्ति वराय ॥०॥४॥ सांजली हरडे हर्ष नराणी, बहुत साहेलीनी उकुराणी,नामें सुना धारणी राणी, चीर पटोली रे, पहेरी निकट ते जाय ॥ धुंघट खो ली रे, अंजलि शीश नमाय ॥ केशर घोली रे, सा थिये मोती पूराय ॥ १०॥५॥ चतुरा चन्मुख चि त्त मिलावे, मुक्ताफल दोय हाय धरावे, श्रीशुनवीर नां चरण वधावे, मंगल गावे रे, रंना अपबर नार ॥ जगतनो दीवो रे, विश्वनर जयकार ॥ बहु चिरंजी वो रे, त्रिशला मात महार ॥ अ॥६॥ इति ॥ ॥अथ गहूलि उगणत्रीशमी॥ अहो मुनि संयममा रमता ॥ए आंकणी ॥ वीरनी आणा शिरधरता, पवयणमायें सुविचरंता, सोहमपा ट दीपावंता ॥ अ० ॥१॥श्रीजिन आणा मति रागी, अव्य जव परिग्रह त्यागी, शिवरमणीशुं लय लागी ॥०॥ बत्रीश बत्रीशी पूरा, रागादिकथी र हे पूरा, शांत मुलामांहे ससनूरा ॥ अ० ॥३॥ वी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) वाणी चित्र अनुसरता, कुमति तथा मद गावंता, आव्या राजगृही फरता ॥ ० ॥ ४ ॥ कोणिक नूप तिनी राणी, जामंगलमां ऊजाणी, धवल मंगल करे गुणखाणी ॥ ० ॥ ५ ॥ अनुभव ज्ञाने चित्त ठरशे, सद्गुरु सदा वरसे, जविजलधर चातक वरसे अंगें ॥ ० ॥ ६ ॥ एी परें जे गुरु गुण गावे, संवरजावें चित्त लावे, महींद्रसिंह सूरि सुख पावे ॥ ० ॥ ७ ॥ इति ॥ २५ ॥ ॥ अथ गहूंली त्रीशमी ॥ ॥ सखि राजगृही उद्यानमां, उतरिया श्री जिनराज ॥ वारी जाऊं वीरनें ॥ सखि मननो ते सांसो उपशमे, जाणी यें मलीयो बे शिवपुरीनो साज ॥ वा० ॥ १ ॥ सखि देवबंदो ते देवें रच्यो, तिहां बेवा बे त्रिभुवन राय ॥ वा० ॥ सखि बारे पर्षदा तिहां मली, जीरे सती सुवाने जाय ॥ चा० ॥ २ ॥ राणी चेला ते लावे गाली, राजा श्रेणिकनी घरनार ॥ वा० ॥ जीरे मुक्ता ते फलनो साथियो, जीरे उपर श्रीफल सार || वा ॥ ३ ॥ सखि नवणीनी गल गहूंली, जीरे विच विच नागरवेल ॥ वा० ॥ जीरे दर जलुं रे दरिया तणुं, जीरे जेमां वे जारी रेल | वा० ॥ • Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) ॥४॥ जीरे वखाण नटुं रे वीरजी तणुं, जीरे सांजले गुणिजन लाख ॥ वा०॥ जीरे नानी ते नानी नानडी, जोरे नानी शाकर साख ॥ वा ॥५॥ जीरे नानी ते प्रजुजीनी जीजडी, जीरे बूजव्या जाण अजाण ॥ बा० ॥ जीरे जाट नणे रे बीरुदावलि, जोरे सईयर गावे गान ॥ वा ॥६॥ जीरे या जुगमां जोतां थ को, जीरे को न करे प्रजुजीशुं होड ॥ वा ॥ जीरे जव नव ए जिन जो मले, वसंतसागर कहे कर जोड ॥वा०॥७॥ इति ॥ ॥अथ गिरनारजीनो वधावो एकत्रीशमो ॥ ॥प्रथम रेवतगिरि पेखियो, जीहो उपनो अधिक थाणंद ॥ वधावो मारे आवीयो।बीजे नेमीशर बहु गुणा, जीहो दीगे दोलतनो दिणंद ॥ व० ॥१॥ ॥ए आंकणी ॥ त्रीजे वधावे प्रनु तुं स्तव्यो, जीहो अगर सुवासि विहार ॥ व ॥ केसर चंदन कुसुमनी, -जीहो पूजा सत्तर प्रकार ॥ व० ॥२॥ चोथे वधावे प्रजु चरण-, जीहो धरीये मन शुन ध्यान ॥ व ॥ चतुर दरिसण चारित्रना, जीहो गुण गाउं गुरुग्यान ॥ ॥३॥ श्रासन युक्ति अनुसरी, जीहो जादव गुणलय लीन ॥ ३० ॥ जावु प्रजुगुण जावना, जीदो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ K ( ४१ ) तमशक्ति नवीन ॥ व ॥ ४ ॥ एम सघलो टव्यो श्रांत, जी हो म तुम अतिशय एक ॥ व० ॥ ध्या यकनें वली ध्येयनो, जीढो अधिक विवेक अनेक || व० ॥ ५ ॥ जाग्य जले मलि जविजनें, जीढो जोयो श्री जिनराज ॥ व ॥ संघवी सहित स्वरूपनुं, जी हो सफल ययुं सहु काज ॥ व० ॥ ६ ॥ इति ॥ ३१ ॥ ॥ अथ श्रीथूली जडजीनी गहूंली बत्रीशमी ॥ ॥ जीरे मारे थूली जड गुरुराय, सातमे पाटे सोहाम या जीरे जी ॥ जीरे मारे बाहु मुणिंद, संजू ति विजय सूरि तथा ॥ जीरे० ॥ १ ॥ जीरे मारे पाट विशे ष सुजाण, शियलगुणें अलंकरया ॥ जी० ॥ जीरे मारे कोश्यायें बूजव्या ताम, जैनधर्मयी नवि पड्या ॥ जी० ॥ २ ॥ जीरे मारे जगमां राख्युं नीम, चोरा शी चोवीशी लगें ॥ जीरे० ॥ जीरे मारे संघ चतुर्विध जाए, उठव करे उलट अंगे ॥ जीरे० ॥ ३ ॥ जीरे मारे वाजे ढोल निशान, सरणाईयु मधुरे स्वरे ॥ जीरे ॥ जीरे मारे गोरी गावे गीत, सोहामण गहूंली करे ॥ जीरे॥४॥ जीरे मारे धन्य सकमाल प्रधान, धन्य लाल दे मातने । जीरे० ॥ जीरे मारे धन्य ते नागर नात, धन्य ते सिरिया जाने || जीरे० ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) जीरे मारे धन्य जदा प्रमुख, साते बेहेनो सोहामणी ।। जीरे ॥ जीरे मारे सूरीश्वर शिरदार, श्रीशूलिना शिरोमणि ॥ जीरे ॥६॥जीरे मारे ध्यान धरो दिन रात, एवा मुनिनुं खांतशु॥जीरे॥ जीरे मारे लेशे. मंगलमाल, जे गावे नित्य नावगुं॥जीरेणा॥ इति।। ॥ अथ पजूसणनी गढूली तेत्रीशमी ॥ . ॥ महारी सही रे समाणी ॥ ए देशी॥ . ॥ परव पजूसण पुण्यने योगें, मलिया सह गुरु सं योगें रे ॥मारी सही रे समाणी ॥ सात पांच नेली मलीने टोली, गईली करे मन जोली रे ॥मा॥१॥ धुंघटपट खोली गुरुमुख जोती, तन मनना मल धो ती रे॥ मा० ॥ समकितरागें ने धर्मनी बुद्धि, परि णतिनी वाली शुधिरे । मा॥२॥ वांदी वधावी गुरुजीनी वाणी, निसुणो नविजन प्राणी रे ॥ मा०॥ उपशम जावो ने निंदा निवारो, जीव सहुशुं हित धा रो रे ॥ मा० ॥३॥ गुरुपग मूले संघ सहु खामो, क षायतणा मद वामो रे ॥ मा॥ श्ण दिन आवे व्रत तप कीजे, अधिक अधिक लाहो लीजें रे ॥ मा० ॥४॥ पूजा प्रजावना महिमाने देखी, हरखे धरमना गवेषी रे॥ मा॥ चैत्य परवाडी जिनमुख जोवो, न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) धनवना पाप खोवो रे ॥मा ॥५॥ कलप सुणीजें प्रनावना दीजें, अहा महिमा श्म कीजें रे ॥माण । ॥ गहूंली गावो ने वीर जिन ध्यावो, मलूक नावना नावो रे ॥मा ॥६॥ इति ॥३३॥ ॥अथ चूनडी चोत्रीशमी ।। ॥ाबी सुरंगी चूनडी रे, चूनडी राती चोल रे॥ रंगीली ॥ लाल सुरंगी चूनडी रे ॥१॥ बुरानपुरनी बांधणी रे, रंगाणी रंगावाद रे ॥ रंगीली ॥ चोल मजीउना रंगश्री रे, कसुंबे सीधो हग्वाद रे॥रंगीली ॥ श्रा० ॥२॥ सूरत शेहेरमा संचस्यां रे, जातां जिन वाणीने माट रे॥ रंगीली ॥ चोराशी चोकने चदवटे रे, दीगं दोशीडानां हाट रे॥ रंगीली ॥ श्रा० ॥३॥ नणदी वीराजीने वीनवे रे, ए चूनडीनी होंश रे॥ रंगीली॥ चूनडीमां हाथी घोडला रे, हंस पोपट ने मोर रे ॥ रंगीली ॥आ॥४॥ समरथ ससरे मू लवी रे, पासें पीयुजीने राख रे ॥ रंगीली॥ समकित सासुना केणथी रे, सोनश्या दीधा सवा लाख रे ॥ रंगीली ॥आ॥५॥ सासूजीने साडीयो रे, ना नी नणदीने घाट रे ॥ रंगीली ॥ देराणी जेठगणीन जोडलां रे, शोक्यने लावो शा माट रे ॥ रंगीली ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४ ) ० ॥ ६ ॥ चूनडी उढिनें संचस्यां रे, जातां जिन द रवार रे || रंगीली ॥ माएकमुनियें कोडथी रे, गाई ए चूनडी सार रे || रंगीली || ||७ ॥ इति० ॥ ३४ ॥ ॥ अथ गहूंली पांत्रिशमी ॥ ॥ सारा जोगी ॥ ए देशी ॥ ॥ श्रीगुरुपद पंकजनी सेवा, लागी बे मुऊ मन दे वा रे || गुरुजी उपकारी ॥ ए यांकणी ॥ गुरु गुण दरीयो सुपरें जरियो, मुजथी किम जाये तरियो रे ॥ गु० ॥ १ ॥ पांच ज्ञानमांहे उपकारी, ए श्रुतनी बलि हारी रे ॥ गु० ॥ असंख्य जीवना जव सुविलासें, संख्याता जव प्रकासे रे ॥ गु० ॥ २ ॥ लोकना जाव ते ज्ञानथी कहीयें, सदगुरु मुखश्री लहीयें रे ॥ गु० ॥ दर्शन सहित ज्ञान ते जासे, दर्शन मोहनी नासे रे गु० ॥ ३ ॥ विघटे मिथ्यात्व तम केरो, टाले ते जवनो फेरो रे ॥ गु० ॥ समकित विण संजम नहिं रचना, आगम मांहे बे वचना रे ॥ गु० ॥ ४ ॥ सम कित सहित करे जे किरिया, ते जवसमुद्रयी तरि या रे || गु० ॥ एवी वाणी सोहम केरी, नासे कर्म जो वैरी रे ॥ गुण ॥ ५ ॥ सोहम पाट परंपर राजे, विजयदेवेंद्र सूरि गाजे रे || गु० ॥ स्वस्तिक पूरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५ ) दुःखने चूरे, वधावे चढते नूरें रे || गु० ॥६॥ सूरि गुणे त्री सोहावे, विजयानंद पद पावे रे || गुण ॥ प्रेम थी जावे नवनिध पावे, अमृत शिव सुख ध्यावे रे ।। गु० ॥ ७ ॥ इति ॥ ३५ ॥ ॥ अथ गहूंली बत्रीशमी ॥ ॥ मोतीवाला जमरजी ॥ ए देशी ॥ चरण करणशुं शोजता ॥ व्रतधारी रे सुगुरु जी ॥ विजन मानस हंस रे || जगत उपकारी रे सुगुरुजी ॥ जंगमतीरथ साधु जी ॥ व्र० ॥ लोज तणो नहिं अंश रे ॥ ज० ॥ १ ॥ पडिरूवादिक गुण जरया, ॥ ० ॥ षटकारण लीये श्राहार रे ॥ ज० ॥ सामु दाणी गोचरी ॥ ० ॥ ज्ञानरतन जंगार रे ॥ ज० ॥ २ ॥ गीतारथ गुरु आगलें ॥ ० ॥ वनिता धरि य विवेक रे ॥ ज० ॥ सरखी साहेलियें परवरी ॥ ० ॥ सम कितनी घणी टेक रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ श्र स्तिक पीठनी उपरें ॥ व्र० ॥ अनुजव मुक्ता श्वेत रे ॥ ज० ॥ चिहुं गति चूरण साथीयो ॥ ० ॥ वधावती धरी देत रे ॥ ज० ॥ ४ ॥ गुणवंती गावे गहूंश्र श्री ॥ ० ॥ मुनिगुणमणि धरि दाथ रे ॥ ज० ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) श्री शुजवीरनी देशना ॥ ० ॥ सुणतां मले शिवसा थ रे ॥ ज० ॥ ॥ ५ ॥ इति ॥ ३६ ॥ ॥ अथ गहूंली साडत्री समी ॥ ॥ केसरिया चडो वरघोडे ॥ ए देशी ॥ ॥ राजगृही वनखं विचाल, श्राव्या वीर जिणंद दयाल, वंदे श्रेणिकनामें भूपाल तो ॥ वीर जगत गुरु वंदना करियें | वंदना करियें ने जवजल तरियें तो ॥ वी० ॥ १ ॥ कुष्टि कुरूप एक देव ते वार, मरण जीवन जन चार विचार, श्रेणिकरायने हर्ष पार तो ॥ वी० ॥ २ ॥ कोसंबी नगरीनो वासी, सेमूक बा ह्मण धननो आशी, पुत्र कुटुंबने रोगें वासी तो ॥ वी० ॥ ३ ॥ वे राजगृही दुवार, मरण नही जल तर अपार, जलमां मेडको अवतार तो ॥ वी० ॥ ४ ॥ वारी हारी नारी वचनथी, पूरवजव लहि चा ल्यो वनथी, मुज वंदन हरख्यो तन मनथी तो ॥ ॥ वी० ॥ ५ ॥ तुऊ घोटक पद हलियो जाम, लहि सुर जव व्यो एणें ठाम, श्रेणिक देखे तुक परि णाम तो ॥ वी० ॥ ६ ॥ मोक्षगमन कहो मुजने सार, दर्दूर रंक तो अधिकार, उपदेशमाला ग्रंथ मो कार तो ॥ वी० ॥ ७ ॥ राणी चेला हर्ष न मात्रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) मुक्ताफलशुं गईली बनावे, श्री शुनवीर जिणंद वधा वे तो॥ वी० ॥ ॥ इति ॥ ३७॥ ॥ अथ गहूली आडत्रीशमी॥ ॥द्वारका नगरी दीपती॥जिन वंदिये । वसे जादव कुलनो परिवार ॥रे जिन वंदीयें ॥ जिनजी ते आ वी समोसस्या ॥ जि० ॥ साथें गणधर वर अढार ।। रे जि०॥ १॥ अढार सहस साधु जला॥ जि० ॥ ते तो लब्धि तणारे जंमार ॥ रे जिण ॥ समवसरण देवें रच्यु | जि ॥ तिहां बेठी पर्षदा बार ॥ रे जि० ॥२॥ कृलजी वांदवा आविया ॥ जि० ॥ साथे अंते उरनो परिवार ॥रे जि॥ गढूंली ते करे मन रंग शुं ॥ जि० ॥ सत्यनामा रुक्मिणी नार ॥रे जि०॥३ ॥ पहेरी पटोलां दाडमी ॥ जि०॥ पाये फांऊरनोज मकार ॥रे जि०॥ मुक्ताफलनो साथियो । जि ॥ पांच रतन्न ते पंचाचार ॥रे जि॥४॥ लली लली लेती खूबणां ॥ जि०॥ जिनमुखडां जूवे रे निहाल ॥रे जि०॥ कृमजीयें प्रजुजीने पूब्युि ॥ जि० ॥ मुज श्रम चड्यो रे अपार ॥रे जि० ॥५॥ प्रजुजी कहे श्रम उतस्यो ॥ जि ॥ तमें कारज कयुं मनो हार ।। रे जि०॥ सातमीनी त्रीजी करी ॥ जि। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) तमें समकित नमो निर्धार ॥ रेजि० ॥६॥ रोम रोम हर्षित हुथा ॥ जि० ॥ प्रनु तार तार मुझ तार ॥ रेजि० ॥ न्यायसागर प्रजु नीरखतां ॥ जि०॥ तमे जय जय जणो नर नार ।। रेजि॥७॥इति ॥३०॥ ॥अथ गईली उंगणचालीशमी॥ ॥आर्यदेश नरजर्व लह्यो रे, श्रावक कुल मनोहार रे ॥ जिननी वाणी नित्य सुणे रे, धन्य तेहनो अव तार ।। गुरुने बोखडीये, मोह्या मोद्या रे त्रिनुवन लोक ॥ गुरुने बोखडीये ॥१॥ उठी सवारें प्रजु नमे रे, करे नवकारसी सार रे ॥ शोल शणगार सजी करीने, श्रावे गुरु दरबार ॥गु०॥२॥ त्रण प्रदक्षिणा देश करीने, वांदी बेसे गय रे ॥ उप हाथ अलगी रहि ने, गहूंली पूरवा जाय ॥ गु०॥३॥ चिहुंगति फुःख निवारवा रे, माहामंगल उच्चार रे ॥ श्राप मंगल माहे वडो ने, साथीयो कीजें उदार ॥ गु० ॥४॥व धावे गुरुरायने रे, पजे करे पञ्चकाण रे ॥ खूबणीयां लटके करे ने, नाव जलो मन बाण ॥गु०॥५॥ आगम अर्थने धारती रे, करती विनय विशेष रे ॥ एम आतमने तारती रे, सौनाग्यलक्ष्मी सुविशेष ॥ ॥ गु०॥६॥ इति ॥ ३५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ॥अथ गहली चालीशमी ॥ ॥ रूमी रे राजगृही उद्याने, पंचसया मुनिमान हो ॥स्वामि।। श्रावीया गुरु गोयम स्वामी ॥ वनपाले जई राय वधाव्या, हर्ष वधामणी लाया हो । स्वा०॥ ॥श्रा ॥१॥ आव्या वीरतणा आदेशी, कश्ये केवा केशी हो ॥ स्वा० ॥ श्रा० ॥ श्रेणिक अंतेउर सहु तेडी, जीत नगारां गेडी हो ॥ स्वा० ॥ श्रा॥ ॥२॥ चेडा रायतणी तस बेटी, चेलणा गुणमणि पेटी हो ॥ स्वा ॥श्रा॥ श्रेणिक रायतणि पटरा णी, वीरें आप वखाणी हो ॥ स्वा० ॥ था ॥३॥ साथीयडो कीधो लटकालो, मंगल रंग रसाल हो । खा०॥ श्रा॥ ललि ललि गुरुजीने लूणां करती, कीर्तिनां दानज देती हो ॥ स्वा॥ श्रा॥४॥ देश ना सांजली आनंद पामी, धर्म यथोचित राख्यो हो ॥ स्वाणाया॥ उपकारी गुरुना गुण गाती, समकित रतनने चहाती हो ॥ स्वा॥श्रा ॥५॥ श्रीपाल तणीपरें तरसे, शिव रमणी सुख वरसे हो ॥ स्वा० ॥ आ॥ जे कोई गहूली एणी परें करशें, मुक्ति तणां सुख वरश हा ॥ स्वा० ॥आ० ॥६॥शत ॥ ४० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए.) ॥अथ गहूंसी एकतालीशमी ।। ॥ सोहम खामी परंपरा ॥ सुखकारी रे साहेब जी॥ मुनिगुणरत्न नंमार रे ॥ वालो मारो एही रे साहेब जी॥ सूरि बत्रिश गुणे शोजता ॥सुणा धरता माहा व्रत सार रे॥ वालो॥१॥ पंचेंघिय संवरपणे ॥सु॥ नवविध ब्रह्मचर्य धार रे ॥ वा० ॥ पंचाचारज पाल ता।। सु ॥ टाले क्रोधादिक चार रे ॥ वा०॥॥ समिति गुप्ति निजशुरुता ॥ सु ॥ षटकायिक प्रति पाल रे ॥ वा०॥ एहवा गुरुपद सेवीयें ॥ सु०॥पामी यें मंगलमाल रे ॥ वा० ॥३॥ विहार करंता आवी या ॥ सु॥ मुंबई बंदर मकार रे ॥ वा ॥ संघ सक ल अति जावद्युसु०॥ सेवा करे नर नार रे ॥ वा० ॥४॥ अचल गबपति दीपता ॥ सु॥ रत्नसागर सूरिराय रे ॥ वा ॥ प्रेमचंद कहे प्रणमतां ॥ सु॥ संघने कल्याण थाय रे ॥ वा ॥५॥इति ॥४१॥ ॥अथ गहूली बहेंतालीशमी॥ ॥श्रावो हरि सासरिया वाला ॥ ए देशी॥ ॥ चालो सखि वंदनने जश्य, वंदीने पावन तो थश्य ॥ चालो ॥ ए आंकणी ॥ माता त्रिशलाना जाया, धर्म धुरंधर कदेवाया, गुणशील वनमांदे आया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) ॥ चालो ॥१॥ शोला शी वरण, बहेनी, विजुवन मां कीर्ति जेहनी, बलिहारी जाउं हुं एहनी ॥ ॥ चालो ॥॥ जे केवल उकुराश्, सादि अनंत गुण पाश, गणधर आगममां गार ॥ चालो० ॥३॥ सुरकोडी सेवा करता, उंगणीश अतिशय अनुसरता, जावें नवसायर तरता ॥ चालो ॥ ४॥ चौद हजार मुनि संगें, धारक चरण करण रंगें, शील सन्नाह ध स्यां अंगें ॥ चालो ॥ ५ ॥ श्रेणिक चेलणा सह यावे, मुक्ताफल जरीने लावे, मंगल आठ करी गावे ॥ चालो ॥६॥ गातां पुःख दोहग जांजे, मंगल महिमंगल काजे, श्म कह्यो दीप कविराजे ॥ चालो ॥७॥इति ॥४॥ ॥अथ गहूंली तालीशमी॥ ॥वाडीना जमरा, जाख मिठी रे चांपानेरनी॥ए देशी। ॥जीरे कामनी कहे सुणो कंथ जी, जीरे फलिया मनोरथ श्राज रे ॥ नणदीना वीरा गण' र श्राव्या डे चालो वांदवा॥जीरे जबोदधि पार उतारवा, जीरे तारण तरण ऊहार रे ॥ न० ॥१॥ जीरे गुणशैट्य चैत्य समोसख्या, जीरे वीरतणा ले पटोधार रे॥नणा जीरे पांचशे मुनि परिवार डे, जीरे तीरथना अवता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) ररे ॥२॥२॥ जीरे कंचन कामिनी परिहस्या, जीरे पगट्या जे गुण वीतराग रे ॥ न०॥ जीरे परिस हनी फोजने जीतवा, जीरे कर धरी उपशम खजरे ॥न०॥३॥जीरे प्रवचन माताने पालता, जीरे समि ति गुप्ति धरनार रे ॥ न ॥ जीरे मेरुगिरि सम मो टका, जीरे पंचमहाव्रत जार रे ॥ न०॥४॥ जीरे सुरपति नरपति जेहने, जीरे दोय कर जोडी हजूर रे॥ न० ॥ जीरे अमृतसमी गुरुनी देशना, जीरे पाप पमल होये पूर रे ॥ न०॥५॥ जीरे कामिनी वयण रे मीउडां, जीरे वांद्या डे गुरु गणधार रे ॥ न० ॥ जीरे गुरुमुखथी सुणी देशणा, जीरे आनंद अंग अ पार रे ॥नण॥६॥ जीरे मुक्ता ने रयणे वधावती, जीरे गहूंली चित्त रसाल रे॥ न ॥ जीरे निजलव सुकृत संजारती, जीरे जेहना डे नाव विशाल रे॥न ॥७॥ जीरे दीपविजय कविराज जी, जीरे पृथ्वीनंदन ब तिहार रे ॥ न० ॥ जीरे गौतम गणधर पूज्यजी, जी रे वीरशासन शणगार रे॥न॥॥ इति ॥४३॥ ॥अथ गहूली चुम्मालीशमी॥ ॥प्रनुजी वीर जिणंदने वंदीयें ॥ ए देशी ॥ । ॥ सुरिजन विचरंता वसुधा तलें, राजगृही उद्यान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) 9 हे अलबेली हेली || सुरिजन सुर नर कोडी शुं परवस्या, ज्ञातनंदन जगवान है, अलबेली हेली ॥ सुरिजन, शासन नायक वंदीयें ॥ १ ॥ ए क णी ॥ सुरिजन तेजे तरणि परें कींपता, समतायें शारद चंद हे अलबेली हेली || सुरिजन गोपथकी शुंजामनें, थिरतायें मेरु गिरिंद हे अलबेली हेली ॥ सु० ॥ शा० ॥ २ ॥ सुरिजन योगासन धारी घ खा, शमताधर मुनिसंग हे अलबेली देसी ॥ सुरि जन ज्ञान गजें कोई गाजता, राजता ध्यान तुरंग दे, अलबेली हेली | सु० ॥ शा० ॥ ३ ॥ सुरिजन प्रातिहार्य वर आवशुं, सेवित सुरसुलतान है, ल बेली हेली || सुरिजन गुणशील चैत्यमां जविकनें, दे उपदेशनुं दान हे, लवेली हेली ॥ सुरि० ॥ शा० ॥ ४ ॥ सुरिजन नंदावती नंदोत्तरा, शोल सजी शणगार है, अलबेली हेली || सुरिजन कुंकुम अक्षत फल लइ श्रेणिकनी घर नारी हे, लवेली हेली || सुरि० ॥ शा० ॥ ५ ॥ सुरिजन सुंदरी पूरे साथीयो, प्रणमी वधावे जिणंद है, अलबेली हेली ॥ सुरिजन रिहा मुख अवलोकने, पाने परमा नंद दे, अलबेली हेली ॥ सुरि० ॥ शा० ॥ ६ ॥ सु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) रिजन कीजे उंची एम साचवी, शासन जक्ति विशा ल दे, अलबेली देसी ॥ सुरिजन प्रजुनी वाणी मृत समी अबे, रंगें सुणीयें रसाल दे, अलबेली हेली ॥ सुरि० ॥ शा० ॥ ७ ॥ इति ॥ ४४ ॥ पण ॥ अथ गहूंली पीस्ताली शमी ॥ ॥ सुण गोवालणी, गोर सडावाली रे उभी रहेने ए देशी ॥ ॥ सु साहेली, जंगम तीरथ जोवा उनी रहेने ॥ मुनि मुख जोतां, मन जलसे तन विकसे आपण बे ने ॥ ए की बे ॥ थावर तीरथ दुर्गति वारे, घर मेली जइयें ज्यारे, विधियोगें ध्यान धरे त्यारे, संसार समुद्र की तारे ॥ सु० ॥ १ ॥ जंगम मुनि मारगमां फरता, संयम आचरणा श्राचरता, जगजीव उपर करुणा धरता, पुण्यशाली घर पावन करता ॥ ॥ सु० ॥ २ ॥ अनाचीरण बावन परिहरता, बोले दशवैकालिक करता गणि पेटी बहु श्रुतनी धरता, मुखचंद्रथ की अमृत करता ॥ सु० ॥ ३ ॥ वर ज्ञान ध्यान हय गय वरिया, तप जप चरणादिक परिकि रिया, विरति पटराणीशुं वरीया, मुनिराज सवाइ केशरीया ॥ सु० ॥ ४ ॥ सुविहित गीतारथ गुरु वागें, विधियोगें वंदे गुणरागें, कर कंकण पर कां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) जर वागे, गहूसी करतां अनुजव जागे ॥ सुण ॥५॥ कुंकावटीयें केशर लेती, करी स्वस्तिक पातकडां घो ती, वधावती उज्ज्वल मोती, वलती खलती गुरुमुख जोती ॥ सुण ॥६॥ कलकंठवती मधुरा गावे, गुण बंती तिहां गहूंली गावे, आ जव सौजाग्यपणुं पावे, शुनवीर वचन हैयडे जावे ॥ सुण ॥७॥इति ॥४५॥ ॥ अथ श्रगीयार गणधरनी गहूंली तालीशमी। ॥जनक रायने रे मांगवे ॥ ए देशी ॥ .. ॥पहेलो गोयम गणधरु, अनूति जेहनुं नाम ॥ अग्निनूति वखाणीयें, बीजो प्रजुगुण धाम ॥ गणधर शोना हुं शी कहुं । ए आंकणी ॥१॥ वायुनूति त्री जा वजीर , गौतमगोत्र जगवंत ॥ चोथा व्यक्तजी जाणीयें, कीधा जवना रे अंत ॥ गण॥२॥ स्वामी सुधर्मा डे पांचमा, मंमित बहा गणधार ॥ मोरिय पुत्र डे सातमा, सहु ए जगना आधार ॥गण॥३॥ अकंपितजीले रे बाग्मा, अचलजी नवमा रे जाण ॥ मेतारय जग पूज्य जी, गणपति दशमो वखाण ॥ गण ॥४॥ स्वामी प्रजासजी वदीयें, एकादश मा गणधार ॥ गणधर गबपति गणपति, तीरथ ना अवतार, द्वादशांगी धरनार, सहु मुनिना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) शिरदार, पाम्या जवनो रे पार, नामें जय जयकार, वंदो वार हजार ॥ गण० ॥ ५ ॥ आणा ले‍ प्रभु बीरनी, सहुजनने सुखदाय ॥ गुणशीला चैत्य पधा रीया, श्रेणिक वंदन याय ॥ अमृतवाणी सवाय, नि सुणी हर्ष न माय, सुणतां मनडां लोजाय ॥ गण० || ६ || चेला पूरे रे गली, सहीयर गावे बे गीत || दीपविजय कवि राजनी, ए जिनशासन री त ॥ गण० ॥ ७ ॥ इति ॥ ४६ ॥ ॥ अथ गहूंली सुडतालीशमी ॥ ॥ ग राया रे ॥ ए देशी ॥ ॥ चित्त समरुं सरसति मायरे, वली वंदूं सकुरु पा य रे, हुतो गाइश तपगछ राय रे || गछ राया रे ॥ १ ॥ त्रीश गुणें गुरु राजे रे, गौतम गणधर पट बाजे रे, गुरु पंचाचार दीवाजे रे || ग० ॥ २ ॥ गुरु सारण वारण दाता रे, जिनराज सदा मन ध्याता रें, गुरु संयम धर्म में राता रे ॥ ग ॥ ३ ॥ गुरु पंच महाव्रत पाले रे, गुरु आतम तत्त्व संजाले रे, गुरु जिनशासन जुयाले रे ॥ ग० ॥ ४ ॥ जेणे ज्ञाननी दृष्टि निहाली रे, गुरु देशना दे लटकाली रे, गुरु प्र तपे कोडि दीवाली रे ॥ गणः॥ ५ ॥ गुरु मधुरे वचनें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७) वरसे रे, जव्य जीव तथा मन हरसे रे, गुरु गुण सु एवा मन तरसे रे || ग० ॥ ६ ॥ करो गहूंली गछपति आगे रे, वधावो गुरु महाजागे रे, गाउँ मंगल मधुरें रागें रे || ग ॥ ७ ॥ गुरु धन्य आदि बाइ जाया रे, साहेब राजकुलमां सवाया रे, श्री विजयलक्ष्मी सूरिया रे || ग० ॥ ८ ॥ गुरु प्रेम पदारथ पाया रे, जेणे धर्मना पंथ बताया रे, एम दीपविजय गुण गा या रे ॥ ग ॥ ए ॥ इति ॥ ४७ ॥ अथ केशीकुमारनी गहूंली घडतालीशमी ॥ ॥ जीरे वर वरघोडे संचस्यो, जीरे बिहुं पासें चमर वीजाय ॥ जीया वरनी घोडली ॥ ए देशी ॥ ॥ जीरे कुंकुम बडो देवरावीयें, जीरे मोतीना चोक पूरावो ॥ वधाइ वधाइ बे ॥ जीरे घर घर गूडी रे सज करो, जीरे सोहागण मंगल गावो ॥ वधाइ व धाइ बे ॥ १ ॥ जीरे याज वधाईना कोड बे, जीरे तंबी नयरी मजार ॥ वधा० ॥ जीरे पास प्रभुजी ना पटधरू, जीरे आव्या बे केशी कुमार | वधः ॥ ॥ २ ॥ जीरे पांचशे मुनि परीवार बे, जीरे जीवद या प्रतिपाल ॥ वधा० ॥ जीरे डुक्कर परिसद जीप ता, जीरे जगजसकार प्रनाल ॥ वधा० ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) जीरे ठंड्या ने मोह संसारना, जीरे व्रतधारी संयम धार ।। वधा० ॥ जीरे चरण करणनी सित्तरी, जीरे सेवा लहे जव तार ॥ वधा ॥४॥ जीरे तपीया डे केश मुनिराज जी, जीरे त्यागी ने केश मुनिराज ॥ वधा ॥ जीरे मुनि गुणगणे वरतता, जीरे शिववधू वरवाने काज । वधा॥५॥ जीरे नृप परदेशी रे हरखियो, जीरे पहोता ने वंदन काज ॥ वधा ॥ जीरे गुरु उपकार संजारतो, जीरे पूज्य डे गरीबनि वाज ॥ वधा० ॥६॥जीरे नृपपटराणी गढूंथली, जीरे पूरे पूज्यहजूर । वधा ॥ जीरे दीपविजय कविरा जने, जीरे वंदो उगमते सूर ॥ वधा॥७॥ इति॥धन॥ ॥अथ गहूलागणपञ्चासमादेशी नपरन। गहलान। ॥जीरे सूर उगमती गहूंअली, जीरे गुरु श्रागल श्री कार ॥ मनोहर गहूंअली ॥ जीरे सहीरे समाणी सं चरी, जीरे पूठे बहु परिवार ॥ म॥१॥जीरे चालो रे सहीयो उतावली, जीरे हैयडे हर्ष न माय॥म०॥ जीरे समकेतने अजुवालवा, जीरे वंदीये श्री गुरुरा य ॥म ॥२॥ जीरे सरखा सरखी सुंदरी, जीर टोलेमली गह घाट ॥म०॥ जीरे थाना शालु उढ एपी, जीरे उपर नवरंग घाट ॥ म ॥ ३॥ जीरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) नावे सहगुरु जेटवा, जीरे सहु मसीने साथ मon जीरे उलटें थाव्या श्रप्या सहि, जीरे सोवनथाली हाथ ॥ म० ॥४॥ जीरे हीरे जडित कुंकावटी, जीरे मांहे कपूर बरास ॥म०॥ जीरे मांहे मृगमद महमहे, जीरे केसर चंदन खास ॥ म० ॥५॥ जीरे चतुरा चाली चमकती, जीरे उमकेशुं उवती पाय ॥ म ॥ जीरे चरणे नेउर रणकणे, जीरे मा निनी मानें गाय ॥ म॥६॥ जीरे, पाये वींबूथा वाजणां, जीरे कांजरना रमजोल ॥म ॥ जीरे प्रे मेशुं गहूअली करी, जीरें नवखंडी रंगरोल ॥म०॥ ॥७॥ जीरे पूरी सोहागण साथीयो, जीरे मोतीडे मनरंग ॥म॥ जीरे चुंगल नेरी नणहणे, जीरे वाजे ढोल मृदंग ॥ म ॥ ॥ जीरे त्रण खमा समण देश्ने, जीरे वंदे सहु नर नार ॥ म ॥ जीरे संघ मस्यो सहु सामटो, जीरे उत्सवनो नहिं पार ॥ म ॥ ए॥ जीरे सहगुरु दीये तिहां देशना, जीरे वांची सूत्र विचार ॥मजीरे जलधरनी पेरें गाजता, जीरे वरसता अमृतधार ॥ म ॥ १० ॥ जीरे मीठी रे मीठी मीठडी, जीरे मीठी साकर जाख. ॥म० ॥ जीरे तेहथकी पण मीठडी, जीरे. मीठी म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) हारा गुरुजीनी लाख ॥ म० ॥ १९॥ जीरे एकचित्ते जे सांजले, जीरे पामे ते नवपार ।। म॥जीरे नित्य नित्य रंग वधामणां, जीरे सुख पामे संसार ॥म ॥ ॥ १२॥ जीरे हीररतन सूरि राजीया, जीरे तपगड केरा रा ॥ म॥ जीरे अमे अमारा गुरुजीने गाय शु, जीरे न गमे ते उगीने जा ॥ म॥ १३ ॥ जीरे दानशीयल तप नावना, जीरे जे सुणे ए (जनवाणी ॥ म॥ जीरे उदयरतन मुनि एम कहे, जीरे ते लहे कोडि कल्याण ॥ म ॥ १४ ॥ इति गहूंली ॥४॥ ॥अथ गईली पञ्चासमी ॥ गरबानी देशी ॥ . ॥बेनी राजगृही उद्यान के, वीर प्रजु वीया रे खोल ॥ बेनी समवसरण मंमाण, रचे सुरवर तिहां रे सोस । बेनी चार निकायना देव, मली तिहां आ विया रे लोल ॥ देनी परखदा बेठी बार, सुणे प्रज्जु देशना रे लोल ॥१॥ बेनी सोहम गणधर मुनि राय के, नर नारी मली रे लोल ॥ बेनी चौद सहस परिवार के, श्रावी परवत्या रे लोल ॥ बेनी श्रेणिक राय प्रमुख, वंदन मन नाविया रे लोल ॥ बेनी रा णी चेखणा नार, नरि थाल वधावीया रे खोल ॥२॥ बेनी गुरुमुख जोती सार के, मनमां गह गहे रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) सोल || बेनी सहियरो मली मंगल गाय के, वाजे झुंडु जिरे सोल || बेनी सत्रकित धरती सार के, प्रभु गुण आवे रे लोल || बेनी सूत्र सुणे मनजाव के, अरथने धारती रे लोल ॥ ३ ॥ बेनी प्रजुवंदन सुपसाय के, चिहुं गति चूरती रे लोल || बेनी सोह म गणधर पाट, परंपर शोजती रे लोल | बेनी चंद्रों दयरत्न गणधार के, लवणपुर राजता रे लोल ॥ बेनी चविध संघ सुपसाय के, मांहे गाजता रे लो ल ॥ ४ ॥ बेनी धर्मोपदेश सुणाय, मिथ्यात्वनें वारता रे लोल | बेनी शांतिचरित्र कहेवाय के, नविने तारता रे लोल || बेनी गहूंली करती जोय के, ललि ललि लूटणां रे लोल || बेनी सामायिक पोसह समुदाय, करे वली पूणां रे लोल ॥ ५ ॥ बेनी स्थानक तप आराधे, मन यति जावशुं रे लोल ॥ बेनी वली रोहणी तप अति जात्र के, पाले प्रेमशुं रे बोल || बेनी समेत शिखर गिरि नेटण, अलजो बेघं रे बोल || बेनी पुण्य पसायें तेह, मनो रथ सवि फल्या रे लोल ॥ ६ ॥ बेनी संवत जंगणी शें वीशमां, कारज साधीयां रे लोल ॥ बेनी चैत्र शुदि तेरशने, जोमे वांदीया रे लोल || बेनी कहें क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) वियण कर जोड, करी एक वीनति रे लोल || बेनी चंद्रोदयरत्नसूरिंदने, नित्य नित्य वंदती रे लोल ॥७॥ ॥ अथ गहूंली एकावनमी ॥ गरबानी देशी मां ॥ ॥ बेनी गुरु पति गुरुराज के, गौतम जाणी यें रे ॥ लो० ॥ बेनी मुनि मंगल महाराज के, मनघर श्र पीयेंरे ॥ लो० ॥ १ ॥ बेनी शासनना सुलतान, व जीर श्री वीरना रे || लो || बेनी लब्धिवंत निधान, के श्री गुण हीरनारे ॥ लो० ॥ २ ॥ बेनी मगधदेश मकार के, गोवरगाम बे रे ॥ लो० ॥ बेनी वसुभूति पृथिवी नार के, माता नाम बे रे ॥ लो० ॥ ३ ॥ बेनी सोवनवान समान, शरीर सकोमलां रे ॥ लो० ॥ बे नी लोचन युगल प्रधान के, कर क्रम कोमला रे ॥ लो० ॥ ४ ॥ बेनी ज्ञान रयण जंकार, सिद्धांतना सा गरु रे || लो० ॥ बेनी माहाव्रत जस मनोहार, महि मा गुणरू रे ॥ लो० ॥ ५ ॥ बेनी नहीं प्रतिबंध विहार, नहीं ईहा कशी रे ॥ लो० ॥ बेनी सकल जंतु हितकार, दया जस मन वसी रे ॥ लो० ॥ ६ ॥ बेनी नयरी चंपा उपवन्न के, पूज्य पधारीया रे || लो० ॥ बेनी किसुत धनधन्य के, वंदन पधारि या रे ॥ लो० ॥ ७ ॥ बेनी देशना दीये गुरु राय, ज ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) विक प्रतिबोधता रे ॥ लो० ॥ बेनी प्रह उठी प्रणमें पाय, समिति पंच शोधता रे ॥ लोग ॥ ॥ बेनी को णिक जूपति नार के, गहूंली लावती रे॥लो॥ बेनी स्वस्तिक पूरति खास के, मोतीये वधावती रे ॥ लोण ॥ ए॥ बेनी कामिनी कोकिलवाणि के, गुरुगुण गाव तीरे ॥ लो॥ बेनी सौजाग्य लक्ष्मी सुखखाण के, सदा सुख पावती र ॥लो० ॥ बने। गुरु गछपात-गुरु राज के, गौतम जाणीये रे ॥ लो ॥१०॥इति ॥ ॥अथ गहूली बावनमी॥ ॥ गरबानी देशी ॥बेनी अपापा नयरी उद्यान के, वा जां वागियां रे लोल ॥ बेनी देववाजिंत्र अनेक के, घ नाघन गाजीयां रे लोल॥१॥बेनी अनूत्यादि अग्यार के, ब्राह्मण दीपता रे लोल।बेनी वेदवादना जाण के, बहु वाद कींपता रे लोल ॥२॥बेनी संशय डे अति गूढ, मिथ्यामति पूरिया रे लोल ॥ बेनी श्रीजिन थ मृत वाणी के, सुणि सुख पामीया रे लोल ॥३॥ बेनी बांकी सकल जंजाल के, हवा व्रत जाविया रे लोल ॥ बेनी इंश सजानो थाल, केवा जश श्रावियारे खोल ॥४॥बेनी अरिहा ए श्राचार के, तीरथ स्थापिया रे लोल ॥ बेनी लावो गहूंसी गेल के, हरखें वधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) विया रे लोल ॥ ५ ॥ बेनी वधावो श्री जिनराज, करो नित्य जामणां रे बोल || बेनी गार्ड मंगल गीत के, खीजें वारणां रे बोल ॥ ६ ॥ बेनी बांधो तोरण बार के, सुरतरु मालिका रे लोल || बेनी गार्ड मंगलगीत के, मली बहु बालिका रे लोल ॥ ७ ॥ बेनी गौतम केवलज्ञान के, सोहम गधणी रे बोल || बेनी या पी जंबूने पाट के, पहोता शिवमणि रे लोल ॥ ८ ॥ बेनी करतां एहनुं ध्यान के, लहीयें जरा घणा रे लो ख || बेनी विबुध कहे श्रीवीरने, सहु जय जय जणो रे लोल ॥ ५ ॥ इति ॥ ५२ ॥ गहूंली त्रेपनमी ॥ ॥ मुनि पंचम गणधर वीरना रे ॥ मुनि वंदीयें | साथे पांचरों मुनि गुणधाम रे || गुरु वंदीयें ॥ राजगृही उद्यानमां रे ॥ मु० ॥ गुरु समवसस्या शुभ गम रे || गु० ॥ १ ॥ पंच महाव्रत पालता रे ॥ मु० ॥ दश विध संयतिनो धर्म रे ॥ गुण ॥ संयम सत्तर प्रका रथी रे ॥ मु० ॥ लही पाले तेहनो मर्म रे || गुण ॥ ॥ २ ॥ दश प्रकार विनय जलो रे ॥ मु० ॥ ब्रह्मचर्य नववाडें युत्त रे ॥ गु० ॥ रत्नत्रय याराधता रे ॥ मुण बार दें तपमां रत रे ॥ गु० ॥ ३ ॥ क्रोध मान माया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) लोजने रे ॥ मु० ॥ कींपता करे जय विहार रे ॥ गु० ॥ चरण सत्तरी पालता रे ॥ मु० ॥ तिम करण सित्तरी सार रे ॥ गु० ॥ ४ ॥ वंदन देतें आविया रे ॥ मु० ॥ राय श्रेणिक बहु परिवार रे ॥ गुण || चेला लावे ग हूं अली रे ॥ मु० ॥ घाट शील पहेरी मनोहार रे ॥ गु० ॥ ५ ॥ श्राभूषण सत्यवचननां रे ॥ मु० ॥ करे स्व स्तिक विनय प्रधान रे ॥ गु० ॥ श्रद्धा अक्षत थापती रे ॥ मु० ॥ करे लूणां सुप्रणीधान रे ॥ गु० ॥ ६ ॥ देशना सांजले दर्षशुं रे ॥ मु० ॥ कहे धन धन तुम गुरुज्ञान रे ॥ गु० ॥ उत्तम गुरुपद पद्मनी रे ॥ मु० ॥ सेवा करता लहे शिवठाण रे || गु० ॥ ७ ॥ ५३ ॥ ॥ अथ गुरु यागल गहूंली चोपनमी ॥ ॥ तमें पीतांबर पेस्यां जी, मुखने मरकलडे ॥ए देशी ॥ || चेला लावे गहूंली ॥ गुरु ए रूडा ॥ श्रेणिक नृप घरनार ॥ सजनी ए रूडा ॥ सोहम स्वामी समोस स्वा ॥ गु० ॥ प्रभु पंचम गणधार ॥ स० ॥ १ ॥ ब त्रीश बत्रीशी गुणें ॥ गुण | शोजित पुण्य पवित्त ॥ स० ॥ आगमवयण सुधारसें ॥ गुण ॥ वरशी वगरे चित्त ॥ स० ॥ २ ॥ पडिरूवादिक चौद बे ॥ गु० ॥ खांत्यादिक दश धर्म || स० ॥ बारह जावना जाविया ५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) ॥ गु०॥ एह बत्रीशी मर्म ॥ स०॥३॥ दंसण नाण चरण तणा ॥ गु०॥ तप आचारे युक्त ।। स०॥ क्रोधा दिक |चहुं परिहरे ॥ गुण ॥ पंचेंजिय त्याग प्रयुक्त ॥ स ॥४॥ नवविध तत्वनी देशना ॥ गु०॥ नव कल्पी उग्र विहार ॥ स॥ नव नीयाणां परहस्यां। गु० ॥ नव वाडे व्रत धार ॥स ॥५॥आतम बाजोठ उपरें ॥ गुण ॥ समकेत साथियो पूर ॥ स ।। मूल उ त्तरगुण गहूअली । गु०॥ उपशम अदत नूर ॥ स० ॥६॥ कोकिल कंठे कामिनी ॥ गुण ॥ सोहव गावे गीत ॥ स०॥ माणक मोती लूतां ॥ गु० ॥ श्री जि नशासन रीत ॥ स०॥ ॥ इति ॥५४॥ ॥ अथ समवसरणनी गहूंली पंचावनमी॥ ॥श्रावण वरसे रे स्वामी ॥ ए देशी॥ ॥सांजल सजनी रे महारी, समवसरणनी शोना सारी॥प्रथम गढ रूपानो राजे, सोवन कोसीसां तस बाजे ॥ सांजल ॥१॥ बीजो कंचननो गढ निरखो, रत्न कोसीसा जो जो हरखो॥ त्रीजो रत्न तणो ग ढ सोहे, मणि कोसीसें मनडुं मोहे ॥ सांग ॥२॥ जुगतें सुरवर रे जडीयां, वीश हजार जेहनां पावडी यां ॥ मध्ये रत्न पीठ मनोहार, जडित सिंहासन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोहे अपार ॥ सांग ॥ ३॥ तखतें राजे श्रीवर्धमान, जाणे अनिनव उदयो जाण ॥ देव मुनि नादें गा जे, वाजिन को डि गमे तिहां वाजे ।। सां०॥४॥ सु गंध पाणी परिमल पूर, वरसे पंच वरणनां फूल ॥जा णे वसंत ऋतु बहु फूली, जमरा कुसुम कुसुम रह्या फूली ॥ सां०॥५॥थै थै नाचे सुरवधू बाला, गावे गीत सुकंठ रसाला ॥ चिहुं दिशि चामर रे ढलके, मणिमुक्ताफल तोरण फलके ॥ सां०॥६॥ शिरपर बत्र अनोपम सार, पुठे नामंगल तेज अपार ॥ बेठी पर्षदा रे बार, वाणी वरसे जिम जलधार ॥ सां०॥ ७॥राजा श्रेणिकनी राणी, नामे चेलणा गुणनी खा णी ॥ कुमकुम चंदन रे घोली, करती गईली जामि नि, नोली ॥ सां० ॥ ॥ललि ललि नमती रे नावें, मुक्ताफलशुं वीरने वधावे॥ हसि हसि जिनमुख रे जोती, जाणे नवपुःखडांने खोती ॥सां०॥णा एणी परें जे को गढूंली करशे, पुण्य पनोती नवजल तर शे ॥ कीर्ति गुरुनी रे गावो, माणक शिव सुख वेगें पावो ॥ सां०॥ १०॥ इति ॥५५॥ ॥अथ गहूंली बप्पनमी। ॥ वर अतिशय कंचन वाने, राजगृही नयरी उद्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) ने हो ॥ धन धन मुनिराया ॥ श्रावीया गुरु गौतम खामी, सुर असुर नमे शिर नामी हो ॥ धन ॥१॥ झानादिक गुण मणि जरीया, उपशम रस केरा दरी या हो ॥ धन ॥ मुनि पंचसया परिवारें, जे आप त स्या पर तारे हो॥धन ॥२॥ आव्या जाणी चल नाणी, श्रेणिक नरपति पटराणी हो ॥ धन ॥ चे लणा नामें गुण पेटी, चेटक माहाराजनी बेटी हो ॥ धन० ॥३॥ श्रावे गणधर वांदवा, शुझ समके त लान लहेवा हो ॥ धन ॥ करे स्तुति नित्य कर जोडी, पुर्दम मद आग्ने मोडी हो ॥धन० ॥ ४॥ करे कुंकुम स्वस्तिक मोती, वधावे पुण्य पनोती हो ॥ धन ॥ करे बुब्णां गुरुमुख निरखी, हैयडामांहे घणुं हरखी हो ॥धन ॥ ५ ॥ निसुणी सरुनी वाणी, मीठी जे अमिय समाणी हो ॥ धन ॥ करे निर्मल समकित करणी, घरे पहोती समकित घरणी हो ॥ धन ॥६॥ एम शासन सोह वधारो, करो नवियण सफल जमारो हो ॥ धन ॥ ध्यावो अवि नाशी धाम, जलसे निज आतम राम ॥ हो ॥ धन ॥७॥ इति ॥५६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) ॥ अथ गहूंली सत्तावनमी ॥ ॥ नदी युमनाके तीर, उडे दोय पंखीयां ॥ ए देश ॥ ॥ ॥ चंपानयरी उद्यानमां, गणधर यवीया ॥ नामे सोहम स्वामी, जविकमन जाविया । विषय प्रमाद कषाय, हास्यादिक तजी ॥ रमता यतमराम के, निजपरीपति जजी ॥ १ ॥ नीरागी जगवान, करे गुण देशना ॥ उपकारी समान के, तारे जविजना ॥ सु वा जिनवर वाण, तिहां याव्या सह ॥ नर नारी ना थोक के, हर्ष मनें बहु ॥ २ ॥ वसन आभूषण व्रत, तथा अंगें धरे ॥ कोएिक जूपति नार, हवे गहूं ली करे || समिति गुप्ति सहियरनी, सायें यावती ॥ आत्म असंख्य प्रदेश, रकेबी लावती ॥३॥ श्रद्धाकुंकु घोली, स्वस्तिक करे जावथी । यतम पीठनी उपर, जिनगुण गावती ॥ विनयवती बहुमानथी, इम गहूं ली कर, अनुजवनां करि लुटणां घ्याणा तिलक घरे ॥ ४ ॥ द्रव्यजावथी एसी परें, जे गहूंली करे | सम कितवंती श्राविका, जब सायर तरे ॥ मणि उद्योत गुरुराजना, गुण सखी मन घरो ॥ पामी मनुज व तार के, शंका नवि करो || ५ || इति ॥ ५७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) ॥ अथ गहूंली असावनमी ॥ ॥चरण करणगुण आगरु रे॥ गणधर ॥ गिरुया गौतम खाम ॥ सुहावो गईली रे ॥ सुरगुरु सुरतरु सुरमणि रे । गणधर ॥ प्रगटे जेहने नाम ॥ सु० ॥१॥ नयरी विशाला उद्यानमा रे ॥ गणधर ॥ वईमान वड शि प्य ॥ सु०॥ चौद सहस्र अणगारमा रे ॥ ग० ॥ ति लक समान जगीश ॥ सु०॥॥ सुररचित कज उ परें रे ॥ ग० ॥ बेसी वरसे वयण ॥ सु० ॥ कनकाचल चूला चढ्यो रे ॥ ग० ॥ पुष्कर जलधर अयन ॥ सुग ॥३॥ राणी चेलणा रायनी रे ॥ग० ॥ काल मबूके कान ॥ सु०॥ स्वामी वीरजिणंदनी रे ॥ग ॥ च तुरा चंपकवान ॥ सु॥४॥ कुंकुम रयण कचोलडी रे॥ग ॥ रजत रकेबी हाथ ॥सु० ॥ मुक्ताफलनो साथीयो रे ॥ ग० ॥ सात पांच सखी साथ ॥ सु॥ ॥५॥ पंचाचार उवारणे रे ॥ ग ॥ वारू पंच रतन ॥सु०॥ जिनशासन मुनि दीपतो रे ॥ गण॥ कीजें कोडी जतन || सु०॥६॥ इति ॥७॥ ॥अथ गली जंगणशामी ॥ ॥थाज हजारी ढोलो प्राहुणो॥ ए देशी॥ ॥राजगृही रखीयामणी, जिहां गुणशीलचैत्य सुठा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) म ॥ साथण मोरी है ॥ सहीयर मोरी हे ॥ बेहेनड मोरी दे ॥ आवो सवा गुरु नेटवा, काई मेटवा कर्म कठोर ॥सा ॥ सम्॥बे ॥ आ॥ मुनि ग णतारा चंद ज्यु, श्राव्या गणधर गौतम स्वाम ॥सा० स० ।। वे ॥ ॥ १ ॥ जेह पंचेंछिय वश करे, वली पाले पंचा चार ॥ सा०॥ जेह पंच समिति गुप्ति धोरी परें, वहे पंच महाव्रत चार ॥ सा ॥ स० ॥ बे॥आ॥२॥ नव वाडे ब्रह्म धरे सदा, वली प रिहरे चार कषाय ॥सा ॥जे सब्धि अहावीशनो धणी, जयो आठ प्रान्नाविक राय ॥ सा समाबे॥ अ०॥३॥ पहेरण पीत पटोलडी, उपर उढण नव रंग घाट ॥ सा॥ कुंकुम रोल सुसाथीयो, करे अक्षत पूरी सुघाट ॥सा ॥सा बे॥ आणामावली ललि ललि कीजें सुबणां, ले रजत कनकनां फूल ॥साणा करो जिन शासन प्रनावना, वजडावो मंगल तूर ॥ ॥सा॥स० ॥ बे ॥या ॥५॥इति ॥५ ॥ ॥ अथ गहूंली शामी ॥ गरबानी देशीमां ॥ ॥ वाला राजगृही उद्यान के, वीर समोसस्या रे लोल के ॥ वाला मलिया चोश इंड के, बहु परि चारशुरे लोल के ॥ वा ॥ १ ॥ वाला वधामणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (92) माहाराजनी, श्रेणिक सांजली रे लोल के ॥ वाला श्रेणिक पुर जन लोक के, सौ मली एकठां रे लोल के ॥ बा० ॥ २ ॥ वाला वंदी बेठो भूप के, प्रभुजी गले रे लोल ॥ वाला चेला घूंघट ताणी के, उठी मन गहगही रे लोल के ॥ वा ॥ ३ ॥ वाला स्वस्ति क पूरी पास, वधावे मन रुली रे लोल के ॥ वाला लु ari करे वार वार, सोहागण सह मली रे लोल के ॥ वा ॥ ४ ॥ वाला सजी शोले शणगार के, मली घी बालिका रे लोल के ॥ वाला एसी परें जे जिन यागल, करे नित्त गहूंली रे लोल ॥ वा० ॥ ५ ॥ वाला जाय सकल जंजाल के, जवोदधि दुःख हरे रे लोल के || वाला कहे गौतम निरधार के, चित्त चोखे करी रे लोल के || वा० ॥ ६ ॥ इति ॥ ६० ॥ ॥ अथ पर्यूषणने विषे कल्पसूत्र पधराववानी गहूंली एकशमी ॥ ॥ जीरे ललित वचननी चातुरी, जीरे चतुर कहे गुरुराज || जीरे सुगुण सनेही सांजलो, जीरे पर्वप पण आज || जीरे ललित ॥ १ ॥ जीरे श्राश्रव जाव निवारीने, जीरे स्वजन सहित बहु मान ॥ जीरे कल्पसूत्र घर लावीयें, जीरे थाइधर धरी Jain Educationa International * For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) ध्यान ॥ जीरे ललित ॥२॥ जीरे दीपक अगर उखेवियें, जीरे रात्रि जागरण नित्य ॥जीरे पूजा वि विध रचावी, जीरे त्रण दिवस इणि रीत ॥ जीरे ललित ॥ ३॥ जीरे सुण सजनी रजनी गश्, जीरे कल्प धुरा परमात ॥जीरे सहियर मली मंगल नणे, जीरे हय गय रथ मेलात ॥ जीरे ललित० ॥४॥ जीर वरघोडे नली जातशु, जीरे शुचि तनु पुस्तक हाथ ॥जीरे श्म मंमाणे थावीया, जीरे जिहां श्रुत निधि गुरुनाथ ॥ जीरे ललित० ॥५॥ जीरे गुरुस न्मुख लही वांचना, जीरे प्रमुदित पर्षदामांह ॥ जीरे इणि अवसर गजगति सती, जीरे मुनिपद नम न उत्साह ॥ जीरे ललित॥६॥जीरे सम कितवंती श्राविका, जीरे सहियर मली समदिठ॥ जीरे अनु नव उज्ज्वल मोतीये, जीरे स्वस्तिक लक्षण पीठ ॥ जीरे ललित० ॥७॥ जीरे स्वस्तिक पूरी वधावती, जीरे बेसती बेसणगय ॥जीरे पंच कल्याणक देशना, जीरे नव व्याख्यान सुणाय ।। जीरे ललित ॥७॥ जीरे बह अहम तप जिन नमी, जीरे सांजलशे नर नारी॥जीरे श्री शुनवीरने शासने, जीरे करशे एक अवतार ॥ जीरे ललित॥ए॥इति ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) ॥ अथ गहूंली बाशमी ॥ ॥ हाररो हीरो माहोरो साहेबो ॥ ए देशी ॥ || जगगुरु जगचिंतामणि ॥ सहियर मोरी ॥ जगबंधव जगात हो ॥ द्वारिका नगरी समोसख्या ॥ सहि || बावीशमा जगतात हो ॥ उलट आणी एतो, लाज ने जाणी एतो, पुण्यनी खाणी, शुद्ध श्राविका ॥ ज वितमे गहूंली करो मनरंग हो ॥ १ ॥ हरि वांदी नमी करी ॥ सहि० ॥ बेठा वे कर जोडी हो ॥ श्रम तसम जिनदेशना || सहि० ॥ सांजले मनने खोडी हो ॥ जल० || लाज० ॥ पुण्य० ॥ शुद्ध० ॥ नवि० ॥ ॥ २ ॥ श्याम शरीरें शोजता ॥ सहि० ॥ तेज तो नहिं पार हो । जबक बनी जिनराजनी ॥ सहि० ॥ विश्व मानस हितकार हो || उल० || लाज० ॥ ॥ पुण्य० ॥ शुद्ध० ॥ जवि० ॥ ३ ॥ धन्य धन्य राणी रुक्मिणी ॥ सहि० || व्रत भूषण अंग हो । तप सुघाट घूंटी समो ॥ सहि० ॥ चूनडी सु शील सुचंग हो ॥ उघ० ॥ लाज० ॥ पुण्य० ॥ शुद्ध० ॥ जवि० ॥ ४ ॥ क्रिया कुंकावटी कर यही ॥ सहि० ॥ जिनगुण कुमकुम घोले हो ॥ मननि र्मल जल जेलती ॥ सहि० ॥ चित्त उल्लसी मनरंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) रोल हो ॥ जल० ॥ सान० ॥ पुण्य० ॥ शुक०।। नवि०॥ ५॥ समकित बाजोत उपरें ॥ सहि० ॥ श्रका खस्तिक जोर हो ॥ रुचि मुक्ताफल पूरती ॥ सहि० ॥ चूरती कर्म कोर हो ॥ उल० ॥ लाज०॥ ॥ पुण्य० ।। शुरु०॥ नवि०॥६॥ नाण चिंतामणि स्थापती ॥ सहिः ॥ अनुजव कुसुम सुरंज हो । विनयें करी वधावती ॥ सहि० ॥ ललती जेम सुरं न हो ॥ उल० ॥ खान० ॥ पुण्य०॥शु०॥न वि०॥७॥ सम्यगदृष्टि निरखती ॥ सहि० ॥ हर खती हृदय मजार हो ॥ क्षण दाणमां जिनराजने ॥सहि० ॥ तृप्ति न पामे लगार हो ॥ उल०॥ लाज. ॥ पुण्य० ॥ शुद्धः ॥ नवि० ॥ ॥ अव्य नावें की गहूंथली॥सहि०॥ रुक्मिणी राणी एम हो । तेम करो तमें श्राविका ॥ सहि० ॥ कीर्ति पामो जेम हो ॥ उल.॥ लाज॥ पुण्य ॥ शुकः॥जवि० ॥ ॥इति ॥६॥ ॥अथ गहली त्रेशमी॥ ॥हारनो हीरोमाहारो॥ ए देशी॥अथवा ।। साचनो शूरो नृप चंदजी, राजिंद माहारा जाग्यतणे बलिहारी हो ॥ ए देशी॥ चनाणी चोखे चित्तें, सहियर मो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) री॥श्री शोहम गणधार हो ॥ आप स्वनावमा खे सता, सहियर मोरी ॥ धरता ध्यान उदार हो । सह ज सोजगी गुरु, शिवसुखरागी गुरु, शुजमति जाग। गुरु वांदवा ॥ सहियर मोरी, चालोने दर्ष नबास हो ॥१॥ बारे जावना जावतां, सहियर मोरी ॥ अनि त्यादिक गुणगेह हो । माहाव्रत पामीने वली ॥ स हि ॥ नावे पणवीश तेह हो ॥ सह ॥ शिव० ॥ शुन ॥ सहि ॥ चालो ॥२॥ संझादिक योगें करी ॥ सहि॥ सहस अढार जे थाय हो ॥ तेह ने शील कहीजियें ॥ सहि ॥ ते पाले निर्माय हो ॥ सह ॥ शिव० ॥ शुज ॥ सहि ॥ चालो ॥३॥ समिति गुप्ति सूधी धरे ॥सहि ॥ चरण करण गुण धाम हो ॥ पडिलेहण श्रावश्यकादिकें । सहि ॥ अहोनिश रहे सावधान हो ।सह॥ शिव० ॥ शुज ॥ सहि ॥ चालो ॥ ४ ॥ सदाचार एम पालतां ॥ सहिणा वर्ते श्रातमनाव हो ॥ नयरी राज गृही आविया ॥ सहि०॥ नवोदधि तारए नाव हो ॥ सह ॥ शिव० ॥ शुज ॥ सहि ॥ चालो॥ ॥५॥ उदंत सुणीने आवियो । सहि ॥ वंदन श्रे णिकराय हो । साथे राणी चेलणा ॥ सहि०॥ गहू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ली करे गुण गाय हो ॥ सह० ॥ शिव० ॥ शुज ॥ सहि ॥ चालो ॥६॥ मनमोहन गुरु तिहां कणे ॥ सहि० ॥ देई देशना हितकार हो ॥ नाव धरीने जे सुणे ॥ सहि॥ ते लहे सुख श्रीकारहो ॥ सहज सोजागी गुरु, शिवसुखरागी गुरु, शुनमति जागी गुरु वांदवा ॥ सहियर मोरी, चालोने हर्ष उल्लास हो॥ ७॥ इति ॥३॥ ॥अथ गहूली चोशठमी॥ ॥ जगजीवन जमुना रे, जल नरवा द्यो ए देशी ॥ ॥ आतमरुचि गुणधारणी रे, मनोहारणी ॥ करे गहूबली तजी खेद रे॥ सुखकारणी ॥ नाम स्थापना अव्यथी रे ॥ मनोहारणी ॥ नावे मंगल चिहुंदरे ॥ सुखण॥१॥ जीव अजीव ने मिश्रथी रे॥ म०॥ एतो नाम मंगल त्रिहु नाम रे ॥ सु॥ आपे मंग ल ए सही रे॥ म०॥ कीजें नित नित शुन्न काम रे ॥ सु॥॥आगम नोआगम थकी रे ॥म ॥ ए तो अव्यमां होय विचार रे ॥ सुगा नावमांहे दोय ए वली रे ॥म० ॥ तेह नोआगम अधिकार रे ॥ सु॥ ॥३॥ नंदी दाखी सूत्रमा रे ॥म ॥ सही नाव मंगल होय तेहरे ॥ सु०॥ पंच नाण निर्विघ्नतां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (G) रे॥ म०॥ ए तो तेहनुं कारण तेह रे ॥ सु० ॥४॥ अंग कह्यां ए नावनां रे ॥म० ॥ एतो सदहिये शुल चित्त रे ।। सु॥ अव्य मंगल मेली करो रे ॥म॥ एतो गढूंथली जिनमत रीत रे ॥ सु० ॥५॥ टाले जन्म मरणथकी रे ॥म ॥ कह्यो मंगल शब्द निरुत्त रे ॥सु०॥अध्यवसाय ए आदरी रे ॥म०॥ नवि कीजें जन्म पवित्त रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ योग जेह जिन शासनें रे ॥म० ॥ सवि अध्यातम संयुत्त रे ॥ सु०॥ शिवफल दायक ते सही रे ॥ म०॥ कहे राम सदा गमरीत रे॥सु० ॥७॥शत ॥६४॥ ॥अथ गहूंअली पांशमी ॥ ॥धवलशेठ लश् नेटणुं ॥ए देशी ॥बागम अमृत पीजिये, बहुश्रुतथी गुरु पासे रे ॥ श्रोता गुण अंगे करी, विनय करी उदासें रे ॥आ॥ १॥ शुद्ध नाषक समता धरा, पंचम कालें थोडा रे ॥ दीसे बहु आडंबरी, जेहवा उकत घोडा रे ॥श्रा ॥२॥ वस्तुधर्मनी देशना, जे दीये हेत राखी रे ॥ कीजें तेहनी सेवना, उपकारी गुण दाखी रे ॥ आ०॥३॥ आगमतत्व प्रकाशमां, जे नवियण चित्त फूले रे, अ नुजव रस आस्वादर्थी, थुणीयें जेह रसीले रे ॥ आ० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥४॥ नय निदेप प्रमाणथी, साधुनो बंध सुरीतें रे ॥ तत्त्वातत्व विशेषणा, लहीयें परम प्रतीतें रे ॥ आ०॥५॥ तत्वारथ श्रझान जे, समकित कहे जि नराया रे ॥ नाषण रमण पणे लहे, नेद रहित मति पाया रे ॥ आ ॥६॥ स्वस्तिक पूजन नावना, कर ता नक्ति रसाल रे ॥ पुण्य महोदय पामीयें, केवल कछि रसाल रे ॥आ॥७॥इति ॥६५॥ ॥अथ गहूंली बाशमी॥ ॥प्रजुजी वीरजिणंदने वंदीये ॥ए देशी॥ ॥सजनी शासन नायक दिल धरी, गाशुं तपगड राया हो ॥ अलबेली हेली ॥ सजनी जाणीयें सोहम गणधरु, पटधर जगत गवाया हो ॥ अलबेली हेली ॥ सजनी वीर पटोधर वंदियें ॥१॥ए आंकणी ॥स जनी वसुधापीउने फरसता, विचरता गणधार हो ॥अ ॥ स ॥ त्रीश गुणझुं विराजता, जे नवि जनना आधार हो ॥०॥ स०॥वी०॥॥ सम्॥ तखतें शोहे गुरुराज जी, उदयो जिम जग नाण हो ॥ १० ॥ स०॥ निरखतां गुरुराजने, बूजे जाण अजाण हो ॥ अ॥स० ॥ वी०॥३॥ स ॥ मु खडं शोहे रे पूरण शशी, अणीयाला गुरु नेण हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) । अ०स०॥ जलधरनी परें गाजता, करता नवि जन सेण हो ॥ अ॥स॥वी० ॥४॥ सायं ग उपांगनी देशना, वरसत अमृतधार हो॥०॥ स० ॥ श्रोता सर्वनां दील ठरे, संयमशं धरे प्यार हो ॥ अ० ॥ स ।। वी० ॥५॥ स॥ शुक्ल शणगार सजी करी, मोतीयडे जरी थाल हो ॥०॥ सम्॥ श्रका पीउनी उपरें, पूरें गईली विशाल हो॥०॥ स० ॥ वी० ॥६॥स ॥ सौजाग्य उदयसूरि पाट ना, धारक गुरु गुणराज हो ॥ अ॥ स०॥ श्री विज यलक्ष्मी सूरिंद जी, दीपविजय कविराज हो ॥अण ॥स०॥ वी० ॥ ७॥इति ॥६६॥ ॥अथ गहूंली सडशहमी॥ ॥ रुडीने रढीयाली रे वाहाला तारी वांशली रे॥ए देशी ॥ सुकुत तरुनी वेल वधारवा रे, सींचती उपश म उदकनी धार, गुरुगुण हृदय धरती प्यार, मार्नु रंजानो अवतार ॥ सु०॥१॥ पुण्य पनोती रे साथे साहेलीयो रे, मली मली शोल सजी शणगार, कर धरी रजत रकेबी सार, कुंकुम घोली करी मनो हार ॥ सु० ॥२॥ अदत सारा रे उज्ज्वलता नख्या रे, पूरती खस्तिक मंगल सार, चुरती चिहुं गति क्रोध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) ज चार, उवती श्रीफल हर्ष अपार ॥ सु०॥३॥ अनुजव रंगे रे मोती वधावती रे, ललित परिणामें नमती पाय, गुरुमुख देखी हर्ष न माय, सन्मुख बे सती बेसण ठाय ।। सु० ॥४॥नोजन पामे रे अमृत नूखमा रे, नागर ग्रीषम पाम्यो गंग, जिनवाणी सुण वानो रंग, अर्थ मनोहर नय गम नंग ।। सु० ॥५॥ श्रीशुजवीरनुं शासन पामीने रे, धरती हैयडे समकि तवास, अनुक्रमें केवलज्ञान प्रकाश, मलती मुक्ति सहेली पास ॥ सु०॥ ६ ॥ इति ॥ ६ ॥ ॥अथ गहूंली अडशमी॥ - ॥ देशी उपरली गहूंलीनी ॥ गिरिवैलारें रे वीर स मोसस्या रे, चौद सहस मुनिवर संघाय, त्रिगडे बेग त्रिजुवनराय ॥१॥ रूडीने रढीयाली रे जिनजीनी दे शनारे।। ए टेक ॥वरसे जिम पुष्कर जलधार, सांजल वा बेठी परखदा बार ।। रूडी०॥शा निजनिजलाषायें समजे सहू रे॥जिम समजावी नीलें नार, योजन जिन वाणी उदार ।। रूडी.॥३॥ नय गम नंग प्रमाण निदेपथीरे॥जीवादिक नवतत्त्व विचार, उत्पाद व्य यध्रुवथी धार|रूडी०॥ादान शीयल तप नाव ने दें करी रे॥चठमखथी चौ जिनवर वाण, निसुणी पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (- दश ) में पद निर्वाण | रूडी० ॥ ५ ॥ पटराणी श्रेणिकनी 'चेलणारे | आदरथी उठे धरीने प्यार, लेइ (सहस) सदीयो संगें सार ॥ रुडी० ॥ ६ ॥ सोवन जवथी स्वस्तिक पूरती रे || वांदी वधावे थइ उजमाल ॥ लु ausi aटके करे रसाल ॥ रुडी० ॥ ७ ॥ चतुरा जं सरती पाढे पगे रे ॥ जोती जिनमुखचंद अमंद, पामे मनमां परमानंद ॥ रूडी० ॥ ८ ॥ जिनवचनामृत सांजले रंगथी रे ॥ जक्ति पूर्वक चित्त मजार, धरती रथ सरूप विचार ॥ रुडी० ॥ ए ॥ इति ॥ ६८ ॥ ॥ अथ गहूंली उगणोतेरमी ॥ ॥ वीरजी या रे, गुणशील वनके मेदान ॥ विप्र पडिबोह्यो रे, केवलज्ञान प्रधान ॥ अरिहा तीन जगत के जाए, समवसरण तखतें महेराण, ऊलके जामंग गुणखाण, श्रेणिक दरख्यो रे यो वंदन काज, चतुरंगी फोजां रे वांकडीया करी साज, साथै तरुणी रे पंचसयाको समाज ॥ वी० ॥ १ ॥ धर्म प्रकाशे बारे परखदा मांहे, मजकुर पूबे गोयम उत्साहे, च अनुयोगें उत्तर सोहाय, श्रेणिक पूढे रे बेशी यथोचित वाय, वाणी निसुणी रे मनमां हर्षित थाय, संशय टाले रे आत्म अनंत सुख थाय ॥ वी० ॥ २ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ०३ ) चत्रीश बद्ध नाटक रची सार, करी नर नारी रूप रसाल, खलके कंकणना खलकार, प्रजुने वंदे रे दई रांक सुर सार, ज्ञातासूत्रे रे वरणवियो अधिकार, समकित संगें रे मटे मिथ्यात्व निर्धार ॥ वी० ॥ ३ ॥ चेला नारी मन हरखाणी, अंगें अनेक शणगार सोहाणी, बहुत साहेली की ठकुराणी, कुंकम घोली रे साथीयो रंग रसाल, रयणें पूरी रे वधावे जरी या ल, नेह धरीने रे गुण गाये उजमाल ॥ वी० ॥ ४ ॥ त्रिशला नंदन सूरिजन वंदो, अवसर लइ आ फंद निकंदो, पामे नित्य नवनवा आनंदो, बहु चिरंजीवो रे तीरथपति सुलतान, दिल जरी ध्याई रे प्रजुगुण नुं घणुं मान, संपदा पामो रे लक्ष्मीसूरि गुण गण ॥ वी० ॥ ५ ॥ इति ॥ ६ ॥ ॥ अथ गहूंली सीत्तेरमी ॥ ॥ प्रभुजी आव्या रे शहेर जरुचके मेदान, अश्व प्रतिबोध्यो रे जाणे पूरवको सयाण ॥ ए टेक ॥ फलके जगमते परजात, भूपति हरख्यो रे सायौ अर्थीको काज, स्वामीजी वांद्या रे बहु फोजां के साज, नक्ति रागें रे जीव पाने शिवराज ॥ प्रजुः ॥ १ ॥ उपदेश आपे त्रिभुवनजाए, सुणे परखदा बारे वाण, मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) माँ जाणे कोइ सुजाण, नृप पूढे रे मुनि सुव्रत जिन राय, प्रतिबोध्यो रे कोइ जीव एणे वाय, देवे दीगे रे एक तुरंग धर्म ध्याय ॥ प्र० ॥ २ ॥ असण लेइ प्रभुके पाय, पोतो सुरलोकें दिल लाय, तीरथ थापे मन उमाय, संघ सेवे रे दूरदेशथी यय, जावना जा बेरे तजी विषय कषाय, दुःखम कालें रे ए महिमा गवराय ॥ प्र० ॥ ३ ॥ नाटक नाचे नव नव रंग, करे अशुभ करमनोजंग, साचो समकित गुणनो रंग, सू त्रै दीसे रे सूरियाज सुरनो अधिकार, पूजा कीधी रे सतर जेद सुखकार, शंका टाले रे नविक जीव निर धार ॥ प्र० || ४ || पद्मावतीनो नंदन महानाग, दा खे शिवगति पूरिनो माग, जगमांहे कहेवाये वीतराग, रायो रे जिनशासन सुलतान, माग्या दीजें रे मनवंबित प्रभु दान, वांबा कीजें रे विबुध विमल शु न ध्यान || प्र० ॥ ५ ॥ इति ॥ ७० ॥ ॥ अथ गहूंली एकोतेरमी ॥ वीरजी घ्याया रे गुणशीलवनके मेदान | ए देशी ॥ ॥ जवियण वंदो रे चोवीशमो जिनराय, सुगति थापे रे टाले कुगति कुठाय ॥ ए टेक || पावन देश तर करता खाम, विचरंता वली गामो गाम, पातक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ng ) जाये लीधे नाम, जग पडिबोहे रे ए त्रिहुं लोक नो नाथ, मुनि परिवार रे चउद सहस के संघात, सायर बोडी रे कोण सेवे बीलर पात्र || नवियण० ॥ १ ॥ राजगृही नयरी उद्यान, गुणशीला चैत्यके मेदान, याया पुंरिक प्रधान, सुर तिहां रचेरे स मवसरण तेणि वार, इंद्र इंद्राणी रे बंदे प्रजुने पार, आनंद पावे रे देखी प्रभुनो देदार ॥ जवि०॥ ॥ २ ॥ वननो पालक जेहनुं नाम, दीधी वधामणि जश्ने ताम, श्रेणिक हरख्यो सुणीने नाम, चलचित थीयो रे मगधपति माहाराज, परिवार संयुक्त रे साथै रमणी समाज, तिहांथी चाल्यो रे प्रजुने वं दन काज || जवि० ॥ ३ ॥ चतुरंगी सेना सजीय ज दार, गज रथ पायक अमुल तुखार, बहु जब उतर वाने पार, श्रेणिक हरखे रे वंदे प्रभुजीना पाय, प्रभु पद वंदी रे बेठो यथोचित वाय, तव उपदेसे रे वीर जिनेसर राय ॥ जवि ॥ ४ ॥ चेला राणी अति सोजागी, जिन वंदिने जक्ति जागी, गहूंली करवा रढ बहु लागी, कनक चोखा लइ रे हाथे तिही रसाल, गहूंली पूरे रे, जगपति या विशाल, मोतीडे वधावे रे टाले पाप प्रजाल ॥ जवि० ॥ ५ ॥ देशना दीधी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) ॥अथ गर्दूली बहोते श्रीनगवंत, शंशय टाल्या श्री अरिहंत, श्रेणिक वंदी पुर पहोचंत, एम बहु ना रे नित्य नित्य मंगल गाय, सुकृत कमावे रे दीपविजय कविराय॥नविणा॥इति॥ होतेरमी॥ - ॥ जिनराज पूजी लाहो लीजीयें ॥ ए देशी॥ ॥केशरचंदन नरीय कुंकावटी, सोवनथाल ले कामिनी ॥ गहूंथली करीने मंगल गाई, बलिहारी गुरुनामनी ॥ गहूंली करे रे गजगामिनी ॥१॥ शोल शणगार सजीने सुंदर, जाणे ऊबूके दामिनी ॥साधु साधवी श्रावक श्राविका, लरी रे सत्तामां नामिनी ॥ गहू ली॥२॥ नवखंमी नवरंगी निरुपम, विधविधरंग बनावनी ॥ मोतीये साथीयो पूरे मनोहर, नक्ति करे शुज नावनी ॥ ग॥३॥ प्रवचन रचना जग जन पावन, देशना श्रीगुरुरायनी॥धवल मंगल गांधर्वगुण गानें, सांजले सहु सुखदायिनी ॥ ग॥४॥ उदयरतन वाचक उपदेशें, रूमी सना रसरागनी॥ प्री ते पर मारथ पामे, वाणी श्रीवीतरागनी ॥ ग० ॥५॥इति ॥ ॥अथ गहूंली त्रहोंतेरमी॥ सजनी मोरी गुणशीलवनके मेदान रे, सजनी मो री आव्या श्रीवर्धमान रे॥सणाझानादिक गुण दरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) यारे॥ स०॥ पतित पावन पीयरीयारे॥ स० ॥१॥ ॥ ए आंकणी ॥ स० ॥ श्रेणिक हरख्यो थावे रे ॥स ॥ समकित दायिक जावे रे ॥ स ॥ कंचन वरणी नार रे ॥ स०॥ पंचसया परिवार रे ॥ स० ॥२॥ स ॥ धर्मदेशना जिन नांखे रे ॥ स० ॥ नवपद महिमा दाखे रे ॥ स०॥ नवपद आतम जाणो रे ॥ स० ॥ बातम नवपद वखाणो रे ।। स०. ॥३॥ स०॥ नवतत्व नूषण सार रे ॥ स०॥ रत्न रकेबी उदार रे ॥ स ॥ श्रवण मनन बहु मूल रे ॥स॥पहेरी वस्त्र अनुकूल रे ॥स ॥४॥ स॥ किया कुंकावटी हाथ रे ॥स ॥ मन निर्मलने पाथ रे ॥ स | जिनगुण कंकु घोली रे ॥ स ॥ मली सहीयरनी टोली रे ॥स० ॥ ५ ॥ स ॥ आणा तिलक धरावे रे ॥ स० ॥ चेलणा गईली बनावे रे ॥ स० ॥ एणी परें गढूंसी कीजे रे ॥सण ॥ नरजव लाहो लीजें रे ॥ स ॥ ६ ॥ स० ॥ विषय ते विष सम जाणो रे || स०॥ बोले त्रएय नुवननो राणो रे ॥ स०॥ शिवपुर सासरे चालो रे ॥ स ॥ सुनवमांहे माहालो रे ॥ स० ॥७॥ सम् ॥मणि उद्योत गुरु मलीया रे.॥ सए ॥ आज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० ) मनोरथ फलियारे ॥ स० ॥ शुं कही ये बारो वार रे ॥ स० ॥ ते कां करो परिहार रे || सणा ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सिद्धचकनी गहूंली चम्मोतेरमी ॥ ॥ हांरे महारे गम धर्मना साडी पञ्च्चवीश देश जो ॥ ए देशी ॥ हांरे महारे जिनयाणा ले इंद्रभूति ग धार जो, विचरे रे च विह प्रतिबंध विहारथी रे सो ॥ हारे महारे संयम धारी मुनिगणना शिरदार जो, चटज्ञानी शुजध्यानी धर्मना सारथी रे लो ॥ १ ॥ हांरे महारे राजगृही उद्याने आव्या नाथ जो, हरख्यो रे मगधाधिप त्रिकरण जावशुं रे लो || हांरे मारे यावे नृप चेलणादिक राणी साथ जो, अंग नमावी वंदे गणधर पावने रे लो ॥ २ ॥ हांरे महारे नव निस्तरणी जिनवाणी उपदेश जो, जाखे रे प्रभु गोयमस्वामी रंगथी रे लो ॥ हांरे मारे सेवो जवि जन सिद्धचक्र शुन लेश जो, बहुसुख पाम्यां मयणा तेहना संगथी रे लो || ३ || हांरे मारे अवसर पा मी मगधाधिपनी नार जो, उल्लसी रे मन हर्षी स्व स्तिक पूरवा रे लो ॥ हांरे मारे सहियर मंगल गा ती गीत पार जो, मानुं जव जव संकटने ए चूरवा रे लो ॥ ४ ॥ हरे मारे इणी विध स्वस्तिक पूरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रका पीठ जो, पामे रे ते मंगल माला माननी रे लो ॥ हारे मारे शिवपद कारण जावें जोग उकित जो, दीप कहे एम ए जे वात निदाननी रे लो। ॥५॥ इति ॥ ४॥ ॥अथ गहंली पंचोतेरमी॥ धोलनी देशीमां ॥राजगृही उद्यानमां, श्रीसोहम गणधार ॥ समोसरिया परिवारशें, मुनिजनना था धार ॥ १॥ चालो सखि गुरु वांदवा ॥ए आंकणी॥ पंच महाव्रत पालता, दशविध यतिधर्म सार ।। सत्तर नेदें संयम वस्या, वैयावच्च दश धार ॥ चा ॥२॥ गुप्ति धरे नववाडशु, झानादिक तप बार ॥ निग्रह क्रोध तणो करे, चरण सित्तरि शणगार । चा ॥३॥ पिंमविशुद्धि समिति धरे, जावना पडिमा बार ॥ ६ जियरोधक पमिलेहणा, गुप्ति अनिग्रहधार ॥ चा० ॥४॥ करण सित्तरी ए पालवे, टाले सकल कलेश॥ कमलासने बेसी कहे, जविजनने उपदेश । चा ॥ ५॥श्रेणिक नृपति मानशू, प्रणमी पट्टोधर राय॥ उचित अवग्रह ते साचवे, धर्म सुणे सुखदाय ॥ चाण ६॥ गुणवंती करे गहूंअली, चतुरा चेलणानार ॥ माणक मोती वधावती, जरती सुकृत नंमार ॥ चा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (TUO) hi को किल कंठें कामिनी, सोहामणी निर्मल वृंद ॥ - गुरुगुण अमृत गावती, पामति परमानंद ॥ चाणान्॥ ॥ श्रथ श्रीजंबुगुरुनी गहूंली बहोंतेरी ॥ ॥ अजब कियो रे मुनिराय, लघुवयें जोग लियो रे ॥ शोल वरस संयम लियो रे, तरुणी आठ विछोड ॥ मु निवर योग लियो रे | कोडि नवाएं सोवन तणी रे, बोडी मने कोड ॥ मु० ॥ १ ॥ तप द्वादश ज्ञेदें करे रे, जावता जावना बार || मु० || पडिमा बारना उद्य मी रे, गुण बत्री शना आधार ॥ मु० || || पडिरूवा दि क चउदे जला रे, निमित्त तंग सुवाय ॥०॥ निपु ण ते गुणठाणंग तथा रे, गुणसागर गुरुराय ॥ मु० ॥ ॥ ३ ॥ मुनि मंगलशुं परवरया रे, जंबू जुग प्रधान ॥ मु० ॥ विचरता पाठ धारिया रे, राजगृही उद्यान ॥ मु० ॥ ४ ॥ को कि नरपति वांदवा रे, सायें लइ परि बार ॥ मु० ॥ पद्मावती करे गाली रे, द्रव्य प्रधान विचार ॥ मु० ॥ ५ ॥ चन गति चूरण साथियो रे, श्रद्धा पीठ बनाय ॥ मु० ॥ वसन आभूषण व्रत तणां रे, शिवफल श्रीफल ठाय ॥ मु० ॥ ६ ॥ उत्तम गुरु गुणज तिथी रे, वधावे गुरुराज ॥ मु० ॥ गुरु मुख पद्मनी देशना रे, सुपि पामे शिवराज ॥ मु० ॥ ७ ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) ॥अथ गहूंली सत्योतेरमी॥ वाले महारे मारगडो रुंध्यो रे रतिणा हाथ, तेनी मुने जापटु लागी रे ॥ ए देशी॥ ॥ जग उपकारी रे वीर जिणंद, मगधे विचरता आवे रे ॥ साथे सुर नरना लश् वृंद गिरिवैनारे सुहावे रे ॥१॥ गोयम सोहम जास वजीर, मुनिगण सुपद सेवता रे ॥ अनिग्रह धारी रे केश मुनि धीर, रविशुं दृष्टि लगावता रे ॥२॥ श्रावे जुवनाधिपना वीश, बत्रीश व्यंतरना राजा रे॥मलिया वैमानिकना ईश, दश शशी रवि तेजें ताजा रे ॥३॥ इणि परें चारे जातना देव, कोडाकोडि मली घणा रे॥ करता सम वसरण ततखेव, निज निज कृत्यनी नहिं मणा रे ॥४॥ त्रिगडे बेसी त्रिजुवन तात, धर्म कहे करुणा आणी रे ॥ जेहवी सत्तागत निज जात, आत्मतत्त्व सहे प्राणी रे ॥५॥ नरपति श्रेणिकनी घरनार, चंप्रमुखी चेलणा राणी रे ॥ करती स्वस्तिक मंगल सार, निज गुरु आगल गुण खाणी रे ॥६॥ प्रजुने माणक मोती वधाव, विच विच पद प्रणमे तिहां रे ॥ अंतर आतमन्नाव जगावे, पुण्यनंमार नरे जिहां रे ॥७॥ सोहव गावे रे मधुरां गीत, गहूंली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाव उमंगशुरे ॥साची वाणी करी ए रीत, अमृत वाणी रंगशुरे॥७॥इति ॥ ७ ॥ ॥श्रथ गईली अहोतेरमी । ॥श्रावी हे देवा जलं जडो सासजी॥ए देशी॥ सरु पद पंकज नमी, सामणीजी ॥ गाशुं गुरु गुणमाल रे ॥ सङ्गुरु विचरंता वंदीयें ॥ सामणी जी॥ १॥ हादश अंग सिद्धांतना ।। सा॥पारग धारक एह रे ॥ स ॥ गुरु गुण बत्रीशे अलंकस्या ॥सा ॥ चरण करण नंमार रे ॥स ॥ सा ।। ॥॥ जव्य जीवने प्रतिबोधता ।। सा ॥ रत्नत्र यादि गुणधाम रे ॥ स०॥ गहूंथली करो गुरु आ गलें।सा॥ हषे धर। मन चंग रे ॥स० ॥सा०॥ ॥३॥ समकेत कुंकुम तिण समे ॥ सा ॥ समता निर्मल नीर रे ॥ स० ॥ थाल जख्यो शुज नावनो ॥ सा ॥ चोखा अखम परिणाम रे ॥स ॥ साण ॥४॥ मंगल साथीयो तिहां बन्यो । सा० ॥ रत्न त्रयादि गुण पीउ रे ॥ स०॥ जिनशासन सिंहासणे ॥ सा ॥ बेसी करे उपदेश रे ॥ स ॥ सा ॥५॥ पुहवी मंगल विहरता ॥ सा० ॥ तारण तरण ऊ हाज रे ॥ स ॥ श्रीकल्याणसागरसूरि जे नमे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) ॥ सा० ॥ देखी सकल गुणखाण रे ॥ स० ॥ सा ॥ ६ ॥ विशाल सागर कहे बंदीयें ॥ सा० ॥ एह वा मुनि नित्यमेव रे ॥ स० ॥ आतम मंगल अनु जवे ॥ सा० ॥ तेहिज नित्य नित्य मेव रे || स० ॥ सा० ॥ ७ ॥ इति ॥ ७८ ॥ ॥ अथ गहूंली जगण्याएंशी मी ॥ ॥ हस्तियाम वनखंग मकार, राजगृही नालिंदा बार, श्राव्या इंद्रभूति गणधार तो । गौतम गुरु वं दवा जयें | वंदना करीयें ने शिवसुख वरीयें तो ॥ गौतम गुरु० ॥ १ ॥ ए यांकणी ॥ उदक पेढाल मुनी सर दोय, पार्श्वनाथ संतानीया सोय, पूढे प्रश्न ए एणीपरें जोय तो ॥ गौ० ॥ २ ॥ श्रावकने अणुव्रत उच्चरावे, मुनिवर देशश्री विरति करावे, स्थावर अनुमति मुनिने थावे तो ॥ गौ० ॥ ३ ॥ कहे गौतम सुणो मुनिवर वात, शेवपुत्र षटनो दृष्टांत, नृप अ न्यायथी मारण जात तो || गौ० ॥ ४ ॥ तास पिता करे विनति राय, व कुलनो उच्छेद ते थाय, पंच पुत्रने मूको ताय तो ॥ गौ० ॥ ५ ॥ इम विनति करता तस पे, पुत्र एक तस हर्ष ते व्यापे ॥ मार एनी नहिं अनुमति या तो ॥ गौ० ॥ ६ ॥ राय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४). प्रमुख सुणी वंदन श्रावे, अंतरंग राणी गहूली सावे॥ उत्तम गुरुपद पद्म वधावे तो॥ गौ ॥॥ इति ॥ ॥अथ गहूंली एंशीमी ॥ जुमखडानी देशी।। • ॥ ज्ञानदीवाकर शोजता, श्रुतसागर मुनिराज ॥ सुहंकर साधु जी॥मूकी काम विडंबना, कूखी संबल साज ॥सुहंकर साधु जी ॥१॥ नहिं ममता सम ताधरा, शांत सुदंत महंत ॥ सु॥ षटपद वृत्ति आ हारता, देश काल मतिमंत ॥ सुणा॥ पंच महाव्रत नावना, जावंता पचवीश ॥ सु०॥ पणवीश चित्त न धारता, अशुज नावन निश दीस ॥सु॥३॥ शिव नारं। रंजन नणं।, पहत्यो साधुनो वेश ॥सु० ॥ ते आगल मृगलोचना, करती विनय विशेष ॥ सु०॥ ॥४॥क्रोधादिक चल जीतवा, वरवा चार अनंत॥ सु०॥ स्वस्तिक पूरी वधावती, सशुरु चरण नमंत ॥ सु०॥५॥ गावे सोहागण गढूअली, धरती हर्ष अमंद ॥ सु०॥ श्रीशुजवीर वचन सुणी, पामे पद महानंद ॥ सु॥६॥ इति ॥ ७ ॥ ॥अथ गहूंली एकाशीमी॥ .. ॥ अने हारे सरसतीने चरणे नमी रे, वांउं गुरुना पाय ॥ अलिय विघन सवि टले रे, माणु एक पसा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) य ॥ १ ॥ चालो सखि गुरु वांदवा रे || अने हारें राजगृही रलीयामणी रे, तिहां श्रेणिक राजा श्रमं द ॥ समकीत शुद्ध ते सद्दहे रे, ध्यविदारे सवि फंद ॥ चा० ॥ २ ॥ ० ॥ वीर प्रभु तिहां याविया रे, तेह नयरी उद्यान ॥ वनपालके दीधी वधामणी रे, हरयो देश तस दान ॥ चा० ॥ ३ ॥ श्र० ॥ लाख दान देश करी रे, राजा श्रेणिक आय ॥ चार निका यना देवता रे, वंदे प्रजुना पाय ॥ चा० ॥ ४ ॥ श्र० ॥ aur प्रदक्षिणा देश करी रे, बेठा इंद नारेंद ॥ वीर वाणी तिहां सांजली रे, मनमां दुर्ज यानंद ॥ चा० ॥ ॥ ५ ॥ ० ॥ जविजनने पडिबोहता रे, जस यात म उद्धार ॥ पाप चक्र सवि चूरता रे, पामे सुरगति सार ॥ चा० ॥ ६ ॥ ० ॥ चलणा करे तिहां गा सी रे, सोवन जरीने थाल ॥ प्रजुने मोतीडे वधाव ती रे, मुख जोती सुविशाल ॥ चा० ॥ ७ ॥ ० ॥ धर्मलाज तिहां उच्चरे रे, वरसता अमृत वाण ॥ जे विजावे ते सांजलें रे, तस घर कोडि कल्याण ॥ चां० ॥ ८ ॥ ० ॥ समवसरण बिराजता रे, नवकमलें पाय ॥ इमक गुणे शोजता रे, चंद्रमुनि गुण गाय ॥ चां० ॥ ए ॥ इति ॥ ८१ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥अथ गहली बाशीमी॥ ॥सही चालो श्री महावीरने, नमवा जश्य रे॥ गणी गौतम स्वामी बजीर, बेनी तिहां जयें ॥स ही॥१॥ त्रिगडानी रचना करी सारी, त्रिदशपति अति नारी रे ॥ मध्यपीठ उपर अती तगारी, बेग वीरजी तारी॥बे॥ सही॥॥चौद सहस मुनि शुं परवरिया, गुणशील वन उतरीया रे ॥ अनंत अनं त गुणें करी जरिया, समता रसना दरिया ॥ बे॥ सही ॥३॥श्रेणिक स्वामी समागत जाणी, साथे चेलणा राणी रे ॥ लेती समकित लाल कमाणी, वं या उलट आणी ॥ बे॥ सही० ॥ ४ ॥ बाल कुमरी शुजराज समाजे, जलधरनी परें गाजे रे ।। आतपत्र प्रनु शिरपर राजे, लामंमल बबि बाजे ॥ बेनी०॥ सही० ॥५॥ एम निसुणी चाली ते बाला, बोडी सहु जंजाला रे ॥ गति चालती जिम गजबाला, थुण वा जिनगुणमाला ॥ बेनी० ॥ सही॥ ६ ॥ तिहां श्रावी प्रजमुखा परखी, बेठी अवसर निरखी रे॥ गहूंली पूरे अति मन हरखी, सहीयर सरखा सर खो ॥ बे ॥ सही० ॥ ॥ चरण नवी मुक्ताशुं व धावे, हरख अति दिल लावे रे । बहु बाला मली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (Ug) गहूंली गावे सरवे कंठ मिलावे || बे० ॥ सहि० ॥ ॥ यंग उपांग सुणी जिन पासें, धारी अति उल्लासें रे ॥ दीप कहे प्रनुध्यान विलासें, पहोती निज यावासें ॥ ० ॥ सही ० ॥ ॥ इति ॥ ८२ ॥ ॥ अथ अध्यात्म गहूंली त्याशीमी ॥ ॥ जवि तुमें वंदो रे शंखेश्वर जिन राया ॥ ए देशी ॥ ॥ अमृत सरखी रे सुणी यें वीरनी वाणी, अति म न हरखी रे प्रणमो केवल नाणी ॥ ए आंकणी बे ॥ योजनगामिनी प्रजुनी वाणी, पांत्रीश गुणथी नांखे ॥ पूरव पुण्य पूरव जेहनां, प्रजुवाणी रस चाखे ॥ मृत सरखी० ॥ १ ॥ जेहमां द्रव्य पदारथ रचना, धर्माधर्म आकाश || पुल काल अने वलि चेतन, नित्यानित्य प्रकाश ॥ अमृत ॥ २ ॥ द्रव्य गुण ने पर्याय प्रकाशे, अस्ति नास्ति विचार ॥ नय सातेथी मालकोशमां, वरसे बे जलधार ॥ अमृत० ॥ ३ ॥ गुणसामान्य विशेष विशेषें, होय मलि गुण एकवी श ॥ तस च जंगी चार निक्षेपे, नांखे श्रीजगदी श ॥ अमृत० ॥ ४ ॥ जिलदृष्टांतें खेचर नूचर, सु रपति नरपति नारी ॥ निज निज जाषायें सहु सम जे वाणीनी बलिहारी ॥ अमृत० ॥ ५ ॥ नंदीव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " ( एठ ) ईननी पटराणी, चल मंगल प्रभु आगे || पूरे स्वस्ति क मुक्ताफलनो, चडवा शिवगति पागें ॥ अमृत० ॥ ६ ॥ चनुयोगी तमदर्शी, प्रजुवाणी रस पी जें ॥ दीपविजय कवि प्रभुता प्रगटे, प्रभुने प्रजुता दीजें ॥ मृत ॥ ७ ॥ इति ॥ ८३ ॥ ॥ अथ जंबुकुमारनी गहूंली चोराशी मी ॥ घरूडा सहियो जूले हाथणी ॥ ए देशी ॥ ॥ राजगृही नयरी समोसख्या, पांचशें मुनि परि वार || मोरी सहियां हो ॥ केवलज्ञान दिवाकरु, श्री श्री सोहम गणधार || मोरी || चलो पट्टोधर गुरु वां दवा ॥ १ ॥ एक । ॥ जंबुकुमार यावे हेजशुं, पूज्य जीनें वंदन काज || मोरी || ब्रह्मचारी शिर सेहरो, लेवा मुक्तिगढ राज ॥ मोरी० ॥ चालो० ॥ २ ॥ गुरु मुखथी रे सुणी देशना, संयमें उल्लसित जाव ॥ मो० ॥ कायिक समकेतनो धणी, तरवाने जवजल दा व ॥ मो० ॥ चा० ॥ ३ ॥ अणुव्रत लेइ गुरु यागलें, संयमनो रे उजमाल ॥ मो० ॥ परणीने घरणी श्र ग्ने, बूऊवी वयण रसाल ॥ मो० ॥ चा० ॥ ४ ॥ संयम लीये मुनि पांचरों, सत्तावीश परिवार || मो० ॥ चर ण करण गुण आगला, जेहना बे धन्य अवतार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मो० ॥ चा ॥५॥ सुधर्मा स्वामीना पाटवी, केवल लही गबराय ॥ मो॥ गुणशीला चैत्य पधारिया, उ दायिन हर्ष न माय ॥ मो॥ चा० ॥६॥ पटराणी राणी पूरे गहंअली, करवा सफल अवतार ॥ मो॥ दीपविजय कविराजने, प्रणमे डे बहु नर नार ॥ मो० ॥ चा ॥७॥इति ॥४॥ ॥अथ फूलडां पंच्याशीमां ॥ ॥ सखी रे में कौतुक दी, साधु सरोवर जीलता रे॥ सखी नाके रूप निहालतां रे ।। सखी लोचनथी रस जाणतां रे ।। सखी मुनिवर नारीशु रमे रे ॥१॥ सखी नारी हींचोले कंतने रे ॥ सखी कंत घणा एक नारीने रे ॥ सखी सदा यौवन नारी ते रहे रे, सखी वेश्या विलुका केवली रे ॥॥ सखं। आंख विना देखे घणुं रे ॥ सखी रथ बेठा मुनिवर चले रे ॥ स खी हाथ जलें हाथी मूवीयो रे ॥ सखी कुतरीये के शरी हण्यो रे ॥३॥ सखी तरशो पाणी नवि पीये रे ॥ सखी पग विदूणो मारग चले रे ॥ सखी नारी नपुंसक जोगवे रे ॥ सखी अंबाडी खर उपरें रे॥४॥ सखी नर एक नित्य उन्नो रहे रे ॥ सखी बेगे नथी नवि बेसशे रे ॥ सखी अर्क गगनवच्चे ते रहे रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) सखी मांकडे महाजन घेरीयो रे ॥५॥ सखी उंदरे मेरु हलावियो रे ॥ सखी सूर्य अजवालुं नवि करे रे ॥ सखी लघु बंधव बत्रीश गया रे ॥ सखी शोके घ डी नहीं बेनडी रे॥६॥सखी शामखो हंस में देखी यो रे॥सखी काट वल्यो कंचनगिरि रे॥ सखी अंज नगिरि उज्ज्वल थयो रे ।। सखी तोहे प्रनु न संजारी या रे ॥७॥ सखी वयरसामी सुता पारणे रे॥ सखी श्रा विका गावे हालरां रे ॥ सखी महोटा थइ अर्थ ते कहेजो रे ॥ सखी श्रीशुजवीरने वाहालडारे ॥७॥ इति हरियालीनी गहुँली ॥ ५ ॥ ॥अथ चूनडी व्याशीमी॥ ॥हांजी समकित पालो कपासनो, हांजी पेंजण पाप अढार ॥ हांजी सूत्र नबुं रे सिझांतनुं, हांजी टालो आठ प्रकार ॥ हांजी शीयल सुरंगी चूनडी। १॥ हांजी त्रण गुप्ति ताणो ताणो, हांजी नलीयन री नव वाड ॥ हांजी वाणो वाणो रे विवेकनो, हांजी खेमा खुंटीय खाय ॥ हांजी शी॥२॥ हांजी मूल उत्तर गुण घूघरा, हांजी बेडा वणो ने चार ॥ हां जी चारित्र चंदो बच्चे धरो, हांजी हंसक मोर च कोर ॥ हांजी शी० ॥ ३ ॥ हांजी अजब बिराजे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) चूनडी, हांजी कहो सखी केटबु मूल्य ।। हांजी लाखें पण लाने नहीं, हांजी एह नहीं सम तोल ॥ हांजी ॥शी हांजी पहेली उढी श्री नेमजी॥ हांजी बीजी राजुल नेट ॥ हांजी त्रीजी गजसुकुमालजी, हांजी चोथी सुदर्शन शेठ ॥ हांजी शी॥५॥हाँ जी पांचमी जंबू स्वामीने, हांजी बही धनो अण गार ॥ हांजी सातमी मेघ मुनीसरू, हांजी आठ मी एवंती कुमार ॥ हांजी शी०॥६॥ हांजी सीता कुंता जौपदी, हांजी दमयंती चंदनबाल ॥ हांजी अंजना ने पद्मावती, हांजी शीयलवती अतिसार ॥ हांजी शी० ॥७॥ हांजी अजब बिराजे रे चूनडी, हांजी साधुनो शणगार ॥ हांजी मेघ मुनीसर एम जणे, हांजी शीयल पालो नर नार ॥ हांजी शी॥ ॥७॥ इति ॥६॥ ॥अथ गढूंली सत्याशीमी ॥ ॥घरे आवोजी आंबो मोरियो॥ ए देशी ॥ ॥ चालो सहियरोजी साधुजी वंदीये, श्रीवीरतणा पट्टोधार रे ॥ चजनाणी सोहम गणधरु, सूत्र रय ण तणा नंमार रे ॥चालो ॥ १ ॥ एकविध असं यम टालता, धर्म दोय यति गृही गमता रे ॥ त्रि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७५) विध गारवने परिहरे । चार सुख शय्या मांहे रमता रे । चालो० ॥॥प्रमाद तजे नजे व्रतीने, जय टा ले मातने पाले रे ॥ नियाणां न करे साधु जी, दश श्रमण धरम अजुवाले रे ॥ चा ॥३॥ श्रझावंती शु क श्राविका, गुरु आगल नक्ति करती रे ॥ गुरु था गल पूरे गहूंअली, शासन करती बहु उन्नति रे ॥चा ॥४॥ जिनवाणी अनुनवरस जरी, गुरु उत्तम रत्नना मुखथी रे ॥ सुणतां पामे निज आतमा, सुख अनुन वमा रहे एथी रे ॥ चा० ॥५॥ इति ॥ ७ ॥ ॥अथ तपनी नाष्य अव्याशीमी। ' ॥साहेबा महारा अरज करुं बुं कंत, कहे सुणो कामिनी जी॥ साहिबा महारा गुरुजपदेशे हं, सहि यां मांहे ऊपनी जी॥१॥ सा ॥ आशा आपो, मा सखमण तप आदलं जी ॥ सा॥ अवसर पामी, मा नव नव सफलो करूं जी॥२॥ गोरी महारी हाथ न चाले, मन नवि चाले माहरूं जी ॥ गोरी महा री ए तप महोटुं, शरीर खमे नहिं ताहेरुंजी ॥३॥ सा० ॥ ल्योने आदरं, संवत्सरीना खोला पाथरूं जी ॥ सा० ॥ मान मागुं बुं, अंतराय तमें कां करो जी ॥४॥ गोरी अमें आज्ञा पापी, पचरकाण जश् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) उच्चरो जी॥ ससरा महारा ढोल वजडावो, धर्मस्था नक धन वावरो जी॥५॥सासु महारी साथे आवो चोक पूरावो गहूली साथीये जी ॥ सहीयर महारी साथे आवो, गुरुजी वधावो गजमोतीयें जी ॥६॥ गुरुजी महारा पञ्चरकाण करावो, मास खमण, मन रूली जी ॥ जेठजी महारा वाजां वजडावो, खेला नचावो खांतशु जी ॥७॥वीरा महारा घाट घडावो, पाट धरावो शेरीयें जी ॥ सामणी महारी सांगी देव रावो, वाजिन मुंगल नेरीयें जी॥॥सामणी महा री आंगी रचावो, गुरुजी मनावो पाय लागीने जी॥ सामणी मोरी पासें रहीने पोथी पूजावो, वास नखा वो मागीने जी॥ ए॥ नवियां एहवी नावना नावो, त काया निर्मल करो जी ॥ तपीने महारी वंदना होजो, उदयरत्न एम उच्चरे जी ॥ १० ॥ इति॥ ॥ ॥अथ नव पदन। गहलंनव्याशीम।। ॥ आतमराम मुनिराजीया, नवजल तारण नाव ॥ मोरी सहीयो रे ॥ पांचे योगने साधवा, लीधो ते मुनिवरमाव ॥ मोरी०॥ चालोने गीतारथ गुरुने वां दवा ॥ १ ॥ वृत्ति कहे योग पांचमो, साधन करे सुविलास ।। मोरी० ॥ अनुलव अज्यासी सदा, कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) ता ज्ञान अभ्यास ॥ मो० ॥ चा ॥२॥ पहेलो अध्यातमयोग जे, नावनायोग तेम जाण । मो० ॥ ध्यानयोगें त्रीजो सही, समता योग मन होय ॥ मो०॥चा॥३॥ एम अनेक गुणे शोनता, वीर थाणा लेशमान ॥ मो० ॥ गोयमस्वामी समोसस्या, राजगृही उद्यान ॥ मो॥ चा०॥४॥ श्रेणिकराय आवे वांदवा, सुणी आगमन उदंत ॥ मो० ॥ दायि क समकितनो धर्णी, वांदे गुरु गुणवंत। मो० ॥चा० ॥५॥ श्ण अवसर राणी चेलणा, नाव सजी शण गार ॥ मो॥श्रझापीठ उपर सही, गईली करे म नोहार ॥ मो० ॥ चा० ॥ ६ ॥ तव गोयम दिये देश ना, सेवो नविक सिक चक्र ।। मो॥ आंबिल ली थाराधिये, जिम न पडो जवचक्र ॥ मो० ॥ चा०॥ ॥७॥ पांचे धर्मीने चार धर्म, धर्मी सेव्या धर्म होय ॥ मोरी० ॥ मयणा ने श्रीपालनो, संबंध कहे सवि सोय ॥ मोरी०॥चा ॥७॥ वली नवपदमय यातमा, श्रातम नवपद जोय ॥ मो॥ ध्येय ध्याता ध्यान एकथी, नेद लहो नवि कोय ॥ मोग ॥चा॥ए॥आतमधर्मीने देशना, धारजो हृदय मजार ॥ मो॥ खिमाविजय जस संपदा, शुजवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) जय सुखकार ॥ मो॥ चा० ॥ १० ॥ इति ॥ ७ ॥ ॥अथ गहूंखी नेवुम। ॥ ॥अजित जिणंदशु प्रीतडी । ए देशी ॥ ॥सहियर चतुर चकोरडी, गुण उरडी हो यश्ने उजमाल ॥श्रावो गुरुने नेटवा, उःख मेटवा होसुणी धर्म रसाल ॥ बलिहारी गुणवंतनी॥१॥जुमतिहो होय कोडि कल्याण ॥ बनाए आंकणी ॥ जावत ना जे जव तणी, वलि वाजे हो घरे जीत निशाण ॥ ब लि॥२॥ वलि आतमतत्त्वनी सेवना, शुन देशना हो सुणतां जे रीक॥ तेहिज तत्त्व प्राप्ति तणुं, प्रजु नांख्यु हो आगममां बीज ॥ बलि॥३॥ नमना निगमन वंदनें, गुरु विनयें हो होय लाल अपार ॥ समकित शुरु ग्रही सही, ते वेहेलो हो लहे नवज लपार ॥ बलि ॥ ४ ॥ स्वस्तिक कारण स्वस्तियुं, गुरु आगल हो रचियें मनरंग ॥ कुंकुमरोल कचोल डां, धरि ऊपर हो श्रीफल शुन चंग ॥ बलि ॥५॥ अव्य मंगलथी लावियें, जावमंगल हो दानादिक चोक । उपर साकर संपदा, सहि पामे हो शुनदृष्टि लोक ।। बलिग ॥६॥ चोक पूख्यो गति चारनो, करी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) फेस हो नवमांहि अनंत ॥ श्रातमराम सुगुरु हवे, मुझ दीजें हो सहि सुख अनंत ॥ बलि० ॥॥इति ॥ ॥अथ गहूंली एका'मी॥ ॥ रूडीने र ढियाली रे समकित श्राविका रे ॥ सज करि शोल जला शणगार, कर धरी रजत रकेबी सार ॥ रूडीने ॥१॥ कुंकुम रूडी मांहे कुंकावटी रे ॥ कुंकुम थाल जस्यो करि श्रीकार, निरखवा चा ली गुरु देदार ॥ रूडीने ॥ २ ॥ सहियर टोली रे साथें मली संचरी रे॥ जई गुरु केरा वंदे पाय ॥ गहूं खी करे शुन चित्त लाय ॥ रूडीने ॥३॥ मंगल क रती रे निज आतम नणी रे॥ वलि जलो कंकणनो करे रणकार ॥ थाय रूडो कांफरनो ऊमकार ॥ रूडी ने ॥४॥ लूणां करती रे गुरुगुण हेजशु रे ॥ श्री फल ग्वती करे रंगरोल ॥ जाणती नथी को गुरुने तोल ॥ रूडीने ॥५॥ मंगल करती हियडे हेजशु रे ॥ वलि सुणी आगमनो समुदाय ॥ नवजल सा यर तरण उपाय ।। रूडीने॥६॥ उत्तम घरनी रे श्रवणें चेतना रे॥सांजली हैयडे हरख न माय ॥प्रेम कहे जिम अमिय समाय ||रूडीनेाणा इतिाए। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) ॥ अथ जयंती श्राविकानी गईली बाणुंमी॥ ॥ फतमलनी देशी ॥ ॥ चित्तहर ॥ चोवीशमा जिनराय, नयरी कोसं बी समोसस्या ॥ चि०॥मनमोहन मुनिराज, चन्द हजारें परवस्या ॥१॥ चि॥ सुरनर परषदा बार, रतन गढें आवी ठस्या ॥ चि॥ बेठा सिंहासन ना थ, चामर उत्र अलंकस्या ॥२॥ चि०॥ वंदे उदा नय नूप, रूप चार दर्शन दिये ॥ चि॥ सम किती व्रतधर लोक, कोक कमलपरें विकसियें ॥३॥ चि०॥ रंजा अप्सरा ताम, गहूली करीने वधावती ॥ चि॥ रूपें जयंती समान, नामें जयंती माहासती॥४॥ चि०॥ विर अदर दोय मंत्र, जपती नित्य जपमा लिका ॥ चि॥ नक्ति सोवन रसी देह, जेह हजूरी श्राविका ॥५॥ चि॥ नष्टाद नोजाइ साथ, नाथ आगल ऊनी रही ॥ चि॥ प्रश्न पूजे कर जोडी, प्रजुजी उत्तर देता सही ॥६॥ चि॥ जागता उंघ ता कोण, उद्यमी बालसु कोण जला ॥ चि॥ धर्मी अधर्मी लोक, शतक बारमे नगवर वरा ॥ ७ ॥ चि०॥ सुणि हर खित कहे देव, महेर नजर महोटा तणी ॥ चि० ॥ थर हुँ जगविख्यात, जो प्रनु पोता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) नी गणी ॥ ७॥ चि०॥ विचरो देश विदेश, पण मुज हृदय वसो सदा ॥ चि०॥ श्रीशुजवीर जिणंद, बेद न देशो मुज कदा ॥ ए॥इति ।। ए॥ ॥अथ गहूंली त्राणुमी॥ ॥ सुण वात कहुं साहेली रे, गुरु गुण गावा टेव प डी॥ नहिं आवे फरी आ एवी रे, पुण्यतणी या एक घडी। सुण ॥१॥ ए आंकणी ॥ सहु सखी यो मलीने चाली रे, गुरु बागल जश् पाय पडी ॥ ए केक थकी अधिकेरी रे, गुरुगुण गाती हर्ष धरी ।। सु०॥२॥जव अनंता जमतां रे, पुण्य संयोगें योग मल्यो ॥ जिनवाणी अती मीठी रे, सुरतरु महारे बाज फल्यो ॥ सु०॥३॥ संसारसमुज्ने तरवा रे, जोने एहिज जाहज समी। जिनवाणी अतिसारी रे, नविजनने हृदयें थतिय गमी ॥ सु॥४॥ योग्य जीवने हितकारी रे, शांत सुधारस ए वाणी ॥ नय निक्षेप प्रमाणी रे, अनेक गुणनी जे खाणी ॥ सु० ॥५॥ रत्नत्रयनुं कारण रे, तारण नव्यने एह स ही॥ सरस सुधारस जेहवी रे, देवेंप्रसूरिये एह कही ॥सु०॥६॥ प्रजु मुखबिटथी खरती रे, ग पधर लीये चित्त धरी॥अंग उपांगनी रचना रे, नय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) गम जंग अनेक करी ॥ सु०॥७॥ प्रवचन कुशमे गुं थी रे, मुनिवर राजने कंठ वी॥ देवेंष सूरि एम नांखे रे, नविजन प्राणी ए खेत नणी ॥ सु०॥॥ खस्तिक पूरे मनरंगें रे, गुरु मुख जोती सुविशाला॥ प्रेमेथी नविजन जावो रे, अमर लहे वर शिव बाला ॥ सु०॥ ए॥ इति ॥ ए३ ॥ ॥अथ रूपैयानी गलीचोराएंमी॥धोलनी देशीमां। ॥ देश मूलकने रे परगणां, हाकम हुकम करंत ।। बडिदार चोपदार उनला, ए सहु महोटा नाश् धरंत ॥ रूपैयानी शोजा रे शी कहुं ॥१॥ कसबी बोगाली पालखी, रथ धरी घूघरमाल ॥ सेवक ही रे मलप ता, धनपाल घोडीनी चाल || रूपैयाणाशा उंचा उंचा मंदिर मालियां, खाजलीयाला डे गोंख ॥ कोरणी याला गोख ॥रूण॥३॥ श्रावो बेसोरेसहु करे, वली दीये आदर मान ॥ तोये पण बेसे नहीं, नहीं सां जले देश कान ॥ रू०॥ ४॥ निर्धन आवे रे ढ़क डो, न दीये श्रादर मान ॥ महोढुं मरडी नीचं जूए, पग मेलवानुं नहिं नाम ॥ रूपैया॥५॥ अथ वि नानो रे गांगलो, गर0 गांगा रे शेठ ॥गरथ विनाना रे शेठीया, दीसे करता रे वेठ॥ रूप॥ ६॥ विवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) वाज में ऊजला, संपत्ति नाम धराय ॥ जगमां कहेवा या रे ऊजला, ए सदु महोटा नापसाय ।। रू० ॥ ७॥ संग्राम शोनी रे वावरे, महोरो उत्रीश हजार ।। वस्तुपाल तेजपाल ऊजला, ए सहु जगत मकार ।। रू०॥॥ दीपविजय कविराजने, होजो मंगल मा ल ॥ जगमां कहेवाया रे ऊजला, कोरडीयालाने मा न ॥ फूदडीयालाने मान । रू० ॥ ए॥इति ॥ ए॥ ॥अथ गहूंली पंचा|मी॥ ॥ एतो अमल कप्प उद्यानमां, देवाची नारी ॥ एतो रूपकला गुण नारी हो ॥ एतो धारी रे सम नाली रे, आवी वंदे वीरने जी ॥१॥ देश प्रदक्षिणा खामीने ॥ दे०॥ एतो निज निज नाम सुणावी हो ॥ एतो जावे रे वधावे रे प्रजुने नाचे रंगशुं जी ॥२॥ बम बम बमके वीडीया ॥दे०॥ एतो घम घम घूघरा वागे हो॥ एतो रागे रे प्रनु आगे रे संगे स्वर आलापती जी॥३॥जणणण वीण वजावती ॥दे॥ एतो घणणण घुमणी लेती हो ॥ एतो देती रे कर ताली रे, ताली गाती गीतने जी॥४॥दों दौं धप मप बंदशुं॥दे॥ ए तो वागे मृदंग सुहंगी हो ॥ एतो रंगी रे गुण संगी चंगी वागे वांसली जी॥५॥थे थे थे। मुख उच्चरे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दे ॥ एतो बिच बिच अंगने वाली हो ।। एतो बाली रे सुकुमाली रे, नाली मुखड़े वीरनुं जी॥६॥ लली लली देती उवारणां ॥ दे०॥ एतो समकित निर्मल करती हो॥ एतो धरती रे गुण धरतीरे, जिहांप्रनुजी विचरता जी ॥॥ एणी परें नाची नमी करी ॥ दे॥ एतो अनुजव सुख मतवाली हो॥ एतो गाली रे निज जव टाली रे कुःखड़े पहोती वर्गमां जी ॥॥ वा चक रामविजय कहे ॥ दे॥ एतो समकितवंतनी करणी हो । एतो वरणी जिननक्ति नीसरणी हो । शिव मंदिर तणी जी। ए॥इति ॥ एए॥ ॥अथ गहूंली उन्नुम।। ॥ते तरिया नाश्ते तरिया ॥ ए देशी॥ - ॥आज नगरमा महिमा उडव, जलें अम्ह गुरु या व्यारे ॥संघ सहुने मनमां नाव्या, आणंद हरखें व धाव्या रे ॥ आज ॥१॥ पंच समिति त्रण गुप्तियें गुप्ता, काय जीवने पाले रे ॥ पंच माहाव्रत सूधां धारे, पंचाचारशुं माले रे ॥ आज ॥२॥ आगम गु रुनो सांजली हर्षित, वंदन बहु जन आवे रे ॥ नर नारी तो मलि मलि टोलें, गुरुगुण गहूली गावे रे । आज० ॥ ३॥ शुजपरिणति वर पट्ट बिगर, श्रात्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) बाल लश हाये रे ॥ शुजरति कुंकुम निजगुण सांपुल, समकित श्रीफल साथे रे ॥आज०॥४॥ जिनवा णी बहुरंगी उढणी, उढी मनने नावे रे ॥ ज्ञानादि क गुण खूबणां रूडां, जावशुं शालि वधावे रे॥आज ॥५॥ऽव्यने नावें गुरुने वंदी, सांजलो वीर प्रनु वाणी रे ॥ तप जप नियम व्रत बहु कीजे, मलुक जा वना आणी रे॥ आज ॥६॥ इति ॥ ए६ ॥ ॥अथ गहूली सत्ता'मी॥ ॥अंबसाल उद्यानमां, कांश विचरंता वीर जिणंद रे॥ समवसरण देवे रच्यु, कांबेग नयनानंद ॥ जि नजीने बोलडीये ॥ मोह्या मोह्या रे सुर नर लोक ॥ जि० ॥१॥पर्षदा बार तिहां मली, कांश बेठी नमी शुन चित्त रे॥ कोडी गमे सेवा करे, कांश निर्जर ने पुर हुंत ॥ जि० ॥॥ चउमुख चउदिशि वीरजी, कांश देवे देशना सार रे ॥ दान शीयल तप नावना, कांश शिवपुर मारग चार ॥ जि ॥३॥ चार निका यना देवता, कांश अण ढूंते एक कोडी रे ॥ सेवा करे प्रजुजी तणी, कांश उन्ना बे कर जोडी । जिन ॥४॥ वनपालकें जश्वीनव्यो, कांऽश्रीकोणिक मा हाराय रे ॥ सपरिवारशुं धावियो, कांश बेगे नमि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११३) प्रजु पाय || जि० ॥ ५ ॥ समतारसमयी देशना, कांइ जांखे वीर कृपाल रे ॥ नयगर्जित सुणी बोलडा, कां हरख्यो चित्त भूपाल || जि० ॥ ६ ॥ मिथ्यामत पूरें ॥ टल्यो, कां ऊग्यो समकित सूर रे ।। मोह महामद मोडियो, कां प्रगढ्यो खतम नूर || जि० ॥ ७ ॥ को णिक धरणी धारणी, कांइ जरी अक्षत शुचि थाल रे || जिन ागल स्वस्तिक करे, कांइ कुंकुम रंग रसा ल ॥ जि० ॥ ८ ॥ मलीने सौ गावे तिहां, कां प्रभु गुण जक्ति सलोक रे ॥ ज्ञान सुजस विनोदमां, कां मग्न हु बहु लोक || जि० ॥ ए ॥ इति ॥ || ॥ अथ गली मी ॥ ॥ कठमारां हो नदि वाजां वाजीयां ॥ ए देशी ॥ पंच महाव्रत हो पालता, पालता जिव व काय ॥ मोरी चाबी बहेनी, चतुर चोमासु गुरुजी श्र विया ॥ ए कणी ॥ संघ सहुने हो मन जावता, जावता प्रवचन माय | मोरी० ॥ च० ॥ १ ॥ गम गम हो जवि बोधता, रोधता विषय प्रमाद ॥ मो० ॥ पूण्य प्रजावें हो गुरु इहां, मलिया धर्मना वाद || मोरी० ॥ च० ॥ २ ॥ शोल शणगार सजी सुं दरी, गावेजी गीत रसाल ॥ मोरी० ॥ गहूंली रचे 0. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११४) मन रंगशु, सुणीयेंजी सूत्र विशाल मोरी ॥ चण ॥३॥ धवल मंगल गावे गोरडी, वाजंते ढोल निशा न ॥ मोरी० ॥ ललि ललि कीजें जी सुबणां, धरता जी धर्मनुं ध्यान ॥ मोरी ॥ च०॥४॥ नगर लोक स हु हर खियां, वाध्योजी धर्मनो रंग ॥ मोरी०॥ वीर शासन माहे एहवा, मलूक नाव अन्नंग । मो० ॥५॥ ॥अथ चकेसरी मातानी गरबी नवाणुंमी॥ ॥अलबेली रे चक्केसरी मात, जोवाने जश्ये ॥जेह नां सोवन वर्णां गात्र, जोवाने जश्ये ॥ ए आंकणी ॥जोवा जश्ये पावन थश्ये, देखी मन गहगहीयें रे ॥ एक तीरथ बीजी जगदंबा, वंदी संपत लही यें ॥ जो ॥०॥१॥श्राव जुजाली अति लटका ली, मृगपति वाहन वाली रे ॥ जिनगुण गाती खे ती ताली, तीरथनी रखवाली ॥ जो ॥ अ॥२॥ श्री सिफाचल गिरि पर गाजे. देवी देव समाजे रे रंगित जाली गोख बिराजे, घडी घडी घडीयाला का जे ॥ जो ॥ अ॥३॥ घाटडी लाल गुलाल सोहा वे, पीला राता चरणा रे ॥ बहु शोने ले जग जननी ने, केशर कुंकुम वरणा ॥जो ॥ अ॥४॥ खलके कर कंकणने चूडी, नवसरो हैयडे हार रे ॥ रत्नजडि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) त जांऊर बे चरणे, घूघरीयें घमकार ॥ जो० ॥ अ० ॥ ५ ॥ नाके मोती उज्ज्वल वाने, बाजुबंध बेहु बांदे रे । केडे कटि मेखला रणजगती, ऊलके हीरा मांहे ॥ जो० ॥ ० ॥ ६ ॥ देश देशना न्हाना महोटा, सं घ लइ संघवी यावे रे ॥ ते सहु पहेलां श्रीफल चून डी, जगजननीने चढावे ॥ जो० ॥ ० ॥ ७ ॥ धन्य धन्य ए श्री पुंकर गिरि जिहां, जगदंबानो वास रे । जे कोइ ए तीरथने सेवे, तेहनी पूरे यश ॥ जो० ॥ ॥ ८ ॥ संघवी संघतणी रखवाली, श्री जिन सेवा कारी रे || दीपविजय कदे मांगलिक करजो, बे बहु शोजा तारी ॥ जो० ॥ श्र० ॥ ए ॥ इति ॥ एए ॥ ॥ अथ गहूंली शोमी ॥ ॥ शाम लिया शामजी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ ज्ञानगुणें वरया रे, अरिहा अजित जिणंद जग वान || श्रावी समोसख्या रे, नयरी साकेतन उद्या न ॥ साधें पटोधरा रे, सिंहसेनादिक वर गणधार ॥ एक लाख मुनिवरा रे, ज्ञान क्रियाना जे जंमार ॥१॥ रूपक धारोहिने रे, मुनि गुणठाणे वधता जाय ॥ वर निरमोहीने रे, केश मुनि घाती करम खपाय ॥ केश परिपाटी यें रे, डुक्कर तप अजिग्रह करनार ॥ 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इम बहु घाटीयें रे, प्रजुने संगे परिवार ॥॥ सहु देवें मली रे, कीg समवसरण मंमाण ॥ बेग मन रली रे, त्रीजा गढमा त्रिजुवन जाण ॥ जश्था समीयें रे, दीधी वधाइ प्रजुनी ताम ॥ षटखंड सा मीयें रे, पूरित मनोवंडित काम ॥३॥ बहु श्राडब रें रे, आवे चक्रिसगर उत्साह ॥ जक्ति पुरस्सरें रे, वांदे प्रजुजीना पाय ।। प्रजु दीये देशना रे, नवियण ने प्रेम प्रकाश ॥ चार प्रकारने अनुसरी रे, पामो नवियण जव निस्तार ॥४॥ सखीये परवरी रे, ना में रत्न सुकेशा नार ॥ अति हरखें करी रे, पूरे मंगल श्राव उदार ॥ त्रण खमासणे रे, वांदे वधावे थर उ माल ॥ रंगजरथी सुणे रे, प्रजुनां अमृत वयण रसा ल॥५॥ इति ॥१०॥ ॥अथ गहूंली एकशो ने एकम। ॥ द्वारिका नयरी सुंदरु ॥ तारूजी॥ सहसावन श्र निराम हो । गुणवंती गहूंली करे फागमा ।। वारुजी ॥ १॥ नेम जिणंद समोसस्या ॥ ता ॥ वनपा लक दीये वधाइ हो। गुण ॥ श्रीकृष्ट अग्रमही षी अष्टशुं ॥ ता ॥ वंदन पडह वजाय हो । ॥ गुरु॥२॥ पंच अनिगम साचवी॥ ता०॥ वादे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) तिहा गोविंद हो ॥ गु० ॥ जगगुरु श्रागल गहूंली करे ॥ ता० ।। देखी प्रजु मुख अरविंद हो ॥ गुण॥ ॥३॥ श्रझारन चोक उपरें ॥ ता० ॥ नक्ति कुंकुम रंग रोल हो । गुण॥ पंच प्रमादनी तर्जना ॥ ता॥ पंच रत्न नवित अमोल हरे ॥ गुण ॥ ५ ॥ ज्ञान गुलाल उडावतरं ॥ ताण ॥ तप अबीर नरि नरि मू विहो । गु० ॥ दर्शन पीचकारी जरी ॥ ता॥ चा रित्र परिमल उत्कंठी हो ॥ गु०॥ ५ ॥ नावना व संत गाये तिहां ॥ ता॥ गिस्या नेमनी पास हो ॥ गुण ॥ समकित फगुवा तिहां दिये ॥ ता॥ जे थी जाये जवनी काश हो। गु०॥ ६॥ गढूखी एणी परे कीजीये ॥ता ॥ पामे मक्ति विलास हो ॥ गुण ॥पंमित ज्ञान शिवपद लहे ॥ ता॥ विनयें सफल होये थाश हो । गुण॥७॥इति ॥११॥ ॥अथ गहूंली एकशो ने बेमी॥ ॥रामचंदके बाग, चांपो मोरी रह्यो री॥ए देशी॥ चंपानयरी उद्यान, सुरतरु मोरी रह्यो री ॥ वीर प टोधर धीर, सोहम थाय रह्योरी ॥१॥ जीय कोह जीय मान, माया खोल दह्योरी ॥ संपूण श्रुतज्ञान, जिनवर बिरुद वल्लोरी॥२॥ श्राश्रव विषय प्रमाद, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) निझा पंच तजेरी ॥ दशविध सामाचारी, पटविध ज यणा नजेरी ॥३॥ उपकारें धरे बार, जावना तप पडिमारी ॥ निःकारण जगबंधु, रवि शशी मेह समा री॥४॥ कंचन कमल विचाल, बेसी धर्म कहेरी ॥ जेहथी नवियण लोय, आतम तत्त्व लहेरी ॥५॥ कोणिक नूपति नारि, घोयली गेली करेरी ॥ माणक मोति वधाय, पुण्य नंमार नरेरी ॥६॥ जिनशासन नी जक्ती, करतां पाप हरेरी ॥ सोहव सरिखे साद, घोयली गीत नणेरी ॥७॥ इति ॥ १० ॥ ॥अथ गहूखी एकशोनेत्रणमाडेलालनी देशी॥ ॥ज्ञानादिक गुणखाण, राजगृही उद्यान ॥ गणधर लाल ॥ सोहम सामी समोसत्या जी ॥१॥ कंचन गौर शरीर, वाणी गंगा नीर ॥ ग॥ त्रिहुं पंथें प सरे सदा जी ॥२॥ अंग उपांगद बार, दश विध रूचिनो धार ॥ ग ॥ फुगविध शिक्षा उपदिसे जी ॥३॥ तेर क्रिया व्रत बार, गिहि पडिमा अगीया र ॥ ग ॥ श्रावक गुण नेद सिझना जी ॥४॥ विनय वैय्यावञ्च कल्प, धरे दश विध अकल्प ॥ गण॥ वंदन दोष विकथा तजे जी ॥५॥ कुंकुम रोल कचोल, गहूंली करे रंगरोल ।। ग० ॥ अक्षत श्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) फल उपरें जी॥६॥ मगधाधिपनी नारी, शोल स जी शणगार ॥ गण॥ ललि ललि करती खूबणां जी ॥७॥ जोती गुरुमुख चंद, पामती परमानंद ।। ग॥ चतुर चकोरडी गोरडी जी ॥७॥ सुरवधू नरवधू को डि, मलि मलि सरखी जोडि ॥ गण॥ गावे जिनशा सन धणी जी॥ ए॥ इति ॥ १॥३॥ ॥अथ गहूंली एकशो ने चारमी॥ ॥पंचम पदने गाये रे ॥ ए देशी॥ ॥ श्रुतनाणी श्रुतधर गुरु रे, पंचावना त्यागी रे ॥ दशत्रिक वेत्ता नाव समेता, संवर तप सोनागी॥ धन गुरु वंदो रे ॥ वंदो रे जगत हितकारी ॥ धन०॥ ॥ए श्रांकणी ॥१॥ जीवानिगम ए सूत्रजमांहे, जीवाजीव विचार रे॥ग फु ति चउ पण विहा, जूजूश्रा नेद उदार ॥ धन ॥२॥ शशी रवि ग्रह नक्षत्र तारा, जंबु लवणे बमणा रे ॥ धाश्य त्रिगुणा नणजो सघले, चनदिशि फरे परित्नमणा ॥ धन ॥३॥ ऋण परें देशना दिये गुरु नाणी, पुण्य पाप जेलखाणी रे ॥ श्रझा जासन तत्वरमा अनुभव नाणी ॥धन ॥४॥ श्रझावंत सुश्राविका रे, निसुणी श्रीजिनवाणी रे ॥ सन्मुख जोती अक्षत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२०) पूरती, मुक्तिपदनी निशानी ॥धन ॥५॥ चिहुं ग ति उःखडां चूरती रे, ग्वती पंच रतन्न रे ॥ प्रजुगुण गाती पाप पखालती, प्रणमी थणती धन्य ॥धन। ॥६॥ मुक्ताफल वर थाल वधावी, लेती समकित रंग रे ।। जगगुरुनो विनय साचवती खेमें, धरती ध्या न तरंग ॥ धन०॥७॥ इति ॥१४॥ ॥अथ गढूली एकशो ने पांचमी॥ ॥ गोकुल मथुरां रे वाला ॥ ए देशी ॥ महासेन वनमा रे थावे, तिहां श्रीवीर जिणंद सुहावे ॥ समवसरण तिहां सुर विरचावे, चोश नमे अर्चावे ॥ महा॥१॥ शम दम शांत गुणे ते नरिया, जाणे जंगम नाणना दरीया ॥ चौद सहस मुनिशुपरवरिया, राजगृही नयरी संचरीया ॥ महा० ॥२॥राजा श्रेणिक वंदन आवे, चेलणा राणी साथे सुहावे ॥ बारे पर्षदा वंदे नावे, देशना सुणी मन रंज न थावे || महा०॥३॥ गुरुमुख आगल गहंली की जें, नरजव पामी लाहो लीजें ।। कुंकुम घोली मोतीडे वधावे, जावें समकित शुरुज थावे ॥ महा०॥४॥ श्री चोदय रत्नसूरिंद, निर्मल उग्यो पूनम चंद ।। जाणे जंगम मोहन वेली, टोलें मलि मंगल गाय सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) हेली ॥ महा ॥५॥ गहूंसी गाइ रंग रसाली, गुणि जन हृदय कमलमां वाली ॥ श्रीविजयराज सूरीश्वर राया, जे प्रणमे ते शिव सुख पाया ॥ म॥६॥इति । ॥अथ गहूली एकशो ने ही॥ ॥चालो साहेली, जंगम तीरथ वंदन करवा जश्ये, हां रे मुनि मुख निरखी, आपण सरवे साथे पावन थश्यें ॥चाणा पंच महावत तो जे नित्य पाले, समिति सम दृष्टि समजाले॥षटकायजीव नित्य प्रतिपाले, पंचेंजियः विषयने टाले॥चालोणा॥ नवविध ब्रह्म गुप्ति जे धारे, चार कषाय चोरने वारे॥वली त्रण दंडने मनशुं वारे, त्रण गुप्तिशृं आतम तारे ॥ चा०॥॥ थावर निरय तिरि गति नावे, देव मनुष्य पदवि पावे ॥ एम शुरु संयम मन नावे, ते मुनिवर मुक्ति जावे ।। चा०॥३॥ राग द्वेषने जेणे परहरिया, मुनि गुण समतारसना द रिया।। एम गुण सत्तावीशे जरिया, ते मुनिवर शिवर मणी वरिया ॥चा०॥४॥ गणधर बागल गहंसी कीजें, कुंकुम अक्षत थास नरीजें ॥ सुणी वाणी दी लडां रीजे, नरजव पामी लाहो लीजें ॥ चा० ॥५॥ छादश अंग गुणे जरिया, जिन मारग श्राराधे करि या॥ जेणें ताख्या डे आपणा परिया, संवेग सुधारस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) संचरिया ॥ चा॥६॥ विजयराज सूरीश्वगन्धराया, पट्टोधर चंडोदय गाया ॥ जिनवाणी सुधारस पाया, नवि जीवें निर्मल गुण गाया ।। चा ॥७॥१६॥ ॥अथ गईली एकशोने सातमी॥ थारा महेला उपर मेह ऊरूखे विजली ॥ हो खाल ॥ ज०॥ए देशी॥ ॥शोल करी शणगार, सोहागण नामिनी हो लाल ॥ सोहागण जामिनी ॥ उढी नवरंग घाट, चाले गज गामिनी हो लाल॥ चा॥ शीलवती कर थाल, ग्रही कुंकुम जरी हो लास ॥ ग्रही०॥ श्रावे समोसरण मांहे, हैये उलट धरी हो लाल ॥हैये ॥१॥ सिंहा सन मणि पीठ, विराजत जगधणी हो लाल ॥ विराण ॥ वीरजिनेश्वर वाणि, वखाणे अति घणी हो लाल ॥ वखाण ॥ षट घटि पर्यंत, प्रकाशे परवडो हो लाल ॥प्रका॥ नैगम अर्थ प्रवाह, त्रिजुवन दीव डो हो लाल ॥ त्रिजु॥२॥ कुमति मत अंधकार, हरे ज्यु दिनमणि हो लाल ॥ हरे०॥ पार्षद हर्षित थाय, लहे जिम सुरमणि हो लाल ॥ खदे॥ सुणी प्रजुनी वाणी, करे गुण गहूंबली हो लाल ॥ करे०॥ आढो चोखा मान, सोपारी उजली हो लाल || सो पा० ॥३॥ वधावे मुनिराय के, दिसमांहे हरखती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) हो लाल के ॥ दिल०॥ गुरु मुख पूनमचंद के, नय णे निरखती हो साल के ॥ नय॥ पामी स्त्री अव तार, गणे ए सारता हो लाल | गणे॥ खारा समु ७ मांहे, ए मीठी वारता हो लाल ॥ए मीठी ॥४ ॥ गोरी गावे गीत, गुरु गुण रस चढी हो लाल ॥ गुरु०॥ राग द्वेष दोय चोर, संघातें श्रति वढी हो लाल ॥ संघातें ॥ करे प्रशंसा देव के, धन धन ए वशा हो लाल के ॥धन॥ मनुजपणानो लाहो, ली ये ले शुनदशा हो लाल के ।। लीये डे ॥५॥ पधारे देवदें, तीर्थंकर मलपता हो लाल ॥ तीर्थ ॥ श्रा वी बेसे पदाण, श्रीगौतम दीपता हो लाल ॥ श्री गौ० ॥ सूत्र तणी जलधार, वरसावे वेगशुं हों लास ।। वरसावे ॥ विबुध दर्शन वृक्ष, वधारे नेगशुं हो लाल ॥ वधारे ॥६॥ इति ॥१७॥ ॥श्रथ पर्दूषणस्तुप्ति एकशो आठमी॥ ॥ परव पजूसण पुण्यं पामी, श्रावक करे ए करणी जी॥ आये दिन आचार पलावे, खमण पीसण ध रणी जी ॥ सूक्ष्म बादर जीव न विणासै, दया ते म नमा जाणे जी ॥ वीरजिनेसर नित पूजीने, सूधी समकित आणे जी ॥१॥ व्रत पाले ने धरे ते शुफि, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) पाप वचन नवि बोले जी ॥ केसर चंदनें जिन सवि पूजे, जवजय बंधन खोले जी ॥ नाटक करीने वाजि त्र वजाडे, नर नारीने टोलें जी ॥ गुण गावे जिनवर ना इस विध, तेहने कोइ न तोले जी ॥ २ ॥ श्रहम त करीब पोसह, बेसी पौषध साले जी ॥ राग द्वेष मद मत्सर बांकी, कूड कपट मन टाले जी ॥ कल्पसूत्रनी पूजा करीने, निशिदिन धर्मे माले जी ॥ एहवी करणी करतां श्रावक, नरक निगोदिक टाले जी ॥ ३ ॥ पडिक्कमएं करियें शुद्ध जावें, दान संव त्सरी दीजें जी ॥ समकेतधारी जे जिनशासन, रात्रि, दिवस समरीजें जी ॥ पारणवेला पडिलाजीने, मनो वांछित महोत्सव कीजें जी ॥ चित्त चोखे पजूसण क. रशे, मन मान्यां फल लेशे जी ॥ ४ ॥ इति ॥ १०८ ॥ ॥ अथ गहूंली एकशो ने नवमी ॥ वीरजीने बने मृत रस करे रे ॥ ए देशी ॥ ॥ जक्ति करी जें रे नवि श्रुतधर तणी रे, जेहनी सा ख नरे जियदेव || संदेह पूबीजें नित मेव ॥ जति ॥ १ ॥ तुंगी या नामें रे नगरी यति जली रे, जिहां श्रावक बारे व्रतधार ॥ जहनां मोकलां घर तणां बार ॥ ति० ॥ २ ॥ गुणना रागी रे जाण नवत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) वनारे, जिनमतरंजित जेहनी मींज ॥ वाव्युं सम कित सुरतरु बीज ॥ जक्ति० ॥ ३ ॥ तेषहिज नयरे रे थिविर समोरया रे, पाश संतानीया श्रुत जंकार ॥ साथ पांचरों वे अणगार || जति० ॥ ४ ॥ पुप्फवई चैत्येंरे अवग्रह अवग्रही रे, ते सुणी श्रावक हर्षित थाय ॥ गुरुपद वांदवा संघ तिहां जाय ॥ जति० ॥ ५ ॥ गली करे रे शुभ चित्तें श्राविका रे, गुरु मुख निरखी हर्षित थाय ॥ वांदी बेसे यथोचित वाय ॥ नक्ति ॥ ६ ॥ धर्म सुणीने रे श्रावक वीनवे रे, सं यम फल तपफलथी होय ॥ पूठ्या प्रश्न तिहां एम दोय ॥ जक्ति० ॥ 9 ॥ संयम केरुं रे फल अनाश्रव कां रे, तपफल निर्झरा ते होय ॥ एम कड़े उत्तर मुनि सहु कोय ॥ नक्ति ॥ ७ ॥ वली ते पूढे रे क हो तुमे पूज्यजी रे, तो किम देवगति ते जाय ॥ गुरु कहे सांजलो महानुजाव ॥ चति० ॥ ए॥ सुरपएं हो वेरे सरागसंयमें रे, शेष करमथी ते थाय ॥ श्म सु ही सह निज निज घर जाय ॥ जक्ति० ॥ १० ॥ जग वती अंगें रे जांखे वीरजी रे, एहमां नहीं कोई संदे ह || श्री विजयउदय सूरि मुखथी एह ॥ कहे मुनि राम विजय गुण गेह ॥ जक्ति ॥ ११ ॥ इति० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) ॥ गईली एकशो दशमी॥ .. ॥ साहेली महारी राजगृही उद्यान, प्रजुजी समो सत्यारे लोल ॥सा०॥ गणधर मुनिवर सहस, चौद शुं परिवस्या रे लोल ॥ सा॥ करता जवि उपकार, दया मन धारीने रे लोल ॥सा ॥ सकल जंतु प्रति पाल, बिरुद संजारीने रे लोल ॥१॥ सा ॥ ली धो डे अवतार, जगत प्रतिबोधवा रे लोल ॥सा॥ चउगश् फुःख जंजाल, प्रतिमल रोधवा रे लोल ॥सा० श्रणहूंते सुरको डि, सेवामां नित्य रहे रे लोल ॥सा॥ कर जोडी मोडी मान, थाणा शिर निर्वहे रे लोल ॥ २॥ सा ॥चार निकायना त्रिदश, मली त्रिगडो करे रे लोल ॥ सा ॥ चार गाउ परमाण, चतुर्मुख उच्च रे रे लोल ॥ सा॥ जिनमुख पूरव पाय पीठ, बिराजे गणधरू रे लोल ॥ सा॥था पर्षदा सुरराज, चार तिहां नरवरू रे लोल ॥३॥ सा॥ कहे वनपाल जूना थने, नाथ जी पधारिया रे लोल ॥ सा०॥ मगधाधि पलूपाल, नुजाल मनरंजीया रे लोल ॥सा ॥ देश वधामणी सार के, जिनगुण गावतो रे लोल ॥सा॥ कंचन रजत ते आठ, पूरथी वधावतो रे लोल ॥ ४ ॥साणा हय गय रह जड चतुरंग, सैन्य नरनारशुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ · (129) रे लोल ॥ सा० ॥ शेठ सेनापति तेर, परिवारशुं रे लोल ॥ सा० ॥ धुरथी त्रण प्रदक्षिणा, वंदे सुख क रू रे लोल ॥ सा०॥ पामी यथोचित ठाम, बेसे तिहां भूधरु रे लोल ॥ ५ ॥ सा० ॥ मुक्तिक स्वस्तिक राणी, चेला पूरती रे बोल ॥ सा० ॥ विच विच जिनमुख देखती, दुःखडां चूरती रे लोल ॥ सा०॥ धाराधर जि मवीर, वाणी प्रकाशतां रे लोल ॥ सा० ॥ तप जप संयम करी, सुख पामी शाश्वतां रे लोल ||६|| सा० ॥ सर्व विरति देश विरति, जिनमुख उच्चरे रे लोल ॥ सा० ॥ रयणी जोजन के, ब्रह्मचर्य मन धरे रे लोल ॥ सा० ॥ गंजा सारादियादि, पुर जणी यावी या रे लोल ॥ सा० ॥ विजयलक्ष्मी सूरिंद के, गुरुगुण गाइया रे बोल ॥ ७ ॥ इति ॥ ११० ॥ ॥अथ मुनिराज श्री मोहनलालजी माहाराज मुंबइमा पधारया ते वखते बनावेली गली एकशोने अग्यारमी ॥ सजनी मोरी, पास जिणंदने पूजो रे ॥ स० ॥ डु नियामां देव न डुजो रे ॥ स० ॥ सुहित गुरु हिं आव्या रे ॥ स ॥ सहु संघतणे मन जाव्या रे ॥ १ ॥ स || मोहनलालजी माहाराज रे ॥ स० ॥ सुणजो सह अधिकार रे || स० ॥ पंच महाव्रत सुधां पाले, रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२०) ॥सम्॥ शास्त्र तणे अनुसारें रे ॥२॥स॥ स मता गुणना दरीया रे ॥ स०॥ क्रिया पात्रना जरी या रे ॥स०॥ ज्ञान तणा भंडार रे ॥ स०॥ क हेता न थावे पार रे ॥३॥स ॥ मधुरी वाणी ये लांखे रे ।। स०॥ संघ स्वाद सर्वे चाखे रे ॥स॥ प्रश्न व्याकरण वंचाय रे ॥स॥ आश्रव संवर अ र्थ थाय रे ॥४॥स॥ उपर चरित्र वंचाय रे ॥ ॥ स ॥ पृथ्वीचंद कुमार रे ॥स०॥ सुणतां वैरा ग्यवंत थाय रे ॥स०॥ अज्ञान मिथ्याय हगवेरे ॥५॥ स ॥ षट चेला तमें जाणो रे ॥ स ॥ विनय गुणनी खाणो रे ॥ स ॥ जोबन वयमा ठे सरखा रे । स० ॥ वंदो पूजो ने हरखो रे ॥६॥ सम् ॥ जंगम तीरथ कहीये रे॥ स०॥ वंदीने पा वन थश्य रे ॥स॥ संघना पुण्यें अहीं आव्या रे ॥ स । जैनधर्मने दीपाव्या रे ॥ ७॥ स ॥ नाव सहित नक्ति करजो रे ॥ स॥ पुण्यनी पोठी तमें जरजो रे ॥ स०॥ नरतबाहु पेरें तरशो रे ॥स ॥ समुपार उतरशो रे ॥ ७॥ स० ॥ व्रत पञ्चकाण घणां थाय रे ॥स०॥ सात क्षेत्रे धन खरचाय रे ॥स० ॥ देहरे देहरे उडव मंमाय रे ॥ स०॥ चोथो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) मारो वरताय रे ॥ ए ॥ स० ॥ सधवा स्त्री गहूंली क हाडे रे || स० ॥ मुक्ताफलशुं वधावे रे | स० ॥ नागर पानासुत गावे रे | स० ॥ मगन लागे मुनि पाये रे ॥ स० ॥ पास जिनंदने पूजो रे ॥ स० ॥ दुनियामां दे व न डूजो रे ॥ १० ॥ इति ॥ १११ ॥ ॥ अथ मुनिराज श्री मोहनलालजी माहाराजनी ॥ ॥ गहूंली एकशो बारमी ॥ ॥ हो मुनिवरजी, तुज यति मीठी वाणी मुज म नमां वसी ॥ एकखी ॥ तमें जविक जनोने बोधों बो, मुक्ति तणो मारग शोधो हो, वलिं काम कषायने रोधो हो । हो मुनि० ॥ १ ॥ तमें जवसागरथी तरि या बो, अगणित गुणोथी जरिया हो, वली ज्ञानतरं गना दरिया हो । हो मुनि० ॥ २ ॥ तुम दरिसनथी दूरित जावे, सवि जन वलि सुख संपति पावे, नर नारी मलीने गुण गावे ॥ हो मुनि० ॥ ३ ॥ तुम मु ख कमलाकर शोने बे, जविजन जमराने थोने बे, मन जुक्तिरमामां लोने बे ॥ हो मुनि० ॥ ४ ॥ एवा मोहनलालजी मुनिराया, तजी चित्तथकी जेणें मा या, हिरालाल कहे में गुण गाया । हो मुनि ॥ ५ ॥ } Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) ॥ अथ मुनिराज श्री मोहनलालजी माहाराजनी॥ ॥ गहूंली एकशोने तेरमी।। ॥ मुनिवर संयममां रमता, शिवपुर जावानो ख प करता, अहो मुनि संयममां रमता ॥ ए आंकणी । मुनिवर विचरंता श्राव्या, षट चेला साथे लाव्या, मुंबना संघने मन जाव्या ॥ मुनिवरण | शि०॥ अहो ॥१॥ मुनिवर संयममा शुरा, मुनिवर कि रियामां पूरा, परिणामें मुनि अति रूडा ॥मुनि ॥ शि० ॥ आ॥ २ ॥ मुनिजीनी देशना बहु सारी, जविजनने लागे प्यारी, प्रतिबोध पाम्यां नर नारी ॥ मुनि ॥ शि० ॥ अ०॥३॥ मुनिवरे लाल घणा ली धा, श्रीसघनां कारज अति सीधां, उपकार एवा माहा मुनिये कीधा ॥ मुनि०॥ शि०॥ १०॥४॥ निजीनुं नाम घणुं सारू, मोहनलालजी लागे प्यार ॥ जिनशासन घणुं अजवाब्युं ।।मु०॥ शि० ॥ अ० ॥५॥जे मनिवरना गुण गावे, शिवपुर नगरी वेगे जावे, मगन कहे मुनिवरने ध्यावे ॥ मु०॥ शि० ॥ ॥ अहो०॥६॥ इति ॥ ११३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३१) ॥अथ मुनिराज श्री खांतिविजयजी माहाराजनी॥ गईली एकशोने चौदमी ॥ ..... ॥ नेक नजर करो नाथजी ॥ए देशी॥ खांतिविजय मुनि वेदियें, जेथी नवतरु कंद निक दीयें जीहो, खांतिविजय मुनि वंदीयें |ए आंकणी। जेनी अमृत धारा सारिखी, गुणखाणी वाणी वखा पीयें जी हो ॥ खांति ॥१॥ नित्य बह अहम तप स्या करे, जेनुं सद्याय ध्यानमा ध्यान जीहो ॥ खां ति०॥२॥जेनां ज्ञान तणो महिमा घणो, मानु केव ली हुं कलिकालमां जी हो ॥खांति० ॥३ ॥ जेणे ममता तजी संसारनी, एक मुक्तितणी ममता करी जी हो ॥ खांति०॥॥ हिरालाल कहे मुनि ते नमो, जेथी पाप जशे सवि पूरथी जी हो । खांति ॥५॥ ॥अथ माहामुनिराज श्रीवात्मारामजी माहाराजनी ॥ गईली एकशो ने पंदरमी॥ ॥सांजलजो रे मुनि संयमरागी, उपशम श्रेणें चडि या रे ॥ए देशी ॥ नQ थयु रे मारे सुगुरु पधास्या, जिन आगमना दरिया रे ॥ ए आंकणी ॥ ज्ञान तरंगें लेहेरो लेता, ज्ञान पवनथी नरिया रे ॥ नटुंग ॥ १॥ आज कालमा जे जिन आगम, दृष्टिपंथ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) मां आवे रे ॥ गहन गहन एहना जे अर्थो, प्रगट करीने बतावे रे ॥न॥२॥ शक्ति नहिं पण नक्ति तणे वश, गुण गावा उखसावु रे ॥ कर्णामृत गुरु चरित्र सुणावी, आनंद अधिक वधावू रे ॥ ज० ॥३॥ दक्षिण दिशि जंबुद्धीपमाहि, एही नरत म कार रे ॥ उत्तर दिशि पंजाब देश जिहां, लेहेरांगाम मनोहार रे॥ ज०॥॥४॥ क्षत्रियवंश गणेशचंद घर, जन्म लिया सुख धामें रे ॥ रूपदेवी कुदिशुक्तिमां, मुक्ताफल उपमाने रे ॥ न० ॥ ५ ॥ लघुवयमां प ण लक्षणथी बहु, दीपंता गुरुराया रे ॥ संगतिथी म सीढूंढक जनने, ढुंढकपंथ धराया रे ॥न॥६॥ संवत ओगणीशे दशमांही, उज्ज्वल कार्तिक मा से रे ॥ पंचमीने दिवसे लिए दीदा, जीवनराम गुरु पासे रे ॥ १० ॥ ७॥ ज्ञान नएया वली देश फि ख्या बहु, जूनां शास्त्र विलोकी रे, संशय पडिया गुरु में पूछे, प्रतिमा केम उवेखी रे॥ न ॥७॥ उत्तर न मिख्या जब गुरुजीने, ज्ञान कला घट जागी रे ॥ मुमति सखी घट आय वसी जब, ढपंथ दिया त्या गीरे ॥ ॥ए॥ धर्म शिरोमणि देश मनोहर, गुर्जर नूमि रसाली रे ॥ ज्यां आवी सुविहित गुरुपा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३) सें, मन शंका सहु टाली रे ॥ ज०॥ १० ॥ परम क स्यो उपकार तुमें बहु, श्रीगुरु श्रातमराया रे॥ जयवं ता वरतो या भरते, दिन दिन तेज सवाया रे॥ ज० ॥११॥ःसम काल समे गुरुजी तुमें, वचन दीव डा दीधारे ॥ शांतिविजय कहे जेथी हमारा, विषम काम पण सीधां रे ॥ ज०॥ १२ ॥ इति ॥ ११५ ॥ ॥ अथ श्री अचलगछपपति पूज्य जट्टारक श्रीरत्न सागर सूरीश्वरनी गहूंली एकशो ने शोलमी ॥ ॥ सहि मोरी घृतकबोल प्रनु प्रणमीने, पामी सु गुरु पसाय हो ॥ सूधी श्राविका ॥ स०॥ अचलगढ़ पति गायशु, विवेकसागर सूरिराय हो । सू० ॥१॥ ॥सण ॥ पंचमहाव्रत पालता, दशविध यतिधर्मसार हो ॥ सू॥स०॥ संयम सत्तर प्रकारना, नवविध ब्रह्मचर्य धार हो ॥ सू॥ २ ॥ स० ॥ ज्ञान दर्शन गणे प्ररिया, क्रोधादिक परिहार हो ॥ सू॥ स॥ पांच समितियें समिता रहे, चार अनिग्रहना धार हो ॥ सू॥३॥ स॥ पिंमविशुछिने शोधता, इंडि य निरोध करनार हो । सू० ॥ स ॥ त्रण गुप्तियें गु सा रहे, नावना लावता बार हो ॥ सू० ॥४॥ स० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) पंचाचारने पालता, टालता कर्मनो चार हो ॥ सू० ॥ स०॥ मादिक तप करे, वारे विषय विकार दो ॥ सू० ॥ ५ ॥ स० ॥ गंगाजलसम निर्जला, गुण छत्रीशना धार हो ॥ सू० ॥ स० ॥ रत्नसागर सूरि पटधरु, लब्धिता जंकार हो || सू० ॥ ६ ॥ स० विचरंता गुरु श्राविया, सुंथरी शहेर मजार हो ॥ ॥ सू०॥स०॥ सुरगुरुसम वाणी वाणी सुणी, हरख्यां सवि नर नार हो ॥ सू० ॥ ७ ॥ स० ॥ उमण । शशें पिस्तालीशें, माहाशुदि त्रिज रविवार हो ॥ सू० ॥ ॥ स० ॥ जाग्यवंत दीक्षा लिये, संघ चढविध मनो हार हो | सू० ॥ ८ ॥ स० ॥ दीक्षामहोत्सव हर्ष क री, पामी हर्ष उल्लास हो ॥ सू० ॥ स० ॥ वासदेप सूरियें कस्यो, देवा मुक्तिनो वास हो ॥ सू० ॥ ए ॥ सं० ॥ चव रंग वधामणां, हूवे जय जयकार हो ॥ सू० ॥ स० ॥ चिहुं गति पूरण साथियों, करे सो दागण नारि हो || सू० ॥ १० ॥ स० ॥ गुरुगुप गहूं ली गावतां, पातक दूर पलाय हो ॥ सू० ॥ स० ॥ पाटण रहेवासी शामजी, सूरितला गुण गाय हो सू० ॥ ११ ॥ इति ॥ ११६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) अथ ॥ अचलगष्ठपति पूज्य जहारक श्री विवेक सागर सुरिनी गहूंली एकशो ने सत्तरमी ॥ || रंग रसिया रंगरस बन्यो । मनमोहनजी ॥ ए देश । ॥ ॥ श्री सरसति पद प्रण मियें || गुरु सुखकारी ॥ गा यशुं गछपति राय ॥ मनडुं मोह्यं रे गुरु सुखकारी ॥ ॥ ए की || शासनदेवी पसायथी ॥ गु० ॥ सेव तां सवि सुख थाय ॥ म० ॥ गुण ॥ १ ॥ अचल गठ पति जाणियें ॥ गुण ॥ श्री रत्नसागर सूरिराय ॥ म० ॥ ॥ गु० ॥ तास पटोधर दीपता ॥ गु० ॥ श्री विवे कसागर सूरि राय ॥ म० ॥ गु० ॥ २ ॥ कनदेश सोहामणो ॥ गु० ॥ लघु आसं बियो मन जाण ॥ म० ॥ गु० ॥ गोत्रदेवया दीपता ॥ गु० ॥ कुलवृ ॐ सवंश वखाए ॥ म० ॥ गु० ॥ ३ ॥ टोकरसी सु त शोजता || गु० ॥ जननी कुंता बाइ मात ॥ म० ॥ गु० ॥ वंशविभूषण जाणी यें ॥ गु० ॥ नाम विवेक सिंधु विख्यात ॥ म० ॥ गु० ॥ ४ ॥ मांडवी बंदर मनोहरु | गु० ॥ श्री संघने प्रतिघणो प्यार ॥ म० ॥ गु० ॥ संघ चतुर्विध मली करी ॥ गु० ॥ करे पा ट महोत्सव सार ॥ म० ॥ गु० ॥ ५ ॥ संवत जंग पीश अवावीशें ॥ गु० ॥ कार्त्तिक वदि पंचम धार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३६) म० ॥ गु०॥ आचारज पद पामिया ॥ गु०॥ तिहां शोने शुज शनि वार ॥ म ॥ गु०॥ ६ ॥ गीतारथ गुरु आगंलें ॥ गु० ॥ शिष्य शोने सवि सार ।। म॥ गुण ॥ जाचकजन संतोषिया ॥गु०॥ जस वध्यो मन प्यार ॥ म॥ गुण ॥७॥ मुक्ताफल मूठी जरी गुण ॥ रचे गहूंली परम उदार ॥ म ॥ गु०॥ गुण वंत गावे प्रेमशुं ॥ गुण ॥ गुरु वंदे वारंवार ॥ म॥ गु० ॥ ॥ अचलगलपति दीपता ॥ गुण ॥ श्री विवेकसागर सूरिराय ॥ म० ॥ गुण ॥ प्रेमचंद कहे प्रणमतां ॥ गुण ॥ श्रीसंघने कल्याण थाय ॥ म॥ गुण ॥ ए॥ इति ॥ ११७ ॥ ॥अथ अचलगछपति पूज्यनहारक श्रीविवेकसागर - सूरीश्वरनी गहूंली एकशो ने अढारमी॥ ॥श्रा थाप उठी उतावली ॥सहि मोरी रे ॥ में सांन सी मीठी वाण ॥ लागे मुने प्यारीरे॥ा आचारज गुरु आविया ॥ स ॥आ जदपुर बंदर मकार, वात सनूरी रे॥१॥था चरण करण व्रत धारता ॥ स॥ था श्रावक दीये बहु मान, पुण्य पनोतां रे ॥ या स मिति गुप्ति सूधी धरे॥स॥था पाले प्रवचन माय, पामे ठकुरी रे॥२॥ श्रा दश अर्कने दिये देशवटो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) ॥स ॥ आ पांचशु राखे प्रेम, वहे जेम धोरी रे ॥आ अष्टमदने गालवा ॥स०॥ श्रा नवशुं राखे नेह, गुरु ब्रह्मचारी ॥३॥ था चार सदा चित्तमा वसे ।। स०॥ा बारशुं जीडे बाथ, श्रातम श्रजुवा ली रे॥ एवा गुरुने वांद\॥ स॥ श्रा शोल सजी शणगार ॥ सहियर टोली रे ॥४॥ था रजत रकेबी कर धरी ॥ स० ॥आ मांहे लावो बीपना पुत्र, कनक कचोरी रे ॥ श्रा चोकें चाचर चवटे ॥स॥ श्रा थोका थोके चालो, गाउँ गुण गोरी रे ॥५॥ श्राव खाणने अवसरे साथीयो ॥ स०॥ श्रा पूरे गुणवंती नार ॥ पुण्य सनूरी रे ॥ था केसरवहू काढे गहूथ ली॥ स॥आ धनबार पूरे चोक, चेत चतुरी रे ॥ ६॥ था अमृत सरिखी दिये देशना ॥ स ॥ श्रा सांजले श्रुत गुणबाण, वाणी मधुरी रे॥आ अचल गछपति शोजता ॥स ॥ था विवेकसागर सूरीज, पदवी रूडी रे॥७॥ इति ॥११॥ ॥गहूंखी एकशो बंगणीशमी॥ ॥प्रणमुं पदपंकज पास रे, जस नामें लील विलास रे. गाउं गुरुजी मनने उल्लास ॥ सूरीश्वर विनति वधारो रे ॥ सुजनगरी चोमासुं पधारो ॥ स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) ॥१॥ शेव लाडणशा कुलें थाया रे, माता जुमा बाश्ना जाया रे, तेथी गुरुजीशुं अधिकरी माया ।। सू० ॥ जु०॥ सू०॥॥ करतां एणे देश विहार रे, होशे पुण्यजी खान उदार रे, मिथ्यात्वी होशे व्रत धार ॥ सू० ॥जु०॥ सू०॥३॥ नुजनगरमांहे थ धिकारी रे, शेठ शिवजीशा समकेतधारी रे, ते तो वाट जुवे डे तमारी ॥ सू०॥४०॥ सू०॥४॥ शेठ सामण ने काटीया उसवाल रे, वोरा चुखड ने वमो डा उदार रे, जुजनगर देवाणी मेवाल ॥ सू० ॥ जु ॥सू०॥५॥रुचिवंती सुश्राविका यावे रे, श्रझा स मकित वस्ति बनावे रे, गुरु सन्मुख मोतीयें वधावे ॥ सू०॥जु०॥ सू०॥६॥ हर्ष झझिने सुख सवाई रे, अचलगढमां नित्य नित्य था रे, सान्निध्यकारी ने माहाकाली ॥ सू०॥ जु०॥ सू०॥७॥ गुरु चारे चोमासां थाया रे, सब्धिये गौतम शकि पाया रे, मुक्तिसागर सूरि सवाया ॥ सूरीश्वर विनति अवधा रो रे ॥जु० ॥ सू० ॥ ७॥ इति ॥ ११ ॥ ॥गईली एकशो ने वीशमी॥ ॥ जंगमतीर्थ विचरंता, करता देश विहार ॥ न 10 जीव प्रतिबूकवा, करता जग उपकार ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ते मुनिवर तारे तरे ॥ ए श्रांकणी ॥ समिति गुप्ति सू धी धरे, पाले प्रवचन माय ॥ अजयदान मुनिवर दिये, पाले जीव काय ॥ ते०॥॥ पंच माहावत धारता, पंचाव पच्चरकाण ॥ अष्ट मदने मुनि गा लता, पाले पंचाचार ॥ ते. ॥३॥ द्वादश पडिमाने शोधता, करता आतमशोध ॥ तप जप करे मुनि श्रा करा, काढे कमेनुं सूड ॥ते.॥४॥सम वाणं करे गोचरी, पाले दोष विशेष ॥ उंच नीचकुल जोवतां, नहिं लोजनो लेश ॥ ते ॥५॥ केशी गणधर पधारि या, सावबिनयरी उद्यान ॥राय परदेशी माहा पापी यो, धरे साधुनो द्वेष ॥ ते० ॥६॥प्रश्न पूछे मुनिवर प्रत्यें, जीव अजीव विचार ॥ स्वर्ग नरक जाणुं नहीं, न गणुं पुण्य ने पाप ॥ ते॥७॥ नय उपनय प्रश्न पूरिया, प्रतिभ्यो नूपाल ॥ एक अवतारी ते थयों, पाम्यो मुक्ति माहाराज ॥ ते०॥॥ इति ॥१२॥ ॥गहंली एकशो ने एकचीशमी। ॥श्राज सखि गुरु वंदन करीयें, वंदन करीये तो नव जल तरिये हो साम, श्राज सखि गुरुवंदन करी ॥ए आंकणी ॥गछपति गणधरना गुण गाऊं, हरख री मनमांहे हो साम । आज० ॥ १ ॥ सूरि F Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४०) णि गुण रागी, कनक रमणीना त्यागी हो साणा श्राप ॥पंच समिति त्रण गुप्ति बिराजे, प्रवचनमायने पाले हो सा॥था॥२॥ चरण करण सित्तेरी संजारे, ज्ञान कबोल उडाले हो सा॥श्रा०॥ त्रीश बत्रीशी गुण राजे, षट दर्शनमां गुरु गाजे हो सा०॥आ०॥ ॥३॥ वरसे उन्नु गुणें गुणवंता, सोहम अंबु महंता हो सा ॥ ॥ देश काल महिलें विचरंता, सम कित बीजना दाता हो सा॥ श्रा०॥४॥ राजगृही नगरीय पधाख्या, श्रेणिक सामझ्युं लाव्या हो सा० ॥था॥ मंत्री अजयकुमार प्रधान, यथोचित गुण ना जाण हो सा० ॥ श्रा॥५॥ चेलणा प्रमुख सहु परिवार, गुरुने वांदे बहु मान हो सा ॥ श्रा० ॥ बातम बाजोट पीठ बनावी, गहूंली करे रढियाली हो सा॥श्रा०॥६॥ कुंकुम घोली स्वस्तिक प्ररे, श्रेणिकनी पटराणी हो सा॥आ॥ ललि ललि गुरु मुख खूबणां करती, शिवनिश्रेणीय चडती हो सा ॥ श्रा०॥७॥ गुरुमुख कमल नयणे रे जोती, वचन सुधारस पीती हो सा॥॥ देशना सांज an हरख जराणी, देव नणे मधुरी वाणी हो सा० ॥ १०॥॥इति ॥११॥ मे हरख जराणी हो सायणे रे जोती. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४१) ॥अथ श्री कोगरानी गईसी एकशो ने बावीशमी। ॥जीरे मारे प्रणमुं जिनवर पाय, मूकी मननो यां मलो । जीरे जी॥ जीरे मारे शोलमा श्रीजिनराय, शांतिनाथ जी करुणा करो ॥ जीरे जी ॥१॥ जी० पामी तास पसाय, गबपति गुरु स्तवना करुं॥ जी. ॥जी॥ जंगम तीरथनाथ तीर्थ वंदावो कृपा करी ॥जी॥२॥जी॥ वृक्ष जसवश उत्पन्न, गुरुकुल वासे दनमणि ॥जी॥जी॥ रत्न त्रयना निधान, माता कुंता बाश्य जनमिया ॥जी॥३॥जी॥ ग्रह गणमां ज्योतिचक्र, अविचल राज्ये ध्रुव रहे॥जी॥ जी०॥ मुनि परिवारमा तेम, गुण छत्रीशे शोजता॥ जी०॥४॥जी॥ वारे परनो गठ, निज आतम गुण अनुसरे ॥जी॥जी॥ ॥ कोगरा नगर मकार, श्रावक लोक सुखिया वसे ॥जी॥५॥जी॥गुरुच रणे लयलीन,रागी सोनागी करे वीनती॥जी॥जी० नर नारीनां वृंद, बहु आमंबरें लावीया॥जी॥६॥ जी॥ नव शत सजी शणगार, श्राविका सावे गहू अली ॥ जी० ॥ जी० ॥ आत्म बाजोठ पीठ, पे मिनी पूरे साथियो॥जी॥॥जी० ॥ समकित श्रीफल हाथ, लली लली लीये खूबणां ॥ जी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४२) ॥जी॥ धूंघट खोख्या घाट, विच विच गुरु मुख जो वती॥जी॥6॥जी॥ देशना अमृतधार, सां जली श्रोता रस लीये ।। जी ॥जी० ॥ नय गम नं गनी जाल, स्यादवाद रचना करे ।। जीणा जी० विधि पदगष्ठ शिरताज, रत्नसागर सूरीश्वरु ॥जी॥ जी ॥ तस पाटें पूरींद, विवेक सागर तेजें तपे ॥ जी० ॥ १० ॥ इति ॥ १२॥ ॥अथ गहूली एकशो ने त्रेवीशमी॥ ॥नदी यमुनाके तीर, उडे दोय पंखीयां॥ ए देशी॥ ॥ चंपानयरी उद्यानमां, गणधर आवीया।। नामे सो हम स्वामी, नविकमन नाविया॥ विषय प्रमाद कषा य, हास्यादिक तजी ॥ रमता आतमराम के, निजप रिणति नजी॥१॥नीरागी जगवान् , करे गुणदेश ना॥ उपकारी असमान के, तारे जविजना॥सुणवा जिनवर वाणि, तिहां आव्या सहु॥ नर नारीना थो क के, हर्ष मने बहु ॥२॥ वसन आजूषण व्रत, तणा अंगे धरे ॥ कोणिकनूपति नार, हवे गहूली करे ॥ समिति गुप्ति सहियरने, साथे श्रावती॥आत्म असं ख्य प्रदेश, रकेबी लावती ॥३॥ श्रका कुंकुम घोली, स्तिक करे जावथी॥श्रातम पीउने उपर, जिनगुण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४३) गावती ॥ विनयवती बहु मानथी, एम गली करे । अनुजवनां करि लूटणां, आणा तिलक धरे ॥ ४ ॥ द्रव्यजावथी इणि परें, जे गहूंली करे ॥ समकितवंत ते श्राविका, जवसायर तरे ॥ मणि उद्योत गुरुराजना, गुणसखि मन धरो || पामी मनुज अवतार के, शंका नवि करो ॥ ५ ॥ इति ॥ १२३ ॥ ॥ अथ गहूंली एकशो चोवीशमी ॥ ॥ चालो सखि जइयें जातरा रे लोल, जिहां बे मरुदेवी नो नंद, शुभजावथी रे ॥ चालो जश्यें जिन बांदवा रे लोल ॥ १ ॥ चालतां चरण पावन थयां रे लोल, आत्म हर्ष जराय || शुज ॥ चा० ॥ वीरवशी मां पेसतां रे लोल, नयणां पावन थाय ॥ शु० ॥ चा० ॥ २ ॥ दशशत चैत्य सोहामणां रे लोल, वच्चें अष्टा पद उत्तंग ॥ शु० ॥ चा० ॥ त्रैलोक्य दीपक देहरा रे लोल, चोमुख प्रतिमा चार ॥ शु० ॥ चा० ॥ ३ ॥ पूर्व द्वारे पेसतां रे लोल, निस्सही कही त्रण वार ॥ शु० ॥ चा० ॥ पांच अभिगमन साचवी रे लोल, प्रदक्षिणा त्रण वार ॥ शु० ॥ चा० ॥ ४ ॥ मूलनाय क कुषजनाथजी रे लोल, अजितनाथ शिवसाथ शु० ॥ चा० ॥ चारे दुवारे बिंबथापना रे लोल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) ष्टादश दोय चार ॥ शु०॥ चा॥५॥ जिनप्रतिमा जिनसारखी रे लोल, शेषनजी पूर्व प्रसिद्ध ॥शुप ॥चा॥अष्टापद गिरि सिक थया रे लोल, नलिन पुरें कस्यो विकाम ॥ शु०॥चा॥६॥ शेष नरसी सुत हीरजीरे लोल, कुंअर अंग सुजात ॥ शु॥ चा॥ तस जार्या शुक्कपक्षिणी रे लोल, उत्तम कूलें उत्पन्न। शु०॥ चा॥७॥ दान शीयस तपस्या गुणे रे लोल, पूरबाई जग विख्यात ॥ शु॥ चा०॥ सुगुरु संजोग उपदेशथी रे लोल, चैत्य कस्यां चोसार ॥ शु०॥ चा॥७॥समकितदृढ गुण आत्मा रे लोल, ज्ञान जक्ति निमित्त ॥ शु०॥ सफल जयो दिन श्राजनो रे लोल, देवयात्रा फल सि ॥ शुण्॥ चा॥ ए॥ कल्पवृक्ष फल्यो पुण्य अंकूरथी रे लोल, मुक्ति वस्या सुख जरपूर ॥ शु०॥ चा०॥१०॥ इति ॥ १२४ ॥ CARE TAGPY SSC R EST जति श्रीगढूंसी संग्रहास्य पुस्तकस्य र प्रथमनाग समाप्तः॥ ESSASS 525255250 AR INDI DHARY SONG SpeSwee Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal nd Private Use Only