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________________ (१३) ... क हणीय रे, आतमने हित श्राणी ॥ए आंकणी॥ समकितवंत तणी ए करणी, जवसागर उद्धरणी॥न रकनिगोद तणी गति हरणी, मोदतणी नीसरणी॥ स०॥१॥ पंचम अंग विवाहपन्नत्ती, बीजुं जगवती नाम ॥ शतक एकतालीश बहु उद्देशें, अनंतानंत गु णधाम ॥ स ॥२॥वीर जगत गुरु गौतम गणधर, जोडी मोहनगारी ॥ प्रश्न उत्रीश हजार प्रकाश्या, वाणीनी बलिहारी ॥स० ॥३॥ गंगमुनि सिंहा मुनिवरना, प्रश्न सरस डे जेहमां ॥ नाव नेद षम् अव्य प्रकाश्यां, अमृतरस बे एहमां ॥ स ॥४॥ संग्राम सोनी प्रमुख जे नावी, समकितवंत प्रसिझो। प्रश्ने कंचन मोर ठवीने, नरजव लाहो लीधो ॥ स० ॥५॥ स्वस्तिक मुक्ताफलशु वधावो, ज्ञान नक्ति गुरु सेवा ॥ जगवती अंग सुणो बहु नावे, चाखो अमृत मेवा ॥ स० ॥६॥ वीरक्षेत्रना सकल संघने, विघ्न हरे वरदाई॥ दीपविजय कहे जगवती सुणतां, मंगल कोटि वधाई ॥ स० ॥ ७॥ इति ॥५॥ ॥अथ श्री गहूली बही॥.. ॥चालोने बार चालोने जुर्ज, सोहम गणधर रच ना रे ॥ चालोने बाई चालोने ॥ए आंकणी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003688
Book TitleGahuli Sangrahanama Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1908
Total Pages146
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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